शनिवार, 11 जून 2011

भारत को बाल श्रम उन्मूलन पर ठोस पहल लेने की जरूरत

-आईएलओ ने 2002 में ‘वर्ल्ड डे एगेंस्ट चाइल्ड लेबर’ की शुरुआत की
-बाल श्रम उन्मूलन के लिए आईएलओ ने एक प्रोटोकॉल बनाया
-प्रोटोकाल का अनुमोदन करने वालों में पाकिस्तान समेत 144 देश शामिल
-भारत ने अभी तक इस प्रोटोकॉल का अनुमोदन नहीं किया है

अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर बाल श्रम को रोकने के लिए बड़े-बड़े कानून बनाए गए हैं। इस पर रोक लगाने के लिए आए दिन बहस और सम्मेलनों का सिलसिला चलता रहता है। बावजूद इसके देश की राजधानी सहित सभी कोनों में बाल श्रम बदस्तूर जारी है। दुनिया में बाल श्रम का मुख्य कारण गरीबी है। बाल श्रम की रोकथाम के लिए काम करने वाली दिल्ली की एक स्वयं सेवी संस्था बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक कैलाश सत्यार्थी का कहना है, घर से बाहर निकलते ही, जो पहली चाय की दुकान होती है, वहां आपको एक छोटू नजर आ जाता है। वह चाय के कप साफ करता है और हमें चाय देता है। हम भी बड़े आराम से देश में बढ़ रहे बाल श्रम पर चर्चा करते हुए उससे चाय ले लेते हैं और पीने लगते हैं। मगर यह कभी नहीं सोचते कि अभी-अभी हमने भी इसी बाल श्रम को बढ़ावा दिया है। पूरी दुनिया से बाल श्रम को खत्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम संगठन और 144 देशों ने बच्चोंं के अधिकारों के लिए एक प्रोटोकॉल बनाया है।
इस प्रोटोकॉल का अनुमोदन करने वाले देश को अपनी सीमा में बच्चों की बिक्री, बाल वेश्यावृति और बच्चों की पोर्नोग्राफी पर पूर्ण रोक लगानी होती है। इन सभी को अपराध की श्रेणी में शामिल करना होता है। मगर भारत ने अभी तक इस प्रोटोकॉल का अनुमोदन नहीं किया है। हाल ही में हमारा पडोसी देश पाकिस्तान ने भी बाल अधिकारों पर सम्मेलन के वैकल्पिक प्रोटोकॉल का अनुमोदन कर दिया है। ऐसा करने वाला वह दुनिया का 144वां देश बन गया है। दुनिया के 126 देशों में बाल श्रम के खिलाफ एक साथ हुए प्रदर्शन के बाद अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने पहली बार वर्ष 2002 में वर्ल्ड डे एगेंस्ट चाइल्ड लेबर की शुरूआत की। इस दिन की शुरूआत इन बच्चों की परेशानियों को लोगों के सामने लाने के लिए की गई। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने इस दिन की शुरूआत पूरी दुनिया में बाल श्रम के खिलाफ चल रहे मुहिम के लिए उत्प्रेरक के तौर पर काम करने के लिए किया। बाल अधिकारों पर सम्मेलन के वैकल्पिक प्रोटोकॉल का अनुमोदन वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में हुआ। कैलाश सत्यार्थी का कहना है कि उनकी संस्था दिल्ली सहित देश के सभी राज्यों से बाल श्रम में लिप्त बच्चों को मुक्त कराने और उनके भविष्य को संवारने का काम करती है। वह कहते हैं कि बाल श्रम के क्षेत्र में सक्रिय गैर सरकारी संगठनों के मुताबिक दिसंबर वर्ष 2010 तक हमारे देश में करीब 6 करोड बाल श्रमिक हैं। इनमें से करीब एक करोड़ बच्चे बंधुआ मजदूर हैं। इस एक करोड़ में से 50 लाख तो बंधुआ मजदूरों के बच्चे होने के कारण जन्म से ही बंधुआ मजदूर हैं, जबकि शेष 50 लाख औद्यौगिक इकाइयों में काम करने वाले बच्चे हैं। एक अन्य संस्था अरुणिमा चाइल्ड वेलफेयर एसोसिएशन की अध्यक्ष डाक्टर अरुणा आनंद कहती हैं कि बाल श्रम को खत्म करने के लिए हमें लोगों की मानसिकता को बदलना होगा। राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग की बेवसाइट पर मौजूद वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार देश में बाल श्रमिकों की संख्या 1.27 करोड़ है। इसमें बंधुआ सहित तमाम तरह के बाल श्रमिक शामिल हैं।
कैलाश कहते हैं कि बाल श्रमिकों को मुक्त करवाना बहुत मुश्किल काम होता है। हमारी संस्था के लोगों के साथ सभी अभियानों के दौरान मार-पीट होती है। विरोध करने वालों की संख्या इतनी ज्यादा होती है कि हमारे साथ मौजूद पुलिस के सिपाही भी कई बार उनके गुस्से का शिकार हो जाते हैं। वह कहते हैं कि करीब दो महीने पहले एक अभियान में मैं और मेरे चार साथी बहुत बुरी तरह घायल हो गए थे। मगर उस घटना से हमें बाल श्रम से लड़ने का एक अच्छा मौका भी मिला। उस घटना पर स्वत: संज्ञान लेते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने पुलिस आयुक्त सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों को व्यक्तिगत तौर पर पेश होने के आदेश दिए। इस घटना के बाद दिल्ली में विभिन्न विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों का एक टास्क फोर्स बनाया गया है। फिलहाल हमारे देश में राष्ट्रीय बाल आयोग के अलावा दिल्ली एवं बिहार सहित केवल नौ राज्यों में बाल अधिकार आयोग हैं। मगर इन बाल अधिकार आयोगों के पास पर्याप्त शक्तियां नहीं होने के कारण यह बाल श्रम को रोकने में लगातार नाकाम साबित हो रहे हैं। डाक्टर आनंद कहती हैं कि बाल श्रम को रोकना सिर्फ सरकार का काम नहीं है। इसे रोकने के लिए हमें खुद जागरूक होना पड़ेगा.

बाल श्रमिक कर रहे हैं जोखिम भरे काम :संयुक्त राष्ट्र
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का कहना है कि विश्वभर में करीब 21.5 लाख बाल श्रमिक जोखिम भरे काम कर रहे हैं जिससे उनके घायल होने, बीमार पडने और मरने तक का खतरा है। अपनी एक नयी रिपोर्ट जोखिम भरे कामों में बच्चे :हम क्या जानते हैं, हमें क्या करने की जरूरत है में संगठन ने औद्योगिक और विकासशील देशों के शहरों में हुए अध्ययन का हवाला दिया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक हरेक मिनट एक बाल श्रमिक काम से जुडी दुर्घटनाओं, बीमारी या मानसिक सदमा झेलता है। बालश्रम के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने की तैयारी कर रहे संगठन की कल जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि वर्ष 2004 और 2008 के बीच जोखिम भरे कामों में लिप्त पांच से 17 साल की उम्र के बच्चों की संख्या में गिरावट आई है लेकिन इस अवधि के दौरान 15 से 17 साल के बाल श्रमिकों की संख्या में 20 प्रतिशत की बढोत्तरी हुई जो पांच करोड 20 लाख से बढकर अब छह करोड बीस लाख हो गयी है।
आईएलओ के महानिदेशक जुआन सोमाविआ ने कहा, पिछले दशक में हालांकि महत्वपूर्ण प्रगति हुई है लेकिन इसके बावजूद विश्वभर में बडी संख्या में बालश्रमिक विशेषकर जोखिमभरे कामों में बाल श्रमिक अभी भी बहुत ज्यादा हैं। सोमाविआ ने कहा, सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को मिलकर बालश्रम को खत्म करने की दिशा में काम करना होगा तथा इस संबंध में नीतियों को लागू करना होगा। बालश्रम का लगातार जारी रहना विकास के मौजूदा मॉडल के खिलाफ है। उन्होंने कहा, जोखिम भरे काम करने वाले बच्चों की सुरक्षा और उनके स्वास्थ्य की रक्षा हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

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