अरुंधती रॉय
(अनुवाद: मनोज पटेल)
मंगलवार की सुबह पुलिस
ने जुकोटी पार्क खाली करा लिया, मगर आज लोग वापस आ गये हैं। पुलिस को
जानना चाहिए कि यह प्रतिरोध जमीन या किसी इलाके के लिए लड़ी जा रही कोई जंग
नहीं है। हम इधर-उधर किसी पार्क पर कब्जा जमाने के अधिकार के लिए संघर्ष
नहीं कर रहे हैं। हम न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं। न्याय, सिर्फ संयुक्त
राज्य अमेरिका के लोगों के लिए ही नहीं बल्कि सभी लोगों के लिए।(अनुवाद: मनोज पटेल)
अभी हाल ही में राष्ट्रपति ओबामा के कार्यकाल में अमेरिका ने सऊदी अरब के साथ 60 बिलियन डालर के हथियारों का सौदा किया है। वह संयुक्त अरब अमीरात को हजारों बंकर वेधक बेचने की उम्मीद लगाये बैठा है। इसने मेरे देश भारत को 5 बिलियन डालर कीमत के सैन्य हवाई जहाज बेचे हैं. मेरा देश भारत ऐसा देश है जहां गरीबों की संख्या पूरे अफ्रीका महाद्वीप के निर्धमतम देशों के कुल गरीबों से ज्यादा है। हिरोशिमा और नागासाकी पर बमबारी से लेकर वियतनाम, कोरिया, लैटिन अमेरिका के इन सभी युद्धों ने लाखों लोगों की बलि ली है … ये सभी युद्ध ”अमेरिकी जीवन शैली” को सुरक्षित रखने के लिए लड़े गये थे। आज हम जानते हैं कि “अमेरिकी जीवन शैली” … यानी वह मॉडल जिसकी तरफ बाकी की दुनिया हसरत भरी निगाह से देखती है … का नतीजा यह निकला है कि आज 400 लोगों के पास अमेरिका की आधी जनसंख्या की दौलत है।
हम इसे प्रगति कहते हैं, और अब अपने आप को एक महाशक्ति समझते हैं। आपकी ही तरह हम लोग भी सुशिक्षित हैं, हमारे पास परमाणु बम और अत्यंत अश्लील असमानता है.अच्छी खबर यह है कि लोग ऊब चुके हैं और अब अधिक बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं। आकुपाई आंदोलन पूरी दुनिया के हजारों अन्य प्रतिरोध आंदोलनों के साथ आ खड़ा हुआ है, जिसमें निर्धनतम लोग सबसे अमीर कारपोरेशनों के खिलाफ खड़े होकर उनका रास्ता रोक दे रहे हैं। हममें से कुछ लोगों ने सपना देखा था कि हम आप लोगों को, संयुक्त राज्य अमेरिका के लोगों को अपनी तरफ पाएंगे और वही सब साम्राज्य के ह्रदय स्थल पर करते हुए देखेंगे. मुझे नहीं पता कि आपको कैसे बताऊं इसका कितना बड़ा मतलब है. उनका (1 फीसदी लोगों का) यह कहना है कि हमारी कोई मांगें नहीं हैं। शायद उन्हें पता नहीं कि सिर्फ हमारा गुस्सा ही उन्हें बर्बाद करने के लिए काफी होगा। मगर लीजिए कुछ चीजें पेश हैं, मेरे कुछ “पुराने क्रांतिकारी ख्याल” हमारे मिल-बैठकर इन पर विचार करने के लिए:
हम असमानता का उत्पादन करने वाली इस व्यवस्था के मुंह पर ढक्कन लगाना चाहते हैं। हम व्यक्तियों और कारपोरेशनों दोनों के पास धन एवं संपत्ति के मुक्त जमाव की कोई सीमा तय करना चाहते हैं. “सीमा-वादी” और “ढक्कन-वादी” के रूप में हम मांग करते हैं कि :
- व्यापार में प्रतिकूल-स्वामित्व (क्रास-ओनरशिप) को खत्म किया जाए। उदाहरण के लिए शस्त्र-निर्माता के पास टेलीविजन स्टेशन का स्वामित्व नहीं हो सकता; खनन कंपनियां अखबार नहीं चला सकतीं; औद्योगिक घराने विश्वविद्यालयों में पैसे नहीं लगा सकते; दवा कंपनियां सार्वजनिक स्वास्थ्य निधियों को नियंत्रित नहीं कर सकतीं।
- प्राकृतिक संसाधन एवं आधारभूत ढांचे … जल एवं बिजली आपूर्ति, स्वास्थ्य एवं शिक्षा का निजीकरण नहीं किया जा सकता।
- सभी लोगों को आवास, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा का अधिकार अवश्य मिलना चाहिए।
- अमीरों के बच्चे माता-पिता की संपत्ति विरासत में नहीं प्राप्त कर सकते। इस संघर्ष ने हमारी कल्पना शक्ति को फिर से जगा दिया
है। पूंजीवाद ने बीच रास्ते में कहीं न्याय के विचार को सिर्फ “मानवाधिकार”
तक सीमित कर दिया था, और समानता के सपने देखने का विचार कुफ्र हो चला
था। हम ऎसी व्यवस्था की मरम्मत करके उसे सुधारने के लिए नहीं लड़ रहे हैं,
जिसे बदले जाने की जरूरत है। एक “सीमा-वादी” और “ढक्कन-वादी” के रूप में
मैं आपके संघर्ष को सलाम करती हूं।
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