(देवेंद्र प्रताप)। माननीय प्रधानमंत्री के विरोधी उन पर भांति-भांति के आरोप मढ़ते हैं। कुछ बानगी देखिए। राहुल जी कहेंगे-दिखावा करने में हमारे प्रधानमंत्री जी का कोई सानी नहीं। चाहे गरीब होने का दिखावा हो, भले ही दिनभर में कई बार कपड़े बदलते हों। विचारों में प्रगतिशील होने का दिखावा हो, भले ही पुरातन विचारों से अभी गहरा नाता बना हुआ है। तो बहन मायावती कहेंगी-वे महिलाओं और दलितों के हमदर्द होने का दिखावा करते हैं, पर मनु स्मृति उनके विचारों को नियंत्रित करती है। पाकिस्तान, सांप्रदायिकता, राष्ट्रवाद आदि-आदि से जुड़े लोगों के और भी दर्जनों उदाहरण हो सकते हैं, लेकिन फिलहाल मैं यहां उनके युवाओं को पकौड़े बेचने की सलाह पर ही अपने को केंद्रित करूंगा।
मेरे एक मित्र एक दिन कहने लगे- हमारे प्रधानमंत्री आत्ममुग्धता के शिकार हो गए हैं। प्रधानमंत्री को ऐसा लगने लगा है कि वे बहुत अच्छा बोलते हैं। उन्हें लगता है कि उनके जैसा विद्वान फिलहाल उनकी पार्टी और विपक्ष तो छोड़ दीजिए, पूरे भारत और पाकिस्तान ही नहीं, पूरी दुनिया में नहीं है। ट्रंप से भी ज्यादा वे अक्लमंद हैं। उनका सीना चूंकि 56 इंच का है, इसलिए उनके जैसा बलशाली भी इस धरती पर नहीं है। खली भी उनसे भिड़ने की हिम्मत नहीं जुटा सकता।
इस पर पास में बैठे छी न्यूज के मेरे पत्रकार मित्र भड़क गए। बोले क्या बात कहते हैं। मुझे तो लगता है कि आजादी के बाद से अब तक उनके जैसा कोई प्रधानमंत्री नहीं हुआ। गरीब देश ऐसा प्रधानमंत्री पाकर धन्य हो गया है। बस फिर क्या था दोनों में तू-तू मैं-मैं शुरू हो गई। पहले मित्र ने पत्रकार साथी को व्यंग्यपूर्ण अंदाज में फिर कोंचा। हां, पिछले दिनों माननीय प्रधानमंत्री जी ने लोकसभा में अपनी मेधा का अद्भुत प्रदर्शन किया। जिस बेरोजगारी से पूरा देश परेशान है। जिसने न जाने कितने परिवारों को दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर कर दिया। न जाने कितने नौजवानों ने इसके चलते अपनी जीवनलीला खत्म कर ली। जिसने देश की करीब 75 प्रतिशत गरीब और मजबूर आबादी को पूंजीपतियों की मर्जी पर छोड़ने को मजबूर कर दिया। उस बेरोजगारी को दूर करने के लिए उन्होंने ऐसा पकौड़ा मंत्र मारा कि पूरे देश में उनके भक्त पकौड़ा तलने में लग गए हैं। भाई कुछ बात तो उनमें है।
उनके तरकश से व्यंग्य बाण रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। बोले- विपक्ष कहता है कि जिन माता-पिता के बच्चे बेरोजगार होते हैं, उनके दर्द को हमारे प्रधानमंत्री बिल्कुल नहीं समझते हैं। अक्सर वे कहते हैं कि वे कभी चाय बेचा करते थे, लेकिन उनके किसी भी व्यवहार से लगता नहीं कि उन्होंने कभी गरीबी देखी थी। ऐसा हो सकता है कि उन्होंने कभी गुर्बत में जिंदगी बिताई हो, लेकिन अब उनका वर्ग बदल गया है। बदलाव भी इतना ज्यादा हो गया है कि अब वे गरीब जनता के दुख दर्द को पूरी तरह भूल चुके हैं। यही वजह है कि उन्होंने बेरोजगारों को आजीविका के लिए पकौड़े बेचने का व्यवसाय करने की सलाह दी है।
एक विद्वान इतिहासकार से एक दिन प्रधानमंत्री जी के पकौड़े वाले उद्यम पर चर्चा हो रही थी तो वे कहने लगे आज सभी पार्टियों के नेता आम जनता से कट गए हैं। यही वजह है कि आम लोग किस तरह गुर्बत में जीवन बसर कर रहे हैं, उससे उनका कोई वास्ता नहीं। आम गरीब लोगों के बीच कभी भी वे बिना हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों के नहीं जाते हैं। प्रधानमंत्री और उनकी कीचड़ में उगने खिलने वाले कमल के निशान वाली पार्टी का भी यही हाल है। इसके बाद तो उन्होंने भारत के पकौड़े को सीधे फ्रांसीसी क्रांति के लिए जिम्मेदार ब्रेड से जोड़ डाला। वे कहने लगे-तुम्हारी बातों से मुझे फ्रांसीसी क्रांति के समय जनता द्वारा रोटी मांगने पर उसे वहां की राजकुमारी द्वारा दिया गया जवाब याद आ रहा है। जिस तरह हमारे प्रधानमंत्री अक्सर दैवीय सिद्धांतों की चर्चा करते रहते हैं और प्राचीन भारत का गुणगान करते हैं, उसी तरह फ्रांस में भी निरंकुश राजतंत्र दैवी सिद्धांतों पर आधारित था। इन सिद्धांतों ने राजा को असीमित अधिकार देकर स्वेच्छाचारी बना दिया था। संभवतः यह लुई 14वें का शासनकाल था जब उसने घोषणा की कि मैं ही राज्य हूं। इसके बाद लुई 15वां और 16वां आए। सत्ता की निरंकुशता बढ़ने के साथ ही जनता की तकलीफें भी बढ़ीं। इसके साथ ही जनता के साथ सत्ता का अलगाव भी बढ़ा। जब जनता हर तरह से राजा को समझाकर हार गई तो उसने क्रांति का रास्ता चुना। इस समय लुई 16वां राजा था। जब लोग रोटी के लिए जुलूस निकालते हुए उसके महल के नीचे पहुंचे तो उसकी पत्नी ने कहा कि यदि रोटी उपलब्ध नहीं है तो लोग केक क्यों नहीं खाते। कुछ ऐसा ही काम क्या हमारे प्रधानमंत्री नहीं कर रहे हैं। उन्हें जनता से कोई सरोकार नहीं, इसीलिए ऐसी बातें करते हैं। ....भाई कुछ इसी तरह की बातें सुनते , पढ़ते पक गया था। सोचा आप से साझा कर लूं। शेष फिर।
मेरे एक मित्र एक दिन कहने लगे- हमारे प्रधानमंत्री आत्ममुग्धता के शिकार हो गए हैं। प्रधानमंत्री को ऐसा लगने लगा है कि वे बहुत अच्छा बोलते हैं। उन्हें लगता है कि उनके जैसा विद्वान फिलहाल उनकी पार्टी और विपक्ष तो छोड़ दीजिए, पूरे भारत और पाकिस्तान ही नहीं, पूरी दुनिया में नहीं है। ट्रंप से भी ज्यादा वे अक्लमंद हैं। उनका सीना चूंकि 56 इंच का है, इसलिए उनके जैसा बलशाली भी इस धरती पर नहीं है। खली भी उनसे भिड़ने की हिम्मत नहीं जुटा सकता।
इस पर पास में बैठे छी न्यूज के मेरे पत्रकार मित्र भड़क गए। बोले क्या बात कहते हैं। मुझे तो लगता है कि आजादी के बाद से अब तक उनके जैसा कोई प्रधानमंत्री नहीं हुआ। गरीब देश ऐसा प्रधानमंत्री पाकर धन्य हो गया है। बस फिर क्या था दोनों में तू-तू मैं-मैं शुरू हो गई। पहले मित्र ने पत्रकार साथी को व्यंग्यपूर्ण अंदाज में फिर कोंचा। हां, पिछले दिनों माननीय प्रधानमंत्री जी ने लोकसभा में अपनी मेधा का अद्भुत प्रदर्शन किया। जिस बेरोजगारी से पूरा देश परेशान है। जिसने न जाने कितने परिवारों को दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर कर दिया। न जाने कितने नौजवानों ने इसके चलते अपनी जीवनलीला खत्म कर ली। जिसने देश की करीब 75 प्रतिशत गरीब और मजबूर आबादी को पूंजीपतियों की मर्जी पर छोड़ने को मजबूर कर दिया। उस बेरोजगारी को दूर करने के लिए उन्होंने ऐसा पकौड़ा मंत्र मारा कि पूरे देश में उनके भक्त पकौड़ा तलने में लग गए हैं। भाई कुछ बात तो उनमें है।
उनके तरकश से व्यंग्य बाण रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। बोले- विपक्ष कहता है कि जिन माता-पिता के बच्चे बेरोजगार होते हैं, उनके दर्द को हमारे प्रधानमंत्री बिल्कुल नहीं समझते हैं। अक्सर वे कहते हैं कि वे कभी चाय बेचा करते थे, लेकिन उनके किसी भी व्यवहार से लगता नहीं कि उन्होंने कभी गरीबी देखी थी। ऐसा हो सकता है कि उन्होंने कभी गुर्बत में जिंदगी बिताई हो, लेकिन अब उनका वर्ग बदल गया है। बदलाव भी इतना ज्यादा हो गया है कि अब वे गरीब जनता के दुख दर्द को पूरी तरह भूल चुके हैं। यही वजह है कि उन्होंने बेरोजगारों को आजीविका के लिए पकौड़े बेचने का व्यवसाय करने की सलाह दी है।
एक विद्वान इतिहासकार से एक दिन प्रधानमंत्री जी के पकौड़े वाले उद्यम पर चर्चा हो रही थी तो वे कहने लगे आज सभी पार्टियों के नेता आम जनता से कट गए हैं। यही वजह है कि आम लोग किस तरह गुर्बत में जीवन बसर कर रहे हैं, उससे उनका कोई वास्ता नहीं। आम गरीब लोगों के बीच कभी भी वे बिना हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों के नहीं जाते हैं। प्रधानमंत्री और उनकी कीचड़ में उगने खिलने वाले कमल के निशान वाली पार्टी का भी यही हाल है। इसके बाद तो उन्होंने भारत के पकौड़े को सीधे फ्रांसीसी क्रांति के लिए जिम्मेदार ब्रेड से जोड़ डाला। वे कहने लगे-तुम्हारी बातों से मुझे फ्रांसीसी क्रांति के समय जनता द्वारा रोटी मांगने पर उसे वहां की राजकुमारी द्वारा दिया गया जवाब याद आ रहा है। जिस तरह हमारे प्रधानमंत्री अक्सर दैवीय सिद्धांतों की चर्चा करते रहते हैं और प्राचीन भारत का गुणगान करते हैं, उसी तरह फ्रांस में भी निरंकुश राजतंत्र दैवी सिद्धांतों पर आधारित था। इन सिद्धांतों ने राजा को असीमित अधिकार देकर स्वेच्छाचारी बना दिया था। संभवतः यह लुई 14वें का शासनकाल था जब उसने घोषणा की कि मैं ही राज्य हूं। इसके बाद लुई 15वां और 16वां आए। सत्ता की निरंकुशता बढ़ने के साथ ही जनता की तकलीफें भी बढ़ीं। इसके साथ ही जनता के साथ सत्ता का अलगाव भी बढ़ा। जब जनता हर तरह से राजा को समझाकर हार गई तो उसने क्रांति का रास्ता चुना। इस समय लुई 16वां राजा था। जब लोग रोटी के लिए जुलूस निकालते हुए उसके महल के नीचे पहुंचे तो उसकी पत्नी ने कहा कि यदि रोटी उपलब्ध नहीं है तो लोग केक क्यों नहीं खाते। कुछ ऐसा ही काम क्या हमारे प्रधानमंत्री नहीं कर रहे हैं। उन्हें जनता से कोई सरोकार नहीं, इसीलिए ऐसी बातें करते हैं। ....भाई कुछ इसी तरह की बातें सुनते , पढ़ते पक गया था। सोचा आप से साझा कर लूं। शेष फिर।