कॉमरेड विश्वनाथ मिश्रा का आज सुबह निधन हो गया। वे इतिहास, दर्शन, साहित्य-कला के मर्मज्ञ थे। विज्ञान के महाप्रयोग पर जनज्वार वेबसाइट के लिए कामरेड अजय के अनुरोध पर लिखा उन्होंने यह लेख लिखा था। उन्हीं की याद में उनका यह लेख यहां प्रकाशित किया जा रहा है।
विश्वनाथ मिश्र
क्वाण्टम भौतिकी के स्टैण्डर्ड मॉडल सिद्धान्त के अनुसार विश्व के सारे प्रारम्भिक कण या तो फर्मिऑन या बोसॉन हैं .फर्मिऑन पदार्थ-कण हैं जो फर्मी-डिराक सांख्यिकी का अनुसरण करते हैं और पाउली के अपवर्जन सिद्धान्त के अनुसार दो फर्मिऑन एक ही क्वाण्टम अवस्था में नहीं रह सकते.फलतः ये पदार्थ-कणों में ‘‘दृढ़ता’’ और ‘‘कठोरता’’ प्रदान करते हैं.
क्वाण्टम भौतिकी के स्टैण्डर्ड मॉडल सिद्धान्त के अनुसार विश्व के सारे प्रारम्भिक कण या तो फर्मिऑन या बोसॉन हैं .फर्मिऑन पदार्थ-कण हैं जो फर्मी-डिराक सांख्यिकी का अनुसरण करते हैं और पाउली के अपवर्जन सिद्धान्त के अनुसार दो फर्मिऑन एक ही क्वाण्टम अवस्था में नहीं रह सकते.फलतः ये पदार्थ-कणों में ‘‘दृढ़ता’’ और ‘‘कठोरता’’ प्रदान करते हैं.
इनके
बगैर नक्षत्रों, ग्रहों, उपग्रहों आदि वैश्विक पिण्डों का विकास नहीं हो
सकता था.इसके विपरीत, बोसॉन अ-पदार्थ हैं और बल-वाहक कण हैं जो
बोस-आइन्स्टीन सांख्यिकी का अनुसरण करते हैं.ये फर्मिऑन के विपरीत, दो या
अधिक की संख्या में एक ही क्वाण्टम अवस्था में रह सकते हैं.
अब स्टैण्डर्ड मॉडल सिद्धान्त के सामने सबसे बड़ा सवाल यह था कि फर्मिऑन कणों से पदार्थ का विकास होने के बावजूद उसमें द्रव्यमान कहाँ से आता है.अगर भौतिक जगत के पदार्थ-कणों में द्रव्यमान नहीं होता तो वे द्रव्यमानरहित प्रकाश कणों अर्थात फोटानों की भाँति प्रकाश के तीन लाख किलो मीटर प्रति सेकेण्ड के वेग से निरन्तर गति करते रहते, और तब तो इस परस्पर सम्बद्ध भौतिक जगत का विकास ही नहीं हुआ होता.
पदार्थ और उसके कणों में द्रव्यमान कहाँ से आता है - इस सवाल पर लम्बे अर्से से वैज्ञानिक मन्थन करते आ रहे थे, परन्तु कोई भी संतोषजनक समाधान प्राप्त नहीं हो पा रहा था.
इस सवाल का सैद्धान्तिक समाधान 1964 में ब्रिटिश भौतिकविद् पीटर हिग्स ने प्रस्तुत किया.उन्होंने हिग्स-बोसॉन ऊर्जा-क्षेत्र की अवधारणा प्रस्तुत की.इस अवधारणा के अनुसार समूचे ब्रह्माण्ड में ‘‘कुहासे’’ या ‘‘चिपचिपे “शीरे’’ की भाँति बोसॉन कणों का एक ऊर्जा-क्षेत्र व्याप्त है, जिनसे होकर गुजरने वाला कोई भी कण इस ऊर्जा-क्षेत्र में ‘‘भींगकर’’ द्रव्यमान ग्रहण कर लेता है, ठीक वैसे ही जैसे एक तैराक वाटरपूल में तैरते हुए भींग जाता है.
यहीं पर एक अहम् सवाल उठता है कि प्रकाश -कण या फोटान इस क्षेत्र से गुजरने के बावजूद द्रव्यमान क्यों नहीं ग्रहण कर पाते.इसके जवाब में वैज्ञानिकों का उत्तर यह है कि फोटान कण हिग्स-बोसॉन के ‘‘कुहासे’’ या ‘‘शीरे’’ के प्रति अभेद्य होते हैं, और इसी लिए द्रव्यमान नहीं ग्रहण कर पाते.
पीटर हिग्स द्वारा प्रस्तावित हिग्स-बोसाॅन क्षेत्र की सैद्धान्तिक अवधारणा से वैज्ञानिकों की सहमति के बावजूद सबसे बड़ा सवाल यह था कि क्या हिग्स-बोसॉन कणों का वास्तव में अस्तित्व है? एक लम्बे समय तक प्रयोगों द्वारा इन कणों का भौतिक अस्तित्व सिद्ध न हो सकने के चलते एक नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक लिओन लेडरमैन ने 1993 में एक पुस्तक लिखी जिसका शीर्षक दिया - ‘‘गाॅड डैम पार्टिकल’’ - अर्थात जैसे ईश्वर भ्रान्तिजनक और अबोधगम्य है, ठीक वैसे ही हिग्स-बोसॉन कण भी भ्रान्तिजनक और अबोधगम्य है.
परन्तु पुस्तक के प्रकाशक ने ‘‘डैम’’ “शब्द हटाकर सीधे ‘‘गाॅड पार्टिकल’’ छाप दिया.वैज्ञानिक विरादरी को यह परिवर्तन बहुत नागवार लगा, क्योंकि हिग्स-बोसॉन कण का ईश्वर या धर्मशास्त्र से कुछ लेना-देना नहीं था.फिर भी गैर-वैज्ञानिक मीडिया और समाज में यह ‘‘गाॅड पार्टिकल’’ “शब्द इतना लोकप्रिय हो गया कि अब ‘‘गाॅड पार्टिकल’’ “शब्द ‘‘हिग्स-बोसॉन’’ कण का पर्यायवाची ही बन गया है.
फिर भी सबसे बड़ा सवाल तो अपनी जगह पर बना ही हुआ था कि क्या ‘‘हिग्स-बोसॉन’’ का सचमुच अस्तित्व है भी या नहीं .
अन्य कई सवालों के साथ-साथ इस अहम् सवाल का उत्तर खोजने के लिए जेनेवा स्थित यूरोपियन आर्गेनाइजेशन फार न्यूक्लियर रिसर्च ( CERN) ने विज्ञान के इतिहास में अब तक के सबसे बड़े महाप्रयोग का आयोजन किया.स्वीट्जरलैण्ड और फ्रांस की सीमा पर पृथ्वी की सतह से 50 से 175 मीटर नीचे 27 किलो मीटर लम्बी और 3.8 मीटर चक्करदार सुरंग में एक महामशीन को स्थापित किया जो वास्तव में एक विशालतम् कण वेग (पार्टिकल एक्सीलरेटर) है, जिसमें हैड्रान अर्थात प्रोट्रान पुंजों की आपस में टक्कर करायी गयी.प्रोट्रान-पुंजों की टक्कर कराने वाली इस महामशीन को लार्ज हैड्रान कोलाइडर कहा गया.
अत्यन्त दुःसाध्य और जटिल प्र्रयोग और उससे प्राप्त आकड़ों के विश्लेषण के बाद विगत 4 जुलाई, 2012 को यह वैज्ञानिक घोषणा कर दी गयी कि हिग्स-बोसॉन कणों के भौतिक अस्तित्व का पता लग गया.इस प्रकार महान वैज्ञानिक पीटर हिग्स की हिग्स-बोसॉन ऊर्जा क्षेत्र के वास्तविक अस्तित्व की पुष्टि में वैज्ञानिक मुहर लग गयी.
हिग्स-बोसॉन नहीं पाया जा सकता - इस दावे के गलत सिद्ध हो जाने पर अपनी बाजी हार जाने के बावजूद महान भौतिकविद् और वैज्ञानिक चिन्तक स्टीफन हाकिन्स ने अत्यन्त उत्साहित होकर पीटर हिग्स के लिए नोबेल पुरस्कार दिये जाने की माँग कर डाली है.
हिग्स-बोसॉन के अस्तित्व का पता लग गया.क्वाण्टम भौतिकी के स्टैण्डर्ड माॅडल सिद्धान्त की एक अहम् समस्या का समाधान हो गया.फिर भी अनुत्तरित सवाल और भी हैं जिनका उत्तर स्टैण्डर्ड मॉडल सिद्धान्त को खोजना ही होगा, जैसे -
अब स्टैण्डर्ड मॉडल सिद्धान्त के सामने सबसे बड़ा सवाल यह था कि फर्मिऑन कणों से पदार्थ का विकास होने के बावजूद उसमें द्रव्यमान कहाँ से आता है.अगर भौतिक जगत के पदार्थ-कणों में द्रव्यमान नहीं होता तो वे द्रव्यमानरहित प्रकाश कणों अर्थात फोटानों की भाँति प्रकाश के तीन लाख किलो मीटर प्रति सेकेण्ड के वेग से निरन्तर गति करते रहते, और तब तो इस परस्पर सम्बद्ध भौतिक जगत का विकास ही नहीं हुआ होता.
पदार्थ और उसके कणों में द्रव्यमान कहाँ से आता है - इस सवाल पर लम्बे अर्से से वैज्ञानिक मन्थन करते आ रहे थे, परन्तु कोई भी संतोषजनक समाधान प्राप्त नहीं हो पा रहा था.
इस सवाल का सैद्धान्तिक समाधान 1964 में ब्रिटिश भौतिकविद् पीटर हिग्स ने प्रस्तुत किया.उन्होंने हिग्स-बोसॉन ऊर्जा-क्षेत्र की अवधारणा प्रस्तुत की.इस अवधारणा के अनुसार समूचे ब्रह्माण्ड में ‘‘कुहासे’’ या ‘‘चिपचिपे “शीरे’’ की भाँति बोसॉन कणों का एक ऊर्जा-क्षेत्र व्याप्त है, जिनसे होकर गुजरने वाला कोई भी कण इस ऊर्जा-क्षेत्र में ‘‘भींगकर’’ द्रव्यमान ग्रहण कर लेता है, ठीक वैसे ही जैसे एक तैराक वाटरपूल में तैरते हुए भींग जाता है.
यहीं पर एक अहम् सवाल उठता है कि प्रकाश -कण या फोटान इस क्षेत्र से गुजरने के बावजूद द्रव्यमान क्यों नहीं ग्रहण कर पाते.इसके जवाब में वैज्ञानिकों का उत्तर यह है कि फोटान कण हिग्स-बोसॉन के ‘‘कुहासे’’ या ‘‘शीरे’’ के प्रति अभेद्य होते हैं, और इसी लिए द्रव्यमान नहीं ग्रहण कर पाते.
पीटर हिग्स द्वारा प्रस्तावित हिग्स-बोसाॅन क्षेत्र की सैद्धान्तिक अवधारणा से वैज्ञानिकों की सहमति के बावजूद सबसे बड़ा सवाल यह था कि क्या हिग्स-बोसॉन कणों का वास्तव में अस्तित्व है? एक लम्बे समय तक प्रयोगों द्वारा इन कणों का भौतिक अस्तित्व सिद्ध न हो सकने के चलते एक नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक लिओन लेडरमैन ने 1993 में एक पुस्तक लिखी जिसका शीर्षक दिया - ‘‘गाॅड डैम पार्टिकल’’ - अर्थात जैसे ईश्वर भ्रान्तिजनक और अबोधगम्य है, ठीक वैसे ही हिग्स-बोसॉन कण भी भ्रान्तिजनक और अबोधगम्य है.
परन्तु पुस्तक के प्रकाशक ने ‘‘डैम’’ “शब्द हटाकर सीधे ‘‘गाॅड पार्टिकल’’ छाप दिया.वैज्ञानिक विरादरी को यह परिवर्तन बहुत नागवार लगा, क्योंकि हिग्स-बोसॉन कण का ईश्वर या धर्मशास्त्र से कुछ लेना-देना नहीं था.फिर भी गैर-वैज्ञानिक मीडिया और समाज में यह ‘‘गाॅड पार्टिकल’’ “शब्द इतना लोकप्रिय हो गया कि अब ‘‘गाॅड पार्टिकल’’ “शब्द ‘‘हिग्स-बोसॉन’’ कण का पर्यायवाची ही बन गया है.
फिर भी सबसे बड़ा सवाल तो अपनी जगह पर बना ही हुआ था कि क्या ‘‘हिग्स-बोसॉन’’ का सचमुच अस्तित्व है भी या नहीं .
अन्य कई सवालों के साथ-साथ इस अहम् सवाल का उत्तर खोजने के लिए जेनेवा स्थित यूरोपियन आर्गेनाइजेशन फार न्यूक्लियर रिसर्च ( CERN) ने विज्ञान के इतिहास में अब तक के सबसे बड़े महाप्रयोग का आयोजन किया.स्वीट्जरलैण्ड और फ्रांस की सीमा पर पृथ्वी की सतह से 50 से 175 मीटर नीचे 27 किलो मीटर लम्बी और 3.8 मीटर चक्करदार सुरंग में एक महामशीन को स्थापित किया जो वास्तव में एक विशालतम् कण वेग (पार्टिकल एक्सीलरेटर) है, जिसमें हैड्रान अर्थात प्रोट्रान पुंजों की आपस में टक्कर करायी गयी.प्रोट्रान-पुंजों की टक्कर कराने वाली इस महामशीन को लार्ज हैड्रान कोलाइडर कहा गया.
अत्यन्त दुःसाध्य और जटिल प्र्रयोग और उससे प्राप्त आकड़ों के विश्लेषण के बाद विगत 4 जुलाई, 2012 को यह वैज्ञानिक घोषणा कर दी गयी कि हिग्स-बोसॉन कणों के भौतिक अस्तित्व का पता लग गया.इस प्रकार महान वैज्ञानिक पीटर हिग्स की हिग्स-बोसॉन ऊर्जा क्षेत्र के वास्तविक अस्तित्व की पुष्टि में वैज्ञानिक मुहर लग गयी.
हिग्स-बोसॉन नहीं पाया जा सकता - इस दावे के गलत सिद्ध हो जाने पर अपनी बाजी हार जाने के बावजूद महान भौतिकविद् और वैज्ञानिक चिन्तक स्टीफन हाकिन्स ने अत्यन्त उत्साहित होकर पीटर हिग्स के लिए नोबेल पुरस्कार दिये जाने की माँग कर डाली है.
हिग्स-बोसॉन के अस्तित्व का पता लग गया.क्वाण्टम भौतिकी के स्टैण्डर्ड माॅडल सिद्धान्त की एक अहम् समस्या का समाधान हो गया.फिर भी अनुत्तरित सवाल और भी हैं जिनका उत्तर स्टैण्डर्ड मॉडल सिद्धान्त को खोजना ही होगा, जैसे -
- द्रव्यमानरहित फोटान हिग्स-बोसॉन क्षेत्र के लिए अभेद्य क्यों है ?
- इलेक्ट्रान द्रव्यमानयुक्त होते हुए भी आकारहीन यानी व्यासहीन बिन्दु-कण यानी प्वाइण्ट पार्टिकल क्यों हैं ?
- हिग्स-बोसॉन क्षेत्र के ‘‘कुहासे’’ या ‘‘चिपचिपे “शीरे’’ में कुछ कण कम और कुछ कण अधिक द्रव्यमान क्यों ग्रहण करते हैं ?
- स्टैण्डर्ड मॉडल सिद्धान्त गुरूत्व की व्याख्या कैसे करेगा ?
- स्टैण्डर्ड मॉडल सिद्धान्त ‘‘डार्क मैटर’’ की व्याख्या कैसे करेगा, जो ब्रह्माण्ड का 5 /6 भाग ग्रहण किये हुए हैं ? स्टैण्डर्ड मॉडल क्वार्कों, इलेक्ट्रानों और अन्य कणों के अलग-अलग द्रव्यमानों की व्याख्या कैसे करेगा ?
ऐसे अनेकानेक सवाल हैं जो स्टैण्डर्ड मॉडल की पूर्णता के लिए व्याख्या की अपेक्षा करते हैं.
वस्तुतः
विज्ञान जब तक एक समस्या का समाधान करता है तब तक कई सवाल मुँह बाये खड़े
हो जाते हैं.शायद इसी से ज्यार्ज बर्नार्ड शा ने झल्लाकर कह दिया था -
‘‘विज्ञान झूठा है, यह एक समस्या हल करता है, और दस नयी समस्याएँ पैदा कर
देता है.’’
परन्तु विज्ञान की महायात्रा झल्लाहट की नहीं, बल्कि निरन्तर आगे बढ़ने की है.