रविवार, 6 अप्रैल 2014

देश कंगाल और नेता मालामाल

 एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
देश कि जनता भूखी है ये आजादी झूठी है। यह नारा आज से 50 साल पहले महाराष्ट्र के मशहूर चित्रनाट्यकार अन्ना भाऊ साठे ने लगाया था। उन्होंने अनेक सफल फिल्मों का चित्रनाट्य लिखा, परंतु विडंबना देखिये वे खुद गरिबी की मौत दिवंगत हुए।लेकिन मौजूदा लोकसभा चुनावों के लिए मनोनयन दाखिल करने वाले उम्मीदवारों की संपत्ति का ब्यौरा देखिये तो समझ में आ जाये कि जनता कैसे कंगाल है और नेता किस कदर मालामाल है। लोकसभा चुनावों के साथ ओडीशा में विधानसभा चुनाव भी हो रहे हैं और दांतों में उंगलियां दबाने लायक बात यह है कि कालाहाडी की भुखमरी के लिए मशहूर ओडीशा के विधानसभा चुनावों में दस बीस नहीं,बल्कि 103 करोड़पति उम्मीदवार हैं।सारे मूर्धन्य राजनेताओं की संपत्ति में बिना कहीं पूंजी लगाये दुगुणी चौगुणी बढ़ोतरी हो गयी है पिछले पांच साल के दौरान। अब वे मतदाता हिसाब लगायें जो उन्हें वोट डालकर अपना भाग्य विधाता बनाते हैं कि इन नेताओं की बेहिसाब संपत्ति और आय के मुकाबले पिछले पांच साल के दौरान उन्हें क्या मिला और क्या नहीं मिला।
जाहिर है कि लोकसभा चुनावों में जनादेश बनाने के लिए चुनाव प्रचार  अभियान जितना तेज हो रहा है,हर ओवर के अंतराल में जो मधुर जिंगल से हम मोर्चाहबंद होते हैं, फिर ऐन चुनावमध्ये जो आईपीएल कैसिनों के दरवाजे खुलने हैं,जो हवाई यात्राएं तेज हो रही है,जो पेड न्यूज का घटाटोप दिलोदिमाग को व्याप रहा है,उतनी ही तेजी से विदेशी पूंजी के अबाध प्रवाह और निवेशकों की अटूट आस्था बजरिये शेयरों में सांढ़ों की धमाचौकड़ी की तरह चुनाव खर्चों में बेहिसाब कालाधन की बेइंतहा खपत हो रही है और यह धन किसी स्विस बैंक खाते से भी नहीं आ रहा है,जिसे रोका जा सकें। वह कालाधन अगर वोट कारोबार में खप जाता तो बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के कालाधन वापसी अभियान के रुक जाने का खतरा था।जो कालाधन चुनाव में लगा है ,वह इसी देश की बेलगाम अर्थव्यवस्था की रग रग से निकल रही है और जिसे नियंत्रित करने में स्वायत्त चुनाव आयोग भी सिरे से नाकाम है।भ्रष्टाचार को बाकी बेसिक अनिवार्य मुद्दों के मुकाबले मुखय मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ रही राजनीति का यह असली चेहरा है जो कोयला घोटाले की तरह काला ही काला है।
गौरतलब है कि सोमवार से से शुरु हो रहे लोकसभा चुनावों में तीस हजार करोड़ रुपये खर्च होने का फिलहाल अंदाजा है।आवक और मांग की सुरसाई प्रवृत्ति के मुताबिक यह रकम आखिरकार कितनी होगी कहना मुश्किल है।मौजूदा हालात में सीएमएस के सर्वे के मुताबिक चुनावों पर खर्च होने वाले इन तीस हजार करोड़ रुपये का दो तिहाई ही कालाधन है।लोकतंत्र को अर्ततंत्र में बदलकर नेता जो मालामाल हो रहे हैं और जनता जो कंगाल हो रही है,उसका ताजातरीन सबूत यह है।
अबकी दफा विज्ञापनी तमाम चमकदार चेहरे चुनाव मैदानों में हैं।कालाधन से चलने वाले कारोबार से जुड़े तमाम ग्लेमरस लोग खास उनम्मीदवार है जिनके पास अकूत संपत्ति है और कोई नहीं जानता कि जीत की बाजी जीतने के लिए आखिर अपने अपने हिस्से का कालाधन देश विदेश से  खोदकर कहां कितना वे लगा देंगे। फिलहाल सीएमएस के आकलन को ही सही मान लिया जाय तो अबकी दफा चुनाव कार्निवाल में होने वाला खर्च सारे रिकार्ड ध्वस्त करने जा रहा है।इस खर्च में सरकारों की ओर से वोट बैंक समीकरण साधने के लिए मतदान प्रक्रिया शुरु होने से पहले आचार संहिता के अनुपालन के साथ जो रंग बिरंगी खैरात बांटी गयी,उसे सफेद धन मान लिया  जाये,तो यह खर्च तीस हजार करोड़ से कईगुणा ज्यादा हो जायेगी। अपने अपने हित साधन के लिए कंपनियां मुफ्त में अपने जो साधन संसादन लगा रही हैं,वह भी हिसाब से बाहर है।पार्टियों की सांगठनिक कवायद का भी कोई हिसाब नहीं है।हार निश्चित हर क्षेत्र के उन उम्मीदवारों,जिनकी अमूमनजमानत जब्त हो जाती है या ऐन तेण प्रकारेण जो वोट काटने के लिए मैदान में होते हैं, उनकी कमाई और बचत का भी कोई लेखा जोखा नहीं होता।
सीएमसी के मुताबिक राजनीति दलों की ओर से आठ दस हजार करोड़ रुपये खर्च होने हैं तो निजी तौर पर खर्च की जाने वाली रकम भी दस से लेकर तेरह हजार करोड़ रुपये हैं।
शेयर बाजार की उछाल, सोने की तस्करी से लेकर हजार तौर तरीके के मार्फत देश विदेश से इतनी बड़ी रकम बाजार में खपने जा रही है।समझा जाता है कि अकेले शेयर बाजार मार्फत पांच हजार करोड़ रुपये चुनावों में कपने वाले हैं।अब चर्बीदार नेताओं की सेहत का राज समझ लीजिये।

ओरिएंट क्राफ्ट, गुडगाँव में हुई एक मज़दूर की मौत एवं उसके बाद पुलिस दमन पर फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट

(इस फैक्ट फाइंडिंग टीम में संहति दिल्ली, पर्सपेक्टिव, pudr , वर्कर्स यूनिटी, IMK , मज़दूर पत्रिका, KNS  के साथी मौज़ूद थे )

गुडगाँव सेक्टर 18 स्थित ओरिएंट क्राफ्ट फैक्ट्री में शुक्रवार 28 मार्च को फैक्ट्री के अंदर करंट लगने से एक मज़दूर सुनील कि मौत हो गयी. गौरतलब है कि गुडगाँव कि अधिकाँश फॅक्टरियों में सुरक्षा नीतियों में लापरवाही और अत्यंत तनाव भरे माहौल में काम के दौरान दुर्घटना एक सामान्य घटना बनती जा रही है. मार्च 2012  में भी ओरिएंट क्राफ्ट के ही गुडगाँव सेक्टर 37  स्थित यूनिट में भी सुपरवाइजर द्वारा कैची से एक मज़दूर पर हमले के दौरान भी ऐसा ही एक मामला प्रकाश में आया था.
ओरिएंट क्राफ्ट देश कि सबसे बड़ी गारमेंट निर्यातक कंपनी है, जो कई महंगे विदेशी गारमेंट ब्रांड जैसे कि DKNY मार्क एंड स्पेंसर, फिच, और टॉमी हिलफिगर जैसे ब्रांड्स बनाती है. इस कंपनी के एनसीआर, दिल्ली और गुडगाँव में ही कई यूनिट हैं. सेक्टर 18  स्थित यूनिट में तकरीबन ६०००-७००० मज़दूर काम करते हैं. घटनाक्रम कि शुरुआत शुक्रवार 28 मार्च को हुई, जब किसी हायर मैनेजमेंट या मालिक के सम्भावित दौरे के मद्देनज़र एक दिन पहले साफ़ सफाई के दौरान किसी इलेक्ट्रिक तार के लूज  रह जाने कि वजह से एक मशीन में करंट आ रहा था. कानपूर के इटागा के रहने वाले सुनील, जिसकी उम्र तकरीबन 35  वर्ष थी, जो कि फैक्ट्री में टेलरिंग का काम करता था, सुबह कि शिफ्ट के शुरू होने पर वह जब मशीन पर बैठा, तो करंट लगने से बुरी तरह घायल हो गया. तभी साथ काम करने वाले करमचारियों ने दौड़ कर बिजली सप्लाई को बंद किया और सुनील को कंपनी स्थित डिस्पेंसरी में ही प्राथमिक चिकित्सा के लिए ले गए. हम लोगों से बातचीत के दौरान कंपनी में काम कर रहे अन्य मज़दूरों ने बताया कि डिस्पेंसरी में कभी भी कोई सुविधा या डॉक्टर नहीं होते हैं और डिस्पेंसरी बस एक औपचारिकता के तहत चलाया जाता है , जिसमें एक अनट्रेंड कम्पाउण्डर हर बीमारी के लिए एक ही दवा देते रहते हैं. मज़दूरों ने हमें बातचीत में बताया कि आधे घंटे तक कोई भी कार्यवाही नहीं कि गयी और करंट लगने से हुई नाजुक हालत में भी कंपनी प्रबंधन का रवैया बहुत ही गैरजिम्मेदाराना बना रहा. आधे घंटे के बाद जब एम्बुलेन्स से सुनील को हॉस्पिटल भेजा गया, और कुछ देर बाद मज़दूरों को प्रबंधन ने सुनील कि मौत कि जानकारी उसके ह्रदय गति के रुकने कि वजह से बतायी गयी तब तक कि प्रबंधन कि की गयी लापरवाही एवं इस सफ़ेद झूट पर मज़दूरों का गुस्सा उबाल पड़ा और मज़दूर फैक्ट्री गेट पर आ कर नारे और प्रदर्शन पर अड़ गए.
जैसे कि मज़दूरों का अलग अलग फैक्टरियों का अनुभव है कि फैक्ट्री में लापरवाही से होने वाली मौत कि ज्यादातर घटनाओं में कंपनी प्रबंधन लाश को गायब करने, झूठी रिपोर्ट बनाने, मुआवज़े से मुकरने, आवुं किसी भी तरह कि ज़िम्मेदारी लेने से बचती रहती है. इस बार भी अपने साथी के साथ ऐसा न हो, इसके लिए मज़दूर पहले से ही मुस्तैद थे. इसीलिए सारे मज़दूर फैक्ट्री गेट के सामने आ कर रोड को जाम कर दिए और मुआवज़े एवं उचित न्याय के लिए प्रबंधन के सामने अपनी बात पर दबाव बनाने के लिए प्रदर्शन करने लगे. इन सब के बावजूद भी जब कंपनी प्रबंधन का रवैय्या टाल मटोल का रहा, और पीछे से प्रबंधन ने पुलिस को भी बुला लिया. तब मज़दूरों ने उत्तेजित हो कर पुलिस के खिलाफ नारे लगाने शुरू कर दिए. पुलिस ने तब बर्बर तरीके से लाठी चार्ज किया और आंसू गैस के गोले भी छोड़े. मज़दूरों ने भी जवाबी कारवाई में पुलिस के ऊपर पथराव किया. पुलिस ने मज़दूरों को गली में एवं घर में घुस कर और दौड़ा दौड़ा कर पीटा. पुलिस के इस बर्बर करवाई में कई मज़दूरों को बहुत ज़यादा चोटें आयी और एक मज़दूर आंसू गैस के सिलिंडर फटने से गम्भीर रूप से घायल हुआ. पुलिस ने हवाई फायरिंग भी कि और इस सब भगदड़ में मज़दूरों को बहुत ज़यादा चोटें आयीं. पर ज़्यादातर घायल मरीज छुप छुप कर गाँव में ही या अपने घर पर जा के इलाज करा रहे हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि गुडगाँव में इलाज कराने से पुलिस उनके खिलाफ भी केस कर देगी.
अगले दिन शनिवार को जब मज़दूर फैक्ट्री पर जा रहे थे, तब पहले पहुचे मज़दूरों ने कंपनी गेट पर कंपनी के सोमवार तक बंद होने कि नोटिस पायी. कुछ मज़दूर वापिस लौट रहे थे और काफी मज़दूर कंपनी गेट पर धीरे धीरे जमा हो गए. कंपनी गेट पे शुक्रवार से ही काफी पुलिस फाॅर्स इकठ्ठा हो रखी थी, और एक बार फिर से पुलिस और मज़दूरों के बीच झड़प शुरू हो गयी. पुलिस ने दोबारा लाठी चार्ज कि और मज़दूरों ने भी पुलिस पर जम कर पथराव किया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मज़दूर कि मौत का कारण करंट बताया गया था. मज़दूरों का गुस्सा मैनेजमेंट कि लापरवाही कि वजह से मौत, उस पर हार्ट अटैक से मौत जैसी झूठी बात, डिस्पेंसरी में बुनियादी सुविधाओं कि कमी, सुनील को अस्पताल में भर्ती करने में देरी, एवं मृत्युपरांत मुआवजे में टाल मटोल पर था.
इन सब के आलावा रोज़ रोज़ काम के दौरान छोटी मोटी बहसें अत्यंत तनावपूर्ण एवं निचोड़ने कि हद तक थकाऊ कार्य व्यवस्था से मज़दूर पहले से ही परेशान रहते हैं. एक मज़दूर को एक मिनट से भी कम समय में एक पीेछे कि सिलाई करनी पड़ती है. औसतन ८० पीेछे प्रति घंटे का टारगेट होता है. आज कल इस समय को ट्रैक करने के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक बार टाइमर कि मदद ली जाती है, जो प्रति घंटे फिनिश होने वाले पीसों के समय कि निगरानी करता है. इस टारगेट को भी समय समय पर बढ़ाया जाता रहता है, जिसमें सेकंड दर सेकंड का हिसाब किया जाता है.
"अगर शर्ट की डिजाइन सरल है , तो उत्पादन लक्ष्य प्रति घंटे 150-200 शर्ट तक कि होती हैं . 3-4 साल पहले , सुपरवाइजर  स्वयं स्टॉप घड़ियों के साथ  प्रत्येक पीस पर लगने वाले समय कि निगरानी करते थे , पिछले साल से मैग्नेटिक कार्ड रीडर के द्वारा समय कि नागरानी राखी जाती है, हरेक सिलाई मशीन प् कार्ड रीडर लगा है, और कपडे के हर बण्डल के साथ एक मैग्नेटिक कार्ड भी आता है, जिससे हरेक पीस पर लगने वाले समय और हरेक घण्टे में फिनिश होने वाले पीसो का सेकंड दर सेकंड  के हिसाब से समय रखा जाता है \ मृतक मज़दूर के भतीजे से बातचीत में पता चला कि फैक्ट्री के अंदर जिस तरह से समय का हिसाब रखा जाता है, वह पर किसी को बात करने, इधर उधर देखने कि फुर्सत ही नहीं है, यही कारन है कि कि बड़ी दुर्घटना हो जाने पर भी लोग एक दूसरे को देख या उसका संज्ञान नहीं ले सकते है |
अत्यंत तनाव भरे माहौल में काम करने से मज़दूर अक्सर बीमार, चिड़चिड़े, और अवसादग्रस्त रहते हैं.
परमानेंट मज़दूरों को इस फैक्ट्री में 5900  रुपये (800  पी ऍफ़ काटने के बाद 5100 ) और कॉन्ट्रैक्ट वर्कर को तक़रीबन 5700  रुपये मिलते हैं. ३ घंटे रोज़ एवं औसतन  40 -60 घंटे महीने में ओवरटाइम आम बात है.
पुलिस ने मज़दूरों के खिलाफ सेक्टर १८ में एस एच ओ बिजेंदर सिंह के कम्प्लेन के आधार पर ऍफ़ आई आर दर्ज कि है, जिसमें कंपनी के मज़दूर रामानंद, संजीव, कैलाश, गीता, घनश्याम, केसरदेवी, पुष्पादेवी को नामजद किया है और १०० अनाम प्रदर्शनकारियों पर भी ऍफ़ आई आर दर्ज कि है. मज़दूरों से बात चीत में उन्होंने बताया कि ज्यादातर कम्पनियां किसी भी विवाद के समय केस दर्ज को परमानेंट मज़दूरों को निकाल कर ठेके मज़दूरों की बहाली के मौके के रूप में इस्तेमाल करती हैं
-संतोष