शनिवार, 8 जून 2013

राहुल फाउंडेशन ने लौटाया ‘जनचेतना’ वाहन, सत्येन्द्र कुमार को दी धमकी


(लखनऊ के प्रतिबद्ध वामपंथी सामाजिक कार्यकर्ता सत्येन्द्र कुमार और कई अन्य साथियों ने राहुल फाउंडेशन का कच्चा चिट्ठा जनता के बीच लाने के लिए पिछले करीब एक दशक से बहुत मेहनत की है। सत्येन्द्र जी ने इनका पर्दाफाश करने लिए एक पुस्तिका भी लिखी है। इस संगठन पर अब तक इससे निकले या निकाले गए साथियों ने क्या-क्या सवाल उठाए हैं, इसे जानने और लिखित दस्तावेज के लिए इच्छुक लोग साथी सत्येन्द्र कुमार से (satyendrabhiruchi@yahoo.com) संपर्क कर सकते
हैं। अब इनकी यह मेहनत रंग लाने लगी है। यही वजह है कि राहुल फाउंडेशन इनके ऊपर बौखलाया हुआ है। इसी बौखलाहट में उसने सत्येन्द्र कुमार से निपट लेने की धमकी दी है। पेश है सत्येन्द्र कुमार का पत्र)
31 मई सुबह 6 बजे का वक्त था। लखनऊ की राहुल फाउंडेशन नामक संस्था और इसके मालिक-मालिकिन शशि-कात्यायनी गैंग से जुड़ा एक आदमी रामबाबू जनचेतना वैन, टाटा 709/ लेकर आया और हमारे दरवाजे पर खड़ी कर गया! जाते-जाते उसने मुझे धमकी दी-‘सत्येन्द्र कुमार तुमने आज तक जो कुछ भी हम लोगों (राहुल फाउंडेशन) के खिलाफ किया है, उसका फल भुगतने के लिये तैयार रहो। देखते हैं कौन तुम्हारा साथ देता है!’
     इस जनचेतना वैन को हमने ही अपने पैसों से खरीदा था और सोचा था कि इससे सामाजिक बदलाव का काम आगे बढेगा! इससे पहले भी हम अपनी काफी संपत्ति इस काम के लिए दे चुके थे और अब बचा-खुचा 11.50 लाख रुपया इस वैन में लगा दिया था। हमने तो यही सोचा था कि हमारी इस कुबार्नी से समाजिक परिवर्तन के काम को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। हमने कभी नहीं सोचा था कि इससे एक अपराधिक गैंग खड़ा हो जाएगा। इस आपराधिक गिरोह द्वारा इस तरह अचानक वैन वापस करना हैरानी में डालने वाली बात है। आखिर उसने क्यों मुझे इस वैन को वापस कर दिया। वह भी मेरी उस बेटी शालिनी की मौत के तुरंत बाद, जिसे इमोशनल ब्लैकमेल करके इस गिरोह ने अपने गैंग में शामिल कर रखा था और मेरे खिलाफ उसे भड़का रखा था। हमने तो वैन वापस भी नहीं मांगी थी! आखिर ऐसा क्या हो गया कि इस गैंग को यह कदम उठाना पड़ा। फिर याद आया-अपराधी हमेशा कायर होते हैं। वैन अभी भी हमारे नाम पर ही है। अब बेटी की मौत के बाद कायरों ने सोचा कि वैन को पचा जाना मुश्किल होगा, तो चुपचाप उसे वापस कर देने में ही भलाई समझी। लेकिन, चोर और अपराधी अपनी आदत भला कैसे छोड़ सकते हैं! वैन तो वापस कर दी, लेकिन उसमें लगा लाखों का कीमती सामान उड़ा लिया! हाल यह है कि बस ढांचा ही ढांचा बचा है। वैन से होंडा कंपनी का जनरेटर, प्रकाश उपकरण, किताबों की रैक, गाड़ी के पीछे वाले दोनों पहिए, लोहे का काफी सामान आदि गाड़ी से गाड़ी से गायब है। वैसे इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। इन क्रांतिकारी नामधारी नटवर लालों ने क्रांति को कितना बदनाम किया, अपने ही साथियों को कितने जख्म दिए, जनता को किस कदर लूटा, इसका अंदाजा दो तथ्यों से ही लगाया जा सकता है। एक-इन पर जबरन संपत्ति कब्जा करने के आपराधिक मामले चल रहे हैं; दो-इन्होंने क्रांति का बाना ओढ़कर अपने ऐशोआराम के लिए पैसा बटोरा; वह भी कार्यकतार्ओं को इस भ्रम में रखकर कि वे क्रांति कर रहे हैं। संगठन ऐसा है कि एक तरफ बदहाल खटने वाले अधिकार रहित कार्यकर्ता हैं और दूसरी तरफ अधिकार और सुविधा संपन्न एक खास परिवार के लोग जो नेतृत्व करते हैं! सामाजिक बदलाव के काम के भ्रम में इस गिरोह ने कितनी जिन्दगियां बर्बाद कर दीं! आखिर यह कब तक चलता रहेगा! क्या वे यह सोचते हैं कि उन्हें समाज हमेशा बर्दाश्त करता रहेगा! नहीं। ऐसा नहीं होगा। लखनऊ से इनके खिलाफ बिगुल बज चुका है। 

यह सूचना यहाँ भी प्रकाशित है-

'जनचेतना' वाहन, सत्येन्द्र कुमार को दी धमकी

 bhadas4media.com/vividh/12089-2013-06-08-11-49-33.html

14 टिप्‍पणियां:

  1. चलो भगोडों के पास वैन भी आ गई अब तब इनकी क्रान्‍ति‍ जल्‍दी ही हो जाएगी वैसे सभी भगोडों से नि‍वदेन है क्रान्‍ि‍त में अपने घोसलों के साथ उतरना । और जल्‍द से जल्‍द क्रान्‍ति‍ के प्रयोग के लि‍ए जमीनी काम शुरू कर देना।
    ''अखि‍ल भारतीय भगोडा पार्टी जि‍न्‍दाबाद''।।
    एलजीबीटी का संघर्ष जि‍न्‍दाबाद

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  2. वैसे जनचेतना का साहि‍त्‍य जनता के पहुंचाने के लि‍ए घोडा गाडी की जरूरत से ज्‍यादा स्‍ि‍परि‍ट की जरूरत हैं वैस जो लोग ये मुहि‍म चल रहे है उनसे बस एक ही सवाल है कि‍ तुम्‍हारी राजनीति‍ क्‍या है और वाकई कुछ है तो उसे व्‍यवहार में लागू करो वरना दुनि‍या बदलने से एमबीबीएस (मि‍यां,बीवी बच्‍चे समेत) घर पर बैठो।

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    1. बंकर के मुखिया शशि प्रकाश सिन्हा क्रांति कोई बच्चों का गेम नहीं है, जैसा कि तुमने सत्येन्द्र जी को गाडी लौटाकर खुद को एक 'महान क्रांतिकारी' दिखाने की कोशिश की है। क्या तुम नहीं जानते आग से बच्चों को न खेलने की सलाह दी जाती है। यह खेल बंद करो वरना अपना ही हाथ जला बैठोगे। क्योंकि सत्येन्द्र जी और अन्य साथी लखनऊ में उन लोगों के संघर्ष के साथ हैं, जिनके मकान पर तुमने कब्ज़ा किया है, इसलिए तुमने सोचा कि यदि सत्येन्द्र जी की तुम गाडी लौटा दोगे, तो शायद वे शांत हो जाएं। लेकिन तुम्हारी यह चाल गलत पड़ गयी। उलटे सत्येन्द्र जी ने इसी ब्लॉग पर प्रकाशित अपने पत्र में यह घोषणा की है कि वे उन पीड़ितों का साथ तब तक नहीं छोड़ेंगे, जब तक उनके साथ इंसाफ नहीं हो जाता। अपनी टिप्पणी में तुमने लिखा है-चलो भगोडों के पास वैन भी आ गई अब तब इनकी क्रान्‍ति‍ जल्‍दी ही हो जाएगी। जनता के बिना और महज 'वैन और उसमें सजी किताबों से क्रांति' लाने की सोच तो तुम्हारी रही है। लाइन बदल दी है क्या? अरे भाई यह तो तुम्हारी लाइन है न-सर्वहारा पुनर्जागरण और सर्वहारा प्रबोधन। भूल गए क्या? तुम अपनी बात दूसरों के मुंह में ठूंसने की आदत से बाज नहीं आओगे! इसी लाइन के चलते ही तो तुमने रुद्रपुर में मजदूरों के बीच शानदार काम को और कई अन्य जगहों पर जहाँ मुख्यतः मध्यवर्ग के बीच में ही काम था, उन्हें तुमने अनंतकाल के लिए मुल्तवी कर दिया था। अब मार्क्सवाद की जरा भी समझ न रखने वाले तुम्हारे कार्यकर्त्ता वहीं नजर आते हैं, जहाँ तुमने किसी साथी या आम जनता के किसी माकन पर कब्ज़ा कर रखा है। जैसे- दिल्ली में करावल नगर, उत्तर प्रदेश में लखनऊ और गोरखपुर आदि। यहाँ मैं कायकर्ताओं की इमानदारी पर शक नहीं कर रहा हूँ, सिर्फ यह कह रहा हूँ की वे नासमझ हैं। उनमें इतना दम भी नहीं है की वे तुम्हारे सामने मुंह खोल सकें। बहरहाल, नॉएडा से भी तो तुम भाग ही गए। इतना ही क्यों एक समय उत्तर प्रदेश में लखनऊ, गोरखपुर, मऊ, इलाहाबाद, नैनीताल, जयपुर और हरियाणा में सोनीपत में भी काम था, आज इन जगहों को भी तुमने छोड़ दिया है। तुम और तुम्हारे कार्यकर्त्ता इस बात बखान करते नहीं थक रहे हैं की "तुम्हारे संगठन (आपराधिक गिरोह-मेरी बात ) का काम फ़ैल रहा है". हकीकत यह है कि-१. जहाँ भी काम बढ़ने लगता है, तुम वहां से दुम दबाकर भाग जाते हो। २. वहां काम करने वाले संगठनकर्ता को भी तुम कुछ ऐसे काम में (तकनीकी काम-जैसे किताब टाइप करना, जनता से पैसे की उगाही करना, पार्टी हेडक्वार्टर के नाम पर अपने बंकर की साफ-सफाई करवाना आदि ) लगा देते हो, जहाँ से वह जनता से पूरी तरह कट जाता है। ३. ऐसे कार्यकर्ताओं को तुम जनता से, उसके दोस्तों से और परिवार (यहाँ तक कि उसके माता-पिता भी ) से भी अलग करके उसे एक रीढ़ विहीन केचुए में तब्दील कर देते हो। ४. जाहिर है अगर ऐसा नहीं करोगे तो
      ऐसे कार्यकर्त्ता किसी दिन तुम्हारी 'ब्रह्मसत्ता' पर ही सवाल उठा देंगे।
      यदि मेरी यह सब बातें गलत हैं तो भी मेरे एक सवाल का जवाब दो कि आखिर तुमने गोरखपुर, लखनऊ, रुद्रपुर, नैनीताल, इलाहबाद, नोएडा, गाजियाबाद, सोनीपत आदि जगहों पर कम को क्यों बंद किया? तुम नई जगहों पर ही क्यों भागते रहते हो? तुम्हारे जवाब की प्रतीक्षा रहेगी।

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  3. satyendra aur devendra j

    aap ki muhim pichle do salo se chal rahi hai lekin kafi koshisho ke baujud aap zyada kuch nahi kar pa rahe hai
    jin par aap ne aarop lagaya hai unka kaam teji se aage badh raha hai

    naye log lagatar sangathan se jud rahe hai aur prakashan ka kaam bhi teji se ho raha hai
    naye karyachetro me mumbai bihar hariyana jaise state me kaam teji se fael raha hai
    aur jis baat ko lekar aap log bishes roop se pareshan hai wo ye ki makano par kabza karne me kafi progress hui hai
    kyonki samajwad ka mukhya lakshya niji sampatti ka khatma hai
    note --aap apni sampatti ki raksha to hoshiyari se karen aur sath me apne bhagado sathiyo ko bhi salah de ki apni sampatti par kundali mar kar baithe

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  4. वैसे एक बात बताओ बंकर के मुखिया शशि प्रकाश सिन्हा, आखिर कब तक सारी सुख-सुविधाओं से भरपूर बंकर में छुपे रहोगे। पहले तो तुम ऐसे नहीं थे। फिर आज क्यों सुविधाओं के गुलाम हो गए? और सुख-सुविधाएं जुटाईं भी तो उसी जनता और अपने साथियों को लूटकर जिनके सहारे तुम क्रांति का दम भरते थे. क्या तुम इस बात को नहीं समझते कि तुम्हारी इसी प्रवृत्ति ने तुमको हमारे जैसे 'पूंजीपतियों की गुलामी करने वालों' से घृणा करना सिखाया है? यही तुम्हारे शब्द होते हैं न किसी नौकरी करके दो वक्त की रोटी जुटाने वालों के लिए। आखिर एक अरबपति हमारे जैसे हजार-पांच सौ कमाने वालों से नफरत तो करेगा ही। पाठक मुझे माफ़ करेंगे लेकिन शशि प्रकाश ऐसे लोगों से इस हद तक नफरत करता है कि वह ऐसे लोगों को 'पत्नियों के पेटीकोट में छुपने वाले' जैसे विश्लेषणों से भी संबोधित करता है। शशि प्रकाश सिन्हा अब तुम इसके लिए भी प्रमाण मत मांगने लगना। पाठकों ने पढ़ा ही होगा कि इस बार भी इसने ऐसी ही एक टिप्पणी इस ब्लॉग पर की है, पाठक पूरी टिप्पणी खुद पढ़कर इसकी विकृत मानसिकता (sick mentality ) का मूल्यांकन करें। 'उल्टा चॊर कोतवाल को डांटे' वाले अंदाज में वह हमसे पूछता है .... तुम्‍हारी राजनीति‍ क्‍या है और वाकई कुछ है तो उसे व्‍यवहार में लागू करो वरना ... एमबीबीएस (मि‍यां,बीवी बच्‍चे समेत) घर पर बैठो।' शशि प्रकाश सिन्हा आखिर कब तक अलग-अलग नामों से मेरे ब्लॉग पर गंदगी फैलाते रहोगे। चलो पाठक तो तुमको समझ ही लेंगे, लेकिन कम से कम तुम अपने वास्तविक नाम से तो लिखो। यह तो एक सार्वजानिक मंच है और पूरा भरोसा रखो यहां हम तुम्हारी किसी बात को नहीं दबायेंगे। बल्कि, हम तो चाहते हैं कि तुम खुलकर लिखो।
    जहाँ तक हम लोगों के लिए तुम्हारी 'क्रांति के काम से जुड़ने' की नसीहत का सवाल है, तो यह 'क्रांति के भगोड़े' और एक 'अपराधिक गिरोह के सरगना' के मुंह से अच्छा नहीं लगता।

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  7. बादाम मज़दूरों ने हड़ताल के पाँचवे दिन निकाली ‘मज़दूर संघर्ष रैली’
    विधायक के कार्यालय का किया घेराव

    नई दिल्ली, 23 जून,2013। करावल नगर में बादाम मज़दूरों ने हड़ताल के पाँचवे दिन रविवार को करावल नगर मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में ‘मज़दूर संघर्ष रैली’ निकाली। रैली में बादाम मज़दूरों के साथ अन्य पेशों के मज़दूर भी बड़ी संख्या मंे थे। करीब हज़ार की संख्या मंे मज़दूर हड़ताल स्थल से क्षेत्रिय विधायक मोहनसिंह बिष्ट के कार्यालय पर गये। कार्यालय पर न तो विधायक मिले और न ही मज़दूरों का माँगपत्रक लेने वाला कोई अन्य था। जबकि विधयक को इस सम्बन्ध् में तीन दिन पहले ही सूचित कर दिया गया था। मज़दूरों ने कार्यालय के सामने ही अपनी सभा की।
    करावल नगर मज़दूर यूनियन के नवीन ने बताया कि करावल नगर क्षेत्र के बादाम उद्योग में काम करने वाले मज़दूरों के हालात बेहद दयनीय है। अध्कितर महिला मज़दूर ही मशीन द्वारा बादाम का छिलका टूटने के बाद इसकी सपफाई का काम करती है। मज़दूरों को न तो न्यूनतम मज़दूरी मिलती है और न ही काम के घण्टों की कोई सीमा होती है। स्वास्थ्य और सुरक्षा की बात ही क्या की जाये। इन सभी सवालों के लेकर ही बादाम मज़दूरों ने 19 जून से हड़ताल की शुरुआत की थी। किन्तु अभी तक उनकी जायज माँगों पर कोई सुनवाई नहीं हुई है।
    स्त्री मज़दूर संगठन की बेबी ने कहा कि यह बादाम उद्योग कई करोड़ रुपयों की आमदनी वाला उद्योग है। बादाम का यह कारोबार वैश्विक असेम्बली लाइन का एक प्रत्यक्ष उदाहरण है। जिसका एक तार कैलिफोर्निया, आॅस्टेलिया से लेकर खारी बावली के व्यापारियों तक जुड़ा है जहाँ से ये मुम्बई और अहमदाबाद के तटों पर जहाजों से आता है, और दूसरा तार खारी बावली से होता हुआ, करावल नगर की संकरी-अंध्ेरी गलियों तक पहुँचता है जहां 60 से ज्यादा बादाम फैक्टरियों में इसे छिलका तोड़ने, सापफ करने और पुनः पैक किये जाने के बाद घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों ही बाज़ारों में बिक्री के लिए भेज दिया जाता है।
    केएमयू के सनी ने बताया कि यहाँ हजारों की संख्या में स्त्री मजदूर भंयकर शोषण का शिकार हो रही हैं। बादाम पफैक्टरी बिना किसी पंजीकरण के चलती हैं जिनमें न तो मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी तय है, न ही कोई पहचान कार्ड और न ही कोई सुरक्षा उपकरण। करावल नगर मजदूर यूनियन कई बार उप-श्रमआयुक्त के पास फैक्टरी एक्ट लागू करने की लिखित शिकायत दर्ज करा चुकी। लेकिन श्रम कार्यालय द्वारा कोई सुनवाई न होने पर ही मज़दूरों ने संघर्ष की शुरुआत की है। हड़ताल के पाँचवे दिन मज़दूर संघर्ष पर डटे हुए है।
    नवीन
    सचिव
    करावल नगर मज़दूर यूनियन

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    1. बंकर के मुखिया शशि प्रकाश मैंने तुमको पहले ही कहा था कि मेरे ब्लॉग पर एकतरफ़ा बहस नहीं चलाई जाती। भले ही कोई हमारा कितना ही विरोधी क्यों न हो यदि हम उसकी आलोचना करते हैं तो उसका पक्ष भी प्रकाशित करते हैं। लखनऊ के साथियों के साथ यदि तुमने बहस की होती तो हम तुम्हारा भी पक्ष प्रकाशित करते। जब तुम मुकुल के नाम से हमारे ब्लॉग पर लिख रहे थे तब हमने तुमसे इस बात को बेहद साफ शब्दों में कहा था, लेकिन तुम भागकर बनकर में जा छुपे!
      तुम इतने पूर्वाग्रहित (सब्जेक्टिव) हो कि तुम्हे लगा मै तुम्हारी प्रेस रिलीज अपने ब्लॉग पर नहीं प्रकाशित करूंगा। तुम्हारे ही शब्दों में 'यह एक मानसिक बीमारी है'. इस बीमारी से मुक्त होने के लिए माओ के बताये फार्मूले अब भूल गए क्या? पहले तो तुम उनके फार्मूले को कार्यकर्ताओं को खूब सुनाया करते थे। वैसे क्या तुमको पता है जब तुम इन फार्मूलों को सुनाते थे, तो बिल्कुल पंडित लगते थे। तुम्हारे मुख से निकली माओ की बातें पुराणों के श्लोक जैसी लगती थीं। माओ का कोटेसन बांचते हुए तुम कहते- अगर किसी से सुई भी उधर लो तो उसे वापस करना मत भूलो? लेकिन तुम्हारे ऊपर तो लखनऊ के लोगों ने करोड़ों के मकान कब्जाने का आरोप लगाया है। तुमने तो वापस नहीं किया। इसलिए मै इस बात को अच्छी तरह जनता हूँ कि तुमको मजदूरों के बीच काम, मार्क्सवाद या समाजवाद से कोई लेना-देना नहीं है। तुम मुंबई, बिहार या हरियाणा (पंजाब भूल गए?) या दिल्ली के करावल नगर में बादाम मजदूरों के बीच काम की जो सूची गिना रहे हो, वह सब दिखावा है। जनता को बेवकूफ बनाने का तुम्हारा पुराना तरीका है। यदि तुमको वाकई में मार्क्सवादी विचारधारा से कुछ लेना-देना है, तो तुमने गोरखपुर, लखनऊ, रुद्रपुर, नैनीताल, इलाहबाद, नोएडा, गाजियाबाद, सोनीपत आदि जगहों पर काम को क्यों बंद किया? इसका जवाब तो तुमने आज तक नहीं दिया।
      बहरहाल बुनियादी वर्गों के बीच कोई भी काम करे हम उसके साथ हैं, अपने मतभेद के साथ। हम तुम्हारी हर धूर्तता के विरोध में हैं और मजदूरों के हर संघर्ष में अपनी सामर्थ्य भर साथ हैं। इसलिए हम तुम्हारे द्वारा भेजी गयी इस प्रेस रिलीज को टिप्पणी वाले बाक्स से निकालकर बाकायदा खबर के तौर पर लगा रहा हैं। हां आइन्दा मेरे ब्लॉग पर चोरी से खबर मत चिपकाना, मुझे मेल कर देना, भरोसा रखो जरुर प्रकाशित होगी।

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  8. Almond workers demand better wages
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    MOHAMMAD ALI
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    Special Arrangement Striking almond factory workers and their families demand a better deal in New Delhi on Friday.
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    Delhi
    New Delhi

    economy, business and finance
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    Thousands of workers of over 60 almond processing factories in the Capital completed the third day of their strike on Friday, demanding increased wages and better working conditions.

    The factory owners of the almond processing sector, which has a yearly turnover running into crores of rupees, have not yet responded to the demands of the workers who have organised themselves under the banner of the Karawal Nagar Mazdoor Union.

    Karawal Nagar in North-East Delhi has seen mushrooming of almond processing industries which, activists allege, run illegally as they are not registered under the Factory Act, 1948.

    As part of the process, workers break the shells, prune almonds and re-pack them before sending them to local and international markets like the United States and Australia.

    Some of the workers’ demands include revision of wages – increment in pruning rate from Rs.1 per kg to Rs.3 per kg – and proper toilet facility and availability of pure drinking water in every factory, besides identity cards for every worker. They have also demanded that harassment and sexual exploitation of women, who constitute a large part of the work force, be stopped immediately.

    Union secretary Navin told The Hindu that a large number of the workers are women and children who work in inhuman conditions. “For the past three years, since mechanisation of the almond sector took place, owners have not increased the wages and neither have they done anything to improve the working conditions. Even though the price of almonds has increased manifold, the working conditions remain abysmal and the workers do not even have proper drinking water or toilet facilities,” he lamented.

    Navin alleged that the whole sector was operating illegally with the nexus of the local police. The present wage for manual shelling of an almond packet of 16 kg is Rs.60. The workers are demanding that it be increased to Rs.40 per packet.

    Ironically, the workers who shell the almonds have to spend a decent amount if they have to retain the shell for use as fuel. “These shells do not come for free to them as reward of their labour. Rather they have to pay Rs.35 for a sack full of shells, despite these being of no use to the owners. The workers have been demanding that this rate be reduced to Rs.15 per sack,” Navin added.

    To press their demands, the workers have planned a demonstration outside the house of the area legislator this Sunday.

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  9. I know who is song of youth. And it is definitely not Mr. Shashi prakash. But it seems like Mr. Devender is so frustrated that he can't see anything except shashi ji. What is your frustration Mr. Pratap.

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  10. Lagta h yah an logon ko prakashfobia ho gaya h..

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  11. अच्छा आप शशि प्रकाश को जानते हैं? तो भाई आप कौन हैं? कम से कम अपना नाम- पता बता देते। मै यह बात अच्छी तरह जानता हूँ कि परदे के पीछे का सारा खेल शशि प्रकाश का ही रचाया हुआ है। यहां टिप्पणी करने से लेकर हम पांच लोगों को २५-२५ लाख का मानहानि का नोटिस भेजवाने तक का सारा खेल वही प्लान किया है। बाकी लोग तो मोहरे हैं।

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