मारुति के मानेसर प्लांट के बाहर यूनियन बनाने के संघर्षरत मजदूरों का एक समूह
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मारुति कामगारों की हड़ताल अवैध घोषित
देवेन्द्र प्रताप
अगर कोई व्यक्ति, संस्था या फिर सरकार, जनता को उसके बुनियादी अधिकारों से वंचित करने का प्रयास करती है, तो न्यायालय को उसे कठोर दंड देना चाहिए
देश के पूंजीपति किस तरह संविधान को अपनी जेब में लेकर घूमता है, यह आठ दिन से मानेसर की मारुति कंपनी में यूनियन बनाने के लिए चल रही हड़ताल को देखकर अंदाज लगाया जा सकता है। अक्सर पढ़े लिखे लोग मजदूरों के आंदोलनों को लेकर अपनी नाक भौं सिकोड़ने लगते हैं। सड़क पर उनके जुलूस को देखकर तो ऐसे लोगों का पारा बहुत हाई हो जाता है। दरअसल वे मजदूरों की दुनिया से परिचित ही नहीं होते हैं। उनकी दुनिया मेहनतकशों की दुनिया से विल्कुल अलग होती है। वरना जो तबका अपनी मेहनत से पूरे समाज को चलाता है, वे उसे गालियां देने के बजाय उसका एहसान मानते। बहरहाल ऐसे लोगों को करीब आ्रठ दिन से यूनियन बनाने की लिए संघर्ष कर रहे मारुति सुजुकी के मानेसर संयंत्र के कामगारों की हड़ताल के साथ मैनेजमेंट के तानाशाहाना व्यवहार को जरूर देखना चाहिए। गर्मी के इस मौसम में जब आप एसी में बैठे आनंद ले रहे होंगे उसी वक्त मारुति के करीब 2000 मजदूर सड़क पर टेंट के नीचे यूनियन बनाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। आखिर यह मांग क्या अवैध है? लेकिन आपको यह सुनकर ताज्जुब होगा कि इस मसले पर जब मारुति के कामगारों ने मैनेजमेंट के साथ बात की तो उसने उनकी मांग मानने से मना कर दिया। आखिर इन पूंजीपतियों के लिए संविधान की कीमत है कि नहीं। इस मामले में मारुति सुजुकी इंडिया के अध्यक्ष आर.सी. भार्गव ने कहा है कि वे इस बारे में उनकी सोच विल्कुल साफ है। हड़ताल अवैध है। हरियाणा सरकार और श्रम आयोग ने भी ऐसा ही कहा है। उन्होंने कहा कि प्रबंधन को हड़ताल की सूचना नहीं दी गई थी, इसलिए हड़ताल अवैध है। उनके मुताबिक चार जून से जारी हड़ताल से संयंत्र में 7,800 कारों का कम उत्पादन हुआ है तथा कंपनी को लगभग 240 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। यानी कुल मिलाकर यदि भार्गव जी की बात पर भरोसा करें, तो उनके इस नेक काम में न सिर्फ सरकार उनका साथ दे रही है, वरन श्रम आयोग तक उसके साथ है। श्रम मंत्री तक मजदूरों की इस हड़ताल पर कंपनी के पक्ष में खड़ नजर आ रहे हैं। इतना ही नहीं कंपनी ने यूनियन बनाने वाले 11 श्रमिकों को सोमवार को बर्खास्त कर दिया गया। हरियाणा सरकार पूरी तरह कंपनी प्रबंधन के पक्ष में खड़ी नजर आ रही है। यही वजह है कि उसने आनन फानन में मारुति के मानेसर संयंत्र में हड़ताल को प्रतिबंधित कर दिया। हरियाणा के श्रम और रोजगार राज्य मंत्री शिवचरण लाल शर्मा जी वैसे तो अक्सर मजदूरों हितों की वकालत करत नजर आते हैं। लेकिन जब वक्त आया तो उन्होने पाला बदल लिया। श्रम मंत्री, सरकार, पूंजीपति सभी असंवैधानिक काम कर रहे हैं और वह भी डंके की चोट पर। वहीं दूसरी और मारुति मजदूरों की हड़ताल को समर्थन देने वाले मजदूर संगठनों का दायरा भी बढ़ रहा है। सरकार के श्रमिक विरोधी रवैये के कारण अब श्रमिक संघ पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय जाने का मन बना रहे हैं। मजदूरों के साथ यह कितना बड़ा अन्याय है कि संविधान के बुनियादी अधिकारों में शामिल अधिकारों को लागू करवाने के लिए उन्हें अदालत जाना पड़ रहा है। अभी तक आंदोलनरत मजदूरों को करीब 40 संघों का समर्थन मिल चुका है। होना ता यह चाहिए कि जो भी व्यक्ति, संस्था या फिर सरकार अगर आम जनता को उसके बुनियादी अधिकारों से वंचित करने का प्रयास करती है, तो न्यायालय को उसे कठोर दंड देना चाहिए।
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