सोमवार, 31 जुलाई 2017

सरकार का झुग्गी तोड़ो अभियान : किसके हित में, किसके खिलाफ

 (सुनील कुमार)।
पश्चिमी जिले के बलजीत नगर इलाके के पहाड़ियों पर बसी झुग्गी बस्ती जुलाई, 2017 को सुर्खियों में आई। इस इलाके के एक तरफ आनन्द पर्वत है जहां तमाम छोटी-छोटी फैक्ट्रियां हैंदूसरी तरफ पटेल नगर स्थित है। यह इलाका जनसंख्या घनत्व के हिसाब से काफी सघन है। अगर इस इलाके में नया कुछ भी निर्माण करना है तो बिना पुरानी बसावट तोड़े नहीं हो सकता। यह इलाका सेंट्रलदिल्ली के करीब है जहां से नई दिल्ली रेलवे स्टेशनकनाट प्लेस कुछ कि.मी. दूरी पर है। इसलिए इस जमीन पर अब बड़े-बड़े पूंजीपतियों की गिद्ध नजर भी है। इससे कुछ ही दूरी पर कठपुतली कॉलोनी है जहां पर दिल्ली की पहली गगनचुम्बी ईमारतरहेजा फोनिक्स’ बनाने की योजना हैजिसको लेकर कठपुतली कॉलोनी निवासियों और सरकार के बीच कई वर्षों से तना-तनी का महौल है। कहीं बलजीत नगर की झुग्गियां तोड़ना किसी ऐसी परियोजना का ही हिस्सा तो नहीं है?
कठपुतली कॉलोनी में सरकार ने पहले घोषणा कर दी कि लोगों को फ्लैट बनाकर दिये जायेंगेफिर उन्हें हटाना शुरू किया। इसके बाद कॉलोनी निवासियों ने प्रतिवाद शुरू कर दिया। उन्होंने कम्पनी से यह गारंटी मांगी कि यहां पर बसे सभी लोगों को फ्लैट देना सुनिश्चित किया जाये। और यह गांरटी कोर्ट में लिखित हो। इस मांग को डेवलपर्सने मानने से इनकार कर दिया जिसके कारण लोगअस्थायी बने कैम्पों में नहीं गये। क्या कठपुतुली कॉलोनी से यह सीख लेकर बलजीत नगर की कॉलोनी तोड़ी गई है कि पहले तोड़ दोफिर घोषित करो कि यह जमीन फलां पूंजीपति को दे दी गई है फलां काम के लिये ताकि लोग प्रश्न खड़ा नहीं करें।
बलजीत नगर में मजदूर वर्गनिम्न मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग के लोग रहते हैं जिनमें से बहुसंख्यक जनता प्राइवेट सेक्टर में छोटे-मोटे काम करती है तो कुछ के पास छोटी दुकानें हैं। बलजीत नगर का एक क्षेत्र पहाड़ी है जिस पर वर्षों पहले (करीब 50-60 साल) से लोग रह रहे हैं। इस भाग में कई सालों की कड़ी मेहनत के बाद वे अपने लिए घर बना लिये हैं। इस पहाड़ी के पास आनन्द पर्वतनेहरू बिहार से लगा हुआ भाग गड्ढ़े में थाजहां पर पानी इक्ट्ठा होता था और दिल्ली के दूसरे इलाके के मलवे इत्यादि लाकर वहां फेंके जाते थे। इसी भाग में दिल्ली में बाद में आये लोग अपने लिए रिहाईश बना कर 10-15 साल पहले से रहने लगे और धीरे-धीरे जमीन को ऊंचा करते रहे। जो भी मेहनत-मजदूरी करते और परिवार चलाने से पैसे बचाते उसको इकट्ठा करके अपने रहने की जगह ठीक करते। उसी पैसे में से या ब्याज पर लेकर घर ठीक करने के लिए पुलिस और डीडीए वाले को पैसे देते थे।  
सुनीता प्रजापतिपत्नी रामबचन प्रजापति उत्तर प्रदेश की आजमगढ़ की रहने वाली है। वह करीब7-8 सालों से इस बस्ती में रह रही थी। सोनू (12 साल) और काजल (साल) नामक उनके दो बच्चे हैं। सोनू पटेल नगर में सातवीं कक्षा का छात्र है और काजल प्रेम नगर में चौथी की छात्रा है। सुनीता के पति रामबचन दिहाड़ी मजदूरी करते हैं औरसुनीता घरेलू सहायिका (डोमेस्टिक वर्कर) का काम करती है। पति को कभी काम मिलती हैकभी नहीं मिलती हैकभी मिलती भी है तो बिमारी के कारण नहीं जा पाते हैं। रामबचन का ईलाज बीपीएल कार्ड पर गंगाराम अस्पताल में चल रहा है।रामबचन को ज्यादातर दवाई बाहर से ही खरीदनी पड़ती है। सुनीता बताती हैं कि जुलाई, 2017 को उनकी बस्ती तोड़ दी गई जिससे उनको कोई सामान निकालने का मौका नहीं मिला। पति के ईलाज का पेपर भी गिराये गये घर में दब गया। सुनीता रोते हुए बताती है कि अभी कुछ समय पहले ही वह साठ हजार रू. पुलिस और चालीसहजार रू. डीडीए को देकर घर बनाई थी। वह अपनी हाथ के छाले को दिखाती हुए बताती हैं कि बदरपुर खरीदना नहीं पड़े इसके लिए पत्थर लाकर पानी में भिगोती थी और हथौड़े से तोड़ती थी। सुनीता ने सत्तर हजार रू. प्रतिशत ब्याज परलेकर घर बनाई थी। उनका कहना है कि वह हमसे पैसे भी ले गये और हमारे घर को भी तोड़ दिये।
इसी तरह की बात बर्फी देवीपत्नी कल्याण शाह जयपुर की रहने वाली है और 13-14 साल से इस बस्ती में रहती हैं। बर्फी भी घरेलू सहायिका का काम करती है और पति मजदूरी करते हैं। बर्फी बताती हैं कि पुलिस तीस हजार रू. तथा डीडीए बीस हजार रू. घर बनाते समय लेकर गई थी। इसी तरह की बातें पुनमपत्नी गुरूरचरण निवासी गौंडा और गीतापत्नी संतोष निवासी आजमगढ़ बताती हैं कि उनके घर बनने पर पुलिस और डीडीए ने उनसे पैसे लेकर गये। गीता अपने तीन बच्चे सुमीत (11 साल)खुशी (साल)हर्षित (साल) और पति के साथ यहां रहती हैं। उनके बच्चों का जन्म यहीं का है। गीता कहती हैं कि उनके बच्चे पांचवीचौथी और दूसरी कक्षा में प्रेम नगर सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। उनको चार तारीख को किताबें स्कूल से मिली थीं लेकिन पांच तारीख को झुग्गी टूटी तो किताबें उसी में दब गईं। बच्चे स्कूल गये हैं दुबाराकिताबें लाने के लिए (बातचीत के दौरान ही उनका बच्चा स्कूल से कुछ किताबें लेकर आता है और बताता है कि और दूसरी विषय का किताब नहीं मिलाखत्म हो गया है)। वह कहती हैं कि राशन मिल रहा है- लेकिन हमारा राशन कार्ड दब गया हैइसलिए हम लोग राशन लाने नहीं जा रहे हैं।
सूरजा देवीपत्नी श्री तेज सिंह अलीगढ़ की रहने वाली हैं। वह बताती हैं कि सोलह साल से यहां रह रही हैं। इस जगह पर किकड़ के पेड़ हुआ करते थे और पानी जमा रहता था। यह जगह चार माले के बराबर गड्ढे में थीइसको हम लोग धीरे-धीरे मलवे भड़कर ऊंचा किये हैं। पास में एक पहाड़ी को दिखाते हुए कहती हैं कि यह ऐसा लगता था कि कितना ऊंचा है। हम लोग यहां मिट्टी तेल से दिये जलाते थे और पानी दूर-दूर से लाते थे। अब पानी का टैंकर आता है लेकिन पानी पूरा नहीं मिलता तो हम लोग अभी भी दूसरी जगह जाकर पानी लाते हैं। यहां पर लोगों के घर बनने पर पुलिस औरडीडीए ने पैसा लिया है जबकि इस जमीन को हमने रहने योग्य बनाया है। आज बोल रहे हैं कि यह जमीन हमारा है।
इसी तरह की शिकायत दूसरे परिवार वाले कर रहे थे कि झुग्गी तोड़ने से पहले उनको किसी भी तरह की चेतावनी नहीं दी गई कि वे अपने समान को बचा पायें। वे लोग शाम पांच बजे तक जितनी झुग्गी तोड़ सकते थे तोड़े। अब उस इलाके को कंटीले तार से सरकार द्वारा घेरा जा रहा है। लोगों का कहना था कि पुलिस और डीडीए वालों ने उनसे पैसे ले लिये हैंअब बिना किसी पूर्व सूचना की उनकी झुग्गी तोड़ रहे हैं। वोट मांगने आते हैं तोकहते हैं कि हम झुग्गी पक्का करा देंगेआपको सभी व्यवस्था करा देंगेवोट हमको दो। जीतने के बाद कहते हैं कि वह हमारा इलाका ही नहीं हैइसी तरह का आरोप वह निगम पार्षद आदेश गुप्ता व विधायक हजारी लाल पर लगाये।
कुछ लोगों का कहना है कि यहां पर कुछ अपराधिक तत्वों ने रोड के किनारे कब्जा करके घर बना रहे थे और डीडीएपुलिस को पैसे नहीं दिये इसलिए टूटा। कुछ का मत था कि अपराधिक तत्वों की आपसी रंजिश में राजनीतिक पार्टी के लोगों केहित का भी टकराव थाजिसके कारण 25 जून को उसे तोड़ दिया गया और बाद में जुलाई को इस बस्ती को भी तोड़ दिया गया। 
प्रमोद बताते हैं कि 25 जून को जब सामने की कुछ झुग्गियां तोड़ी गईं तो हम लोग दो टाटा 407, दौ चैम्पीयन और दो बोलेरो गाड़ी से इस इलाके के सांसद मीनक्षी लेखी के घर गये थे। घर पर मीनाक्षी लेखी नहीं मिलीहमलोगों को अपने दफ्तर बुलाई। जब हमलोग वहां पहुंचे तो हम से अधिक संख्या में वहां पुलिस मौजूद थी और सांसद महोदया ने कहा कि ‘‘तुम लोगों की हिम्मत कैसे हुई हमारे घर पर जाने कीयहां क्यों नहीं आये?’’ पुलिस वालों से बोली कि सभी को बंद कर दो एक भी नहीं बचे।  सांसद महोदया के इस रूख से लोग डर गये और माफी मांगे। मीनक्षी लेखी ने कहा कि वह सरकारी जमीन है तुम लोग अवैध कब्जे किये हो और वह जगह तुम को छोड़नी होगी। 
लोग झुग्गी टूटने के बाद दिल्ली सरकार के पास भी गये थे जहां से उनसे कहा गया की हम इसमें कुछ नहीं कर सकते हमारे पास कोई पावर नहीं हैआप हमें प्रूफ दोहम कोर्ट में केस कर सकते हैं।’ कुछ दिन पहले ही दिल्ली सरकार ने कहा था कि हमने कानून पास कर दिया है कि अब कोई झुग्गी नहीं तोड़ी जायेगी। 11 जुलाई को झुग्गी वाले दो-दो सौ रू. प्रति झुग्गी इक्ट्ठा कर डीडीए दफ्तर (आईटीओ) गये थे। लेकिन वहां भी उनकी बात नहीं सुनी गई और उनसे 2005 का दस्तावेज मांगा गयालेकिन उन लोगों के पास 2008-09 के दस्तावेज मौजूद हैं।
झुग्गी-बस्ती को लेकर सभी पार्टियां कहती हैं कि जहां झुग्गी वहां मकान देंगे। लेकिन सरकार बनते ही वह अपने वायदों से मुकर जाती है और उसकी जगह इन बस्तियों को तोड़ना शुरू कर देती हैं।1989 में सरकार ने बस्तियों की बेहतरी के लियेसीटू अपग्रेडेशन’ को अच्छा माना और कहा किआमतौर पर बस्तियों को पुर्नवासित करने की बजाय सीटू अपग्रेडेशन पर ध्यान देना चाहिए। इसमें स्पष्ट कहा गया है कि जिस विभाग की जमीन है अगर उसको फिलहाल में उस जमीन की आवश्यकता नहीं है तो उसी जगह पर बस्ती वालों को बसाना चाहिए। सरकार के इतने स्पष्ट निर्देश के बाद भी बस्तियों को क्यों तोड़ा जा रहा हैबलजीत नगर में डीडीए कौन सी परियोजना ला रही है या किसको यह जमीन दी गई हैउसका खुलासा डीडीए को करना चाहिए। भारत के प्रधानमंत्रीबोलते हैं कि 2021 तक सभी लोगों को मकान दे दिया जायेगातो क्या सरकार की यह योजना है कि2021 से पहले-पहले सभी बस्ती को तोड़ कर लोगों को बेदखल कर दिया जायेप्रधानमंत्री जीक्या बिना पूर्व सूचना व बिना पुनर्वासबस्तियों को तोड़ना उचित है?

रविवार, 23 जुलाई 2017

निजी सुरक्षा कर्मियों के जीवन से खिलवाड़

             संजय उपाघ्याय, देवेन्द्र प्रताप
कोठी की सुरक्षा  में तैनात एक सुरक्षाकर्मी
सेवा क्षेत्र किसी देश अथवा समाज के आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 1991 के बाद से विश्व अर्थव्यवस्था में रोजगार सृजन की दृष्टि से इस क्षेत्र ने महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया है। हाल के कुछ वर्षों में इसकी विकास दर कृषि और विनिर्माण क्षेत्रों के मुकाबले काफी ऊंची रही है। इस समय सेवा क्षेत्र कारपोरेट जगत के लिए बेहद आकर्षक निवेश का विकल्प बन चुका है। इसने आधारभूत संरचना सुविधाओं के सृजन को सुलभ  बनाया है और विभि न्न उद्योगों की उत्पादकता में वृद्धि की है। सेवा क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण घटक निजी सुरक्षा क्षेत्र है। सामान्य अनुमानों के अनुसार विश्व के  विभि न्न देशों में सुरक्षा एवं गुप्तचर सेवा एजेंसियों की संख्या लगभग एक लाख है।  विभि न्न स्रोतों के अनुसार इन सुरक्षा एजेंसियों के माध्यम से लगभग 2 करोड़ निजी सुरक्षा कार्मिक दुनिया भर में नियोजित हैं। उपलब्ध स्रोतों के अनुसार विश्व के केवल आठ देशों (भारतजर्मनीचीनकनाडारूसयूनाइटेड किंगडमआस्ट्रेलिया तथा नाइजीरियामें ही 60 हजार से अधिक निजी सुरक्षा सेवा एजेंसियां हैंजिन्होंने लगभग 1.2 करोड़ निजी सुरक्षा कर्मियों को रोजगार प्रदान किया हुआ है। ये कार्मिक सुरक्षा गार्डसशस्त्र सुरक्षा गार्ड तथा सुरक्षा पर्यवेक्षक आदि के रूप में कार्यरत हैं।
      तथ्य यह है कि वैश्विक स्तर पर निजी सुरक्षागार्ड की संख्या दुनिया में मौजूद पुलिस बल से काफी ज्यादा है और ये अपराधों की रोकथाम में भी  महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैंलेकिन इसके बावजूद इस क्षेत्र में कहां-कहां कितनी सुरक्षा फर्में काम कर रही हैंउन्होंने कितने कर्मियों को काम पर रखा हुआ हैआदि से संबंधित प्रामाणिक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। इसी प्रकार इस क्षेत्र के श्रमरोजगार और सामाजिक सुरक्षा से जुड़े मुद्दे क्या हैंजिनका सामना निजी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा रखे गए सुरक्षा कर्मियों को अक्सर करना पड़ता हैकी तरफ कम से कम भारत के अध्येताओं और नीति निमार्ताओं ने पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है। इसी कमी को पूरा करने के उद्देश्य से दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की  विभि न्न स्तरों की 40 सुरक्षा एजेंसियों को आधार बना कर वीवीगिरि राष्ट्रीय श्रम संस्थान द्वारा हाल ही में एक अध्ययन किया गया।
जहां तक निजी सुरक्षा एजेंसियों की किस्मोंश्रेणियों और उनके द्वारा काम पर रखे गए सुरक्षा कर्मियों की दशाओं और कार्य स्थितियों आदि का संबंध हैदेश का राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र इस संबंध में देश के लगाग सभी मुख्य महानगरों की विशेषताओं को अपने में समेटे हुए है। दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में  विभि न्न श्रेणियों की लगभग 500 सुरक्षा फर्मों ने 1.5 लाख के आसपास सुरक्षा कर्मियों को रोजगार प्रदान किया हुआ है। इन निजी सुरक्षा फर्मों में स्थानीयराष्ट्रीयतथा अंतर्राष्ट्रीय सभी  स्तरों पर काम करने वाली सुरक्षा एजेंसियां शामिल हैं।
     इन फर्मों द्वारा नियोजित सुरक्षाकर्मी सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानोंकाल सेंटर्सनिजी कंपनियों के निगमित कार्यालयोंराज्य सरकारोंस्थानीय स्वशासन के नियंत्रणाधीन कार्यालयोंअस्पतालोंआवासीय सोसाइटियों/अपार्टमेंटोंनिजी घरोंकोठियोंबैंकोंबीमा कंपनियों के कार्यालयोंमीडिया कार्यालयोंनिर्माण स्थलोंधार्मिक स्थानोंपेट्रोल पंपों आदि पर अपनी सेवाएं प्रदान करते हैं। शोधकर्ताओं ने इन सभी स्थानों पर कार्यरत निजी सुरक्षा कर्मियों से बातचीत की। अध्ययन में मुख्य तौर पर सुरक्षाकर्मियों के काम के घंटोंपारिश्रमिक,  विभि न्न प्रकार के भत्तोंछुट्टियोंरोजगार सुरक्षाउन पर लागू मुख्य श्रम कानूनों के उपबंधों के कार्यान्वयन तथा  विभि न्न श्रम कानूनों के तहत अधिकारों की दृष्टि से सुरक्षा कर्मियों के बीच जागरूकता के स्तर पर आदि पर ध्यान केंद्रित किया गया। एक मोटे अनुमान के अनुसार भारत में इस समय तकरीबन 15 हजार से अधिक सुरक्षा एजेंसी फर्मों में करीब 55 लाख से 60 लाख के बीच सुरक्षाकर्मी कार्यरत हैं।  विभिन्न अनुमानों के अनुसार भारत में निजी सुरक्षा सेवा उद्योग प्रतिवर्ष 25-35 प्रतिशत की  वार्षिक दर से बढ़ रहा है।
       इस उद्योग का कारोबार लगाग 25 हजार से 30 हजार करोड़ रुपये के आसपास है। आकलनों से यह पता चलता है कि निजी कूरियर सेवा के साथ मिल कर निजी सेवा सुरक्षा उद्योग देश में सबसे बड़ा करदाता है। इन निजी सुरक्षा सेवा एजेंसियों द्वारा काम पर लगाए गए सुरक्षा कार्मिक (सुरक्षा गार्डसशस्त्र सुरक्षा गार्ड तथा सुरक्षा पर्यवेक्षक आदिइन सुरक्षा सेवा एजेंसियों की कार्य प्रणाली में सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन अध्ययन में पाया गया कि इन सुरक्षा कर्मियों को अपने सेवा काल के दौरान जीवन जोखिमोंसामाजिक सुरक्षा के अभाव और निम्न कार्यदशाओं आदि की दृष्टि से अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। भारत के अतिरिक्त कुछ अन्य देशों मेंजहां पिछले कुछ दशकों से यह उद्योग लगातार फल फूल रहा है उनमेंजर्मनीचीनकनाडारूसयूनाइटेड किंगडमआस्ट्रेलिया तथा नाइजीरिया आदि देश शामिल हैं। अधिकांश देशों में निजी सुरक्षा कार्मिकपुलिस बल से संख्या में अधिक हैं और कानून और व्यवस्था लगभग  ऐसी भूमिका और कर्तव्य निभाने की आशा की जाती हैजो पुलिस की भूमिका और कर्तव्यों के समान हैं। भारत समेत अन्य देशों में निजी सुरक्षाकर्मी अपने जीवन में कमोवेश उसी प्रकार की चुनौतियों और खतरों का सामना करते हैंजिनका सामना पुलिस को करना पड़ता है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कार्यरत अधिकांश निजी सुरक्षा कार्मिक प्रवासी युवा (19 से 40 वर्ष आयु समूह के बीचशिक्षित, (हाई स्कूल तथा इससे उच्च स्तर की शैक्षिक योग्यता रखने वालेतथा विवाहित हंै। अध्ययन में पाया गया कि आमतौर पर एक सुरक्षाकर्मी के ऊपर 4-5 लोग निर्भर होते हैं। इसके बावजूद अधिकांश सुरक्षा कर्मियो का वेतन और कुल पारिवारिक आय बहुत ही मामूली है। शोधकर्ताओं ने पाया कि उनकी वेतन की आय को मिला कर 5000-6000 रुपये प्रतिमास ही बैठती है। जाहिर है मंहगाई के इस जमाने में उनकी बचत  के बराबर होती है। बहुत कोशिश करने के बाद ही वे प्रतिमाह 500 रुपये से लेकर 1500 रुपया बचा पाते हैं। ज्यादातर सुरक्षाकर्मी हमेशा ही कर्ज के बोझ तले दबे रहते हैं। और यह भी तब है जबकि वे 12 घंटे की सामान्य ड्यूटी करते हैं और महीने में 8-10 ओवरटाइम करते हैं। 
      इन कार्यस्थितियों के बावजूद यह पाया गया कि अधिकांश सुरक्षा कर्मियों को निजी कंपनियां कोई नियुक्ति पत्र तक नहीं जारी करतीं। यह भी  पता चला कि  उनके पास निजी सुरक्षा एजेंसियों के किसी जिम्मेदार अधिकारी के हस्ताक्षर युक्त पहचान पत्र तक नहीं होता। कंपनी उनके लिए आमतौर पर कार्यस्थल पर शौचालय और पीने के पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं तक मुहैया नहीं करवाती। ज्यादातर सुरक्षा कर्मी इन सुरक्षा कंपनियों में इस उम्मीद से नौकरी की शुरुआत करते हैं कि उनकी जिन्दगी में सुधार आएगालेकिन होता यह है कि वे एक एजेंसी से दूसरी एजेंसी को अपनी बेहतरी की उम्मीद के साथ बदलते रहते हैंलेकिन उनकी आशाएं कभी-कभी फलीभूत नहीं हो पातीं। उनमें से अधिकांश सुरक्षा कर्मियों को  तो न्यूनतम मजदूरी मिलती है और  किए गए ओवर टाइम के लिए ओवर टाइम दर से वेतन। इतना ही नहींउन्हें इतनी लम्बी ड्यूटी अवधि के दौरान खाने का •ाी समय नहीं मिलता। कई-कई सालों तक उनका वेतन पहले के समान बना रहता है और उनको पदोन्नति (तरक्कीका मौका नहीं मिलता। अधिकांश निजी सुरक्षा कार्मियों को साल में पूरे 365 दिनों तक काम करना पड़ता है और इस दौरान उन्हें आकस्मिक अवकाश जैसी कोई छुट्टी तक नहीं मिलती। इनमें से बहुतों को होलीदीवालीईद या क्रिसमस आदि महत्वपूर्ण त्योहारों और राष्ट्रीय अवकाश के दिन भी छुट्टी नहीं मिलती। इतना ही नहीं अधिकांश सुरक्षा कर्मियों को संबंधित एजेंसी द्वारा भर्ती के समय और बाद में भी उनको दी जाने वाली वर्दी के लिए अपने वेतन से भुगतान करना पड़ता है।
       बहुत से सुरक्षा कर्मियों को भविष्य निधि(पी.एफ.) और कर्मचारी राज्य बीमा (.एस.आईके लिए अपने हिस्से के अभिदाय का भुगतान करने के साथ-साथ इस मद में नियोजकों के हिस्से का भुगतान भी करना पड़ता है। इस तरह अधिकांश निजी सुरक्षा एजेंसियां  विभि न्न गैर कानूनी तरीकों का इस्तेमाल करके इन सुरक्षाकर्मियों की बदौलत भारी मुनाफा कमाती हैं। शोधकर्ताओं ने इस मामले में सरकार को सुझाव दिया है कि वे सुरक्षाकर्मियों को नियुक्ति पत्र दिलवानेन्यूनतम मजदूरी अधिनियम और मजदूरी भुगतान अधिनियम से संबंधित कानूनों के प्रावधानों को लागू करवानेओवर टाइम कार्य और ओवर टाइम की दरों के मामले को सख्ती से लागू किए जाने जैसे कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं।  अगर सरकार इन सुझावों पर गौर करती हैतो पूरी संभावना है कि इन सुरक्षाकर्मियों को भी संविधान प्रदत्त वे बुनियादी अधिकार हासिल हो सकेंगेजो कि किसी भी मेहनतकश को मिलना ही चाहिए।
(संजय उपाध्याय  वीवीगिरि राष्ट्रीय श्रम संस्थान में फैलो हैंजबकि देवेन्द्र प्रताप अमर उजाला जम्मू  में वरिष्ठ उपसंपादक हैंवी वी गिरी से इस शोध को संजय उपाध्याय के निर्देशन और देवेन्द्र प्रताप के सहयोग से  २००९ में किया गया. संपर्क: देवेंद्र प्रताप 8717079765,  devhills@gmail.com)