बुधवार, 22 जून 2011
ग्रामीण चीन अब भी जीता है माओ की विरासत पर
चीन के नशान गांव में स्थित यह खुला रंगमंच दुनिया के बाकी रंगमंचों की माफिक है लेकिन हां, यहां हर रात अंधेरे में इस मंच पर देश के संस्थापक माओत्से तुंग की अगुवाई में हुआ सत्तारूढ सीपीसी का संघर्ष जीवित हो उठता है. रंगमंच के साथ एक विशाल झील लगी है और पहाडों के बीच फैला विशाल भूखंड है जो इसे अद्भुद बनाता है. कुओमिनतांग और स्थानीय जमींदारों के खिलाफ 1927 में माओ के शुरूआती संघर्ष की गाथा वाला नाटक हर रात यहां दिखाया जाता है । प्रकाश और आवाज के आधुनिक प्रभावों के इस्तेमाल से करीब 600 से ज्यादा अदाकार इस नाटक को रंगमंच पर उतारते हैं । ये कलाकार स्थानीय ग्रामीण होते हैं । माओ के संघर्ष को महसूस करने के लिए चीन के कोने कोने से हजारों की संख्या में दर्शक यहां पहुंचते हैं। माओ की भूमिका में मुख्य कलाकार नारा लगाते हैं, कामरेड...बेहतर कल के लिए अंतिम बार एक हो जाओ। यह संदेश देता है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के 62 साल के शासन के बाद भी क्रांति अभी पूरी नहीं हुई है । विदेशी मीडिया का वहां मार्गदर्शन कर रहे एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, हमारे क्रांतिकारी इतिहास के लिए यह एक कठिन समय है । हालांकि माओ को यहां साधारण मजदूरों के साथ समय बिताने के लिए भेजा गया था लेकिन माओ ने इस बात का ख्याल रखा कि उनकी शारीरिक सुरक्षा और जरूरतों का ख्याल रखा जाए।
रविवार, 12 जून 2011
Unilever Assam workers still waiting for their union to be recognized
Business is doing well at Unilever’s personal products factory at Doom
Dooma in the Indian state of Assam. But nearly 4 years after
management tried to destroy the union with a punishing 6-week lockout,
and almost one year since the IUF and Unilever formally concluded an
agreement to settle the dispute under the auspices of the UK
government, the workers are still waiting for their union to be
recognized as their collective bargaining agent. The workers’ mood is
one of deepening frustration. How has this happened?
On July 15, 2007 a dispute over the breach of a provision in the CBA
led to a lockout of the Hindustan Lever Workers’ Union’s 700 members.
Management’s condition for ending the lockout was that the legitimate
union disband and that all workers transfer their membership to a
hastily improvised construction dubbed the Hindustan Unilever
Democratic Workers Union (HUSS). Workers were forced to sign forms to
this effect as a condition for returning to work on September 3.
Shortly after this, a CBA with the new organization was registered
with the local authorities – and workers found that their union
check-off was being paid to the sham union against their wishes.
On December 5, 2007, the union protested this illegal subsidy to a
non-representative trade union to management - together with a
petition with 372 signatures, names and employee numbers. This was
followed over the next 3.5 years by no less than 6 similar petitions
to management and to the local authorities – all of which were
ignored. Management’s sole response was a crude attempt to forge
hundreds of worker signatures on a petition form with no covering
letter, evidently intended for the local authorities as proof of the
legitimacy of stealing a piece of workers’ wages every month.
In October 2007, the IUF followed a complaint about these
union-busting practices with the UK National Contact Point responsible
for the OECD Guidelines on Multinational Enterprises. Nothing
happened, either in Doom Dooma or at the NCP (who has sinceadopted
vastly improved procedures for addressing and resolving complaints).
In June 2008, the NCP suspended the complaint because the legitimate
union petitioned the Assam High Court to hold a state-supervised
election to determine which organization represented the workers for
collective bargaining purposes. The Court took its time. Unilever
continued to illegally deduct the check-off subsidy to their own
creation.
In February 2010 the High Court finally got around to issuing a
decision: it had no jurisdiction to supervise an election, but there
was no legal obstacle to the parties agreeing on an election procedure
outside the court.
In July 2010, Unilever and the IUF agreed, under the auspices of the
NCP, to do just that. The illegal dues check off would cease, the
authorities would be asked to conduct an election under agreed
conditions, and should the authorities refuse a procedure was ageed
upon to hold voluntary elections under the supervision of a mutually
agreed third party. The agreement is posted on the website of the UK
NCP. Unilever proposed a name; the IUF, after consulting with the
union, agreed with the nomination, a retired Supreme Court judge. The
election should have been concluded shortly after that. But Unilever
has dipped into a seemingly bottomless bag of tricks to thwart this
simple procedure from being implemented and prevent the workers at the
factory from exercising their rights.
The deductions stopped for a month – and then resumed. Only in
February this year did illegal deductions to the yellow union
definitely cease. But workers cannot use the checkoff to support the
work of their own union – there is no checkoff. And the elections
exist only on a paper signed in London, with one excuse after another
invoked to explain why they don’t take place. Unilever management, in
Mumbai and in London, repeatedly invokes the alleged objections of the
management union (which they created) and/or the local authorities –
the same authorities who rubberstamped the yellow union’s registration
and then the sham ‘CBA’ – as an excuse for not implementing an
agreement they signed in the offices of a UK government ministry. They
also conveniently overlook the fact that the agreement with the IUF
was deliberately constructed to avoid the complications of involving a
compliant administration which assented to the lockout, the
union-busting and the phoney CBA. All has gone down the corporate
memory hole – but only until next year, when the company wlil try
again to install a company union against the workers’ wishes.
For 4 long years, workers at the plant have been denied the right to
support, with a contribution from their wages, the union they have
repeatedly declared should represent them. Verification of membership
is a legal requirement for the conclusion of a collective bargaining
agreement – and the current CBA, the one which was rammed through in
the aftermath of the 6-week lockout, expires next year.
Unilever would appear to be stalling until they get their chance next
year to again seek to register a fake CBA signed by a fake
organization with fake members. This is supported by the interminable
delays, and by the management convocation of a May 10 "Employee
Relationship Leadership" meeting during off duty hours at which it was
announced that that HUSS (the company union) has started preparing for
the next CBA - and that there will be a good settlement in 2012!
सिर्फ 18 प्रदेशों में ही आरटीई अधिसूचित
छह से 14 वर्ष के बच्चों को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार :आरटीई: को लागू हुए एक वर्ष से अधिक समय गुजरने के बावजूद अब तक देश के केवल 18 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों ने ही इस कानून को अधिसूचित किया है जबकि दिल्ली, महाराष्ट्र, केरल, उत्तरप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में यह अभी भी कानून नहीं बनाया जा सका है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय से प्राप्त ताजा जानकारी के अनुसार, आंध्रप्रदेश, अंडमान निकोबार द्वीपसमूह, बिहार, चंडीगढ, अरूणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ, दादरा नगर हवेली, दमन दीव, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, लक्षद्वीप, मध्यप्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, नगालैण्ड, उडीसा, राजस्थान, सिक्किम ने आरटीई कानून को अधिसूचित कर दिया है। दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मेघालय, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब, कर्नाटक ने अपने विधि विभाग को इस कानून का मसौदा विचार के लिये भेजा है । गुजरात, असम, केरल, मेघालय, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा ने इस कानून को मंजूरी के लिए कैबिनेट के समक्ष भेजने की बात कही है। निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून के तहत ही प्रदेशों में राज्य बाल अधिकार संरक्षण परिषद :एससीपीसीआर: गठित करने का प्रावधान किया गया है। हालांकि अब तक केवल 14 राज्यों में ही राज्य बाल अधिकार संरक्षण परिषद का गठन किया गया है। असम, बिहार, छत्तीसगढ, दिल्ली, गोवा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उडीसा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम और उत्तराखंड ने एससीपीसीआर का गठन किया है। ताजा जनगणना के अनुसार पिछले 10 वर्ष में महिला साक्षरता दर 11.8 फीसदी और पुरुष साक्षरता दर 6.9 फीसदी की दर से बढी है, हालांकि महत्वाकांक्षी सर्व शिक्षा अभियान :एसएसए: के आंकडों पर गौर करें तो एसएसए के तहत आरटीई लागू होने के एक वर्ष गुजरने के बाद देश में अभी भी 81 लाख 50 हजार 619 बच्चे स्कूली शिक्षा के दायरे से बाहर है, 41 प्रतिशत स्कूलों में लडकियों के लिए शौचालय नहीं है और 49 प्रतिशत स्कूलों में खेल का मैदान नहीं है। प्राथमिक स्कूलों में दाखिल छात्रों की संख्या 13,34,05,581 है जबकि उच्च प्राथमिक स्कूलों में नामांकन प्राप्त 5,44,67,415 है। साल 2020 तक सकल नामांकन दर को वर्तमान 12 प्रतिशत से बढाकर 30 प्रतिशत करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है लेकिन सर्व शिक्षा अभियान के 2009..10 के आंकडों के अनुसार, बडी संख्या में छात्रों को स्कूली शिक्षा के दायरे में लाने के लक्ष्य के बीच देश में अभी कुल 44,77,429 शिक्षक ही हैं। सर्व शिक्षा अभियान के आंकडों के अनुसार, शैक्षणिक वर्ष 2009..10 में प्राथमिक स्तर पर बालिका नामांकन दर 48.46 प्रतिशत और उच्च प्राथमिक स्तर पर बालिका नामांकन दर 48.12 प्रतिशत है। अनुसूचित जाति वर्ग के बच्चों की नामांकन दर 19.81 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति वर्ग के बच्चों की नामांकन दर महज 10.93 प्रतिशत दर्ज की गयी है। देश में फिलहाल छात्र शिक्षक अनुपात 32 : 1 है। वैसे 324 ऐसे जिले भी हैं जिनमें निर्धारित मानक के अनुरूप छात्र शिक्षक अनुपात 30 : 1 से कम है । देश में 21 प्रतिशत ऐसे शिक्षक हैं जिनके पास पेशेवर डिग्री तक नहीं है। देश में नौ प्रतिशत स्कूल ऐसे हैं जिनमें केवल एक शिक्षक हैं।
बाल मजदूरी से देश में प्रति वर्ष 120,000 करोड़ रूपये का काला धन
दूसरे बच्चों की तरह 12 साल का गोलू भी स्कूल जाना चाहता है लेकिन यह उसके लिए केवल एक सपना है क्योंकि आर्थिक तंगी से गुजर रहे परिवार के लिए उसे दक्षिण दिल्ली के एक ढाबे में सुबह से रात तक जूठे बर्तन धोना पडता है। गरीबी के कारण ही झारखंड से आये दस साल के राजू को अपने छोटे भाई के साथ दिल्ली की सडकों पर फूल बेचना पडता है। यह कहानी केवल राजू या गोलू की नहीं बल्कि उन हजारों बच्चों की है जो आजीविका के लिए बचपन को भुला कर काम कर रहे हैं। उन्हें आज मनाए जाने वाले विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस की कोई जानकारी नहीं है। इस दिन के महत्व के बारे में बताए जाने पर गोलू ने पूछा यह कौन सा दिन है। कहां मनाया जाता है। क्या इस दिन मिठाई मिलती है। यही प्रतिक्रिया राजू की थी जो इतना धन कमाना चाहता है कि उसका परिवार आसानी से गुजरबसर कर सके। वह कहता है यह काम मुझे अच्छा नहीं लगता लेकिन परिवार के लिए कर रहा हूं।
वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार, देश में करीब एक करोड 26 लाख बाल श्रमिक हैं। हालांकि अंतरराष्ट्रीय संगठन और समाज का अनुमान है कि उनकी संख्या चार करोड से साढे चार करोड के आसपास है। ये बच्चे घरों में, फैक्ट्रियों में, रेस्तरां में, सडक के किनारे ढाबों में, मिठाई की दुकान पर और खेतों में काम करते नजर आ जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार, कृषि कार्य में 70 फीसदी बाल मजदूर हैं और अब तक इस श्रेणी को भारत में बाल श्रम रोधी कानून ने कामकाजी बच्चों के तौर पर मान्यता नहीं दी है। गैर सरकारी संगठन सेव द चिल्ड्रन के थॉमस चांडी ने कहा कि बाल श्रमिक शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषक आहार आदि से वंचित रहते हैं और कार्य स्थलों पर उन्हें कई जोखिमों का सामना करना पडता है। उनके यौन शोषण से ले कर हिंसा के शिकार होने तक की आशंका लगातार बनी रहती है। न्यूनतम मजदूरी पर उनसे उनकी क्षमता से कई गुना अधिक काम लिया जाता है।
गैर सरकारी संगठन चाइल्ड फंड इंडिया की राष्ट्रीय निदेशक डोला महापात्र ने कहा कानून अच्छा है लेकिन समस्या इसके जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन को लेकर है। जब तक समुदाय बच्चों से काम कराने के खिलाफ जागरूक नहीं होगा तब तक कानून से इस समस्या का हल नहीं निकाला जा सकता। चांडी ने कहा इसके अलावा, बाल श्रम को रोकने वाला अधिनियम हर तरह के बाल श्रम पर रोक नहीं लगाता। साथ ही वर्तमान कानून का कारगर तरीके से कार्यान्वयन भी नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा इस कानून को शिक्षा का अधिकार :आरटीई: अधिनियम की तरह सुसंगत बनाने की जरूरत है। आरटीई को सरकार ने 2009 में लागू किया था। उन्होंने कहा कि भारत में रोजगार करने के लिए न्यूनतम आयु सीमा भी तय नहीं है। भारत ने अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की संधि 138 :न्यूनतम आयु सीमा: और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की संधि 182 :बाल श्रम का सर्वाधिक निकृष्टतम प्रकार: का अनुमोदन भी नहीं किया है। अक्तूबर 2006 में सरकार ने बाल श्रमिक :निरोधक एवं नियमन: अधिनियम 1986 में संशोधन कर 14 साल से कम उम््रा के बच्चों से काम कराने पर रोक लगा दी।
वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार, देश में करीब एक करोड 26 लाख बाल श्रमिक हैं। हालांकि अंतरराष्ट्रीय संगठन और समाज का अनुमान है कि उनकी संख्या चार करोड से साढे चार करोड के आसपास है। ये बच्चे घरों में, फैक्ट्रियों में, रेस्तरां में, सडक के किनारे ढाबों में, मिठाई की दुकान पर और खेतों में काम करते नजर आ जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार, कृषि कार्य में 70 फीसदी बाल मजदूर हैं और अब तक इस श्रेणी को भारत में बाल श्रम रोधी कानून ने कामकाजी बच्चों के तौर पर मान्यता नहीं दी है। गैर सरकारी संगठन सेव द चिल्ड्रन के थॉमस चांडी ने कहा कि बाल श्रमिक शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषक आहार आदि से वंचित रहते हैं और कार्य स्थलों पर उन्हें कई जोखिमों का सामना करना पडता है। उनके यौन शोषण से ले कर हिंसा के शिकार होने तक की आशंका लगातार बनी रहती है। न्यूनतम मजदूरी पर उनसे उनकी क्षमता से कई गुना अधिक काम लिया जाता है। चांडी ने प्रेस ट्रस्ट से कहा इससे बच्चे की वृद्धि और विकास बाधित होता है। अक्तूबर 2006 में सरकार ने बाल श्रमिक :निरोधक एवं नियमन: अधिनियम 1986 में संशोधन कर 14 साल से कम उम््रा के बच्चों से काम कराने पर रोक लगा दी। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह रोक केवल कागजों पर ही नजर आती है।
विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने के मुद्दे पर छिडी बहस के बीच बाल अधिकारों के लिये काम करने वाले एक संगठन का कहना है कि बाल मजदूरी से भारत में प्रतिवर्ष 1.2 लाख करोड रूपये की राशि अर्जित की जाती है । कैपिटल करप्शन :चाइल्ड लेबर इन इंडिया नाम से तैयार की गयी बचपन बचाओ आंदोलन :बीबीए: की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है। यह रिपोर्ट बाल मजदूरों की संख्या, उनके द्वारा अर्जित की आय और नियोजक के वयस्क मजदूरों की जगह बाल मजदूरों को रख कर अर्जित किये गये अनुचित आय के आंकडो के आकलन के आधार पर तैयार की गयी है। इस अध्ययन में बताया गया है अधिकतम मुनाफा का लालच बाल मजदूरी को बढावा देता है क्योंकि बच्चे सस्ते श्रम के लिये उपयुक्त होते है । बाल मजदूरी, भ्रष्टाचार और काले धन का प्रवाह और अवैध गिरोह एक दूसरे के पूरक है जिससे केवल नियोजकों और दलालों को फायदा होता है । इसके मुताबिक देश में करीब छह करोड बाल मजदूर है जो कि एक साल में प्रति दिन 15 रूपये की दर से लगभग 200 दिनों तक काम करते है । इस आधार पर एक साल में 18,000 करोड रूपये की राशि बनती है । और अगर इन छह करोड बाल मजदूरों की जगह पर छह करोड वयस्क मजदूरों होते तो उन्हें औसत 115 रूपये की प्रति दिन की मजदूरी से देनी पडती और यह रकम 1,38,000 करोड रूपये होगी । इसमें बताया गया है इन दोनों आंकडो के बीच का अंतर 1.20 लाख करोड बनता है ।
वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार, देश में करीब एक करोड 26 लाख बाल श्रमिक हैं। हालांकि अंतरराष्ट्रीय संगठन और समाज का अनुमान है कि उनकी संख्या चार करोड से साढे चार करोड के आसपास है। ये बच्चे घरों में, फैक्ट्रियों में, रेस्तरां में, सडक के किनारे ढाबों में, मिठाई की दुकान पर और खेतों में काम करते नजर आ जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार, कृषि कार्य में 70 फीसदी बाल मजदूर हैं और अब तक इस श्रेणी को भारत में बाल श्रम रोधी कानून ने कामकाजी बच्चों के तौर पर मान्यता नहीं दी है। गैर सरकारी संगठन सेव द चिल्ड्रन के थॉमस चांडी ने कहा कि बाल श्रमिक शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषक आहार आदि से वंचित रहते हैं और कार्य स्थलों पर उन्हें कई जोखिमों का सामना करना पडता है। उनके यौन शोषण से ले कर हिंसा के शिकार होने तक की आशंका लगातार बनी रहती है। न्यूनतम मजदूरी पर उनसे उनकी क्षमता से कई गुना अधिक काम लिया जाता है।
गैर सरकारी संगठन चाइल्ड फंड इंडिया की राष्ट्रीय निदेशक डोला महापात्र ने कहा कानून अच्छा है लेकिन समस्या इसके जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन को लेकर है। जब तक समुदाय बच्चों से काम कराने के खिलाफ जागरूक नहीं होगा तब तक कानून से इस समस्या का हल नहीं निकाला जा सकता। चांडी ने कहा इसके अलावा, बाल श्रम को रोकने वाला अधिनियम हर तरह के बाल श्रम पर रोक नहीं लगाता। साथ ही वर्तमान कानून का कारगर तरीके से कार्यान्वयन भी नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा इस कानून को शिक्षा का अधिकार :आरटीई: अधिनियम की तरह सुसंगत बनाने की जरूरत है। आरटीई को सरकार ने 2009 में लागू किया था। उन्होंने कहा कि भारत में रोजगार करने के लिए न्यूनतम आयु सीमा भी तय नहीं है। भारत ने अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की संधि 138 :न्यूनतम आयु सीमा: और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की संधि 182 :बाल श्रम का सर्वाधिक निकृष्टतम प्रकार: का अनुमोदन भी नहीं किया है। अक्तूबर 2006 में सरकार ने बाल श्रमिक :निरोधक एवं नियमन: अधिनियम 1986 में संशोधन कर 14 साल से कम उम््रा के बच्चों से काम कराने पर रोक लगा दी।
वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार, देश में करीब एक करोड 26 लाख बाल श्रमिक हैं। हालांकि अंतरराष्ट्रीय संगठन और समाज का अनुमान है कि उनकी संख्या चार करोड से साढे चार करोड के आसपास है। ये बच्चे घरों में, फैक्ट्रियों में, रेस्तरां में, सडक के किनारे ढाबों में, मिठाई की दुकान पर और खेतों में काम करते नजर आ जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार, कृषि कार्य में 70 फीसदी बाल मजदूर हैं और अब तक इस श्रेणी को भारत में बाल श्रम रोधी कानून ने कामकाजी बच्चों के तौर पर मान्यता नहीं दी है। गैर सरकारी संगठन सेव द चिल्ड्रन के थॉमस चांडी ने कहा कि बाल श्रमिक शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषक आहार आदि से वंचित रहते हैं और कार्य स्थलों पर उन्हें कई जोखिमों का सामना करना पडता है। उनके यौन शोषण से ले कर हिंसा के शिकार होने तक की आशंका लगातार बनी रहती है। न्यूनतम मजदूरी पर उनसे उनकी क्षमता से कई गुना अधिक काम लिया जाता है। चांडी ने प्रेस ट्रस्ट से कहा इससे बच्चे की वृद्धि और विकास बाधित होता है। अक्तूबर 2006 में सरकार ने बाल श्रमिक :निरोधक एवं नियमन: अधिनियम 1986 में संशोधन कर 14 साल से कम उम््रा के बच्चों से काम कराने पर रोक लगा दी। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह रोक केवल कागजों पर ही नजर आती है।
विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने के मुद्दे पर छिडी बहस के बीच बाल अधिकारों के लिये काम करने वाले एक संगठन का कहना है कि बाल मजदूरी से भारत में प्रतिवर्ष 1.2 लाख करोड रूपये की राशि अर्जित की जाती है । कैपिटल करप्शन :चाइल्ड लेबर इन इंडिया नाम से तैयार की गयी बचपन बचाओ आंदोलन :बीबीए: की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है। यह रिपोर्ट बाल मजदूरों की संख्या, उनके द्वारा अर्जित की आय और नियोजक के वयस्क मजदूरों की जगह बाल मजदूरों को रख कर अर्जित किये गये अनुचित आय के आंकडो के आकलन के आधार पर तैयार की गयी है। इस अध्ययन में बताया गया है अधिकतम मुनाफा का लालच बाल मजदूरी को बढावा देता है क्योंकि बच्चे सस्ते श्रम के लिये उपयुक्त होते है । बाल मजदूरी, भ्रष्टाचार और काले धन का प्रवाह और अवैध गिरोह एक दूसरे के पूरक है जिससे केवल नियोजकों और दलालों को फायदा होता है । इसके मुताबिक देश में करीब छह करोड बाल मजदूर है जो कि एक साल में प्रति दिन 15 रूपये की दर से लगभग 200 दिनों तक काम करते है । इस आधार पर एक साल में 18,000 करोड रूपये की राशि बनती है । और अगर इन छह करोड बाल मजदूरों की जगह पर छह करोड वयस्क मजदूरों होते तो उन्हें औसत 115 रूपये की प्रति दिन की मजदूरी से देनी पडती और यह रकम 1,38,000 करोड रूपये होगी । इसमें बताया गया है इन दोनों आंकडो के बीच का अंतर 1.20 लाख करोड बनता है ।
मारुति में आंदोलन : एटक मंगलवार को हड़ताल करेगी
गुडगांव-मानेसर औद्योगिक क्षेत्र की विभिन्न कंपनियों के कर्मचारी मारुति सुजुकी में जारी आंदोलन के समर्थन में मंगलवार को दो घंटे टूलडाउन हडताल करेंगे। इस हडताल का आह्वान आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस :एटक: ने किया है। उल्लेखनीय है कि मारुति सुजुकी के मानेसर कारखाने में कई दिन से हडताल चल रही है। जानकार सूत्रों का कहना है कि कंपनी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह निकाले गए 11 कर्मचारियों को वापस नहीं लेगी। सूत्रों के अनुसार समझा जाता है कि कंपनी ने अपने विभिन्न कारखानों में कर्मचारियों के प्रतिनिधियों की गवर्निंग काउंसिल गठित करने का प्रस्ताव किया है जो कंपनी की नीति तय करने में भाग लेगी ताकि भविष्य में श्रमिक असंतोष नहीं हो। एटक सचिव डी एच सचदेव ने पीटीआई से कहा, गुडगांव-मानेसर क्षेत्र के विभिन्न कारखानों में कल आम सभाएं होंगी। मंगलवार को, क्षेत्र के 60-65 कारखानों में दो घंटे की टूलडाउन हडताल होगी। सचदेव तथा एटक के महासचिव गुरुदास दासगुप्ता ने मारुति के कारखाने में हडताल के संदर्भ में बीते सप्ताह दो बार मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से मुलाकात की थी। हीरो होंडा, होंडा मोटरसाइकिल एंड स्कूटर इंडिया, रीको आटो सहित कई कंपनियों की ट्रेड यूनियनें मारुति की हडताल का समर्थन कर रही हैं। मारुति के मानेसर स्थित कारखाने के लगभग 2,000 कर्मचारियों ने चार जून को हडताल शुरू की थी। इनकी मांगों में मारुति सुजूकी इम्पलाइज यूनियन को मंजूरी देना भी शामिल है। कंपनी ने 11 कर्मचारियों को निकाल दिया जिनकी बहाली भी हडतालियों की मांग में आ गई है। सूत्रों ने बताया, े कंपनी ने स्पष्ट कर दिया है कि कर्मचारियों को बहाल करने का सवाल ही नहीं है। इसके अलावा कंपनी काम नहीं-वेतन नहीं की नीति लागू करेगी। कल हडताल का आठवां दिन था और इससे कंपनी को 390 करोड रुपये या 7,800 वाहनों के उत्पादन का नुकसान हो चुका है। इस बीच, मारुति सुजुकी इम्पलाइज यूनियन के महासचिव शिव कुमार ने दावा किया है कंपनी प्रबंधन पांच कर्मचारियों को वापस लेने पर राजी हो गया है। लेकिन यूनियन सभी 11 कर्मचारियों को बहाल करने की मांग कर रही है।
मारुति कर्मचारियों की सभी बर्खास्त सहयोगियों को बहाल करने की मांग
नयी दिल्ली, 12 जून : मारुति सुजुकी ने अपने मानेसर कारखाने में सप्ताह भर से जारी हडताल में पहली बार नरमी का रुख दिखाते हुए आज कहा कि वह नयी यूनियन को मान्यता देने की इच्छा रखती है। वहीं हडताली कर्मचारियों ने भी कहा है कि अगर उनके 11 बर्खास्त सहयोगियों को बहाल कर दिया जाता है तो वे काम पर लौटने की मंशा रखते हैं। मारति सुजुकी के प्रबंध कार्याधिकारी : प्रशासन : एस वाई सिद्दकी ने कहा, े एक संभावना यह है कि हर कारखाने की अपनी यूनियन और एक गवर्निंग काउंसिल हो। इस काउंसिल में स्थानीय कारखानों की यूनियनों से प्रतिनिधि लिए जाएं। ऐसा समझा जाता है कि गवर्निंग काउंसिल कंपनी की भावी नीतियों को तैयार करने में भाग लेगी ताकि भविष्य में कर्मचारियों के असंतोष का सामना नहीं करना पडे। कंपनी ने निकाले गए कर्मचारियों के बारे में चुप्पी साधी है जबकि जानकार सूत्रों के अनुसार इन्हें वापस लिए जाने की संभावना नहीं है। मारुति सुजुकी इम्पलाइज यूयिन के महासचिव शिवकुमार ने दावा किया है कि कंपनी प्रबंधन 11 में से पांच कर्मचारियों को वापस लेने को तैयार हो गया है। लेकिन यूनियन चाहती है कि सभी कर्मचारियों को वापस लिया जाये। कुमार ने कहा, अगर वे :प्रबंधन: पांच कर्मचारियों को वापस ले सकते हैं तो 11 को क्यों नहीं? अगर सभी को बहाल किया जाता है तो हम हडताल समाप्त करने की इच्छा रखते हैं। इस बीच आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस :एटक: ने मारुति सुजूकी में जारी आंदोनल के समर्थन में मंगलवार को दो घंटे टूलडाउन हडताल का आह्वान किया है। एटक सचिव डी एल सचदेव ने पीटीआई से कहा, े गुडगांव-मानेसर क्षेत्र के विभिन्न कारखानों में कल आम सभाएं होंगी। मंगलवार को, क्षेत्र के 60-65 कारखानों में दो घंटे की टूलडाउन हडताल होगी। सचदेव तथा एटक के महासचिव गुरुदास दासगुप्ता ने मारुति के कारखाने में हडताल के संदर्भ में बीते सप्ताह दो बार मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से मुलाकात की थी। हीरो होंडा, होंडा मोटरसाइकिल एंड सकूटर इंडिया, रीको आटो सहित अनेक कंपनियों की ट्रेड यूनियनें मारुति की हडताल का समर्थन कर रही हैं। मारुति के मानेसर स्थित कारखाने के लगभग 2,000 कर्मचारियों ने चार जून को हडताल शुरू की थी। इनकी मांगों में मारुति सुजुकी इम्पलाइज यूनियन को मंजूरी देना भी शामिल है। कंपनी ने 11 कर्मचारियों को निकाल दिया जिनकी बहाली भी हडतालियों की मांग में आ गई है। सूत्रों ने बताया, कंपनी ने स्पष्ट कर दिया है कि कर्मचारियों को बहाल करने का सवाल ही नहीं है। इसके अलावा कंपनी काम नहीं-वेतन नहीं की नीति लागू करेगी। कल हडताल का आठवां दिन था और इससे कंपनी को 390 करोड रुपये या 7,800 वाहनों का उत्पादन नुकसान हो चुका है।समूची दुनिया में हो रही है पत्रकारों की हत्या
पाकिस्तानी पत्रकार सलीम शाहजाद और भारत के ज्योतिन्द्र डे की हत्या भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ अभिव्यक्ति के सिद्धांत पर अमल करते हुए हुई । डे और शाहजाद इस मुहिम में अकेले नहीं रहे, यूनेस्को की रिपोर्ट के मुताबिक 2006 से 2009 तक दुनिया में 247 पत्रकार सूचना क्रांति को आगे बढावा देते हुए कुर्बान हुए। संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन :यूनेस्को: की रिपोर्ट के अनुसार, 2006 से 2009 के बीच अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मुहिम को कलम के माध्यम से आगे बढाते हुए भारत में छह पत्रकार बलिदान हुए। यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2006 में 69 पत्रकारों की हत्या हुई जिसमें सबसे अधिक 29 इराक, छह फिलिपीन, दो भारत, दो पाकिस्तान, तीन अफगानिस्तान, तीन रूस, चार श्रीलंका के थे । साल 2007 में सबसे अधिक 33 पत्रकार इराक में मारे गए जबकि सोमालिया में सात, अफगानिस्तान में दो तथा ब््रााजील, तुर्की, मैक्सिको में एक..एक पत्रकार कुर्बान हुए। साल 2008 में दुनिया में 49 पत्रकार मारे गए जिसमें 11 पत्रकार इराक में, जार्जिया में पांच, मैक्सिको और रूस में चार चार, फिलिपीन में तीन पत्रकार शामिल हैं । साल 2008 में भारत में भी चार पत्रकार चौथे स्तम्भ की रक्षा करते हुए शहीद हुए। साल 2009 में 77 पत्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मुहिम को आगे बढाते और भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ क्रांति की मशाल जलाते हुए मारे गए। इस वर्ष सबसे अधिक 34 पत्रकार फिलिपीन में मारे गए जबकि सोमालिया में सात, रूस में चार, मैक्सिको में सात, इराक में चार, अफगानिस्तान में चार पत्रकार मारे गए। यूनेस्को की रिपोर्ट में कहा गया है कि इन वर्षो में पत्रकारों की हत्या के मामलों से स्पष्ट है कि मीडिया से जुडे लोगों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाये गए हैं। यह दुखद है कि पत्रकारों के खिलाफ हिंसक गतिविधियां लगातार बढ रही हैं। अगर इनकी सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाये गए तो पत्रकार ऐसे भ्रष्ट तत्वों का आसान निशाना बने रहेंगे। रिपोर्ट के अनुसार, 2006 से 2009 के बीच पत्रकारों की हत्या के संबंध में बांग्लादेश, भारत, ब्राजील कोलंबिया, इक्वाडोर, अल साल्वाडो, ग्लाटेमाला, इंडोनेशिया, लेबनान, म्यामां, फलस्तीन, फिलिपीन, रूस, तुर्की ने न्यायिक जांच करायी। जबकि इराक, अफगानिस्तान, चीन, श्रीलंका आदि देशों में ऐसे मामलों की न्यायिक जांच नहीं करायी गई।
पत्रकार ज्योतिर्मय डे का मुंबई में अंतिम संस्कार
वरिष्ठ खोजी पत्रकार ज्योतिर्मय डे (५६) का आज घाटकोपर में अंतिम संस्कार कर दिया गया । डे की शनिवार को अज्ञात अपराधियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी । उनको श्रद्धांजलि देने के लिये महाराष्ट्र के पीडब्ल्यूडी मंत्री छगन भुजबल और बडी संख्या में मीडियाकर्मी इकट्ठा हुए थे । मिड डे में संपादक(स्पेशल इन्वेस्टीगेशन) डे की कल दोपहर पोवई में चार अज्ञात लोगों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी । उन्होंने दो दशकों तक अपराध और अंडरवर्ल्ड कवर किया था । डे के परिवार में पत्नी शुभा शर्मा और मां हैं । भुजबल ने डे के परिजन को आश्वासन दिया कि अपराधियों को तुरंत गिरफ्तार किया जाएगा। भुजबल ने संवाददाताओं से कहा, यह काफी दुखद घटना है। हत्या की जांच अपराध शाखा की विशेष टीम कर रही है। वे तेल माफिया और अंडरवर्ल्ड से जुडे लोगों की संलिप्तता की भी जांच कर रहे हैं। इस बीच, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने एक आपात बैठक बुलाई है जिसमें गृह मंत्री आर. आर. पाटिल और मुंबई के पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक हिस्सा लेंगे । मीडियाकर्मियों ने और कडे कानून की मांग करते हुए कहा है कि पत्रकारों पर हमले को गैर जमानती अपराध बनाया जाए ।
पत्रकार हत्या पर मुख्यमंत्री का तीव्र जांच का आदेश
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने आज मुम्बई के पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक को वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय डे की हत्या के मामले में दोषियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने को कहा है। डे मिड डे में इंवेस्टिगेटिंव एडिटर के रूप में काम कर रहे थे । उनकी कल अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मार कर हत्या कर दी। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री ने आज अपने आवास पर आपात बैठक बुलाई और जांच कार्यो की स्थिति का जायजा लिया। बैठक में वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा राज्य के गृह मंत्री आर आर पाटिल, पुलिस आयुक्त पटनायक, संयुक्त सचिव :अपराध: हिमांशु राय और संयुक्त आयुक्त पुलिस :कानून एवं व्यवस्था: रजनीश सेठ शामिल हुए। बैठक बाद गृह मंत्री आर आर पाटिल ने कहा कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए सरकार सभी आवश्यक उपाय करेगी। उन्होंने कहा कि इस मामले में दोषियों को पकडने के लिए विशेष पुलिस टीम बनायी गई है।
भारत में पत्रकारों की सुरक्षा की गारंटी दे स्थानीय सरकारें
वरिष्ठ खोजी पत्रकार की हत्या की कडे शब्दों में निंदा करते हुए जालंधर स्थित प्रेस क्लब के अध्यक्ष ने कहा है कि पत्रकारों की सुरक्षा की गारंटी स्थानीय सरकारें दे ताकि फिर से इस तरह के कृत्य न दोहराये जायें। जालंधर स्थित पंजाब प्रेस क्लब के अध्यक्ष आर एन सिंह ने आज यहां एक बयान जारी कर कहा कि मुंबई में पत्रकार की हत्या की जितनी निंदा की जाए कम है । उन्होंने कहा कि यह कायरतापूर्वक की गयी बर्बर कार्रवाई है । उन्होंने जोर देकर कहा कि जिस राज्य में पत्रकार काम करते हैं उसकी सुरक्षा की गारंटी देना वहां की सरकार की जिम्मेदारी है । इसके साथ ही उन्होंने पंजाब सरकार सहित देश की सभी राज्य सरकारों से अपील की कि वह पत्रकारों की सुरक्षा की गारंटी दे ।
पत्रकारों की हत्या की गुत्थी न सुलझाने वाले देशों में भारत भी
अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्था की ओर से बनाए गए माफी सूचकांक 2011 के अनुसार पत्रकारों की हत्या की गुत्थी न सुलझा सकने वाले देशों में भारत 13वें स्थान पर आता है। सूचकांक के अनुसार भारत के पडोसी मुल्क पाकिस्तान 10वें और बांगलादेश 11वें स्थान पर है। मुंबई में एक वरिष्ठ संवाददाता की हत्या के साथ ही पत्रकारों की हत्या से जुडे मामलों के नहीं सुलझने की बात एक बार फिर सामने आ गयी है। सूचकांक में ऐसे देशोंं को शामिल किया गया है जहां एक जनवरी 2001 से 31 दिसंबर 2010 के बीच हुए पत्रकारों की हत्या के पांच या ज्यादा मामले अनसुलझे हैं। कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट :सीपीजे: की रिपोर्ट के अनुसार, भारत सात अनसुलझे मामलों के साथ 13वें स्थान पर है। सीपीजे के अनुसार एक साल में पूरी दुनिया में होने वाले कार्य संबंधी हत्याओं में 70 प्रतिशत मामले पत्रकारों के हैं। सूचकांक में पत्रकारों की हत्या की अनसुलझी गुत्थियों का प्रतिशत वहां की जनसंख्या के अनुपात में निकाला गया है। सूचकांक में ऐसे मामलों को अनसुलझा माना गया है जिसमें अभी तक कोई आरोपी पकडा नहीं गया है। सूचकांक के मुताबिक इराक पहले स्थान पर है। वहां चल रहे विरोध प्रदर्शनों और खतरनाक अभियानों के दौरान बहुत ज्यादा संख्या में पत्रकारों की हत्या हुयी है। इराक में 92 मामले अभी तक अनसुलझे हैं जबकि फिलीपीन में इनकी संख्या 56 है। इराके के बाद फिलीपीन, श्रीलंका और कोलंबिया का स्थान आता है।
बढते हमलों के विरोध में नेपाल में पत्रकारों का प्रदर्शन
नेपाल में बढते हमलों के विरोध में आज सैंकडों पत्रकार सडक पर उतर आए। पत्रकारों ने काला फीता बांधकर विरोध दर्ज करवाया और कहा वे 16 जून तक ऐसा करेंगे । नेपाली पत्रकारों के फेडरेशन ने विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है। काठमांडो के मितिघर मंडल सहित पूरे देश में जिला प्रशासन कार्यालय के सामने सैंकडों की तादाद में पत्रकार धरने पर बैठे। पत्रकार 18 जून को मितिघर मंडल से संविधान सभा भवन तक रैली का आयोजन करेंगे ।
पाक पत्रकारों का बुधवार को प्रदर्शन
पाकिस्तान के पत्रकार सैयद सलीम शहजाद की हत्या की न्यायिक जांच की मांग करने के लिए स्थानीय पत्रकारों ने बुधवार को एक सभा करने की योजना बनाई है। प्रदर्शन का आयोजन पाकिस्तान फेडरल यूनियन आॅफ जर्नलिस्ट :पीएफयूजे: की ओर से किया गया है। संगठन के प्रमुख परवेज शौकत, नेशनल प्रेस क्लब के अधक्ष अफजल बट्ट और रावलपिंडी पत्रकार संघ के प्रमुख ताहिर राठौर ने कहा कि पत्रकार बिरादरी हत्याओं के लिए किसी एक व्यक्ति अथवा संस्था को जिम्मेदार नहीं मानती, लेकिन मामलों की निष्पक्ष जांच कराई जानी चाहिए। पाकिस्तानी नौसेना के अधिकारियों और अलकायदा के बीच गठजोड का खुलासा करने वाले शहजाद की पिछले महीने हत्या कर दी गई थी।
शनिवार, 11 जून 2011
संविधान के बुनियादी अधिकारों का मजाक
मारुति के मानेसर प्लांट के बाहर यूनियन बनाने के संघर्षरत मजदूरों का एक समूह
Add captio |
मारुति कामगारों की हड़ताल अवैध घोषित
देवेन्द्र प्रताप
अगर कोई व्यक्ति, संस्था या फिर सरकार, जनता को उसके बुनियादी अधिकारों से वंचित करने का प्रयास करती है, तो न्यायालय को उसे कठोर दंड देना चाहिए
देश के पूंजीपति किस तरह संविधान को अपनी जेब में लेकर घूमता है, यह आठ दिन से मानेसर की मारुति कंपनी में यूनियन बनाने के लिए चल रही हड़ताल को देखकर अंदाज लगाया जा सकता है। अक्सर पढ़े लिखे लोग मजदूरों के आंदोलनों को लेकर अपनी नाक भौं सिकोड़ने लगते हैं। सड़क पर उनके जुलूस को देखकर तो ऐसे लोगों का पारा बहुत हाई हो जाता है। दरअसल वे मजदूरों की दुनिया से परिचित ही नहीं होते हैं। उनकी दुनिया मेहनतकशों की दुनिया से विल्कुल अलग होती है। वरना जो तबका अपनी मेहनत से पूरे समाज को चलाता है, वे उसे गालियां देने के बजाय उसका एहसान मानते। बहरहाल ऐसे लोगों को करीब आ्रठ दिन से यूनियन बनाने की लिए संघर्ष कर रहे मारुति सुजुकी के मानेसर संयंत्र के कामगारों की हड़ताल के साथ मैनेजमेंट के तानाशाहाना व्यवहार को जरूर देखना चाहिए। गर्मी के इस मौसम में जब आप एसी में बैठे आनंद ले रहे होंगे उसी वक्त मारुति के करीब 2000 मजदूर सड़क पर टेंट के नीचे यूनियन बनाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। आखिर यह मांग क्या अवैध है? लेकिन आपको यह सुनकर ताज्जुब होगा कि इस मसले पर जब मारुति के कामगारों ने मैनेजमेंट के साथ बात की तो उसने उनकी मांग मानने से मना कर दिया। आखिर इन पूंजीपतियों के लिए संविधान की कीमत है कि नहीं। इस मामले में मारुति सुजुकी इंडिया के अध्यक्ष आर.सी. भार्गव ने कहा है कि वे इस बारे में उनकी सोच विल्कुल साफ है। हड़ताल अवैध है। हरियाणा सरकार और श्रम आयोग ने भी ऐसा ही कहा है। उन्होंने कहा कि प्रबंधन को हड़ताल की सूचना नहीं दी गई थी, इसलिए हड़ताल अवैध है। उनके मुताबिक चार जून से जारी हड़ताल से संयंत्र में 7,800 कारों का कम उत्पादन हुआ है तथा कंपनी को लगभग 240 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। यानी कुल मिलाकर यदि भार्गव जी की बात पर भरोसा करें, तो उनके इस नेक काम में न सिर्फ सरकार उनका साथ दे रही है, वरन श्रम आयोग तक उसके साथ है। श्रम मंत्री तक मजदूरों की इस हड़ताल पर कंपनी के पक्ष में खड़ नजर आ रहे हैं। इतना ही नहीं कंपनी ने यूनियन बनाने वाले 11 श्रमिकों को सोमवार को बर्खास्त कर दिया गया। हरियाणा सरकार पूरी तरह कंपनी प्रबंधन के पक्ष में खड़ी नजर आ रही है। यही वजह है कि उसने आनन फानन में मारुति के मानेसर संयंत्र में हड़ताल को प्रतिबंधित कर दिया। हरियाणा के श्रम और रोजगार राज्य मंत्री शिवचरण लाल शर्मा जी वैसे तो अक्सर मजदूरों हितों की वकालत करत नजर आते हैं। लेकिन जब वक्त आया तो उन्होने पाला बदल लिया। श्रम मंत्री, सरकार, पूंजीपति सभी असंवैधानिक काम कर रहे हैं और वह भी डंके की चोट पर। वहीं दूसरी और मारुति मजदूरों की हड़ताल को समर्थन देने वाले मजदूर संगठनों का दायरा भी बढ़ रहा है। सरकार के श्रमिक विरोधी रवैये के कारण अब श्रमिक संघ पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय जाने का मन बना रहे हैं। मजदूरों के साथ यह कितना बड़ा अन्याय है कि संविधान के बुनियादी अधिकारों में शामिल अधिकारों को लागू करवाने के लिए उन्हें अदालत जाना पड़ रहा है। अभी तक आंदोलनरत मजदूरों को करीब 40 संघों का समर्थन मिल चुका है। होना ता यह चाहिए कि जो भी व्यक्ति, संस्था या फिर सरकार अगर आम जनता को उसके बुनियादी अधिकारों से वंचित करने का प्रयास करती है, तो न्यायालय को उसे कठोर दंड देना चाहिए।मारुति में हड़ताल, 390 करोड़ का नुकसान
मानेसर, हरियाणा . मारुति सुजुकी इंडिया के मानेसर कारखाने में हड़ताल शनिवार को आठवें दिन भी जारी है। हड़ताल पर हरियाणा सरकार के प्रतिबंध का असर कर्मचारियों पर नहीं पड़ा है। इस हड़ताल के कारण कंपनी को अब तक करीब 390 करोड़ रुपए के उत्पादन का नुकसान होने का अनुमान है। कारखाने के 2000 कर्मचारियों तथा प्रबंधन के बीच जारी गतिरोध को दूर करने के लिये गुड़गांव के श्रम आयुक्त जेपी मान संबंधित पक्षों से बातचीत कर रहे हैं। कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हड़ताल जारी है। स्थिति कल जैसी ही है, अब तक 7800 इकाइयों के उत्पादन का नुकसान हो चुका है। उद्योग के अनुमान के मुताबिक मूल्य में यह नुकसान करीब 390 करोड़ रुपए का है। इस बीच, अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के नेता गुरुदास दासगुप्ता तथा डीएल सचदेव ने राष्ट्रीय राजधानी में हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्रसिंह हुड्डा से भेंट की। दो दिन में यह उनकी दूसरी मुलाकात है। वे मामले के सौहार्दपूर्ण हल के लिए मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं। सचदेव ने कहा कि मुख्यमंत्री ने सकारात्मक जवाब दिया है और हमसे कहा है कि उन्होंने श्रम मंत्री तथा श्रम आयुक्त से मामले को सुलझाने को कहा है। डीएल सचदेव ने कहा कि श्रम विभाग के अधिकारियों ने उनकी तरफ से बातचीत के लिए प्रतिनिधियों के नाम बताने तथा इस बारे में अधिकृत पत्र देने को कहा है। उल्लेखनीय है कि हरियाणा सरकार ने कल हस्तक्षेप करते हुए हड़ताल पर प्रतिबंध लगा दिया तथा मामले को श्रम अदालत में भेज दिया है। हड़ताल के कारण गुड़गांव-मानेसर औद्योगिक क्षेत्र की अन्य कंपनियों में भी आंदोलन शुरू होने की आशंका के मद्देनजर सरकार ने यह कदम उठाया है।
बहरहाल, आंदोलन का समर्थन कर रहे विभिन्न कंपनियों के कर्मचारियों पर सरकार के कदम का कोई असर नहीं हुआ है। कर्मचारियों की समिति ने कहा कि वे सोमवार से धरना तथा रैली समेत कई कदम उठाएंगे और अगर जरूरत पड़ी तो अपने-अपने कारखाने में हड़ताल करने पर विचार करेंगे।
मारुति सुजुकी के मानेसर कारखाने के करीब 2000 कर्मचारी चार जून से हड़ताल पर हैं। वे नए यूनियन मारुति सुजुकी इंप्लायज यूनियन (एमएसईयू) को मान्यता देने की मांग कर रहे हैं। इस यूनियन को मानेसर कारखाने में काम करने वाले कर्मचारियों ने बनाया है। मानसेर कारखाने में हर दिन दो पाली में लगभग 1200 वाहन बनते हैं।
बहरहाल, आंदोलन का समर्थन कर रहे विभिन्न कंपनियों के कर्मचारियों पर सरकार के कदम का कोई असर नहीं हुआ है। कर्मचारियों की समिति ने कहा कि वे सोमवार से धरना तथा रैली समेत कई कदम उठाएंगे और अगर जरूरत पड़ी तो अपने-अपने कारखाने में हड़ताल करने पर विचार करेंगे।
मारुति सुजुकी के मानेसर कारखाने के करीब 2000 कर्मचारी चार जून से हड़ताल पर हैं। वे नए यूनियन मारुति सुजुकी इंप्लायज यूनियन (एमएसईयू) को मान्यता देने की मांग कर रहे हैं। इस यूनियन को मानेसर कारखाने में काम करने वाले कर्मचारियों ने बनाया है। मानसेर कारखाने में हर दिन दो पाली में लगभग 1200 वाहन बनते हैं।
भारत को बाल श्रम उन्मूलन पर ठोस पहल लेने की जरूरत
-आईएलओ ने 2002 में ‘वर्ल्ड डे एगेंस्ट चाइल्ड लेबर’ की शुरुआत की
-बाल श्रम उन्मूलन के लिए आईएलओ ने एक प्रोटोकॉल बनाया
-प्रोटोकाल का अनुमोदन करने वालों में पाकिस्तान समेत 144 देश शामिल
-भारत ने अभी तक इस प्रोटोकॉल का अनुमोदन नहीं किया है
अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर बाल श्रम को रोकने के लिए बड़े-बड़े कानून बनाए गए हैं। इस पर रोक लगाने के लिए आए दिन बहस और सम्मेलनों का सिलसिला चलता रहता है। बावजूद इसके देश की राजधानी सहित सभी कोनों में बाल श्रम बदस्तूर जारी है। दुनिया में बाल श्रम का मुख्य कारण गरीबी है। बाल श्रम की रोकथाम के लिए काम करने वाली दिल्ली की एक स्वयं सेवी संस्था बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक कैलाश सत्यार्थी का कहना है, घर से बाहर निकलते ही, जो पहली चाय की दुकान होती है, वहां आपको एक छोटू नजर आ जाता है। वह चाय के कप साफ करता है और हमें चाय देता है। हम भी बड़े आराम से देश में बढ़ रहे बाल श्रम पर चर्चा करते हुए उससे चाय ले लेते हैं और पीने लगते हैं। मगर यह कभी नहीं सोचते कि अभी-अभी हमने भी इसी बाल श्रम को बढ़ावा दिया है। पूरी दुनिया से बाल श्रम को खत्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम संगठन और 144 देशों ने बच्चोंं के अधिकारों के लिए एक प्रोटोकॉल बनाया है।
इस प्रोटोकॉल का अनुमोदन करने वाले देश को अपनी सीमा में बच्चों की बिक्री, बाल वेश्यावृति और बच्चों की पोर्नोग्राफी पर पूर्ण रोक लगानी होती है। इन सभी को अपराध की श्रेणी में शामिल करना होता है। मगर भारत ने अभी तक इस प्रोटोकॉल का अनुमोदन नहीं किया है। हाल ही में हमारा पडोसी देश पाकिस्तान ने भी बाल अधिकारों पर सम्मेलन के वैकल्पिक प्रोटोकॉल का अनुमोदन कर दिया है। ऐसा करने वाला वह दुनिया का 144वां देश बन गया है। दुनिया के 126 देशों में बाल श्रम के खिलाफ एक साथ हुए प्रदर्शन के बाद अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने पहली बार वर्ष 2002 में वर्ल्ड डे एगेंस्ट चाइल्ड लेबर की शुरूआत की। इस दिन की शुरूआत इन बच्चों की परेशानियों को लोगों के सामने लाने के लिए की गई। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने इस दिन की शुरूआत पूरी दुनिया में बाल श्रम के खिलाफ चल रहे मुहिम के लिए उत्प्रेरक के तौर पर काम करने के लिए किया। बाल अधिकारों पर सम्मेलन के वैकल्पिक प्रोटोकॉल का अनुमोदन वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में हुआ। कैलाश सत्यार्थी का कहना है कि उनकी संस्था दिल्ली सहित देश के सभी राज्यों से बाल श्रम में लिप्त बच्चों को मुक्त कराने और उनके भविष्य को संवारने का काम करती है। वह कहते हैं कि बाल श्रम के क्षेत्र में सक्रिय गैर सरकारी संगठनों के मुताबिक दिसंबर वर्ष 2010 तक हमारे देश में करीब 6 करोड बाल श्रमिक हैं। इनमें से करीब एक करोड़ बच्चे बंधुआ मजदूर हैं। इस एक करोड़ में से 50 लाख तो बंधुआ मजदूरों के बच्चे होने के कारण जन्म से ही बंधुआ मजदूर हैं, जबकि शेष 50 लाख औद्यौगिक इकाइयों में काम करने वाले बच्चे हैं। एक अन्य संस्था अरुणिमा चाइल्ड वेलफेयर एसोसिएशन की अध्यक्ष डाक्टर अरुणा आनंद कहती हैं कि बाल श्रम को खत्म करने के लिए हमें लोगों की मानसिकता को बदलना होगा। राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग की बेवसाइट पर मौजूद वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार देश में बाल श्रमिकों की संख्या 1.27 करोड़ है। इसमें बंधुआ सहित तमाम तरह के बाल श्रमिक शामिल हैं।
कैलाश कहते हैं कि बाल श्रमिकों को मुक्त करवाना बहुत मुश्किल काम होता है। हमारी संस्था के लोगों के साथ सभी अभियानों के दौरान मार-पीट होती है। विरोध करने वालों की संख्या इतनी ज्यादा होती है कि हमारे साथ मौजूद पुलिस के सिपाही भी कई बार उनके गुस्से का शिकार हो जाते हैं। वह कहते हैं कि करीब दो महीने पहले एक अभियान में मैं और मेरे चार साथी बहुत बुरी तरह घायल हो गए थे। मगर उस घटना से हमें बाल श्रम से लड़ने का एक अच्छा मौका भी मिला। उस घटना पर स्वत: संज्ञान लेते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने पुलिस आयुक्त सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों को व्यक्तिगत तौर पर पेश होने के आदेश दिए। इस घटना के बाद दिल्ली में विभिन्न विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों का एक टास्क फोर्स बनाया गया है। फिलहाल हमारे देश में राष्ट्रीय बाल आयोग के अलावा दिल्ली एवं बिहार सहित केवल नौ राज्यों में बाल अधिकार आयोग हैं। मगर इन बाल अधिकार आयोगों के पास पर्याप्त शक्तियां नहीं होने के कारण यह बाल श्रम को रोकने में लगातार नाकाम साबित हो रहे हैं। डाक्टर आनंद कहती हैं कि बाल श्रम को रोकना सिर्फ सरकार का काम नहीं है। इसे रोकने के लिए हमें खुद जागरूक होना पड़ेगा.
आईएलओ के महानिदेशक जुआन सोमाविआ ने कहा, पिछले दशक में हालांकि महत्वपूर्ण प्रगति हुई है लेकिन इसके बावजूद विश्वभर में बडी संख्या में बालश्रमिक विशेषकर जोखिमभरे कामों में बाल श्रमिक अभी भी बहुत ज्यादा हैं। सोमाविआ ने कहा, सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को मिलकर बालश्रम को खत्म करने की दिशा में काम करना होगा तथा इस संबंध में नीतियों को लागू करना होगा। बालश्रम का लगातार जारी रहना विकास के मौजूदा मॉडल के खिलाफ है। उन्होंने कहा, जोखिम भरे काम करने वाले बच्चों की सुरक्षा और उनके स्वास्थ्य की रक्षा हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
-बाल श्रम उन्मूलन के लिए आईएलओ ने एक प्रोटोकॉल बनाया
-प्रोटोकाल का अनुमोदन करने वालों में पाकिस्तान समेत 144 देश शामिल
-भारत ने अभी तक इस प्रोटोकॉल का अनुमोदन नहीं किया है
अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर बाल श्रम को रोकने के लिए बड़े-बड़े कानून बनाए गए हैं। इस पर रोक लगाने के लिए आए दिन बहस और सम्मेलनों का सिलसिला चलता रहता है। बावजूद इसके देश की राजधानी सहित सभी कोनों में बाल श्रम बदस्तूर जारी है। दुनिया में बाल श्रम का मुख्य कारण गरीबी है। बाल श्रम की रोकथाम के लिए काम करने वाली दिल्ली की एक स्वयं सेवी संस्था बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक कैलाश सत्यार्थी का कहना है, घर से बाहर निकलते ही, जो पहली चाय की दुकान होती है, वहां आपको एक छोटू नजर आ जाता है। वह चाय के कप साफ करता है और हमें चाय देता है। हम भी बड़े आराम से देश में बढ़ रहे बाल श्रम पर चर्चा करते हुए उससे चाय ले लेते हैं और पीने लगते हैं। मगर यह कभी नहीं सोचते कि अभी-अभी हमने भी इसी बाल श्रम को बढ़ावा दिया है। पूरी दुनिया से बाल श्रम को खत्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम संगठन और 144 देशों ने बच्चोंं के अधिकारों के लिए एक प्रोटोकॉल बनाया है।
इस प्रोटोकॉल का अनुमोदन करने वाले देश को अपनी सीमा में बच्चों की बिक्री, बाल वेश्यावृति और बच्चों की पोर्नोग्राफी पर पूर्ण रोक लगानी होती है। इन सभी को अपराध की श्रेणी में शामिल करना होता है। मगर भारत ने अभी तक इस प्रोटोकॉल का अनुमोदन नहीं किया है। हाल ही में हमारा पडोसी देश पाकिस्तान ने भी बाल अधिकारों पर सम्मेलन के वैकल्पिक प्रोटोकॉल का अनुमोदन कर दिया है। ऐसा करने वाला वह दुनिया का 144वां देश बन गया है। दुनिया के 126 देशों में बाल श्रम के खिलाफ एक साथ हुए प्रदर्शन के बाद अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने पहली बार वर्ष 2002 में वर्ल्ड डे एगेंस्ट चाइल्ड लेबर की शुरूआत की। इस दिन की शुरूआत इन बच्चों की परेशानियों को लोगों के सामने लाने के लिए की गई। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने इस दिन की शुरूआत पूरी दुनिया में बाल श्रम के खिलाफ चल रहे मुहिम के लिए उत्प्रेरक के तौर पर काम करने के लिए किया। बाल अधिकारों पर सम्मेलन के वैकल्पिक प्रोटोकॉल का अनुमोदन वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में हुआ। कैलाश सत्यार्थी का कहना है कि उनकी संस्था दिल्ली सहित देश के सभी राज्यों से बाल श्रम में लिप्त बच्चों को मुक्त कराने और उनके भविष्य को संवारने का काम करती है। वह कहते हैं कि बाल श्रम के क्षेत्र में सक्रिय गैर सरकारी संगठनों के मुताबिक दिसंबर वर्ष 2010 तक हमारे देश में करीब 6 करोड बाल श्रमिक हैं। इनमें से करीब एक करोड़ बच्चे बंधुआ मजदूर हैं। इस एक करोड़ में से 50 लाख तो बंधुआ मजदूरों के बच्चे होने के कारण जन्म से ही बंधुआ मजदूर हैं, जबकि शेष 50 लाख औद्यौगिक इकाइयों में काम करने वाले बच्चे हैं। एक अन्य संस्था अरुणिमा चाइल्ड वेलफेयर एसोसिएशन की अध्यक्ष डाक्टर अरुणा आनंद कहती हैं कि बाल श्रम को खत्म करने के लिए हमें लोगों की मानसिकता को बदलना होगा। राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग की बेवसाइट पर मौजूद वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार देश में बाल श्रमिकों की संख्या 1.27 करोड़ है। इसमें बंधुआ सहित तमाम तरह के बाल श्रमिक शामिल हैं।
कैलाश कहते हैं कि बाल श्रमिकों को मुक्त करवाना बहुत मुश्किल काम होता है। हमारी संस्था के लोगों के साथ सभी अभियानों के दौरान मार-पीट होती है। विरोध करने वालों की संख्या इतनी ज्यादा होती है कि हमारे साथ मौजूद पुलिस के सिपाही भी कई बार उनके गुस्से का शिकार हो जाते हैं। वह कहते हैं कि करीब दो महीने पहले एक अभियान में मैं और मेरे चार साथी बहुत बुरी तरह घायल हो गए थे। मगर उस घटना से हमें बाल श्रम से लड़ने का एक अच्छा मौका भी मिला। उस घटना पर स्वत: संज्ञान लेते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने पुलिस आयुक्त सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों को व्यक्तिगत तौर पर पेश होने के आदेश दिए। इस घटना के बाद दिल्ली में विभिन्न विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों का एक टास्क फोर्स बनाया गया है। फिलहाल हमारे देश में राष्ट्रीय बाल आयोग के अलावा दिल्ली एवं बिहार सहित केवल नौ राज्यों में बाल अधिकार आयोग हैं। मगर इन बाल अधिकार आयोगों के पास पर्याप्त शक्तियां नहीं होने के कारण यह बाल श्रम को रोकने में लगातार नाकाम साबित हो रहे हैं। डाक्टर आनंद कहती हैं कि बाल श्रम को रोकना सिर्फ सरकार का काम नहीं है। इसे रोकने के लिए हमें खुद जागरूक होना पड़ेगा.
बाल श्रमिक कर रहे हैं जोखिम भरे काम :संयुक्त राष्ट्र
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का कहना है कि विश्वभर में करीब 21.5 लाख बाल श्रमिक जोखिम भरे काम कर रहे हैं जिससे उनके घायल होने, बीमार पडने और मरने तक का खतरा है। अपनी एक नयी रिपोर्ट जोखिम भरे कामों में बच्चे :हम क्या जानते हैं, हमें क्या करने की जरूरत है में संगठन ने औद्योगिक और विकासशील देशों के शहरों में हुए अध्ययन का हवाला दिया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक हरेक मिनट एक बाल श्रमिक काम से जुडी दुर्घटनाओं, बीमारी या मानसिक सदमा झेलता है। बालश्रम के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने की तैयारी कर रहे संगठन की कल जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि वर्ष 2004 और 2008 के बीच जोखिम भरे कामों में लिप्त पांच से 17 साल की उम्र के बच्चों की संख्या में गिरावट आई है लेकिन इस अवधि के दौरान 15 से 17 साल के बाल श्रमिकों की संख्या में 20 प्रतिशत की बढोत्तरी हुई जो पांच करोड 20 लाख से बढकर अब छह करोड बीस लाख हो गयी है।आईएलओ के महानिदेशक जुआन सोमाविआ ने कहा, पिछले दशक में हालांकि महत्वपूर्ण प्रगति हुई है लेकिन इसके बावजूद विश्वभर में बडी संख्या में बालश्रमिक विशेषकर जोखिमभरे कामों में बाल श्रमिक अभी भी बहुत ज्यादा हैं। सोमाविआ ने कहा, सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को मिलकर बालश्रम को खत्म करने की दिशा में काम करना होगा तथा इस संबंध में नीतियों को लागू करना होगा। बालश्रम का लगातार जारी रहना विकास के मौजूदा मॉडल के खिलाफ है। उन्होंने कहा, जोखिम भरे काम करने वाले बच्चों की सुरक्षा और उनके स्वास्थ्य की रक्षा हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
शुक्रवार, 10 जून 2011
वेतनबोर्ड को लागू करवाने के लिए पत्रकारों का जबर्दस्त प्रदर्शन
नयी दिल्ली, 10 जून : मालिकों के दबाव में वेतनबोर्ड लागू करने में हो रही देर से नाराज पत्रकारों ने आज यहां श्रम मंत्रालय और अखबार मालिकों के संगठन आईएनएस के समक्ष विरोध प्रदर्शन करते हुए सरकार को चेतावनी दी कि अगर 16 जून तक इस संबंध में अधिसूचना जारी नहीं की गई तो वे देशव्यापी हडताल प्रदर्शन करेंगे। वेतनबोर्ड लागू करने की मांग को लेकर तख्तियां और बैनर लिए हजारों की संख्या में आईएनएस के समक्ष एकत्र पत्रकारों और गैर.पत्रकारों ने मालिकों की इस दलील को झूठ बताया कि इसे लागू होने से अखबार उद्योग कठिनाई में आ जायेगा। अखबारी कर्मचारियों के महासंघों के शीर्ष संगठन कान्फेडरेशन आॅफ न्यूजपेपर्स एडं न्यूज एजेंसी एम्प्लायज यूनियन्स के महासचिव एम एस यादव ने कहा, ै यह एक तथ्य है कि हर बार वेतनबोर्ड के बाद अखबार मालिकों की कमाई में बढोतरी ही हुई है। उन्होंने कहा कि पिछले 15 वर्षो में अखबारों के मुनाफे में अंधाधुंध वृद्धि हुई है जबकि पत्रकारों और गैर.पत्रकारों के वेतन में बेहद मामूली वृद्धि हुई है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर 16 जून तक वेतनबोर्ड की सिफारिशों संबंधी अधिसूचना जारी नहीं की गई तो पत्रकार और गैर.पत्रकार देश भर में बडे पैमाने पर धरना, विरोध प्रदर्शन और हडताल करेंगे।
भोपाल के पत्रकारों ने मजीठिया वेतनबोर्ड को लागू करवाने के लिए किया प्रदर्शन
भोपाल : 10 जून: पत्रकारों एवं गैर पत्रकारों के लिए केन्द्र सरकार द्वारा गठित मजीठिया वेतनबोर्ड की सिफारिशों को लागू करने में किए जा रहे विलंब से क्षुब्ध पत्रकारों एवं गैर पत्रकारों ने आज यहां विरोध प्रदर्शन किया। पीटीआई वर्कर्स यूनियन भोपाल इकाई ने कुछ स्थानीय श्रमजीवी पत्रकार संगठनों के साथ मिलकर आज यहां प्रदर्शन कर केन्द्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। फेडरेशन आफ पीटीआई एम्पलाइज यूनियन्स के काउंसिल सदस्य मनीष श्रीवास्तव एवं भोपाल इकाई महासचिव एम एस हसन ने इस अवसर पर कहा कि मालिकों के दबाव में वेतनबोर्ड लागू करने में हो रहे विलंब से पत्रकारों एवं गैर पत्रकारों में आक्रोश है। उन्होंने कहा कि देश में महंगाई तेजी से बढी है और इस समय पत्रकारों एवं गैर पत्रकारों को जो वेतन मिल रहा है, उसे दस साल पहले तय किया गया था, जबकि इस बीच केन्द्र एवं राज्य सरकार के अधिकारियों एवं कर्मचारियों का वेतन कई बार बढाया जा चुका है । श्रीवास्तव एवं हसन ने कहा कि यदि 16 जून तक इस संबंध में अधिसूचना जारी नहीं की गई तो पत्रकारों एवं गैर पत्रकारों की देशव्यापी हडताल एवं प्रदर्शन होगा। वेतनबोर्ड लागू करने की मांग को लेकर तख्तियां लिए यहां पत्रकार भवन के समक्ष मौजूद इन पत्रकारों एवं गैर पत्रकारों ने मालिकों की इस दलील को झूठ बताया कि इसे लागू होने से अखबार उद्योग कठिनाई में आ जायेगा । उन्होंने कहा कि सचाई यह है कि पिछले 15 वर्षों में अखबारों के मुनाफे में अंधाधुंध वृद्धि हुई है।गुरुवार, 9 जून 2011
गजब का न्याय-1
जमीन अधिग्रहण के खिलाफ चंदौली के बागी तेवर
चंदौली, नौ जून: भूमि अधिग्रहण के खिलाफ ग्रेटर नोएडा के भट्टा पारसौल और चंदौली के कटेसर में किसानों के बागी तेवरों के बीच जिले के सथवा और सारनाथ समेत कई गांवों के किसानों ने उनकी जमीन के अधिग्रहण की योजना रद्द नहीं किये जाने पर सामूहिक आत्मदाह की चेतावनी देकर उत्तर प्रदेश सरकार की परेशानियां बढा दी हैं। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के निर्माण के लिये 42 हेक्टेयर जमीन के अधिग्रहण की तैयारी के खिलाफ जिले के सथवा, ह्म्दयपुर, रजनहिया और घुरीपुर साई गांवों के काश्तकार किसान संघर्ष समिति के बैनर तले पिछले 56 दिन से धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। जमीन अधिग्रहण के सिलसिले में पिछले महीने नोटिस जारी की गई थी। समिति की सथवा इकाई के अध्यक्ष यशोदा पटेल ने कहा हम यहां पिछले 56 दिनों से धरना दे रहे हैं लेकिन प्रशासन ने हमारी सुध नहीं ली। हमने 19 अप्रैल को अपना आंदोलन शुरू किया था और इसके दो महीने पूरे होने तक कोई कार्रवाई नहीं होने पर हम धरना स्थल पर लगे पेड से फांसी लगा कर सामूहिक आत्महत्या कर लेंगे। इस बीच, उप जिलाधिकारी सदर विवेक ने भाषा से बातचीत में कहा कि प्रशासन इस मसले पर गौर करेगा। बहरहाल, पटेल ने कहा कि किसान चाहते हैं कि उनकी जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया रद्द की जाए, क्योंकि वह जमीन उपजाउ है और वे उस पर खेती करके रोजी-रोटी चलाते हैं। कटेसर में जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों का भी समर्थन प्राप्त होने का दावा करते हुए उन्होंने कहा हम इस सिलसिले में राज्यपाल बी. एल. जोशी द्वारा हस्ताक्षरित आश्वासन चाहते हैं।श्रम मंत्रालय और आईएनएस के सामने आज पत्रकारों का विशाल प्रदर्शन
नयी दिल्ली : अखबारों के कर्मचारियों ने लगभग 12 साल के इंतजार के बाद अपने वेतनमान में संशोधन के लिए मजीठिया वेतनबोर्ड की सिफारिशों को लागू करने में सरकार की ओर से हो रही देरी और अखबार मालिकों के दुष्प्रचारों से क्षुब्ध होकर कल आईएनएस और श्रम मंत्रालय के समक्ष विशाल प्रदर्शन करने का फैसला किया है।
अखबारी कर्मचारी संगठनों के शीर्ष मंच कान्फेडरेशन आफ न्यूजपेपर्स एंड न्यूज एजेंसी आर्गेनाइजेशन्स की आज यहां हुई आपात बैठक के बाद कान्फेडरेशन के महासचिव एम एस यादव ने अखबार मालिकों के संगठन के मुख्यालय आईएनएस और श्रम मंत्रालय पर जोरदार प्रदर्शन की घोषणा की।
उन्होंने कहा, आईएनएस दुष्प्रचार में लगा है। सरकार भी उसके दबाव में लगती है। अखबार मालिक अपनी बात प्रकाशित कर रहे है वहीं पर हमारे पक्ष को प्रकाशित नहीं कर रहे। आखिर वे किस तरह के अखबारी स्वतंत्रता की बात सोच रहे हैं।
यादव ने कहा, महंगाई के इस कठिन दौर में पिस रहे अखबार उद्योग के पत्रकार और गैर.पत्रकारों के सब््रा का सरकार इम्तहान ले रही है जो कतई जायज नहीं है। कल दिल्ली में कान्फेडरेशन के बैनर तले हजारों की संख्या में पत्रकार और गैर.पत्रकार कर्मचारी यूएनआई में एक बजे एकत्रित होंगे और वहां से आईएनएस और श्रम मंत्रालय की ओर मार्च करेंगे।
वेतन बोर्ड की सिफारिशें कैबिनेट के समक्ष रखने में पीएमओ कदम उठायेगा :खड़गे
श्रम मंत्री मल्लिकार्जुन खडगे ने आज कहा कि पत्रकारों और गैर-पत्रकारों के लिये गठित वेतन बोर्ड की सिफारिशों को मंजूरी के लिये केंद्रीय कैबिनेट के समक्ष रखने के संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय कदम उठायेगा। खड़गे से अखबार उद्योग के कर्मियों के लिये वेतन बोर्ड :रिपीट: बोर्ड संबंधी न्यायमूर्ति जी. आर मजीठिया की रिपोर्ट की स्थिति के बारे में पूछा गया था। इस पर उन्होंने कहा, मुझे सभी मंत्रालयों से टिप्पणियां पहले ही मिल चुकी हैं। मैंने उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय को सौंप दिया है। अब प्रधानमंत्री कार्यालय इस मुद्दे को कैबिनेट के समक्ष लाने के लिये निश्चित तौर पर कदम उठायेगा। ये सिफारिशें पिछले वर्ष 31 दिसम्बर को सरकार को सौंपी गयी थीं। प्रस्तावों के कार्यान्वयन में देरी के खिलाफ कर्मचारी आंदोलनरत आंदोलनरत हैं।
अखबारी कर्मचारी संगठनों के शीर्ष मंच कान्फेडरेशन आफ न्यूजपेपर्स एंड न्यूज एजेंसी आर्गेनाइजेशन्स की आज यहां हुई आपात बैठक के बाद कान्फेडरेशन के महासचिव एम एस यादव ने अखबार मालिकों के संगठन के मुख्यालय आईएनएस और श्रम मंत्रालय पर जोरदार प्रदर्शन की घोषणा की।
उन्होंने कहा, आईएनएस दुष्प्रचार में लगा है। सरकार भी उसके दबाव में लगती है। अखबार मालिक अपनी बात प्रकाशित कर रहे है वहीं पर हमारे पक्ष को प्रकाशित नहीं कर रहे। आखिर वे किस तरह के अखबारी स्वतंत्रता की बात सोच रहे हैं।
यादव ने कहा, महंगाई के इस कठिन दौर में पिस रहे अखबार उद्योग के पत्रकार और गैर.पत्रकारों के सब््रा का सरकार इम्तहान ले रही है जो कतई जायज नहीं है। कल दिल्ली में कान्फेडरेशन के बैनर तले हजारों की संख्या में पत्रकार और गैर.पत्रकार कर्मचारी यूएनआई में एक बजे एकत्रित होंगे और वहां से आईएनएस और श्रम मंत्रालय की ओर मार्च करेंगे।
वेतन बोर्ड की सिफारिशें कैबिनेट के समक्ष रखने में पीएमओ कदम उठायेगा :खड़गे
श्रम मंत्री मल्लिकार्जुन खडगे ने आज कहा कि पत्रकारों और गैर-पत्रकारों के लिये गठित वेतन बोर्ड की सिफारिशों को मंजूरी के लिये केंद्रीय कैबिनेट के समक्ष रखने के संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय कदम उठायेगा। खड़गे से अखबार उद्योग के कर्मियों के लिये वेतन बोर्ड :रिपीट: बोर्ड संबंधी न्यायमूर्ति जी. आर मजीठिया की रिपोर्ट की स्थिति के बारे में पूछा गया था। इस पर उन्होंने कहा, मुझे सभी मंत्रालयों से टिप्पणियां पहले ही मिल चुकी हैं। मैंने उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय को सौंप दिया है। अब प्रधानमंत्री कार्यालय इस मुद्दे को कैबिनेट के समक्ष लाने के लिये निश्चित तौर पर कदम उठायेगा। ये सिफारिशें पिछले वर्ष 31 दिसम्बर को सरकार को सौंपी गयी थीं। प्रस्तावों के कार्यान्वयन में देरी के खिलाफ कर्मचारी आंदोलनरत आंदोलनरत हैं।
एआईसीसी ने अनुचित तरीके से 44 कर्मचारियों को बर्खास्त किया
नई दिल्ली, 9 जून: दिल्ली की एक अदालत ने एक याचिका पर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) को नोटिस भेजा। याचिका में आरोप लगाया गया है कि एआईसीसी ने अनुचित तरीके से 44 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है, जो वहां दशकों से काम कर रहे थे।
श्रम अदालत के पीठासीन अधिकारी चंदर गुप्ता ने एआईसीसी को नोटिस जारी करते हुए 16 अगस्त तक इसका जवाब मांगा है। अदालत ने इस सप्ताह के शुरू में सुधा गुप्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए नोटिस भेजा, जो एआईसीसी में 1978 से टेलीफोन आॅपरेटर के रूप में काम कर रही थी। उसे 31 जुलाई 2010 को बर्खास्त कर दिया गया। अदालत ने 10-12 ऐसी याचिकाओं को संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी की। सुधा गुप्ता की याचिका में कहा गया कि ‘‘सुनने में आ रहा है कि पार्टी के नए महासचिव राहुल गांधी के मन में एक नया खयाल आया है कि वह कार्यालय में नए और स्मार्ट चेहरे वाले कर्मचारियों को नियुक्त कर पार्टी कार्यालय को एक आदर्श पार्टी कार्यालय बनाएंगे। इसलिए कुछ पुराने चेहरों को नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा।’’ इस याचिका पर इस सप्ताह के शुरू में सुनवाई की गई। याचिका में कहा गया कि लगभग 44 लोगों को स्वेच्छिक सेवानिवृत्त लेने के लिए दबाव दिया गया। विरोध करने वालों को धमकाया गया। इसमें कहा गया है कि प्रबंधन 44 कर्मचारियों को मुआवजा देने पर सहमत हुआ है, लेकिन इसका भुगतान अभी तक नहीं हुआ है।
श्रम अदालत के पीठासीन अधिकारी चंदर गुप्ता ने एआईसीसी को नोटिस जारी करते हुए 16 अगस्त तक इसका जवाब मांगा है। अदालत ने इस सप्ताह के शुरू में सुधा गुप्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए नोटिस भेजा, जो एआईसीसी में 1978 से टेलीफोन आॅपरेटर के रूप में काम कर रही थी। उसे 31 जुलाई 2010 को बर्खास्त कर दिया गया। अदालत ने 10-12 ऐसी याचिकाओं को संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी की। सुधा गुप्ता की याचिका में कहा गया कि ‘‘सुनने में आ रहा है कि पार्टी के नए महासचिव राहुल गांधी के मन में एक नया खयाल आया है कि वह कार्यालय में नए और स्मार्ट चेहरे वाले कर्मचारियों को नियुक्त कर पार्टी कार्यालय को एक आदर्श पार्टी कार्यालय बनाएंगे। इसलिए कुछ पुराने चेहरों को नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा।’’ इस याचिका पर इस सप्ताह के शुरू में सुनवाई की गई। याचिका में कहा गया कि लगभग 44 लोगों को स्वेच्छिक सेवानिवृत्त लेने के लिए दबाव दिया गया। विरोध करने वालों को धमकाया गया। इसमें कहा गया है कि प्रबंधन 44 कर्मचारियों को मुआवजा देने पर सहमत हुआ है, लेकिन इसका भुगतान अभी तक नहीं हुआ है।
मकबूल फिदा हुसैन से
-गोबिन्द प्रसाद
आंखों में
उतर रहा है
सलेटी गाढ़ा-सा
आसमान
चीड़ का जंगल
सनसनाता हुआ
गुजर गया है
अलगू की बस्ती से
बूढ़े की आंखों में
तमाखू की
लपटों का सुलगाव
कांपकर रह गया है
मेहनतकश चेहरों पर
धूप की थिगलियां
कब तक लगाओगे
मकबूल फिदा हुसैन!
सिमट रहा है समुद्र
धीरे धीरे
बच्चों की नन्हीं हथेलियों के बीच
मुझे मालूम है
तुम फिर
रंगों की चट्टानी भाषा से
लड़ते हुए
गूंगे हो जाओगे
मकबूल फिदा हुसैन
और ... मेरे शब्द
बच्चे की तरह
अपनी माँ से
लिपट कर सो जाएंगे
आसमान... कुछ नहीं बोलेगा
बस्ती को काठ मार जाएगा
बच्चों की नन्हीं हथेलियां
और बूढ़े की आंखों में
कांपती लपटों का सुलगाव
बेहतर यही है
इन्हें हवाओं में, पागल हवाओं में
तिर जाने दो मकबूल फिदा हुसैन
मंगलवार, 7 जून 2011
किसी तरह नौकरी दे दो
नौकरी हासिल करने के लिए संभावित नियोक्ताओं को अब पहले से ज्यादा लोग गलत जानकारियां दे रहे हैं। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2011 की पहली तिमाही में इस तरह के मामलों में इजाफा हुआ है। खासकर शिक्षा, रीयल एस्टेट, ट्रैवल और हॉस्पिटलिटी क्षेत्रों में उम्मीदवारों द्वारा नौकरी पाने के लिए गलत जानकारियां दी जा रही हैंं। वैश्विक जोखिम निपटान इकाई फर्स्ट एडवांटेज कारपोरेशन द्वारा जनवरी से मार्च में नौकरी पूर्व की जांच में यह तथ्य सामने आया है। फर्स्ट एडवांटेज के कार्यकारी प्रबंध निदेशक :अंतरराष्ट्रीय: वेन तोलेमाश ने एक बयान में कहा, 2011 की पहली तिमाही में की गई जांच में अनियमितताआें की दर बढकर 10.9 प्रतिशत पर पहुंच गई है, जो इससे पिछली तिमाही में 10.2 फीसद थी। यहां विसंगति से तात्पर्य उम्मीदवारों द्वारा दी गई जानकारी और फर्स्ट एडवांटेज द्वारा उनके बारे में जुटाई गई सूचनाआें के अंतर से है। बयान में कहा गया है कि शिक्षा, ट्रैवल, हॉस्पिटलिटी और रीयल एस्टेट क्षेत्रों में इस तरह की अनियमितताएं सबसे ज्यादा सामने आई हैं। रपट में कहा गया है कि मुंबई, मेरठ और कानपुर उन शीर्ष तीन शहरों में हैं, जहां उम्मीदवारों द्वारा अपनी शिक्षा के बारे में सबसे ज्यादा गलत जानकारियां दी गईं।
हडताल जारी रही तो बिक्री घट सकती है: मारुति सुजुकी
नयी दिल्ली, ७ जून : देश की सबसे बडी कार निर्माता कंपनी मारूति सुजुकी इंडिया :एमएसआई: ने ७ जून को कहा कि अगर उसके मानेसर संयंत्र में हडताल लंबी खिंचती है तो उसकी बिक्री प्रभावित हो सकती है। मानेसर संयंत्र में श्रमिकों की हडताल का आज चौथा दिन है और कंपनी को पहले ही करीब 3,000 कारों के उत्पादन का नुकसान हो चुका है। यद्यपि कंपनी गतिरोध दूर करने के प्रयास कर रही है, हरियाणा की श्रम आयुक्त ने हडताल को अनुचित करार देते हुए 11 कर्मचारियों को बर्खास्त करने के कंपनी के निर्णय का भी समर्थन किया।
मारुति सुजुकी इंडिया के चेयरमैन आर.सी. भार्गव ने प्रेट्र को बताया, अगर यह हडताल लंबे समय तक जारी रहती है तो इससे हमारी बिक्री प्रभावित होगी और साथ ही हमारी डीजल कारों के लिए प्रतीक्षा अवधि बढेगी। मानेसर संयंत्र दो पालियों में प्रतिदिन करीब 1,200 कारों का विनिर्माण करती है। इस कारखाने में स्विफ्ट और ए..स्टार के अलावा, सेडान डिजायर एवं एसएक्स4 का विनिर्माण किया जाता है। जहां, स्विफ्ट और डिजायर के डीजल संस्करण के लिए ग्राहकों को इस समय तीन से चार महीने तक इंतजार करना पड रहा है, वहीं एसएक्स4 के लिए प्रतीक्षा अवधि डेढ महीने की है।
भार्गव ने कहा, अगर हडताल लंबी खिंचती है तो इससे निर्यात भी प्रभावित होने की आशंका है। गतिरोध अब भी बना हुआ है। मारूति सुजुकी ने कल अन्य कर्मचारियों को हडताल के उकसाने के आरोप में 11 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया। मानेसर कारखाने के करीब 2,000 कर्मचारी शनिवार से हडताल पर है. कंपनी को इस हडताल से हुए नुकसान के बारे में मारुति सुजुकी के एक प्रवक्ता ने कहा, स्थिति कल की तरह ही बनी हुई है... शनिवार से अब तक करीब 3,000 कारों का उत्पादन नहीं हुआ। उद्योग के अनुमानों के मुताबिक, नुकसान का मूल्य करीब 150 करोड रुपये है। इस बीच, हरियाणा की श्रम आयुक्त सतवंती अहलावत ने 11 कर्मचारियों को
बर्खास्त करने के कंपनी के निर्णय का समर्थन करते हुए कहा कि कंपनी कारखाना परिसर में अनुशासनहीनता करने वाले किसी भी कर्मचारी को बर्खास्त करने का अधिकार रखती है। उन्होंने कहा कि प्रबंधन एवं कर्मचारियों के बीच गतिरोध कंपनी का आंतरिक मामला है, लेकिन कर्मचारी नयी यूनियन का गठन कर सकते हंै जिसके लिए कानून है... हालांकि नयी यूनियन के लिए कर्मचारियों की हडताल सही कदम नहीं है।
मारुति सुजुकी इंडिया के चेयरमैन आर.सी. भार्गव ने प्रेट्र को बताया, अगर यह हडताल लंबे समय तक जारी रहती है तो इससे हमारी बिक्री प्रभावित होगी और साथ ही हमारी डीजल कारों के लिए प्रतीक्षा अवधि बढेगी। मानेसर संयंत्र दो पालियों में प्रतिदिन करीब 1,200 कारों का विनिर्माण करती है। इस कारखाने में स्विफ्ट और ए..स्टार के अलावा, सेडान डिजायर एवं एसएक्स4 का विनिर्माण किया जाता है। जहां, स्विफ्ट और डिजायर के डीजल संस्करण के लिए ग्राहकों को इस समय तीन से चार महीने तक इंतजार करना पड रहा है, वहीं एसएक्स4 के लिए प्रतीक्षा अवधि डेढ महीने की है।
भार्गव ने कहा, अगर हडताल लंबी खिंचती है तो इससे निर्यात भी प्रभावित होने की आशंका है। गतिरोध अब भी बना हुआ है। मारूति सुजुकी ने कल अन्य कर्मचारियों को हडताल के उकसाने के आरोप में 11 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया। मानेसर कारखाने के करीब 2,000 कर्मचारी शनिवार से हडताल पर है. कंपनी को इस हडताल से हुए नुकसान के बारे में मारुति सुजुकी के एक प्रवक्ता ने कहा, स्थिति कल की तरह ही बनी हुई है... शनिवार से अब तक करीब 3,000 कारों का उत्पादन नहीं हुआ। उद्योग के अनुमानों के मुताबिक, नुकसान का मूल्य करीब 150 करोड रुपये है। इस बीच, हरियाणा की श्रम आयुक्त सतवंती अहलावत ने 11 कर्मचारियों को
बर्खास्त करने के कंपनी के निर्णय का समर्थन करते हुए कहा कि कंपनी कारखाना परिसर में अनुशासनहीनता करने वाले किसी भी कर्मचारी को बर्खास्त करने का अधिकार रखती है। उन्होंने कहा कि प्रबंधन एवं कर्मचारियों के बीच गतिरोध कंपनी का आंतरिक मामला है, लेकिन कर्मचारी नयी यूनियन का गठन कर सकते हंै जिसके लिए कानून है... हालांकि नयी यूनियन के लिए कर्मचारियों की हडताल सही कदम नहीं है।
शुक्रवार, 3 जून 2011
पत्रकार वेतनबोर्ड को पलीता लगाने का प्रयास नहीं चलने देंगे :कन्फेडरेशन
नई दिल्ली: अखबारी कर्मचारियों के वेतनमान में संशोधन के लिए संघर्ष कर रहे कन्फेडरेशन आफ न्यूजपेपर्स एंड न्यूज एजेंसी एम्प्लाइज आर्गेनाजेशन्स ने मजीठिया वेतनबोर्ड की सिफारिशों के खिलाफ अखबार मालिकों के दुष्प्रचार पर आज तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि कर्मचारियों के वेतनमान में संशोधन की प्रक्रिया को पलीता लगाने की कोशिश जारी रही, तो कन्फेडरेशन के सामने प्रबंधन से सीधी टक्कर लेने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचेगा।
कन्फेडरेशन के महासचिव एमएस यादव ने वेतनबोर्ड के खिलाफ एक प्रमुख समाचार पत्र समूह के मुख्य कार्याधिकारी के हाल के लेख को अखबारी कर्मचारियों के वेतनमान में संशोधन की प्रक्रिया में विघ्न डालने का ओछा प्रयास बताया। यादव ने कहा कि 12 साल के लंबे अंतराल के बाद अखबारी उद्योग के कर्मचरियों की जायज मांगों को पूरा करने के लिए चल रही प्रक्रिया में ऐसे समय में पलीता लगाने का प्रयास किया जा रहा है, जब सरकार मजीठिया बोर्ड की सिफारिशों पर अधिसूचना जारी करने की तैयारी में है।
उल्लेखनीय है कि कन्फेडरेशन में कर्मचारियों के शीर्ष संगठन, आईएफडब्ल्यूजे, एनयूजे, आईजेयू, एआईएनईएफ, फेडरेशन आफ पीटीआई एम्प्लाइज यूनियन्स और यूएनआई वर्कर्स यूनियन शामिल हैं। कन्फेडरेशन ने हाल में संप्रग की अध्यक्ष सोनिया गांधी के कार्यालय पर रैली आयोजित कर उन्हें अपनी जायज मांगों के संदर्भ में ज्ञापन सौंपा था। श्रममंत्री मल्लिकार्जुन खडगे ने भी हाल में कहा था कि वह मजीठिया वेतनबोर्ड की सिफारिशों की अधिसूचना का प्रस्ताव मंत्रिमंडल के सामने प्रस्तुत करने की तैयारी कर रहे हैं। कन्फेडरेशन महासचिव ने कहा कि अखबारी मालिकों का यह कहना मजाक है कि वेतनबोर्ड के माध्यम से सरकार अखबार के गर्दन पर हाथ डाल रही है। यादव ने इस संबंध में 1975 में वेतनबोर्ड को बीच में ही भंग किये जाने की घटना का हवाला दिया और कहा कि जब जब सरकारों को प्रेस पर नियंत्रण करना होता है, तो वह वेतनबोर्ड भंग करती हैं न कि उसे लागू करवाती हैं। उन्होंने सवाल किया है कि क्या अब तक वेतनबोर्ड के कारण सभी अखबारों के पत्रकार सरकार का गुणगान करते आये हैं।
उन्होंने कहा कि अखबारी उद्योग में कर्मचारियों के शोषण को रोकने का कानून न्यायमूर्ति राजाध्यक्ष की अध्यक्षता वाले पहले प्रेस आयोग की सिफारिशों के आधार पर बनाया गया था। यादव ने कहा, मैं यहां प्रथम प्रेस आयोग की रिपोर्ट की उन बातों का उल्लेख नहीं करना चाहता, जो उस समय अखबार मालिकों के बारे में कही गई थीं। यादव ने कहा कि यह सही है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के कर्मचारियों के लिए सरकार वेतनबोर्ड नहीं बनाती, लेकिन देश में इलेक्ट्रानिक मीडिया अभी नया मीडिया है तथा हमारे संगठन इस कानून का विस्तार उस क्षेत्र तक करने की मांग करते आ रहे हैं। यादव ने कहा, उच्चतम न्यायालय ने श्रमजीवी पत्रकार कानून को बार बार संवैधानिक करार दिया है और बार-बार मालिकों की इस दलील को खारिज कर चुका है कि इसके कारण प्रेस की स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
कन्फेडरेशन ने अखबार मालिकों के इस तर्क को भी खारिज किया कि कर्मचारियों को तथाकथित उंचा वेतन देने से अखबारी प्रतिष्ठानों पर असहनीय वित्तीय बोझ बढ़ता है। यादव ने कहा कि सचाई इसके विपरीत है क्योंकि श्रमजीवी पत्रकार कानून के लागू होने के बाद पिछले 50 वर्षो में भारत में अखबारी उद्योग ने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की की है। यादव ने मजीठिया वेतनबोर्ड की सिफारिशों का हवाला देते हुए कहा है कि 1998-99 से 2007-08 के दौरान भारत में समाचार पत्र उद्योग के राजस्व में संचयी वार्षिक वृद्धि (सीजेईआर) 7.2 प्रतिशत रही। यह वह दौर रहा है जब मणिसाना वेतनबोर्ड की सिफारिशें प्रभावी थीं। इन्हीं 10 वर्षो में अखबारों की सकल बिक्री 36,625.2 करोड़ रुपये बढ़कर 68,853.2 करोड़ रुपये हो गयी। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि देश के 16 बड़े अखबारों की तीन चौथाई आय सरकारी विज्ञापनों से आती है। उन्होंने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा है कि वेतनबोर्डो के इसी दौर में टाइम्स आफ इंडिया की आय 785 करोड़ रुपये से बढ़कर 3,500 करोड़ रुपये से अधिक हो गयी। अगर उंचे वेतन के बोझ से अखबार मर रहे होते, तो छोटे से लेकर बड़े अखबारों की आय में इस तरह बेतहाशा बढ़ोतरी नहीं होती।
कन्फेडरेशन के महासचिव एमएस यादव ने वेतनबोर्ड के खिलाफ एक प्रमुख समाचार पत्र समूह के मुख्य कार्याधिकारी के हाल के लेख को अखबारी कर्मचारियों के वेतनमान में संशोधन की प्रक्रिया में विघ्न डालने का ओछा प्रयास बताया। यादव ने कहा कि 12 साल के लंबे अंतराल के बाद अखबारी उद्योग के कर्मचरियों की जायज मांगों को पूरा करने के लिए चल रही प्रक्रिया में ऐसे समय में पलीता लगाने का प्रयास किया जा रहा है, जब सरकार मजीठिया बोर्ड की सिफारिशों पर अधिसूचना जारी करने की तैयारी में है।
उल्लेखनीय है कि कन्फेडरेशन में कर्मचारियों के शीर्ष संगठन, आईएफडब्ल्यूजे, एनयूजे, आईजेयू, एआईएनईएफ, फेडरेशन आफ पीटीआई एम्प्लाइज यूनियन्स और यूएनआई वर्कर्स यूनियन शामिल हैं। कन्फेडरेशन ने हाल में संप्रग की अध्यक्ष सोनिया गांधी के कार्यालय पर रैली आयोजित कर उन्हें अपनी जायज मांगों के संदर्भ में ज्ञापन सौंपा था। श्रममंत्री मल्लिकार्जुन खडगे ने भी हाल में कहा था कि वह मजीठिया वेतनबोर्ड की सिफारिशों की अधिसूचना का प्रस्ताव मंत्रिमंडल के सामने प्रस्तुत करने की तैयारी कर रहे हैं। कन्फेडरेशन महासचिव ने कहा कि अखबारी मालिकों का यह कहना मजाक है कि वेतनबोर्ड के माध्यम से सरकार अखबार के गर्दन पर हाथ डाल रही है। यादव ने इस संबंध में 1975 में वेतनबोर्ड को बीच में ही भंग किये जाने की घटना का हवाला दिया और कहा कि जब जब सरकारों को प्रेस पर नियंत्रण करना होता है, तो वह वेतनबोर्ड भंग करती हैं न कि उसे लागू करवाती हैं। उन्होंने सवाल किया है कि क्या अब तक वेतनबोर्ड के कारण सभी अखबारों के पत्रकार सरकार का गुणगान करते आये हैं।
उन्होंने कहा कि अखबारी उद्योग में कर्मचारियों के शोषण को रोकने का कानून न्यायमूर्ति राजाध्यक्ष की अध्यक्षता वाले पहले प्रेस आयोग की सिफारिशों के आधार पर बनाया गया था। यादव ने कहा, मैं यहां प्रथम प्रेस आयोग की रिपोर्ट की उन बातों का उल्लेख नहीं करना चाहता, जो उस समय अखबार मालिकों के बारे में कही गई थीं। यादव ने कहा कि यह सही है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के कर्मचारियों के लिए सरकार वेतनबोर्ड नहीं बनाती, लेकिन देश में इलेक्ट्रानिक मीडिया अभी नया मीडिया है तथा हमारे संगठन इस कानून का विस्तार उस क्षेत्र तक करने की मांग करते आ रहे हैं। यादव ने कहा, उच्चतम न्यायालय ने श्रमजीवी पत्रकार कानून को बार बार संवैधानिक करार दिया है और बार-बार मालिकों की इस दलील को खारिज कर चुका है कि इसके कारण प्रेस की स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
कन्फेडरेशन ने अखबार मालिकों के इस तर्क को भी खारिज किया कि कर्मचारियों को तथाकथित उंचा वेतन देने से अखबारी प्रतिष्ठानों पर असहनीय वित्तीय बोझ बढ़ता है। यादव ने कहा कि सचाई इसके विपरीत है क्योंकि श्रमजीवी पत्रकार कानून के लागू होने के बाद पिछले 50 वर्षो में भारत में अखबारी उद्योग ने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की की है। यादव ने मजीठिया वेतनबोर्ड की सिफारिशों का हवाला देते हुए कहा है कि 1998-99 से 2007-08 के दौरान भारत में समाचार पत्र उद्योग के राजस्व में संचयी वार्षिक वृद्धि (सीजेईआर) 7.2 प्रतिशत रही। यह वह दौर रहा है जब मणिसाना वेतनबोर्ड की सिफारिशें प्रभावी थीं। इन्हीं 10 वर्षो में अखबारों की सकल बिक्री 36,625.2 करोड़ रुपये बढ़कर 68,853.2 करोड़ रुपये हो गयी। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि देश के 16 बड़े अखबारों की तीन चौथाई आय सरकारी विज्ञापनों से आती है। उन्होंने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा है कि वेतनबोर्डो के इसी दौर में टाइम्स आफ इंडिया की आय 785 करोड़ रुपये से बढ़कर 3,500 करोड़ रुपये से अधिक हो गयी। अगर उंचे वेतन के बोझ से अखबार मर रहे होते, तो छोटे से लेकर बड़े अखबारों की आय में इस तरह बेतहाशा बढ़ोतरी नहीं होती।
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