देवेन्द्र प्रताप
आज जल देवता इंद्रदेव को बोतल में बंद करके कंपनियां करोड़ों-अरबों का वारा-न्यारा कर रही हैं। इसके लिए उन्हें कुछ खास व्यय भी नहीं करना पड़ता, उस पर मुनाफे की सौ प्रतिशत गारंटी भी है। डेन्यूब, वोल्गा या फिर हमारी गंगा और यमुना जैसी नदियों का पानी आज पीने लायक नहीं रह गया है। उद्योगों से निकली गंदगी ने भूमिगत जल को भी अब पीने लायक नहीं छोड़ा है। लेकिन इससे बोतल बंद पानी का व्यवसाय करने वाली कंपनियों का कोई सरोकार नहीं, अलबत्ता उनका तो इससे फायदा ही हो रहा है। कल 22 मार्च को दुनियां ने जल दिवस मनाया, आज 23 मार्च को विश्व मौसम विज्ञान दिवस है। हर साल ये आयोजन होते हैं, लेकिन पर्यावरण संकट बढ़ता जा रहा है। आज जरूरत इस बात की है की जनता इन मुददों को अपने हाथ में ले।
अमेरिका और यूरोप में 19 वीं सदी में ही बोतलबंद पानी का बाजार पैदा हो गया था। इसकी एक वजह वहां दुनिया में सबसे पहले औद्योगिकीकरण का होना भी था। बोतलबंद पानी की पहली कंपनी 1845 में पोलैंड के मैनी शहर में लगी। इस कंपनी का नाम था ‘पोलैंड स्प्रिंग बाटल्ड वाटर’ था। 1845 से आज दुनिया में दसियों हजार कंपनियां इस धंधे में लगी हुई हैं। औद्योगिक विकास के साथ ही इन कंपनियों की संख्या में भी जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है। यही वजह है कि आज बोतलबंद पानी का कारोबार 100 अरब डालर को भी पार कर गया है। भारत में बोतलबंद पानी की शुरुआत 1965 में इटलीवासी सिग्नोर फेलिस की कंपनी बिसलरी ने मुंबई महानगर से की। शुरुआत में मिनिरल वाटर की बोतल सीसे की बनी होती थी। इस समय भारत में इस कंपनी के 8 प्लांट और 11 फ्रेंचाइजी कंपनियां हैं। बिसलरी का भारत के कुल बोतलबंद पानी के व्यापार के 60 प्रतिशत पर कब्जा है। पारले ग्रुप का बेली ब्रांड इस समय देश में पांच लाख खुदरा बिक्री केंदों पर उपलब्ध है। इस समय अकेले इस ब्रांड के लिए देश में 40 बॉटलिंग प्लांट काम कर रहे हैं।
अमेरिका बोतलबंद का सबसे बड़ा बाजार है। मेक्सिको, चीन और ब्राजील का स्थान इसके बाद है। 2008 में अमेरिका में बोतलबंद पानी की बिक्री 8.6 बिलियन थी। यह यहां बिकने वाले कुल बोतलबंद लिक्विड का 28.9 प्रतिशत है। कार्बोर्नटेड साफ्ट ड्रिंक, फलों के जूस और खिलाड़ियों के पेय पदार्थों का स्थान इसके बाद आता है। एक सर्वे के अनुसार एक अमेरिकी आदमी साल भर में औसतन 21 गैलन पानी पी जाता है। अमेरिका में पानी के निजीकरण के खिलाफ आवाज समय-समय पर आवाजें भी उठती रहीं। यूनाइटेड चर्च आॅफ क्रिश्चियंस, यूनाइटेड चर्च आॅफ कनाडा जैसे धार्मिक संगठनों तक ने इसके खिलाफ आवाज उठाई। हालांकि पानी का निजीकरण आज भी न सिर्फ बदस्तूर जारी है, वरन 50 के दशक से सैकड़ों गुना और तेजी के साथ।
वर्तमान समय में हमारे देश में बोतलबंद पानी का व्यापार करने वाली करीब 200 कंपनियां और 1200 बाटलिंग प्लांट हैं। इसमें पानी का पाउच बेचने वाली और दूसरी छोटी कंपनियों का आंकड़ा शामिल नहीं है। इस समय भारत में बोतलबंद पानी का कुल व्यापार 14 अरब 85 करोड़ रुपये का है। यह देश में बिकने वाले कुल बोतलबंद पेय का 15 प्रतिशत है। कोकाकोला की एक रिपोर्ट के अनुसार इस समय दुनिया की ज्यादातर बड़ी कंपनियां भारत के बाजार में अपने पेय पदार्थों को बेच रही हैं। भारत में बोतलबंद पानी के व्यापार में लगी 80 प्रतिशत कंपनियां देशी हैं। बोतलबंद पानी का इस्तेमाल करने वाले देशों की सूची में भारत 10 वें स्थान पर है। भारत में 1999 में बोतलबंद पानी की खपत एक अरब 50 करोड़ लीटर थी, 2004 में यह आंकड़ा 500 करोड़ लीटर पर पहुंच गया। इसके बावजदू यहां महानगरों में सैकड़ों ऐसी कंपनियां हैं, जिनके लिए पानी के लिए तय मानकों के कोई मायने नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से 122 देशों में पानी के स्टैंडर्ड के ऊपर किए गये एक अध्ययन में भारत को 120 वें स्थान पर रखा गया है। यहां एक दिन में प्रति व्यक्ति बोतलबंद का औसत उपयोग 5 लीटर है, जबकि यूरोप में यही 111 लीटर, अमेरिका में 45 लीटर और वैश्विक औसत 24 लीटर बैठता है। समझा जा सकता है कि भारत की गरीबी के चलते यहां प्रति व्यक्ति बोतल बंद पानी की खपत बेहद कम है। यूरोप और अमेरिका में भोजन बनाने में भी एक बड़ी आबादी इस पानी का ही उपयोग करती है। यह भी वहां ज्यादा खपत की एक बड़ी वजह है।
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मेरा यह लेख रांची एक्सप्रेस ने भी प्रकाशित किया है, लेकिन लगता है भूलवश मेरा नाम नहीं लिखा है। देखें-
कल्पतरु एक्सप्रेस में 29 मार्च को यह लेख -बोतल में कैद पानी- शीर्षक से प्रकाशित
बोतल में कैद पानी
http://kalptaruexpress.com/
आज जल देवता इंद्रदेव को बोतल में बंद करके कंपनियां करोड़ों-अरबों का वारा-न्यारा कर रही हैं। इसके लिए उन्हें कुछ खास व्यय भी नहीं करना पड़ता, उस पर मुनाफे की सौ प्रतिशत गारंटी भी है। डेन्यूब, वोल्गा या फिर हमारी गंगा और यमुना जैसी नदियों का पानी आज पीने लायक नहीं रह गया है। उद्योगों से निकली गंदगी ने भूमिगत जल को भी अब पीने लायक नहीं छोड़ा है। लेकिन इससे बोतल बंद पानी का व्यवसाय करने वाली कंपनियों का कोई सरोकार नहीं, अलबत्ता उनका तो इससे फायदा ही हो रहा है। कल 22 मार्च को दुनियां ने जल दिवस मनाया, आज 23 मार्च को विश्व मौसम विज्ञान दिवस है। हर साल ये आयोजन होते हैं, लेकिन पर्यावरण संकट बढ़ता जा रहा है। आज जरूरत इस बात की है की जनता इन मुददों को अपने हाथ में ले।
अमेरिका और यूरोप में 19 वीं सदी में ही बोतलबंद पानी का बाजार पैदा हो गया था। इसकी एक वजह वहां दुनिया में सबसे पहले औद्योगिकीकरण का होना भी था। बोतलबंद पानी की पहली कंपनी 1845 में पोलैंड के मैनी शहर में लगी। इस कंपनी का नाम था ‘पोलैंड स्प्रिंग बाटल्ड वाटर’ था। 1845 से आज दुनिया में दसियों हजार कंपनियां इस धंधे में लगी हुई हैं। औद्योगिक विकास के साथ ही इन कंपनियों की संख्या में भी जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है। यही वजह है कि आज बोतलबंद पानी का कारोबार 100 अरब डालर को भी पार कर गया है। भारत में बोतलबंद पानी की शुरुआत 1965 में इटलीवासी सिग्नोर फेलिस की कंपनी बिसलरी ने मुंबई महानगर से की। शुरुआत में मिनिरल वाटर की बोतल सीसे की बनी होती थी। इस समय भारत में इस कंपनी के 8 प्लांट और 11 फ्रेंचाइजी कंपनियां हैं। बिसलरी का भारत के कुल बोतलबंद पानी के व्यापार के 60 प्रतिशत पर कब्जा है। पारले ग्रुप का बेली ब्रांड इस समय देश में पांच लाख खुदरा बिक्री केंदों पर उपलब्ध है। इस समय अकेले इस ब्रांड के लिए देश में 40 बॉटलिंग प्लांट काम कर रहे हैं।
वर्ल्ड हेल्थ आॅर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार एशिया में उद्योगों से निकलने वाला 35 प्रतिशत पानी ही वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से परिशोधित हो पाता है। जबकि, दक्षिण अमेरिका में यह 14 प्रतिशत और अफ्रीका में तो नाममात्र का ही है। अगर भारत जैसे विकासशील देशों ने अपने जल प्रबंधन पर ध्यान नहीं दिया, तो भविष्य अंधकारमय हो जाएगा और इसका सबसे ज्यादा शिकार बनेंगे गरीब और मध्यमवर्गीय लोग।अमेरिका बना सबसे बड़ा बाजार
अमेरिका बोतलबंद का सबसे बड़ा बाजार है। मेक्सिको, चीन और ब्राजील का स्थान इसके बाद है। 2008 में अमेरिका में बोतलबंद पानी की बिक्री 8.6 बिलियन थी। यह यहां बिकने वाले कुल बोतलबंद लिक्विड का 28.9 प्रतिशत है। कार्बोर्नटेड साफ्ट ड्रिंक, फलों के जूस और खिलाड़ियों के पेय पदार्थों का स्थान इसके बाद आता है। एक सर्वे के अनुसार एक अमेरिकी आदमी साल भर में औसतन 21 गैलन पानी पी जाता है। अमेरिका में पानी के निजीकरण के खिलाफ आवाज समय-समय पर आवाजें भी उठती रहीं। यूनाइटेड चर्च आॅफ क्रिश्चियंस, यूनाइटेड चर्च आॅफ कनाडा जैसे धार्मिक संगठनों तक ने इसके खिलाफ आवाज उठाई। हालांकि पानी का निजीकरण आज भी न सिर्फ बदस्तूर जारी है, वरन 50 के दशक से सैकड़ों गुना और तेजी के साथ।
‘ग्लोबल एनवायरमेंट आउटलुक’ (जीयो-3) की रिपोर्ट के अनुसार यदि भारत में पानी का संकट गंभीर होता है, तो यहां रहने वाली आबादी का बड़ा हिस्सा डायरिया, हैजा और टायफाइड जैसी बीमारियों की चपेट में आ सकता है। दुनिया के पैमाने पर बात करें तो इस समय जबकि पानी का संकट इतना गंभीर नहीं है, तब हालत यह है कि दुनिया में प्रति आठ सेकंड पर एक बच्चा जल जनित बीमारियों के कारण मर रहा है। अनुमान है कि 2032 तक संसार की आधी से अधिक आबादी भीषण जल संकट की चपेट में आ जाएगी।अरबों का पानी पी जाते हैं भारतीय
वर्तमान समय में हमारे देश में बोतलबंद पानी का व्यापार करने वाली करीब 200 कंपनियां और 1200 बाटलिंग प्लांट हैं। इसमें पानी का पाउच बेचने वाली और दूसरी छोटी कंपनियों का आंकड़ा शामिल नहीं है। इस समय भारत में बोतलबंद पानी का कुल व्यापार 14 अरब 85 करोड़ रुपये का है। यह देश में बिकने वाले कुल बोतलबंद पेय का 15 प्रतिशत है। कोकाकोला की एक रिपोर्ट के अनुसार इस समय दुनिया की ज्यादातर बड़ी कंपनियां भारत के बाजार में अपने पेय पदार्थों को बेच रही हैं। भारत में बोतलबंद पानी के व्यापार में लगी 80 प्रतिशत कंपनियां देशी हैं। बोतलबंद पानी का इस्तेमाल करने वाले देशों की सूची में भारत 10 वें स्थान पर है। भारत में 1999 में बोतलबंद पानी की खपत एक अरब 50 करोड़ लीटर थी, 2004 में यह आंकड़ा 500 करोड़ लीटर पर पहुंच गया। इसके बावजदू यहां महानगरों में सैकड़ों ऐसी कंपनियां हैं, जिनके लिए पानी के लिए तय मानकों के कोई मायने नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से 122 देशों में पानी के स्टैंडर्ड के ऊपर किए गये एक अध्ययन में भारत को 120 वें स्थान पर रखा गया है। यहां एक दिन में प्रति व्यक्ति बोतलबंद का औसत उपयोग 5 लीटर है, जबकि यूरोप में यही 111 लीटर, अमेरिका में 45 लीटर और वैश्विक औसत 24 लीटर बैठता है। समझा जा सकता है कि भारत की गरीबी के चलते यहां प्रति व्यक्ति बोतल बंद पानी की खपत बेहद कम है। यूरोप और अमेरिका में भोजन बनाने में भी एक बड़ी आबादी इस पानी का ही उपयोग करती है। यह भी वहां ज्यादा खपत की एक बड़ी वजह है।
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मेरा यह लेख रांची एक्सप्रेस ने भी प्रकाशित किया है, लेकिन लगता है भूलवश मेरा नाम नहीं लिखा है। देखें-
बोतलबंद पानी का फैलता बाजार
http://ranchiexpress.com/227051कल्पतरु एक्सप्रेस में 29 मार्च को यह लेख -बोतल में कैद पानी- शीर्षक से प्रकाशित
बोतल में कैद पानी
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