13 का अंक ज्योतिष में शुभ नहीं माना जाता। समाज में भी किसी की मृत्यु के बाद तेरहवीं की जाती है। 2013 के बारे में कई ज्योतिषियों की राय है कि इसे सामाजिक मुद्दे परेशान करेंगे। देश के मौजूदा हालात भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं। 2012 विदा ले रहा है, लेकिन समूची दुनिया अभी भी आर्थिक मंदी से आतंकित है, अरब में अभी भी क्रांति का दावानल सतह के नीचे सुलग रहा है, वहीं हमारा मुल्क भी ऐसी कई समस्याओं से परेशान है। एफडीआई पर रार अभी भी बरकरार है, भ्रष्टाचार पर फिलहाल अन्ना मौन हैं, लेकिन अब समूचा देश बोल रहा है। 2012 को ऐसे ही कई सवालों से उलझना पड़ा। नए साल (2013) के स्वागत के साथ यह उम्मीद की जानी चाहिए कि यह जनता के जीवन में नई खुशियां लेकर आएगा।
देवेन्द्र प्रताप
अगर किसी देश की सरकार पर ही भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हों, तो मसला संगीन हो जाता है। भारत के मामले में यह नई बात नहीं है। बोफोर्स घोटाला (64 करोड़), यूरिया घोटाला (133 करोड़ रुपये), चारा घोटाला (950 करोड़ रुपये), शेयर बाजार घोटाला (4000 करोड़ रुपये), सत्यम घोटाला (7000 करोड़ रुपये) स्टैंप पेपर घोटाला (43 हजार करोड़ रुपये), कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला (70 हजार करोड़ रुपये), 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला (1 लाख 67 हजार करोड़ रुपये), अनाज घोटाला (करीब 2 लाख करोड़ रुपये) जैसे कई ऐसे घोटाले हैं, जिन्होंने देश का नाम दुनिया में बदनाम किया है। 2012 ऐसे ही घोटालों का ही वर्ष रहा। हमारे देश के घोटाले बाज जिस स्विस बैंक में अपना धन जमा करते हैं, उसके डायरेक्टर ने कहा है,‘भारतीय गरीब हैं, लेकिन भारत देश कभी गरीब नहीं रहा’ उनके अनुसार स्विस बैंक में हमारे मुल्क का 280 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा धन जमा है। यह रकम इतनी बड़ी है कि अगर यह देश में आ जाए तो 2013 के बाद अगले 30 सालों जनता को सरकार को कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा। अगर सरकार ऐसा होने दे तो। इस रकम से 60 करोड़ से ज्यादा रोजगार पैदा किए जा सकते हैं। इतना ही नहीं अगर यह रकम देश में आ जाए तो भारत के हर गांव से राजधानी तक फोर लेन सड़क बनाई जा सकती है। इस रकम से हर नागरिक को 60 सालों तक 2000 रुपये हर माह मदद दी जा सकती है। भ्रष्टाचार को रोकने में वर्ष 2012 तो विफल साबित हुआ, अब इसे रोकने की जिम्मेदारी 2013 के कंधों पर है।
इस साल अक्टूबर माह की 13 तारीख को ब्लूमबर्ड टीवी के सहयोग से एक चर्चा का आयोजन किया गया। इसमें मणिशंकर अय्यर, अरुणा राय, प्रो. दीपांकर गुप्ता और जय पांडा जैसे नामी लोग मौजूद थे।इस चर्चा के दौरान अय्यर और अरुणा राय का निश्चित मत था कि भारत क्रांति की ओर कदम बढ़ा रहा है, जबकि अन्य दो वक्ताओं की राय थी कि तमाम समस्याओं के बावजूद मुद्दों को अभी भी देश के संविधान के ढांचे के तहत हल किया जा सकता है। इस असहमति के बावजूद सभी इस बात से सहमत थे कि भ्रष्टाचार, कुशासन, प्रशासन की संवेदनहीनता आदि के कारण पैदा असहायता से आम जनता में गुस्सा और क्षोभ लगातार बढ़ता जा रहा है। इस चर्चा में मौजूद 58 प्रतिशत लोगों ने विषय के पक्ष में वोट दिया। अगर यह बात सही है, तो इससे इंकार नहीं किया जा सकता है हमारा देश भी मिस्र और ट्यूनिशिया का रास्ता अख्तियार कर सकता है।
सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में पिछड़ों को आरक्षण देने के मुद्दे ने भी सरकार को काफी परेशान किया। हालांकि 2012 के जाते-जाते संविधान संशोधन से संबंधित विधेयक का प्रस्ताव पारित हो गया, लेकिन रार अभी बरकरार है। अलग-अलग पार्टियां नौकरियों में आरक्षण देने के मसले पर एक राय नहीं हैं। उधर इस मुद्दे को बहस के केंद्र में लाने वाली सर्वजन हिताय संरक्षण समिति इस मसले पर ‘करो या मरो’ के मूड में है। अब देखना यह है कि नए साल (2013) में यह मुद्दा क्या गुल खिलाता है।
2012 में जमीन अधिग्रहण के विरोध में समूचे देश में तीखा विरोध हुआ। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा, उड़ीसा, महाराष्ट्र, प. बंगाल आदि राज्यों में पुलिस ने भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों के ऊपर लाठियां भांजी। देश में 5.37 करोड़ परिवार भूमिहीन हैं और 6.1 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके पास जमीन का इतना टुकड़ा भी नहीं है। वहीं दूसरी ओर 20 साल पहले जिस डीएलफ को कोई नहीं जानता था, आज वही कंपनी तीन लाख करोड़ की मालिक है। सरकार की ओर से पिछले 20 वर्षों में 81 लाख हेक्टेयर जमीन औद्योगिकीकरण के नाम पर देश के 200 घरानों को दी गई। ये ऐसे घराने हैं, जिनमें देश की सत्ता को नियंत्रित करने की ताकत है और वे करते भी हैं। वर्ष 2012 में ऐसे कई घरानों के उद्योगों के लिए किसानों की जमीनों का अधिग्रहण किया गया। अकेले सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) के लिए ही देश में एक लाख 50 हजार हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया जाना है। यह क्षेत्रफल देश की राजधानी के बराबर बैठता है।
एक अनुमान के मुताबिक इतने बड़े क्षेत्रफल में करीब 10 लाख टन अनाज की पैदावार की जा सकती है। सेज का विरोध ज्यादा बड़े पैमाने पर है। इसका विरोध किसान तो कर ही रहे हैं, क्योंकि उनकी जमीनें जाएंगी। दूसरी ओर देश के कई बड़े सामाजिक संगठन सेज को एक नई गुलामी लादने का प्रयास करार दे रहे हैं, क्योंकि सेज के अंदर किसी तरह के श्रम कानूनों का पालन अनिवार्य नहीं होगा। यानि वहां काम करने वाले मजदूर और कर्मचारी सिर्फ मालिकों के रहमोकरम पर रहेंगे। उन्हें संवैधानिक अधिकारों हड़ताल करने और संगठित होने के लिए यूनियन बनाने से भी वंचित होना पड़ेगा। वर्ष 2012 में आदिवासी इलाकों में उद्योंगों के लिए किए जाने वाले जमीन अधिग्रहण के चलते हजारों आदिवासी विस्थापित होकर बंधुआ मजदूर बनने को मजबूर हुए। अकेले उड़ीसा में ही दिसंबर 2012 तक पास्को परियोजना का विरोध कर रहे 600 से ज्यादा सामाजिक कार्यकर्ता जेल में ठूंस दिए गए।
2012 में समूची दुनिया वैश्विक आर्थिक मंदी से पीड़ित रही। यूरोप और अमेरिका को इस मंदी ने सबसे ज्यादा निशाना बनाया। इस समय ग्रीस, स्पेन आदि देशों की हालत बहुत बुरी है। स्पेन में आम जनता की बदहाली का आलम यह है कि परिवार में किसी की मृत्यु के बाद क्रियाकर्म के लिए भी उनके पास पैसे नहीं हैं। ऐसे में लोगों ने परिवार में किसी की मृत्यु होने पर शव को मनुष्यों पर शोध करने वाली वैज्ञानिक संस्थाओं को दान देना शुरू कर दिया है। 2012 में इस तरह के आवेदन करने वाले लोगों में रिकार्ड बढ़ोत्तरी देखी गई।
खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को केंद्र सरकार ने 14 सितंबर 2012 को मंजूरी दे दी। सरकार की ओर से ऐसा दावा किया जा रहा है कि इसके लागू होने से देश के उपभोक्ताओं को फायदा होगा, वहीं अर्थव्यवस्था को भी फायदा मिलेगा। दूरसंचार, वाहन और बीमा क्षेत्र में पहले ही एफडीआई को स्वीकृति मिल चुकी है। केंद्र ने मल्टी ब्रांड रिटेल क्षेत्र में 51 प्रतिशत विदेशी निवेश को मंजूरी दी है, जबकि एकल ब्रांड में सौ प्रतिशत। सारा काम करने के बाद अब केंद्र ने गेंद को राज्यों के पाले में डाल दिया है।
केंद्र सरकार के अनुसार राज्यों में एफडीआई लागू करने का निर्णय राज्य सरकारों का होगा। देसी एयरलाइंस कंपनियों में 49 फीसद की एफडीआई, चार सरकारी कंपनियों -एमएमटीसी और आॅयल इंडिया में दस प्रतिशत, हिंदुस्तान कॉपर में 9.59 प्रतिशत और नाल्को में 12.5 प्रतिशत विदेशी निवेश को भी इसी साल मंजूरी मिली। इतना ही नहीं इसी वर्ष ब्रॉडकास्ट मीडिया क्षेत्र में भी सरकार ने एफडीआई को 74 प्रतिशत कर दिया। सरकार के इन कदमों का समूचे देश में विरोध हुआ। अगर देश के खुदरा व्यापार की बात करें तो इस समय देश में खुदरा व्यवसाय 29.50 लाख करोड़ रुपये का है। यह जीडीपी के 33 प्रतिशत के आसपास बैठता है। जाहिर है यदि इस क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश होता है, तो इसका फायदा भी उन्हें ही मिलेगा। इस समय देश में खुदरा व्यापार करने वाली करीब 1 करोड़ 20 लाख छोटी दुकाने हैं। इन दुकानों से करीब 4 करोड़ लोगों की रोजी-रोटी चलती है। इसलिए सरकार के इस कदम से देश के खुदरा व्यापारियों पर विदेशी गाज गिरना तय है। सरकार और छोटे-मंझोले व्यापारियों के बीच रार अभी थमी नहीं है। देखना यह है 2013 इस मामले में क्या फैसला सुनाता है।
2012 में मेरठ, दिल्ली, मुंबई, बंगलरू, देहरादून समेत 57 बड़े शहरों में हर 25 मिनट पर एक महिला के छेड़छाड़ हुई, जबकि हर एक घंटे में दुष्कर्म और अपहरण की वारदातें अंजाम दी गर्इं। एक अनुमान के मुताबिक भारत में 2012 में हुए कुल अपराध का 60-70 प्रतिशत महिलाओं से जुड़ा हुआ रहा। इस साल देश की राजधानी में 500 से ज्यादा बलात्कार के मामले दर्ज किए गए। यह 2011 की अपेक्षा 18 प्रतिशत ज्यादा है। ऐसी घटनाओं को लेकर यह धारणा बनने लगी थी कि ‘होना जाना कुछ नहीं’। दिल्ली में 23 साल की युवती के साथ हुए बहशियाना दुष्कर्म के बाद समूचे देश में हुए विरोध प्रदर्शनों में जनता का यही गुस्सा मौजूद था। इस हिंसक प्रदर्शन में 50 से ज्यादा पुलिसकर्मी और 100 से ज्यादा प्रदर्शनकारी घायल हुए। युवती के लिए न्याय मांगने वालों पर लाठियां फटकारी गर्इं, आंसू गैस के गोले छोड़े गए और कड़ाके की ठंड में उनके ऊपर पानी की बौछार डाली गई। दुष्कर्म की तरह दिल्ली सरकार के इस कारनामे को भी अमानवीयता कहा गया। उम्मीद की जानी चाहिए कि नए साल में इस तरह की घटनाओं पर रोक लगे।
देवेन्द्र प्रताप
अगर किसी देश की सरकार पर ही भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हों, तो मसला संगीन हो जाता है। भारत के मामले में यह नई बात नहीं है। बोफोर्स घोटाला (64 करोड़), यूरिया घोटाला (133 करोड़ रुपये), चारा घोटाला (950 करोड़ रुपये), शेयर बाजार घोटाला (4000 करोड़ रुपये), सत्यम घोटाला (7000 करोड़ रुपये) स्टैंप पेपर घोटाला (43 हजार करोड़ रुपये), कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला (70 हजार करोड़ रुपये), 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला (1 लाख 67 हजार करोड़ रुपये), अनाज घोटाला (करीब 2 लाख करोड़ रुपये) जैसे कई ऐसे घोटाले हैं, जिन्होंने देश का नाम दुनिया में बदनाम किया है। 2012 ऐसे ही घोटालों का ही वर्ष रहा। हमारे देश के घोटाले बाज जिस स्विस बैंक में अपना धन जमा करते हैं, उसके डायरेक्टर ने कहा है,‘भारतीय गरीब हैं, लेकिन भारत देश कभी गरीब नहीं रहा’ उनके अनुसार स्विस बैंक में हमारे मुल्क का 280 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा धन जमा है। यह रकम इतनी बड़ी है कि अगर यह देश में आ जाए तो 2013 के बाद अगले 30 सालों जनता को सरकार को कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा। अगर सरकार ऐसा होने दे तो। इस रकम से 60 करोड़ से ज्यादा रोजगार पैदा किए जा सकते हैं। इतना ही नहीं अगर यह रकम देश में आ जाए तो भारत के हर गांव से राजधानी तक फोर लेन सड़क बनाई जा सकती है। इस रकम से हर नागरिक को 60 सालों तक 2000 रुपये हर माह मदद दी जा सकती है। भ्रष्टाचार को रोकने में वर्ष 2012 तो विफल साबित हुआ, अब इसे रोकने की जिम्मेदारी 2013 के कंधों पर है।
इस साल अक्टूबर माह की 13 तारीख को ब्लूमबर्ड टीवी के सहयोग से एक चर्चा का आयोजन किया गया। इसमें मणिशंकर अय्यर, अरुणा राय, प्रो. दीपांकर गुप्ता और जय पांडा जैसे नामी लोग मौजूद थे।इस चर्चा के दौरान अय्यर और अरुणा राय का निश्चित मत था कि भारत क्रांति की ओर कदम बढ़ा रहा है, जबकि अन्य दो वक्ताओं की राय थी कि तमाम समस्याओं के बावजूद मुद्दों को अभी भी देश के संविधान के ढांचे के तहत हल किया जा सकता है। इस असहमति के बावजूद सभी इस बात से सहमत थे कि भ्रष्टाचार, कुशासन, प्रशासन की संवेदनहीनता आदि के कारण पैदा असहायता से आम जनता में गुस्सा और क्षोभ लगातार बढ़ता जा रहा है। इस चर्चा में मौजूद 58 प्रतिशत लोगों ने विषय के पक्ष में वोट दिया। अगर यह बात सही है, तो इससे इंकार नहीं किया जा सकता है हमारा देश भी मिस्र और ट्यूनिशिया का रास्ता अख्तियार कर सकता है।
सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में पिछड़ों को आरक्षण देने के मुद्दे ने भी सरकार को काफी परेशान किया। हालांकि 2012 के जाते-जाते संविधान संशोधन से संबंधित विधेयक का प्रस्ताव पारित हो गया, लेकिन रार अभी बरकरार है। अलग-अलग पार्टियां नौकरियों में आरक्षण देने के मसले पर एक राय नहीं हैं। उधर इस मुद्दे को बहस के केंद्र में लाने वाली सर्वजन हिताय संरक्षण समिति इस मसले पर ‘करो या मरो’ के मूड में है। अब देखना यह है कि नए साल (2013) में यह मुद्दा क्या गुल खिलाता है।
2012 में जमीन अधिग्रहण के विरोध में समूचे देश में तीखा विरोध हुआ। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा, उड़ीसा, महाराष्ट्र, प. बंगाल आदि राज्यों में पुलिस ने भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों के ऊपर लाठियां भांजी। देश में 5.37 करोड़ परिवार भूमिहीन हैं और 6.1 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके पास जमीन का इतना टुकड़ा भी नहीं है। वहीं दूसरी ओर 20 साल पहले जिस डीएलफ को कोई नहीं जानता था, आज वही कंपनी तीन लाख करोड़ की मालिक है। सरकार की ओर से पिछले 20 वर्षों में 81 लाख हेक्टेयर जमीन औद्योगिकीकरण के नाम पर देश के 200 घरानों को दी गई। ये ऐसे घराने हैं, जिनमें देश की सत्ता को नियंत्रित करने की ताकत है और वे करते भी हैं। वर्ष 2012 में ऐसे कई घरानों के उद्योगों के लिए किसानों की जमीनों का अधिग्रहण किया गया। अकेले सेज (विशेष आर्थिक क्षेत्र) के लिए ही देश में एक लाख 50 हजार हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया जाना है। यह क्षेत्रफल देश की राजधानी के बराबर बैठता है।
एक अनुमान के मुताबिक इतने बड़े क्षेत्रफल में करीब 10 लाख टन अनाज की पैदावार की जा सकती है। सेज का विरोध ज्यादा बड़े पैमाने पर है। इसका विरोध किसान तो कर ही रहे हैं, क्योंकि उनकी जमीनें जाएंगी। दूसरी ओर देश के कई बड़े सामाजिक संगठन सेज को एक नई गुलामी लादने का प्रयास करार दे रहे हैं, क्योंकि सेज के अंदर किसी तरह के श्रम कानूनों का पालन अनिवार्य नहीं होगा। यानि वहां काम करने वाले मजदूर और कर्मचारी सिर्फ मालिकों के रहमोकरम पर रहेंगे। उन्हें संवैधानिक अधिकारों हड़ताल करने और संगठित होने के लिए यूनियन बनाने से भी वंचित होना पड़ेगा। वर्ष 2012 में आदिवासी इलाकों में उद्योंगों के लिए किए जाने वाले जमीन अधिग्रहण के चलते हजारों आदिवासी विस्थापित होकर बंधुआ मजदूर बनने को मजबूर हुए। अकेले उड़ीसा में ही दिसंबर 2012 तक पास्को परियोजना का विरोध कर रहे 600 से ज्यादा सामाजिक कार्यकर्ता जेल में ठूंस दिए गए।
2012 में समूची दुनिया वैश्विक आर्थिक मंदी से पीड़ित रही। यूरोप और अमेरिका को इस मंदी ने सबसे ज्यादा निशाना बनाया। इस समय ग्रीस, स्पेन आदि देशों की हालत बहुत बुरी है। स्पेन में आम जनता की बदहाली का आलम यह है कि परिवार में किसी की मृत्यु के बाद क्रियाकर्म के लिए भी उनके पास पैसे नहीं हैं। ऐसे में लोगों ने परिवार में किसी की मृत्यु होने पर शव को मनुष्यों पर शोध करने वाली वैज्ञानिक संस्थाओं को दान देना शुरू कर दिया है। 2012 में इस तरह के आवेदन करने वाले लोगों में रिकार्ड बढ़ोत्तरी देखी गई।
खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को केंद्र सरकार ने 14 सितंबर 2012 को मंजूरी दे दी। सरकार की ओर से ऐसा दावा किया जा रहा है कि इसके लागू होने से देश के उपभोक्ताओं को फायदा होगा, वहीं अर्थव्यवस्था को भी फायदा मिलेगा। दूरसंचार, वाहन और बीमा क्षेत्र में पहले ही एफडीआई को स्वीकृति मिल चुकी है। केंद्र ने मल्टी ब्रांड रिटेल क्षेत्र में 51 प्रतिशत विदेशी निवेश को मंजूरी दी है, जबकि एकल ब्रांड में सौ प्रतिशत। सारा काम करने के बाद अब केंद्र ने गेंद को राज्यों के पाले में डाल दिया है।
केंद्र सरकार के अनुसार राज्यों में एफडीआई लागू करने का निर्णय राज्य सरकारों का होगा। देसी एयरलाइंस कंपनियों में 49 फीसद की एफडीआई, चार सरकारी कंपनियों -एमएमटीसी और आॅयल इंडिया में दस प्रतिशत, हिंदुस्तान कॉपर में 9.59 प्रतिशत और नाल्को में 12.5 प्रतिशत विदेशी निवेश को भी इसी साल मंजूरी मिली। इतना ही नहीं इसी वर्ष ब्रॉडकास्ट मीडिया क्षेत्र में भी सरकार ने एफडीआई को 74 प्रतिशत कर दिया। सरकार के इन कदमों का समूचे देश में विरोध हुआ। अगर देश के खुदरा व्यापार की बात करें तो इस समय देश में खुदरा व्यवसाय 29.50 लाख करोड़ रुपये का है। यह जीडीपी के 33 प्रतिशत के आसपास बैठता है। जाहिर है यदि इस क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश होता है, तो इसका फायदा भी उन्हें ही मिलेगा। इस समय देश में खुदरा व्यापार करने वाली करीब 1 करोड़ 20 लाख छोटी दुकाने हैं। इन दुकानों से करीब 4 करोड़ लोगों की रोजी-रोटी चलती है। इसलिए सरकार के इस कदम से देश के खुदरा व्यापारियों पर विदेशी गाज गिरना तय है। सरकार और छोटे-मंझोले व्यापारियों के बीच रार अभी थमी नहीं है। देखना यह है 2013 इस मामले में क्या फैसला सुनाता है।
2012 में मेरठ, दिल्ली, मुंबई, बंगलरू, देहरादून समेत 57 बड़े शहरों में हर 25 मिनट पर एक महिला के छेड़छाड़ हुई, जबकि हर एक घंटे में दुष्कर्म और अपहरण की वारदातें अंजाम दी गर्इं। एक अनुमान के मुताबिक भारत में 2012 में हुए कुल अपराध का 60-70 प्रतिशत महिलाओं से जुड़ा हुआ रहा। इस साल देश की राजधानी में 500 से ज्यादा बलात्कार के मामले दर्ज किए गए। यह 2011 की अपेक्षा 18 प्रतिशत ज्यादा है। ऐसी घटनाओं को लेकर यह धारणा बनने लगी थी कि ‘होना जाना कुछ नहीं’। दिल्ली में 23 साल की युवती के साथ हुए बहशियाना दुष्कर्म के बाद समूचे देश में हुए विरोध प्रदर्शनों में जनता का यही गुस्सा मौजूद था। इस हिंसक प्रदर्शन में 50 से ज्यादा पुलिसकर्मी और 100 से ज्यादा प्रदर्शनकारी घायल हुए। युवती के लिए न्याय मांगने वालों पर लाठियां फटकारी गर्इं, आंसू गैस के गोले छोड़े गए और कड़ाके की ठंड में उनके ऊपर पानी की बौछार डाली गई। दुष्कर्म की तरह दिल्ली सरकार के इस कारनामे को भी अमानवीयता कहा गया। उम्मीद की जानी चाहिए कि नए साल में इस तरह की घटनाओं पर रोक लगे।
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