देवेन्द्र प्रताप
सेव द चिल्ड्रेन और वर्ल्ड विजन नामक संस्था की ओर से प्रस्तुत द न्यूट्रीशन बैरोमीटर: गॉजिंग नेशनल रेस्पांसेज टू अंडरन्यूट्रीशन (2012) नामक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 50 प्रतिशत से ज्यादा बच्चों का वजन सामान्य से बहुत कम है। पोषक तत्वों की कमी के चलते उनकी लंबाई भी कम हो गई है। इतना ही नहीं महिलाओं के लिए दर्जनों योजनाओं के अस्तित्व में होने के बावजूद अभी भी देश में 70 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। यह रिपोर्ट किसी भी संवेदनशील मन को झकझोर देने के लिए काफी है। इस रिपोर्ट के प्रस्तोता कुपोषण के लिए देश की गरीबी को सबसे ज्यादा जिम्मेदार ठहराते हैं।
सेव द चिल्ड्रेन की ही एक अन्य रिपोर्ट ‘ए लाइफ फ्री फ्राम हंगर-टैकलिंग चाइल्ड मालन्यूट्रिशन (2012)’ के अनुसार, ‘देश के गरीब घरों में जन्मे इन बच्चों को अगर कुपोषण से बचाया जाए, तो वयस्क होने पर वे ज्यादा कार्यक्षमता के साथ उत्पादक कामों को अंजाम दे सकते हैं।’ यानी समाज में फैली इस तरह की मान्यता कि -गरीबों के बच्चे ‘बुद्धि’ के कामों को उतनी अच्छी तरह नहीं कर सकते, जैसे प्रोफेसर साहब का बच्चा- सरासर गलत है। इतना ही नहीं अगर सरकार देश के हर बच्चे का स्वास्थ्य सुधारने पर ध्यान दे, उनकी आय अर्जन की क्षमता को 46-50 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। सरकार भले ही गरीब बच्चों की सेहत सुधारने के नाम पर पैसे का रोना रोती हो या फिर अन्य बहाने करती हो या फिर जो पैसा इस काम में लग भी रहा है, वह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता हो, लेकिन इसका एक और नुकसान यह है कि इससे देश को हर साल अरबों रुपये का नुकसान होता है।
हमारा भोजन पौष्टिक होना चाहिए। शरीर में पोषक तत्वों की कमी से कई तरह के रोग हो सकते हैं। जैसे- विटामिन सी की कमी से स्कर्वी रोग, डी से रिकेट्स, आयरन की कमी से एनीमिया, कैल्शियम से हड्डियों की कमजोरी आदि रोग हो जाते हैं। इससे बचने का एकमात्र उपाय संतुलित आहार है। भोजन में पोषक तत्वों की कमी के चलते आजकल हड्डियों में दर्द, कम उम्र में आर्थराइटिस जैसी दिक्कतें सामने आ रहीं हैं।
-डॉ. भावना गांधी, डायटीशियन, मेरठ
न्यूट्रिशन इनटेक इन इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण भारत की जनता अपने कुल व्यय का करीब 55 प्रतिशत, जबकि शहरी जनता 42.5 प्रतिशत भोजन पर खर्च करती है। देश के शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति कैलोरी की खपत ज्यादा होती है। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों में आय की तुलना में महंगाई में हुई बेतहाशा बढ़ोत्तरी के चलते प्रति व्यक्ति-प्रतिदिन कैलोरी के उपयोग में कमी देखी गई है। न्यूट्रिशन इनटेक इन इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण इलाकों में रहने वाली जनता के दैनिक उपभोग में लगभग 105 किलो कैलोरी और शहर की जनता के उपभोग में औसतन 40 किलो कैलोरी की कमी आई है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो कुपोषण की सबसे बड़ी वजह गरीबी है। दूसरी और सरकार यदि इसे नहीं रोक पा रही है तो इससे एक तरफ जहां देश का नुकशान हो रहा है, वहीं दावा कम्पनियां और एन जी ओ इससे अपना धंधा चमका रहे हैं।
कम वजन के सबसे ज्यादा बच्चे भारत में
सेव द चिल्ड्रेन और वर्ल्ड विजन नामक संस्था की ओर से प्रस्तुत द न्यूट्रीशन बैरोमीटर: गॉजिंग नेशनल रेस्पांसेज टू अंडरन्यूट्रीशन (2012) नामक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 50 प्रतिशत से ज्यादा बच्चों का वजन सामान्य से बहुत कम है। पोषक तत्वों की कमी के चलते उनकी लंबाई भी कम हो गई है। इतना ही नहीं महिलाओं के लिए दर्जनों योजनाओं के अस्तित्व में होने के बावजूद अभी भी देश में 70 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। यह रिपोर्ट किसी भी संवेदनशील मन को झकझोर देने के लिए काफी है। इस रिपोर्ट के प्रस्तोता कुपोषण के लिए देश की गरीबी को सबसे ज्यादा जिम्मेदार ठहराते हैं।
सेव द चिल्ड्रेन की ही एक अन्य रिपोर्ट ‘ए लाइफ फ्री फ्राम हंगर-टैकलिंग चाइल्ड मालन्यूट्रिशन (2012)’ के अनुसार, ‘देश के गरीब घरों में जन्मे इन बच्चों को अगर कुपोषण से बचाया जाए, तो वयस्क होने पर वे ज्यादा कार्यक्षमता के साथ उत्पादक कामों को अंजाम दे सकते हैं।’ यानी समाज में फैली इस तरह की मान्यता कि -गरीबों के बच्चे ‘बुद्धि’ के कामों को उतनी अच्छी तरह नहीं कर सकते, जैसे प्रोफेसर साहब का बच्चा- सरासर गलत है। इतना ही नहीं अगर सरकार देश के हर बच्चे का स्वास्थ्य सुधारने पर ध्यान दे, उनकी आय अर्जन की क्षमता को 46-50 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। सरकार भले ही गरीब बच्चों की सेहत सुधारने के नाम पर पैसे का रोना रोती हो या फिर अन्य बहाने करती हो या फिर जो पैसा इस काम में लग भी रहा है, वह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता हो, लेकिन इसका एक और नुकसान यह है कि इससे देश को हर साल अरबों रुपये का नुकसान होता है।
90 प्रतिशत महिलाओं में एनीमिया की शिकायत पाई जाती है। ऐसी महिलाओं को पौष्टिक आहार लेना चाहिए। हालांकि यह देश का दुर्भाग्य ही है कि आज भी इतनी तरक्की के बावजूद लोग अपने लिए पौष्टिक आहार का बंदोबश्त नहीं कर पाते। इसके चलते नौनिहालों में विकलांगता, रीड़ की हड्डी का खुलापन, वजन कम होना, फोड़ा होना आदि समस्याएं होती हैं। कई मामलों में तो उनकी असामयिक मौत भी हो जाती है। देश से गरीबी मिटे, तो कई रोग खुद मिट जाएंगे।वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में रोगों के उपचार के लिए सरकारें जितना धन व्यय करती हैं, अगर वे वास्तव में कुपोषण को देश से मिटाने के लिए ईमानदारी पूर्ण प्रयास करें, तो सेहत के ऊपर खर्च किए जाने वाले कुल व्यय में 20 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आ सकती है। भोजन में पोषक तत्वों की कमी का असर बच्चों के दिमागी और शारीरिक विकास पर भी पड़ता है। यही वजह है कि कुपोषित बच्चे शिक्षा ग्रहण करने में पीछे रह जाते हैं। विश्व बैंक की ‘इंडियाज अंडरनोरिश्ड चिल्ड्रेन : ए कॉल फॉर रिफॉर्म एंड एक्शन’ रिपोर्ट के मुताबिक कुपोषण से भारत की अर्थ व्यवस्था को सालाना ढाई अरब अमेरिकी डॉलर का घाटा होता है। दूसरी ओर सरकार की ओर से शुरू की गई मनरेगा योजना के कारण गरीबों के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा।
-डॉ. किरन गुगलानी, प्रसूति रोग विशेषज्ञ
हमारा भोजन पौष्टिक होना चाहिए। शरीर में पोषक तत्वों की कमी से कई तरह के रोग हो सकते हैं। जैसे- विटामिन सी की कमी से स्कर्वी रोग, डी से रिकेट्स, आयरन की कमी से एनीमिया, कैल्शियम से हड्डियों की कमजोरी आदि रोग हो जाते हैं। इससे बचने का एकमात्र उपाय संतुलित आहार है। भोजन में पोषक तत्वों की कमी के चलते आजकल हड्डियों में दर्द, कम उम्र में आर्थराइटिस जैसी दिक्कतें सामने आ रहीं हैं।
-डॉ. भावना गांधी, डायटीशियन, मेरठ
न्यूट्रिशन इनटेक इन इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण भारत की जनता अपने कुल व्यय का करीब 55 प्रतिशत, जबकि शहरी जनता 42.5 प्रतिशत भोजन पर खर्च करती है। देश के शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति कैलोरी की खपत ज्यादा होती है। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों में आय की तुलना में महंगाई में हुई बेतहाशा बढ़ोत्तरी के चलते प्रति व्यक्ति-प्रतिदिन कैलोरी के उपयोग में कमी देखी गई है। न्यूट्रिशन इनटेक इन इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण इलाकों में रहने वाली जनता के दैनिक उपभोग में लगभग 105 किलो कैलोरी और शहर की जनता के उपभोग में औसतन 40 किलो कैलोरी की कमी आई है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो कुपोषण की सबसे बड़ी वजह गरीबी है। दूसरी और सरकार यदि इसे नहीं रोक पा रही है तो इससे एक तरफ जहां देश का नुकशान हो रहा है, वहीं दावा कम्पनियां और एन जी ओ इससे अपना धंधा चमका रहे हैं।
कम वजन के सबसे ज्यादा बच्चे भारत में
- -कुपोषण के संबंध में विश्व बैंक की रिपोर्ट ‘इंडियाज अंडरनोरिश्ड चिल्ड्रेन : ए कॉल फॉर रिफॉर्म एंड एक्शन’ के अनुसार भारत में औसत से भी कम वजन के बच्चों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है। देश में कुपोषित बच्चों की यह संख्या अफ्रीका के सबसे गरीब मुल्कों की तुलना में भी दोगुनी से ज्यादा है।
- देश में पांच वर्ष से कम के 75 प्रतिशत बच्चों में आयरन और करीब 57 प्रतिशत बच्चों में विटामिन ए की कमी है। करीब 85 प्रतिशत जिलों में रहने वाले लोगों के आहार में आयोडीन की बेहद कमी है।
- वर्ल्ड बैंक के अनुसार भारत में बाल-मृत्यु की 50 प्रतिशत घटनाओं की सबसे बड़ी वजह कुपोषण है। मलेरिया, डायरिया और न्यूमोनिया से होने वाली बाल-मृत्यु की घटनाओं के लिए कुपोषण की स्थिति 50 प्रतिशत से भी ज्यादा है।
- भारत में कुपोषण खत्म करने के लिए चलाई जाने वाली योजनाओं के बारे में वर्ल्ड बैंक का मानना है, ‘देश में जो योजनाएं चलाई जा रही हैं उनका मुख्य जोर बच्चों का पेट भरने पर ही ज्यादा होता है, न कि पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने पर।’
- औसत से कम वजन के बच्चों की तादाद शहरों में 38 प्रतिशत, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 50 प्रतिशत है। देश के 45.4 प्रतिशत लड़कों की तुलना में 53.2 प्रतिशत लड़कियों में औसत से कम वजन होने की समस्या ज्यादा है।
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