रविवार, 10 मार्च 2013

नहीं रुक रहा पलायन

                                                           देवेन्द्र प्रताप
भारत में विकास के लाख दावों के बावजूद आज भी पलायन बड़ी समस्या बना हुआ है। पलायन की जब भी बात होती है, आमतौर पर लोगों की निगाह में सबसे पहले यूपी और बिहार राज्यों की तस्वीर उभरती है। इस समय किसी एक प्रांत से उसी प्रांत में या एक प्रांत से दूसरे किसी प्रांत में रोजी रोटी के लिए पलायन कर गए लोगों की संख्या पिछले एक दशक में 9 करोड़ 80 लाख हो गई है। इसमें 6 करोड़ 10 लाख लोगों ने एक गांव से उसी प्रांत के किसी अन्य गांव में पलायन किया, जबकि 3 करोड़ 60 लाख लोग रोजगार की तलाश में अपने गांव को छोड़कर शहर में चले गए।
रोजगार देने में महाराष्ट्र सबसे आगे
इस समय भले ही गुजरात और नरेन्द्र मोदी का खूब गुणगान किया जा रहा हो, लेकिन रोजगार देने में महाराष्ट्र सबसे आगे है। महाराष्ट्र में आने वालों की तादाद यहां से जाने वालों की तादाद से कहीं ज्यादा है। अमेरिकन इंडिया फाउंडेशन की रिपोर्ट, ‘मैनेजिंग द एक्जोड्स-ग्राउंडिंग माइग्रेशन इन इंडिया’ के अनुसार पिछले एक दशक में कांग्रेस शासित राज्य महाराष्ट्र में आने वालों की तादाद यहां से जाने वालों की तादाद से 20 लाख 30 हजार रही। वहीं, देश की राजधानी और कांग्रेस शासित राज्य दिल्ली आने वालों की संख्या के आधार पर यह राज्य लोगों को रोजगार के लिए आकर्षित करने में दूसरे स्थान पर है। यहां पिछले एक दशक में करीब 10 लाख 70 हजार लोग रोजगार की तलाश में आए। गुजरात रोजगार देने में तीसरे स्थान (0.68लाख) पर है, जबकि हरियाणा रोजगार देने (0.67 लाख) में चौथे स्थान पर है।
पलायन में यूपी, बिहार अव्वल
देश के सबसे पिछड़े राज्यों में यूपी और बिहार की गिनती होती है। भारत सरकार की 11 वीं पंचवर्षीय योजना के अनुसार रोजी-रोटी की तलाश में यूपी से बाहर जाने वालों की तादाद यहां आने वालों की तादाद से 20 लाख 60 हजार ज्यादा रही। जबकि, बिहार से बाहर जाने वालों की संख्या यहां आने वालों की संख्या से 10 लाख 70 हजार ज्यादा रही।
1991 के बाद बढ़ा पलायन
जब हमारे देश में मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे, तो उन्होंने नई आर्थिक नीति को यह कहकर लागू किया था कि इससे रोजगार में बढ़ोत्तरी होगी और पलायन पर लगाम लगेगी। जबकि आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि पलायन रुकने के बजाय और बढ़ता गया। 1991 से 2001 के बीच 7 करोड़ 30 लाख लोगों ने अपनी खेतीबाड़ी और अपने ग्रामीण परिवेश को इसलिए अलविदा कह दिया, क्योंकि उनके पास रोजगार के पारंपरिक साधन या तो खत्म हो गए या फिर वे उनकी जरूरतों के लिए नाकाफी साबित हुए। इस आंकड़े में 5 करोड़ 30 लाख लोग ऐसे रहे, जिन्होंने उसी प्रांत के एक गांव को छोड़कर दूसरे गांव चले गए, जबकि करीब 2 करोड़ लोग गांव से शहरी इलाकों में चले गए। इस समयांतराल में करीब 30 करोड़ 90 हजार लोग अपना मूल स्थान छोड़ने को विवश हुए। यह संख्या हमारी जनसंख्या की 30 प्रतिशत के आसपास बैठती है। आज मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री हैं तथा अपने पहले की ही नीति को आगे बढ़ा रहे हैं। 1971 में पलायन की दर 13.6 प्रतिशत थी, यह 2001 में बढ़कर 14.7 प्रतिशत हो गई।
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