(सुनील कुमार)।
पश्चिमी जिले के बलजीत नगर इलाके के पहाड़ियों पर बसी झुग्गी बस्ती 5 जुलाई, 2017 को सुर्खियों में आई। इस इलाके के एक तरफ आनन्द पर्वत है जहां तमाम छोटी-छोटी फैक्ट्रियां हैं, दूसरी तरफ पटेल नगर स्थित है। यह इलाका जनसंख्या घनत्व के हिसाब से काफी सघन है। अगर इस इलाके में नया कुछ भी निर्माण करना है तो बिना पुरानी बसावट तोड़े नहीं हो सकता। यह इलाका सेंट्रलदिल्ली के करीब है जहां से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन, कनाट प्लेस कुछ कि.मी. दूरी पर है। इसलिए इस जमीन पर अब बड़े-बड़े पूंजीपतियों की गिद्ध नजर भी है। इससे कुछ ही दूरी पर कठपुतली कॉलोनी है जहां पर दिल्ली की पहली गगनचुम्बी ईमारत‘रहेजा फोनिक्स’ बनाने की योजना है, जिसको लेकर कठपुतली कॉलोनी निवासियों और सरकार के बीच कई वर्षों से तना-तनी का महौल है। कहीं बलजीत नगर की झुग्गियां तोड़ना किसी ऐसी परियोजना का ही हिस्सा तो नहीं है?
कठपुतली कॉलोनी में सरकार ने पहले घोषणा कर दी कि लोगों को फ्लैट बनाकर दिये जायेंगे, फिर उन्हें हटाना शुरू किया। इसके बाद कॉलोनी निवासियों ने प्रतिवाद शुरू कर दिया। उन्होंने कम्पनी से यह गारंटी मांगी कि यहां पर बसे सभी लोगों को फ्लैट देना सुनिश्चित किया जाये। और यह गांरटी कोर्ट में लिखित हो। इस मांग को ‘डेवलपर्स’ने मानने से इनकार कर दिया जिसके कारण लोगअस्थायी बने कैम्पों में नहीं गये। क्या कठपुतुली कॉलोनी से यह सीख लेकर बलजीत नगर की कॉलोनी तोड़ी गई है कि पहले तोड़ दो, फिर घोषित करो कि यह जमीन फलां पूंजीपति को दे दी गई है फलां काम के लिये ताकि लोग प्रश्न खड़ा नहीं करें।
बलजीत नगर में मजदूर वर्ग, निम्न मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग के लोग रहते हैं जिनमें से बहुसंख्यक जनता प्राइवेट सेक्टर में छोटे-मोटे काम करती है तो कुछ के पास छोटी दुकानें हैं। बलजीत नगर का एक क्षेत्र पहाड़ी है जिस पर वर्षों पहले (करीब 50-60 साल) से लोग रह रहे हैं। इस भाग में कई सालों की कड़ी मेहनत के बाद वे अपने लिए घर बना लिये हैं। इस पहाड़ी के पास आनन्द पर्वत, नेहरू बिहार से लगा हुआ भाग गड्ढ़े में था, जहां पर पानी इक्ट्ठा होता था और दिल्ली के दूसरे इलाके के मलवे इत्यादि लाकर वहां फेंके जाते थे। इसी भाग में दिल्ली में बाद में आये लोग अपने लिए रिहाईश बना कर 10-15 साल पहले से रहने लगे और धीरे-धीरे जमीन को ऊंचा करते रहे। जो भी मेहनत-मजदूरी करते और परिवार चलाने से पैसे बचाते उसको इकट्ठा करके अपने रहने की जगह ठीक करते। उसी पैसे में से या ब्याज पर लेकर घर ठीक करने के लिए पुलिस और डीडीए वाले को पैसे देते थे।
सुनीता प्रजापति, पत्नी रामबचन प्रजापति उत्तर प्रदेश की आजमगढ़ की रहने वाली है। वह करीब7-8 सालों से इस बस्ती में रह रही थी। सोनू (12 साल) और काजल (9 साल) नामक उनके दो बच्चे हैं। सोनू पटेल नगर में सातवीं कक्षा का छात्र है और काजल प्रेम नगर में चौथी की छात्रा है। सुनीता के पति रामबचन दिहाड़ी मजदूरी करते हैं औरसुनीता घरेलू सहायिका (डोमेस्टिक वर्कर) का काम करती है। पति को कभी काम मिलती है, कभी नहीं मिलती है; कभी मिलती भी है तो बिमारी के कारण नहीं जा पाते हैं। रामबचन का ईलाज बीपीएल कार्ड पर गंगाराम अस्पताल में चल रहा है।रामबचन को ज्यादातर दवाई बाहर से ही खरीदनी पड़ती है। सुनीता बताती हैं कि 5 जुलाई, 2017 को उनकी बस्ती तोड़ दी गई जिससे उनको कोई सामान निकालने का मौका नहीं मिला। पति के ईलाज का पेपर भी गिराये गये घर में दब गया। सुनीता रोते हुए बताती है कि अभी कुछ समय पहले ही वह साठ हजार रू. पुलिस और चालीसहजार रू. डीडीए को देकर घर बनाई थी। वह अपनी हाथ के छाले को दिखाती हुए बताती हैं कि बदरपुर खरीदना नहीं पड़े इसके लिए पत्थर लाकर पानी में भिगोती थी और हथौड़े से तोड़ती थी। सुनीता ने सत्तर हजार रू. 3 प्रतिशत ब्याज परलेकर घर बनाई थी। उनका कहना है कि वह हमसे पैसे भी ले गये और हमारे घर को भी तोड़ दिये।
बलजीत नगर में मजदूर वर्ग, निम्न मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग के लोग रहते हैं जिनमें से बहुसंख्यक जनता प्राइवेट सेक्टर में छोटे-मोटे काम करती है तो कुछ के पास छोटी दुकानें हैं। बलजीत नगर का एक क्षेत्र पहाड़ी है जिस पर वर्षों पहले (करीब 50-60 साल) से लोग रह रहे हैं। इस भाग में कई सालों की कड़ी मेहनत के बाद वे अपने लिए घर बना लिये हैं। इस पहाड़ी के पास आनन्द पर्वत, नेहरू बिहार से लगा हुआ भाग गड्ढ़े में था, जहां पर पानी इक्ट्ठा होता था और दिल्ली के दूसरे इलाके के मलवे इत्यादि लाकर वहां फेंके जाते थे। इसी भाग में दिल्ली में बाद में आये लोग अपने लिए रिहाईश बना कर 10-15 साल पहले से रहने लगे और धीरे-धीरे जमीन को ऊंचा करते रहे। जो भी मेहनत-मजदूरी करते और परिवार चलाने से पैसे बचाते उसको इकट्ठा करके अपने रहने की जगह ठीक करते। उसी पैसे में से या ब्याज पर लेकर घर ठीक करने के लिए पुलिस और डीडीए वाले को पैसे देते थे।
सुनीता प्रजापति, पत्नी रामबचन प्रजापति उत्तर प्रदेश की आजमगढ़ की रहने वाली है। वह करीब7-8 सालों से इस बस्ती में रह रही थी। सोनू (12 साल) और काजल (9 साल) नामक उनके दो बच्चे हैं। सोनू पटेल नगर में सातवीं कक्षा का छात्र है और काजल प्रेम नगर में चौथी की छात्रा है। सुनीता के पति रामबचन दिहाड़ी मजदूरी करते हैं औरसुनीता घरेलू सहायिका (डोमेस्टिक वर्कर) का काम करती है। पति को कभी काम मिलती है, कभी नहीं मिलती है; कभी मिलती भी है तो बिमारी के कारण नहीं जा पाते हैं। रामबचन का ईलाज बीपीएल कार्ड पर गंगाराम अस्पताल में चल रहा है।रामबचन को ज्यादातर दवाई बाहर से ही खरीदनी पड़ती है। सुनीता बताती हैं कि 5 जुलाई, 2017 को उनकी बस्ती तोड़ दी गई जिससे उनको कोई सामान निकालने का मौका नहीं मिला। पति के ईलाज का पेपर भी गिराये गये घर में दब गया। सुनीता रोते हुए बताती है कि अभी कुछ समय पहले ही वह साठ हजार रू. पुलिस और चालीसहजार रू. डीडीए को देकर घर बनाई थी। वह अपनी हाथ के छाले को दिखाती हुए बताती हैं कि बदरपुर खरीदना नहीं पड़े इसके लिए पत्थर लाकर पानी में भिगोती थी और हथौड़े से तोड़ती थी। सुनीता ने सत्तर हजार रू. 3 प्रतिशत ब्याज परलेकर घर बनाई थी। उनका कहना है कि वह हमसे पैसे भी ले गये और हमारे घर को भी तोड़ दिये।
इसी तरह की बात बर्फी देवी, पत्नी कल्याण शाह जयपुर की रहने वाली है और 13-14 साल से इस बस्ती में रहती हैं। बर्फी भी घरेलू सहायिका का काम करती है और पति मजदूरी करते हैं। बर्फी बताती हैं कि पुलिस तीस हजार रू. तथा डीडीए बीस हजार रू. घर बनाते समय लेकर गई थी। इसी तरह की बातें पुनम, पत्नी गुरूरचरण निवासी गौंडा और गीता, पत्नी संतोष निवासी आजमगढ़ बताती हैं कि उनके घर बनने पर पुलिस और डीडीए ने उनसे पैसे लेकर गये। गीता अपने तीन बच्चे सुमीत (11 साल), खुशी (9 साल), हर्षित (7 साल) और पति के साथ यहां रहती हैं। उनके बच्चों का जन्म यहीं का है। गीता कहती हैं कि उनके बच्चे पांचवी, चौथी और दूसरी कक्षा में प्रेम नगर सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। उनको चार तारीख को किताबें स्कूल से मिली थीं लेकिन पांच तारीख को झुग्गी टूटी तो किताबें उसी में दब गईं। बच्चे स्कूल गये हैं दुबाराकिताबें लाने के लिए (बातचीत के दौरान ही उनका बच्चा स्कूल से कुछ किताबें लेकर आता है और बताता है कि और दूसरी विषय का किताब नहीं मिला, खत्म हो गया है)। वह कहती हैं कि राशन मिल रहा है- लेकिन हमारा राशन कार्ड दब गया हैइसलिए हम लोग राशन लाने नहीं जा रहे हैं।
सूरजा देवी, पत्नी श्री तेज सिंह अलीगढ़ की रहने वाली हैं। वह बताती हैं कि सोलह साल से यहां रह रही हैं। इस जगह पर किकड़ के पेड़ हुआ करते थे और पानी जमा रहता था। यह जगह चार माले के बराबर गड्ढे में थी, इसको हम लोग धीरे-धीरे मलवे भड़कर ऊंचा किये हैं। पास में एक पहाड़ी को दिखाते हुए कहती हैं कि यह ऐसा लगता था कि कितना ऊंचा है। हम लोग यहां मिट्टी तेल से दिये जलाते थे और पानी दूर-दूर से लाते थे। अब पानी का टैंकर आता है लेकिन पानी पूरा नहीं मिलता तो हम लोग अभी भी दूसरी जगह जाकर पानी लाते हैं। यहां पर लोगों के घर बनने पर पुलिस औरडीडीए ने पैसा लिया है जबकि इस जमीन को हमने रहने योग्य बनाया है। आज बोल रहे हैं कि यह जमीन हमारा है।
इसी तरह की शिकायत दूसरे परिवार वाले कर रहे थे कि झुग्गी तोड़ने से पहले उनको किसी भी तरह की चेतावनी नहीं दी गई कि वे अपने समान को बचा पायें। वे लोग शाम पांच बजे तक जितनी झुग्गी तोड़ सकते थे तोड़े। अब उस इलाके को कंटीले तार से सरकार द्वारा घेरा जा रहा है। लोगों का कहना था कि पुलिस और डीडीए वालों ने उनसे पैसे ले लिये हैं, अब बिना किसी पूर्व सूचना की उनकी झुग्गी तोड़ रहे हैं। वोट मांगने आते हैं तोकहते हैं कि हम झुग्गी पक्का करा देंगे, आपको सभी व्यवस्था करा देंगे, वोट हमको दो। जीतने के बाद कहते हैं कि वह हमारा इलाका ही नहीं है, इसी तरह का आरोप वह निगम पार्षद आदेश गुप्ता व विधायक हजारी लाल पर लगाये।
कुछ लोगों का कहना है कि यहां पर कुछ अपराधिक तत्वों ने रोड के किनारे कब्जा करके घर बना रहे थे और डीडीए, पुलिस को पैसे नहीं दिये इसलिए टूटा। कुछ का मत था कि अपराधिक तत्वों की आपसी रंजिश में राजनीतिक पार्टी के लोगों केहित का भी टकराव था, जिसके कारण 25 जून को उसे तोड़ दिया गया और बाद में 5 जुलाई को इस बस्ती को भी तोड़ दिया गया।
प्रमोद बताते हैं कि 25 जून को जब सामने की कुछ झुग्गियां तोड़ी गईं तो हम लोग दो टाटा 407, दौ चैम्पीयन और दो बोलेरो गाड़ी से इस इलाके के सांसद मीनक्षी लेखी के घर गये थे। घर पर मीनाक्षी लेखी नहीं मिली, हमलोगों को अपने दफ्तर बुलाई। जब हमलोग वहां पहुंचे तो हम से अधिक संख्या में वहां पुलिस मौजूद थी और सांसद महोदया ने कहा कि ‘‘तुम लोगों की हिम्मत कैसे हुई हमारे घर पर जाने की, यहां क्यों नहीं आये?’’ पुलिस वालों से बोली कि सभी को बंद कर दो एक भी नहीं बचे। सांसद महोदया के इस रूख से लोग डर गये और माफी मांगे। मीनक्षी लेखी ने कहा कि वह सरकारी जमीन है तुम लोग अवैध कब्जे किये हो और वह जगह तुम को छोड़नी होगी।
लोग झुग्गी टूटने के बाद दिल्ली सरकार के पास भी गये थे जहां से उनसे कहा गया की ‘हम इसमें कुछ नहीं कर सकते हमारे पास कोई पावर नहीं है, आप हमें प्रूफ दो, हम कोर्ट में केस कर सकते हैं।’ कुछ दिन पहले ही दिल्ली सरकार ने कहा था कि हमने कानून पास कर दिया है कि अब कोई झुग्गी नहीं तोड़ी जायेगी। 11 जुलाई को झुग्गी वाले दो-दो सौ रू. प्रति झुग्गी इक्ट्ठा कर डीडीए दफ्तर (आईटीओ) गये थे। लेकिन वहां भी उनकी बात नहीं सुनी गई और उनसे 2005 का दस्तावेज मांगा गया, लेकिन उन लोगों के पास 2008-09 के दस्तावेज मौजूद हैं।
कुछ लोगों का कहना है कि यहां पर कुछ अपराधिक तत्वों ने रोड के किनारे कब्जा करके घर बना रहे थे और डीडीए, पुलिस को पैसे नहीं दिये इसलिए टूटा। कुछ का मत था कि अपराधिक तत्वों की आपसी रंजिश में राजनीतिक पार्टी के लोगों केहित का भी टकराव था, जिसके कारण 25 जून को उसे तोड़ दिया गया और बाद में 5 जुलाई को इस बस्ती को भी तोड़ दिया गया।
प्रमोद बताते हैं कि 25 जून को जब सामने की कुछ झुग्गियां तोड़ी गईं तो हम लोग दो टाटा 407, दौ चैम्पीयन और दो बोलेरो गाड़ी से इस इलाके के सांसद मीनक्षी लेखी के घर गये थे। घर पर मीनाक्षी लेखी नहीं मिली, हमलोगों को अपने दफ्तर बुलाई। जब हमलोग वहां पहुंचे तो हम से अधिक संख्या में वहां पुलिस मौजूद थी और सांसद महोदया ने कहा कि ‘‘तुम लोगों की हिम्मत कैसे हुई हमारे घर पर जाने की, यहां क्यों नहीं आये?’’ पुलिस वालों से बोली कि सभी को बंद कर दो एक भी नहीं बचे। सांसद महोदया के इस रूख से लोग डर गये और माफी मांगे। मीनक्षी लेखी ने कहा कि वह सरकारी जमीन है तुम लोग अवैध कब्जे किये हो और वह जगह तुम को छोड़नी होगी।
लोग झुग्गी टूटने के बाद दिल्ली सरकार के पास भी गये थे जहां से उनसे कहा गया की ‘हम इसमें कुछ नहीं कर सकते हमारे पास कोई पावर नहीं है, आप हमें प्रूफ दो, हम कोर्ट में केस कर सकते हैं।’ कुछ दिन पहले ही दिल्ली सरकार ने कहा था कि हमने कानून पास कर दिया है कि अब कोई झुग्गी नहीं तोड़ी जायेगी। 11 जुलाई को झुग्गी वाले दो-दो सौ रू. प्रति झुग्गी इक्ट्ठा कर डीडीए दफ्तर (आईटीओ) गये थे। लेकिन वहां भी उनकी बात नहीं सुनी गई और उनसे 2005 का दस्तावेज मांगा गया, लेकिन उन लोगों के पास 2008-09 के दस्तावेज मौजूद हैं।
झुग्गी-बस्ती को लेकर सभी पार्टियां कहती हैं कि जहां झुग्गी वहां मकान देंगे। लेकिन सरकार बनते ही वह अपने वायदों से मुकर जाती है और उसकी जगह इन बस्तियों को तोड़ना शुरू कर देती हैं।1989 में सरकार ने बस्तियों की बेहतरी के लिये‘सीटू अपग्रेडेशन’ को अच्छा माना और कहा किआमतौर पर बस्तियों को पुर्नवासित करने की बजाय सीटू अपग्रेडेशन पर ध्यान देना चाहिए। इसमें स्पष्ट कहा गया है कि जिस विभाग की जमीन है अगर उसको फिलहाल में उस जमीन की आवश्यकता नहीं है तो उसी जगह पर बस्ती वालों को बसाना चाहिए। सरकार के इतने स्पष्ट निर्देश के बाद भी बस्तियों को क्यों तोड़ा जा रहा है? बलजीत नगर में डीडीए कौन सी परियोजना ला रही है या किसको यह जमीन दी गई है, उसका खुलासा डीडीए को करना चाहिए। भारत के प्रधानमंत्रीबोलते हैं कि 2021 तक सभी लोगों को मकान दे दिया जायेगा, तो क्या सरकार की यह योजना है कि2021 से पहले-पहले सभी बस्ती को तोड़ कर लोगों को बेदखल कर दिया जाये? प्रधानमंत्री जी, क्या बिना पूर्व सूचना व बिना पुनर्वास, बस्तियों को तोड़ना उचित है?
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