अंजनी कुमार
मारूती सुजुकी, मानेसर के मजदूर एक बार फिर 7 अक्टूबर 2011 से आंदोलन की राह पर हैं। 32 दिन के हड़ताल के बाद 30 सितंबर 2011 को हुए समझौते अमल को अभी हफ्ता भर भी नहीं गुजरा कि एक बार फिर मारूती सुजुकी के प्लांट न. 2 पर प्रबंधन ने 1200 मजदूरों को गेट के भीतर आने से रोक दिया। यह एक लाकआउट की तरह है। ऐसा पिछली बार भी इसी तरह का लाकआउट किया गया था। उस समय प्रबंधन ने काम करने वाले सारे ही मजदूरों को बाहर कर दिया था। इस बार पहली षिफ्ट के सारे मजदूर अंदर थे। उन्होंने बाहर निकाले गए मजदूरों के पक्ष में काम रोक दिया और परिसर से बाहर जाने से इंकार कर दिया। यह खबर मारूती सुजुकी के अन्य प्लांट तक पहुंची और मानेसर स्थित सुजुकी पावरट्रेन इंडिया प्रा. लि., सुजुकी मोटरसाइकल इंडिया प्रा. लि. व मारूती सुजुकी इंडिया लि. के मजदूरों ने काम ठप्प कर दिया। मारूती सुजुकी प्रबंधन समझौते के बावजूद हड़ताल पर गए मजदूरों को वापस लेने को तैयार नहीं है। प्रबंधन न केवल हड़ताल कर रहे मजदूरों पर पुलिस-प्रशासन से बलप्रयोग के लिए उकसा रहा है साथ ही वह नीजी गंडों का भी खुला प्रयोग कर रहा है। प्रबंधन एक तरफ समझौते के मुताबिक बर्खास्त 44 मजदूरों को प्रक्रिया द्वारा वापस लेने की बात कर रहा है और दूसरी और समझौते की स्याही सूखी भी न थी कि 1200 मजदूरों को निकाल बाहर कर दिया। मजदूरों में गुस्सा स्वभाविक था। आज मानेसर में स्थित मारूती सुजुकी के पांचों प्लांट में हजारों मजदूर हड़ताल पर हैं और वहां काम ठप्प है। प्रबंधन ठेकेदारों के माध्यम से लाए गए मजदूरों से जोरजबरदस्ती कर काम कराने की जुगत में है और इसके लिए वह मजदूरों को हिंसा के लिए उकसा भी रहा है पर मजदूरों की एकता के सामने इस तरह के प्रयोग अभी तक सफल नहीं हो सके हैं। इस बीच प्रबंधन प्रेस बयान में फैक्टरी के अधिकारी व मजदूरों पर हड़ताली मजदूरों द्वारा हमले में घायल होने को बार बार दोहरा रहा है पर इस बयान की सच्चाई को अभी तक पेश नहीं कर पाया है। एक भी घायल सुपरवाइजर, प्रबंधक अधिकारी या काम पर लगे मजदूर को न तो अस्पताल में और न ही पुलिस डायरी में दर्ज किया गया है। हां, इस बीच सुजुकी मोटरसाइकल प्लांट में ठेकेदारों ने प्रबंधकों के शह पर मजदूरों पर पिस्टल व बीयर की बोतल से हमला जरूर किया जिसमें तीन मजदूरों को चोट आई। इस संदर्भ में ठेकेदार की गिरफ्तारी भी हुई है। यह मारुती सुजुकी प्रबंधन ही है जो न तो मजदूर, प्रबंधन व सरकार के प्रतिनीधियों के बीच हुए समझौते को लागू कर रहा है और न ही मजदूरों के किसी भी तरह के अधिकार को मान्यता देने को तैयार है। हर बार सरकार के दबाव में मजदूरों पर न केवल शर्तें लादी गई साथ ही उनके पुराने अधिकार भी छीन लिए गए। हर समझौता उपलब्धि के बजाय हार की तरह हुआ। पर प्रबंधन सारा दोष मजदूरों पर लाद कर फैक्टरी में ठेकेदारों के माध्यम से ठेका मजदूर प्रथा पर श्रम के लूट को अपनी संपन्नता में बदलने पर आतुर है। इसके पहले 29 अगस्त 2011 से 30 सितंबर २०११ के बीच मारूती सुजुकी प्लांट न. 2 में मुख्यतः इसी में काम करने वाले मजदूरों ने लाकआउट के खिलाफ एकजुट होकर खिलाफत किया। इस दौरान अन्य पांच प्लांट के मजदूरों ने दो दिन का कामबंदी किया था। गुडगांव व दिल्ली के मजदूर यूनियनों ने मजदूरों के पक्ष में एकजुट होकर हरियाणा सरकार पर लाकआउट को खत्म करने का दबाव बनाया। अंततः प्रबंधन, हरियाणा सरकार प्रतिनिधि व मजदूर प्रतिनिधियों की उपस्थिति में 1 अक्टूबर 2011 को तय हुआ कि सभी मजदूर 3 अक्टूबर 2011 से अपने अपने शिफ्ट के अनुसार काम पर आएंगे। 3 से 6 अक्टूबर के बीच ऐसा क्या हुआ जिससे एक बार फिर मजदूर आंदोलन की राह पर गए। मारूती सुजुकी प्रबंधन का दावा है कि मजदूर काम में जानबूझकर बाधा डाल रहे हैं और उन्हें समझौते के अनुसार वे इस तरह की कार्यवाई नहीं कर सकते। प्रबंधन ने यह भी दावा किया हड़तालियों बहुत से मजदूर हिस्सेदार नहीं हैं और हड़ताली मजदूर इन काम रहे मजदूरों पर हमला कर रहे हैं और काम में बाधा डाल रहे हैं। प्रबंधन इस बात को नहीं बता रहा है कि 6 अक्टूबर 2011 दूसरी शिफ्ट में आ रहे 1500 मजदूरों में से 1200 मजदूरों को गेट के अंदर काम पर आने से क्यों रोक दिया। इन मजदूरों में से अधिकांश कैजुअल मजदूर हैं। प्रबंधन यह नहीं बता रहा है कि वह या तो इन मजदूरों की छंटनी कर था या कंपनी का एक बार फिर लाकआउट कर रहा था। अंदर काम कर रह सशंकित मजदूरों ने शाम 4 बजे से काम रोक दिया और कंपनी परिसर से बाहर निकलने से मना कर दिया। इन मजदूरों के समर्थन में मानेसर में सुजुकी से जुड़े सभी प्लांट के मजदूरों ने काम रोक दिया और परिसर से बाहर जाने से इंकार कर दिया। इस बार हड़ताल व्यापक रूपलेकर आया है।
8 अक्टूबर 2011 को मारूती सुजुकी प्रबंधन ने प्रेस को बताया कि 355 कांट्रेक्ट मजदूरों को हड़ताली मजदूरों ने बुरी तरह पीटा है। बहरहाल 9 अक्टूबर तक इस संदर्भ में किसी मजदूर की गिरफ्तारी नहीं हुई थी और न ही किसी घायल मजदूर के भर्ती होने की खबर आई। पर 9 अक्टूबर की सुबह में सुजुकी मोटरसाइकल प्लांट में हड़ताल कर रहे मजदूरों पर गंुडों ने षराब की बोतलों से हमला जरूर किया जिसमें 3 मजदूर बुरी तरह घायल हुए। इन गंुडों ने हवा में पिस्टल से फायरिंग भी किया। सुजुकी के मजदूर खिड़की दौला थाना में प्रबंधन व उन गुंडों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के लिए थाने के सामने षाम 5 बजे तक इकठ्ठा रहे पर थानेदार ने मामला दाखिल करने से मना कर दिया। अंततः मजदूर इस संदर्भ में कमिश्नर को एक प्रपत्र ही सौंप पाये। इससे इतना पता चलता कि माहौल को प्रबंधक हिंसक रास्ते पर ले जाना चाहता है और इसके लिए वह मजदूरों को दोषी ठहरा देने के लिए दांवपेंच कर रहा है। 9 अक्टूबर 2011 को हड़ताल कर रहे मजदूरों से बातचीत से इतना तो जरूर पता चलता है कि फैक्टरी के भीतर कामकाज को प्रबंधन ने काफी पेचिदा बना रखा है। जून के महीने में 13 दिन के हड़ताल के बाद प्रबंधन ने मजदूरों की मूल मांग यूनियन बनाने का अधिकार को स्वीकार नहीं किया और इसे लंबित रखा। लेकिन मजदूरों से 26 दिन मुफ्त काम कराने की स्वीकृति जरूर ले लिया और इसे लागू भी किया। इसके बाद लगभग डेढ़ महीने के भीतर प्रबंधन ने चुनकर 58 मजदूरों को नौकरी से बाहर कर दिया जिसमें से 15 को वापस न लेने का नोटिस जारी कर दिया था। फैक्टरी के मजदूरों को गिरफ्त में लेने के लिए प्रबंधन ने 29 अगस्त को लाकआउट कर दिया और नई भर्ती लेने की घोषणा कर दिया। मजदूरों की एकजुटता व 32 दिनों के संघर्ष के बाद एक बार फिर समझौता हुआ। इस बार ४४ मजदूरों को बर्खास्तगी पर रखा गया जिसमें मारूती सुजुकी इंप्लाईज यूनियन के नेतृत्व व पदाधिकारी षामिल हैं। सभी मजदूरों से गुड कंडक्ट पर हस्ताक्षर करने की अनिवार्यता को लादा गया। यूनियन की मान्यता नहीं दी गई। इस समझौते के बाद काम के दूसरे दिन 4 अक्टूबर को मजदूरों को लाने के लिए बस नहीं भेजी गई। मजदूरों ने बताया कि 95 प्रतिशत मजदूर के काम का स्टेशन यानी वह जिस काम को पहले से करते आ रहे थे व जिसमें उनकी खूबी बनी हुई है उससे हटाकर दूसरे तरह के काम दिए गए। इससे एक तरफ मजदूरों को काम करने में दिक्कत आ रही थी और साथ ही उनकी उत्पादकता भी प्रभावित हो रही थी। प्रबंधन इस बात का फायदा यह आरोप लगाने में कर रहा था कि मजदूर अपना काम नहीं कर रहे हैं और काम में जानबूझकर बाधा डाल रहे हैं। मजदूरों ने बताया कि प्रबंधन ने गुड कंडक्ट फार्म के अतिरिक्त फार्म पर हस्ताक्षर कराया जिसमें 32 दिन के काम के बदले 64 दिन मुफ्त में काम करने की बाध्यता थी। 6 अक्टूबर को 44 बर्खास्त मजदूरों को वापस लेने के बजाय प्रबंधन ने 1200 मजदूरों को ही बाहर कर दिया। प्रबंधन मजदूरों को बड़े पैमाने पर कांट्रेक्ट पर रखता है। इससे इन मजदूरों को नियमित करने व उनके प्रति दायित्व से बच निकलता है। मारुती सुजुकी के मानेसर प्लांट के लिए ऐसे कांट्रेक्टरों की संख्या 52 है जो सस्ते में प्रबंधन को मजदूर मुहैया कराते हैं। कांट्रेक्ट मजदूर पिछले समय से चले आ रहे हड़ताल में सक्रिय भागीदारी करते रहे हैं। इस बार प्रबंधन इन मजदूरों को ही काम से निकाल दिया
है जिससे कि आगे आने वाले कांट्रेक्ट मजदूर हड़ताल जैसी कार्यवाईयों से अलग रहें। साथ ही ऐसे ही ठेकेदारों के द्वारा 9 अक्टूबर को हड़ताल कर रहे मजदूरों पर हमला भी करवाया। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी मजदूर डरने के बजाय आंदोलन का रास्ता चुनना ही बेहतर समझा। मजदूरों को विभिन्न श्रेणियां में बांटकर अकूत मुनाफा कमाने वाली इस कारपोरेट कंपनी हर बार जितना ही शातिराना रास्ता अख्तियार कर रही है मजदूरों का आंदोलन उतना ही व्यापक व गहरा हो रहा है। इस बार का हड़ताल मजदूरों के सामने कई सारी चुनौतियों के साथ आया है। मजदूरों के एक कदम पीछे हटने का फायदा प्रबंधन उस पर दस तरह
के षर्तों को लादकर जोर जबरदस्ती कर मजदूरों के काम के हालात को बद से बदतर बनाता गया है और उन्हें श्रम करने की मषीन में तब्दील कर देने का पूरा जोर लगाया है। हरियाणा की सरकार ने इसमें काफी सहयोग भी किया है। लेकिन इसके साथ मारूती सुजुकी के आम मजदूरों व उनके नेतृत्व को यह बात भी समझ में आया है कि एकता, एकदूसरे पर भरोसा, अन्य संगठनों से मोर्चा बनाकर प्रबंधन इनके तानेबाने के खिलाफ कैसे लड़ा जाय। प्रबंधन अपने अकूत मुनाफे में मजदूरों को किसी तरह की हिस्सेदारी नहीं देना चाहेगा। इसके लिए वह न तो यूनियन की मांग को स्वीकार करेगा और न ही राजनीतिक चेतना से लैस लोगों
को वह फैक्टरी के भीतर रहने देगा। ऐसे में निश्चय ही वह न केवल हिंसा का सहारा लेगा साथ ही वह राज्य मशीनरी का भी प्रयोग करेगा। मजदूरों व नागरिक समाज का यह दायित्व है कि न केवल प्रबंधन के इस तरह के षडयंत्र के खिलाफ एकजुट हो साथ ही मजदूरों के हक के पक्ष में उनके संघर्ष में हिस्सेदारी करे।
मारुती और मानेसर से आगे...
जवाब देंहटाएंदेवेंद्र्प्रताप जी , आपने कितनी मेहनत से यह लेख लिखा होगा न, पर क्या करे पूरे ही लेख की पोल खोल दी कम्वख्त मजदूरों ने ! :) बस अब तो यही गुनगुनाने का जी कर रहा ही कि ये लाल रंग कब इस देश को छोड़ेगा..............!!
क्षमा करें , देवेन्द्र प्रताप जी की जगह अंजनी कुमार जी पढ़े !
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