गुरुवार, 13 जून 2013

दमन के बाद और मजबूत हुआ असाल आन्दोलन

30 मई को ‘असाल’ कम्पनी के प्रबंधकों, ठेकेदारों ने ठेका मजदूर सुशील् कुमार की हत्या कर दी और इस हत्याकांड में उत्तराखंड सरकार, प्रशासन,श्रम विभाग बराबर के भागीदार हैं। 28 मई को कंपनी प्रबंधन द्वारा 170 प्रशिक्षित ट्रेनी मजदूरों को कंपनी से निकाल दिया और पूरी कंपनी को अप्रशिक्षित ठेका मजदूरों से चलाया गया। 28 मई को मजदूरों ने जिलाधिकारी,श्रम विभाग एवं एस.एस.पी. को अपनी लिखित शिकायत दी और कहा कि असाल कंपनी इंजीनियरिंग उद्योगों के अन्तर्गत भारी उद्योगों के तहत आती है। ऐसे उद्योगों में अप्रशिक्षित ठेका मजदूरों से कार्य करवाना मजदूरों को मौत के मुंह में धकेलने के समान है, कंपनी में मजदूरों को जान माल से खतरा है। मजदूरों की शिकायत पर कार्यवाही के नाम पर अपर जिलाधिकारी ने ए.एल.सी. पंतनगर को लिखकर अपना पल्ला झाड़ लिया और लेबर इंसपेक्टर ने 29 मई को कंपनी के प्रबंधकों के साथ में कंपनी का एक राउण्ड लगाकर, ज्यादातर समय प्रबंधकों के केबिन में बिताकर खानापूरी कर दी। जांच के समय कंपनी में कार्यरत स्थाई मजदूरों ने केबिन में घुसकर लेबर इंसपेक्टर को ललकारा कि जांच करनी है तो हमसे पूछो, हम बताते हैं कि सभी मजदूर ठेके के हैं। परन्तु लेबर इंसपेक्टर पर इसका कोई असर न हुआ और जांच पूरी हो गयी। 30 मई को प्रातः 7 बजे प्रेस मशीन पर कार्य करते समय ‘फोर्क लिफट’से कुचलकर/कटकर ठेका मजदूर सुशील कुमार की मौत हो गयी। सुशील कुमार को कंपनी में कार्य करते हुए महज 2 दिन हुए थे, उसके बावजूद उससे खतरनाक प्रेस मशीन चलवायी जा रही थी और फोर्क लिफट का चालक भी ठेके के तहत ही  कार्यरत था। हादसा इतना खतरनाक था कि सुशील कुमार के मस्तिष्क का गुदा 3-4 फिट की दूरी पर पड़ा था और शरीर गाड़ी के भीतर धंसा पड़ा था। कंपनी प्रबंधकों ने लाश को ठिकाने लगाने के लिए स्वीपरों को बुलाया तो स्थायी मजदूरों ने हाथ में डंडे थाम लिये और प्रबंधकों व ठेकेदारों को लाश को हाथ न लगाने को कहा। उस समय शिफट में महज 5 स्थायी मजदूर ही कार्यरत थे। स्थायी मजदूरों ने फोन से अपने मजदूर साथियों को घटना की सूचना दी। तुरंत ही कंपनी में आंदोलनरत 200 मजदूर एवं इंकलाबी मजदूर केन्द्र, नील ऑटो , वेरोक , सिरडी, बड़वे, ब्रिटानिया, इंपीरियल आटो, पारले, इंडोरेन्स आदि कंपनियों के मजदूर भारी संख्या में पहुंच गये और कंपनी का गेट जाम कर दिया। कुछ ही समय पश्चात एस.डी.एम., सी.ओ. भारी पुलिस फोर्स के साथ में कंपनी पहुंचे और मजदूरों को कंपनी गेट से लाश को निकलने देने को धमकाने लगे। मजदूरों ने एस.डी.एम. की धमकी की तनिक भी परवाह नहीं की और कंपनी प्रबंधकों एवं ठेकेदार के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर तुरंत गिरफतारी की मांग की। कुछ ही समय बाद भाजपा के क्षेत्रीय विधायक भी कंपनी पहुंच गये। एस.डी.एम., सी.ओ. व क्षेत्रीय विधायक प्रबंधकों को बचाने का खेल खेलने लगे। एस.डी.एम., क्षेत्रीय विधायक ने एक समझौता पत्र बनाया जिसमें मृतक की पत्नी को साढ़े पांच लाख मुआवजा, कंपनी में नौकरी, मृतक की पुत्री की पढ़ाई एवं शादी की जिम्मेदारी कंपनी की ओर से उठाने की बात दर्ज थी। मजदूरों ने इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ताओं को पत्र दिखाया तो उन्होंने उसे खारिज कर दिया और प्रंबधकों की गिरफ्तारी की मांग की। इस पर पर एस.डी.एम. ने मौखिक आश्वासन दिया कि सायं 4:00 बजे तक गिरफ्तारी हो जायेगी। इसके बाद एस.डी.एम. ने लाश को जाने देने के लिए कहा परंतु मजदूरों द्वारा इसका विरोध किया गया। इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकताओं ने एस.डी.एम. से पूछा कि समझौते में यह बात दर्ज नहीं है कि कल से कंपनी अप्रशिक्षित मजदूरों से चलायी जायेगी या नहीं ? इस पर एस.डी.एम ने कहा कि हां कंपनी चलेगी। इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ताओं ने एस.डी.एम. से लिखित में देने को कहा कि यदि कंपनी में मजदूरों को जान माल से नुकसान होगा तो इसकी जिम्मदारी स्वयं एस.डी.एम. की होगी। एस.डी.एम. इससे मुकर गयीं और मृतक की लाश पर राजनीति करने का आरोप लगाने लगीं। मजदूरों ने कहा कि राजनीति तो आप कर रही हैं, हम अपने मजदूर साथियों की सुरक्षा चाहते हैं। अंत में शाम लगभग 3:00 बजे कंपनी प्रबंधकों, एस.डी.एम एवं क्षेत्रीय विधायक द्वारा लिखित में दिया गया कि समस्या का समाधान होने तक कंपनी बंद रहेगी, मृतक की पत्नी को 10 लाख रु. मुआवजा एवं कंपनी में स्थायी नौकरी, मृतक की पुत्री की पढ़ाई की जिम्मेदारी कंपनी की होगी। मजदूरों ने गेट खोल दिया और लाश जाने दी। मजदूरों ने कंपनी गेट पर शिफ्ट  लगाकर मजदूरों को तैनात कर दिया कि कंपनी चल रही है अथवा नहीं। पहली जून को एस.डी.एम. की मध्यस्थता में वार्ता हुई। कंपनी प्रबंधन निकाले गये ट्रेनी मजदूरों को वापस लेने एवं स्थायीकरण के लिए पालिसी  बनाने को कुछ हद तक तैयार हुआ। कंपनी प्रबंधन सस्पेंड किये गये 5 स्थाई मजदूरों को घरेलू जांच में परिणाम के आधार पर ही फैसला लेने पर अड़ गया, एस.डी.एम. पांचो सस्पेंड किये गये मजदूर नेताओं की 200 मजदूरों की खातिर कुर्बानी देने का पाठ पढ़ाने लगा। असाल कंपनी में उत्पादन बंद होने से टाटा मोटर्स भी बंद हो गयी और साथ ही टाटा मोटर्स द्वारा अपनी 72 वेंडर कंपनियों का माल भी उत्पादन बंद होने के कारण वासप लौटाया गया। पांच-छः दिनों तक टाटा मोटर्स में उत्पादन ठप्प होने के बाद टाटा मोटर्स ने सरकार एवं प्रशासन पर दबाव बनाने  के लिए 10 जून तक कंपनी को बंद करने की घोषणा कर दी। टाटा मोटर्स का जी.एम. ‘असाल’ कंपनी के टॉप  मैनेजमेंट के साथ में देहरादून में मुख्यमंत्री से मिले। इसका तुरंत असर देखने को मिला। सिडकुल कें प्रबंधकों की एशोसिएशन तुरंत सक्रिय हो गयी  और अपनी-अपनी  कंपनी के मजदूरों को ‘असाल’ मजदूरों के आन्दोलन में शामिल न होने के लिए दबाव बनाने लगे। 4 जून को अपर जिलाधिकारी ने मजदूरों को समझौता न करने पर कंपनी को चालू करवाने की धमकी दी और कहा कि देखता हूं कि कौन कंपनी को चलाने रोकता है ? मजदूर नेताओं ने अपर जिलाधिकारी की घुड़की के आगे झुकने से इंकार कर दिया और कहा कि जिला प्रशासन यदि अपने लिखित वादे से मुकरता है तो इसके गंभीर परिणाम होगें। 4 जून की  रात में एस.डी.एम. भारी पुलिस फोर्स के साथ कंपनी पहुंच गये और मजदूरों को माल डिस्पेच करने देने के लिए कहने लगे। तुरंत ही कई कंपनियों से ट्रेड यूनियन पदाधिकारी मौके पर पहुंच गये। ‘असाल’ के मजदूर गाडि़यों के आगे लेट गये। 2 घंटे से भी अधिक समय की कसरत के बाद एस.डी.एम. को कंपनी से दबे पांव वापस लौटना पड़ा। 6 जून को रात में पुनः एस.डी.एम. भारी पुलिस एवं पी.ए.सी. के साथ मजदूरों को हटाने लगे। मजदूरों पर लाठी चार्ज किया गया और उनके कपड़े तक फाड़ दिये गये परंतु मजदूरों ने गेट नहीं छोड़ा। रात 8 बजे  डी.एम. ने अपने आवास पर वार्ता के लिए बुलाया, वार्ता विफल हो गयी। डी.एम. ने मजदूरों को धमकाया कि यह तुम्हारे लिये आखिरी मौका है, शासन ने आदेश दिया है, मै कुछ नहीं कर सकता। वार्ता के बाद मजदूर नेता कंपनी गेट पहुंचे और गेट पर डट गये। रात्रि 12 बजे लगभग 43 मजदूरों को गिरफतार कर लिया। बचे हुए मजदूरों ने अगली सुबह पुनः गेट जाम कर दिया और पुलिस ने पुनः 55 मजदूरों को गिरफतार कर लिया। सरकार और प्रशासन को उम्मीद थी कि मजदूरों को लाठी-जेल के भय से खामोश कर दिया जायेगा। परंतु ‘असाल’ मजदूरों ने सिडकुल में अपने जुलुसों एवं कंपनी प्रबंधन की शवयात्रा निकालकर काफी हद तक मजदूरों की सहानुभूति हासिल कर ली थी। 
जिस समय प्रशासन द्वारा 98 मजदूरों को हल्द्वानी, नैनीताल एवं अल्मोड़ा भेजने की तैयारी की जा रही थी, ठीक इसी समय जे.बी.एम., इन्डोरेन्स, वेरोक , सिरडी आदि कंपनियों की पूरी शिफ्टों  से सैकड़ों मजदूर डी.एम. कोर्ट पहुंच गये। मजदूरों ने हत्यारे असाल के प्रबंधकों को बचाने एवं निर्दोष मजदूरों को जेल भेजने के विरोध में डी.एम. कोर्ट में जुलुस निकाला। 9 जून को मुख्यमंत्री विजय बहुगुंणा के हल्दूचैड़ यात्रा पर सभा में मजदूरों ने पर्चे बांटे और दूसरी ओर डी.एम के आवास पर प्रदर्शन किया। शासन-प्रशासन पूरी निर्लज्जता के साथ में हत्यारे असाल प्रबंधन को बचा रहे हैं और मजदूरों के बर्बर दमन पर उतारू हैं। असाल प्रबंधन शासन-प्रशासन के सहयोग से पुनः अप्रशिक्षित ठेका मजदूरों से कंपनी चलवाकर खून की होली खेलने पर आमादा है। वहीं दूसरी तरफ मजदूर नवंबर 2012 से असंवैधानिक ट्रेनी के धंधे के खिलाफ अपनी यूनियन पंजीकृत करवाने के लिए संघर्षरत हैं।
 असाल के मजदूरों का संघर्ष दमन के बाद और मजबूत हुआ। 11 जून की महापंचायत में सिडकुल की सभी ट्रेड यूनियनों भागेदारी की और आगे की रणनीति बनाई। सुबह से हो रही बरसात  में भीगते हुए लगभग 400 मजदूरों ने अपनी शिफ्टों के हिसाब से भागेदारी की। इस बीच जेल से छूटकर आये मजदूरों ने भी नारेबाजी करते हुए अपने उत्साह को जाहिर किया। 
14 जून के  मुख्यमंत्री के गदरपुर आगमन पर ट्रेड यूनियनों द्वारा पर्चा व काले झंडे लेकर  प्रदर्शन करने की योजना बनाई गयी। असाल के मजदूरों सहित अन्य फैक्टरियों में हो रहे अन्याय के खिलाफ डी.एम. कोर्ट  पर क्रमिक अनशन शुरु करने की घोषणा की गयी जिसमें सभी ट्रेड यूनियनों ने सिडकुल मजदूर यूनियन संघर्ष मोर्चा के नेतृत्व में भागेदारी करने की घोषणा की। यूनियनों द्वारा आर्थिक सहयोग भी किया गया। 16 जून को होने वाली  हल्दूचौड़  की महापंचायत को और अधिक भागेदारी के साथ  सिडकुल में आम हड़ताल की घोषणा पर विचार चल रहा है।
महापंचायत में, ब्रिटानिया श्रमिक संघ, नेस्ले कर्मचारी संगठन, पारले मजदूर संघ, वोल्टाज श्रमिक संगठन, सिरडी श्रमिक संगठन, थाई सुमित नील आटो कामगार संगठन, भूमिहीन मजदूर किसान संघर्ष समिति,सी.पी.एम.,एक्टू, वेरोक वर्कर्स यूनियन, इन्डोरेन्स वर्कर्स यूनियन, टाटा मोटर्स मजदूर संगठन, आनन्द निशिकावा क. इम्पलाइज यूनियन, क्रांतिकारी जनवादी मोर्चा, संयुक्त रोडवेज परिषद शामिल थे।
      रुद्रपुर में हुए  असाल के मजदूरों के दमन के खिलाफ इंकलाबी मजदूर केन्द्र ने दिल्ली में उत्तराखंड निवास पर विरोध प्रदर्शन किया व रेजिडेंस कमिश्नर के द्वारा ज्ञापन मुख्यमंत्री को भेजा ।


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