लगभग ढाई साल से गुड़गाँव मानेसर में स्थित मारुति कार फैक्टरी के कामगार आन्दोलन
कर रहे हैं। मजदूर आन्दोलन को कमजोर करने के लिये फैक्टरी मालिक-मैनेजमेण्ट, लेबर-आफिस, पुलिस और सरकार ने सब तरह के हथकण्डे अपना लिये। मजदूर नेताओं को घूस देकर, डरा-धमका
कर, परिवारों पर दबाव बना कर भी जब काम नहीं बना तो पिछले साल 18 जुलाई का
मजदूर और मैनेजमेण्ट के गुण्डों (बाउनसरों) में झड़प करवाया गया और फैक्टरी में आग लगने और मारपीट के फलस्वरूप कई मजदूरों को
चोट आई और इस अफरातफरी में मैनेजमेण्ट के एक आदमी की मौत भी हो गई। मैनेजमेण्ट ने
शासन-प्रशासन से मिलकर इस घटना के बहाने 2500 मजदूरों को काम से बाहर निकाल दिया और पुलिस ने 147 मजदूरों को गिरफ्तार कर
लिया। 9 महीने बाद भी जाँच और आरोप के सिद्ध हुए बिना ये मजदूर जेल में बन्द हैं।
परिवार में किसी के मौत हो जाने पर भी उन्हें अन्तिम-दर्शन तक के लिये छोड़ा नहीं
जाता है। जेल के अन्दर तरह-तरह की यातना देकर मजदूरों का साहस को तोड़ने की करने की
पूरी कोशिश की जा रही है।
मजदूरों की जायज माँगों और उनके गिरफ्तार साथियों की रिहाई के लिये मजदूरों और
उनके समर्थकों ने दिल्ली, गुड़गाँव, कैथल, करनाल और देश-विदेश में भी धरना-प्रदर्शन
किया है। मजदूरों के इस आन्दोलन को कमजोर करने के लिये कैथल में धरने पर बैठे 100 लोगों
को पिछले 18 मई को गिरफ्तार कर लिया गया। अगले
दिन उनके समर्थन में आये मजदूरों, परिवारजनों और
कार्यकर्ताओं पर पानी की तेज धार, आँसु-गैस और बर्बर लाठी-चार्ज से दमन का
ताण्डव किया गया। महिलाओं-बच्चों-बुढ़ों तक को नहीं छोड़ा गया और समर्थकों को हिरासत
में लेकर उन पर झूठे केस ठोक दिये गये। चूँकि अखबार और टीवी चैनल कम्पनियों के प्रचार के पैसे से चलते हैं और इनमें
इन्हीं पूँजीपतियों का ही पैसा लगा होता है, जाहिर सी बात है पूरे आन्दोलन और सरकारी दमन की खबर या तो दबा दी गई या आधी-अधूरी
या गलत रूप में लोगों के बीच में बतायी गयी। शायद आप में से कुछ यह सोच रहे होंगे
कि मारुति के मजदूरों और बेरोजगारों से हमें क्या? अखबारों से यह बात भी फैलाई
गई कि मामले को तूल पकड़वाने के लिये मजदूर ही जिम्मेदार है। पर क्या यह सच है? मारुति के आन्दोलन में बहुत सारी बाते हैं—जो हमारी जिंदगी से भी जुड़ी हुई
है। आप लोगों की ही तरह मारुति के मजदूर भी एक लम्बे समय से महसूस कर रहे थे कि एक
तरफ तो मजदूरों की मेहनत से मालिक का मुनाफा लगातार बढ़ रहा है वहीं उनका वेतन
ज्यों का त्यों है। कई मजदूरों का वेतन दस-दस साल काम करने पर भी नहीं बढ़ता है और
मालिक की ‘जब चाहे निकाल दो’ की ही नीति कायम रहती है। ज्यादातर फैक्टरियों में कई सालों के बाद भी अप्रेण्टिस
मजदूरों को नियमित नहीं किया जाता है और तो और वेतन इतना कम कि बताते हुए भी शर्म
आये! नियमित कार्य के लिये भी ठेका मजदूरों से कम से कम दाम पर काम करवाया जाता है, जो न सिर्फ गैर-कानूनी है बल्कि इससे नियमित मजदूरों पर भी कम दाम पर काम करने
का दबाव बनता है। मालिक और मैनेजरों से ऐसे व्यवहार करना पड़ता है जैसे वे धरती पर
भगवान के अवतार हों और वहीं वे मजदूरों के साथ हमेशा बदतमीजी से व्यवहार करते हैं।
एक तरफ तो मालिकों को सरकार, पुलिस, लेबर-अधिकारी सभी का संरक्षण प्राप्त होता है वहीं मजदूरों की जायज से जायज माँग
और शिकायतों का भी कुछ नहीं होता है। कम्पनी या मालिक का नाम बदल दीजिए मजदूरों की
यह हालात कमोबेश हर जगह है। क्या मजदूर चुपचाप सहते रहेंगे? आज देश के कोने-कोने में मजदूर अपने शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष करने को
तैयार हो रहे हैं। मारुति के मजदूरों ने भी अपने शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष करने के लिए
सामूहिक रूप से संगठन का निर्माण किया। सभी ने बड़ी एकता के साथ, नियमित और ठेका, नये
और पुराने सभी मजदूरों की सामूहिक माँगों को ही संगठन का आधार बनाया, जिससे एक
मजबूत ताकत के तौर पर संगठन को सभी मजदूरों का साथ मिल पाया। बस, यही तो बात है जिससे मालिकों पर आसमान गिर जाता है। उन्हें लगने लग जाता है कि
मजदूर संगठित हों जायेंगे तो उन्हें पहले की तरह दबाया और उत्पीड़ित नहीं किया जा
सकता है। गुण्डे और पुलिस, कानूनी और गैर कानूनी सभी तरीके से आन्दोलन को कमजोर
किया जाता हैं। जब कुछ भी नहीं चलता है तो सरकार अपनी पूरी ताकत मालिकों के हित
बचाने के लिये मजदूरों पर दमन करने के लिये लगा देती है। ग्रेटर नोएडा के
ग्रेजियानों और गाजियाबाद के एलाइड निप्पोन के संघर्षरत मजदूर इसी दमन के शिकार बन
आज तक जेल में अन्दर हैं। 20 फरवरी के दिन मजदूरों
के राष्ट्रव्यापी हड़ताल के दौरान नोएडा में 150 मजदूरों को जेल में ठूँस दिया गया।
साथियो, सीधी-सी बात है हर
आदमी अपनी-अपनी जिन्दगी अच्छा करना चाहता है और जब वह देखता है कि मालिक के खिलाफ
अकेला नहीं लड़ा जा सकता तब ही वह संगठन बनाता है, आन्दोलन करता है। यह केवल नोएडा या गुड़गाँव की बात नहीं है, सभी जगह सही है।
ठेकेदारी, छँटनी, कम वेतन, अपमान, दुर्घटना-चोट, ऊँचा किराया, दवाईयाँ, बच्चों की
शिक्षा जैसी दिक्कतों से सभी परेशान हैं और गुस्से में हैं। पर इन परेशानियों और
गुस्से का क्या करें? अकेला मजदूर कुछ नहीं कर सकता। फिर रास्ता बस एक ही है, मजदूरों को एक होकर, साझा मुद्दों के आधार पर संगठन बनाना होगा और संगठन के साथ जुड़ना होगा। नेता
या यूनियन धोखा न दें इसके लिये मजदूरों को यूनियन अपने कंट्रोल में रखना होगा, और
अपने पहलकदमी के आधार पर सभी श्रेणी और तरह के मजदूरों के सामूहिक माँगों और
जरूरतों के आधार पर व्यापक एकता के लिये अपने फैक्टरी के यूनियनों के अलावा भी
मंचों का निर्माण करना होगा।
सभी मालिक, सरकार, पुलिस, मीडिया मजदूरों के खिलाफ एक हो जाते हैं उसी तरह सभी
मजदूरों को, यूनियनों को मालिकों के खिलाफ एकजुटता दिखानी चाहिए, दिखानी होगी। मारुति, नोएडा, गाजियाबाद के संघर्षरत मजदूरों पर हो रहे दमन के खिलाफ हम सभी मजदूरों को एक
साथ आना होगा। आज संघर्ष करने का समय है और इन संघर्षों को सामूहिक माँगों के आधार
पर एक साथ जोड़कर आगे बढ़ाने का समय है। एक-दूसरे के संघर्ष में हिस्सा निभाना होगा,
मदद करनी होगी तभी न केवल अपने-अपने हक के लिये अपने-अपने मालिकों से जीत पायेंगे
पर ऐसी व्यवस्था बनाने में भी कामयाब रहेंगे जहाँ श्रम को अपनी इज्जत और न्याय मिल
सके। इंकलाब जिन्दाबाद!
मारुति मजदूर संघर्ष एकजुटता मंच
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