ब्रिटिश सरकार के खिलाफ 1857 का पहला स्वतंत्रता संग्राम मेरठ से ही शुरु हुआ। यह उस वक्त की बात है जब यह कहावत चलती थी कि ‘ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज कभी नहीं अस्त होगा’। लेकिन इतिहास इस बात का गवाह है कि जब मेरठ से बागी सैनिकों ने हिन्डन पार कर दिल्ली पर धावा बोला तो उसकी धमक लंदन तक सुनाई पड़ी। मुजफ्फर नगर, अलीगढ़, आगरा, मथुरा, सोनीपत, करनाल, पेशावर, लखनऊ, आदि शहरों में जैसे ही दिल्ली पर मेरठ के सैनिकों द्वारा धावा बोलने की खबर पहुंची, वे भी इसके साथ हो लिए। दिल्ली पर एकबारगी तो उन्होंने कब्जा भी कर लिया। लेकिन जब अंग्रेजी सेना ने चारों ओर से क्रांतिकारियों पर हमला बोला तो इस समूचे इलाके की मिट्टी लाल हो गयी। आजादी की जंग छेड़ने के एवज में मेरठ शहर को भी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। देश की आजादी की जंग में इस इलाके में जिताना खून बहा वह एक मिशाल है। 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में हिन्दुओं और मुसलमानों की एक एकता का मूकगवाह रहा है यह शहर।
आज भी इस शहर की पुरानी जर्जर इमारतों की दीवारों पर कान लगाएगें तो 1857 के क्रांतिकारियों का गीत ‘हम हैं इसके मालिक हिन्दुस्तान हमारा..’ आपको सुनाई देगा। इन क्रांतिकारियों की ऐसी अनगिनत यादें शहर में आज भी मौजूद हैं। इन्हीं शहीदों की याद में मेरठ शहर के बीचों-बीच बना है 1857 का संग्रहालय। जैसे ही आप मुख्य गेट से प्रवेश करेंगे तो सामने बने पत्थर के स्तम्भ पर आपकी निगाह पड़ेगी। इस पर खुदे नामों को जरा गौर से देखिएगा तो आप खुद-ब-खुद समझ जाएंगे कि यह कितना बेशकीमती है। इनसे विदा लेकर ज्योंही आप मुख्य द्वार से प्रवेश करते हैं तो 1857 के प्रसिद्ध क्रांतिकारी मंगल पाण्डे को अपने सामने खड़ा हुआ पाएंगे। आप चाहें तो उन्हें छू भी सकते हैं। यह अलग बात है कि न जाने क्यों वे एकदम से मौन खड़े रहते हैं। ऐसा लगता है कि वे अपने साथियों का इन्तजार कर रहे हैं। उनके बार्इं ओर बड़े से हाल में अंग्रेजी सेना के तोप के मुकाबले खड़ी है लाठी, डंडों और तलवारों या फिर लगभग निहत्थी जनता। जी हां सब कुछ अभी भी मौजूद है इस शहर में। क्रांतिकारी सेना के नायक नाना साहब और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई भी हैं तो दूसरी ओर अजीमुल्ला, बेगम हजरत महल और अवन्तीबाई लोधी भी।Devendra Pratap
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