शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

कश्मीर में हिन्दू-मुस्लिम कोई मुद्दा नहीं


भगवान स्वरूप कटियार
( समापन किस्त)
सिख साथियों से पता चला कि कश्मीर में हिन्दू-मुस्लिम कोई मुद्दा ही नहीं हैं। यहां सभी कश्मीरी हैं। न हिन्दू न मुस्लिम। मुस्लिम, हिंदुओं की शवयात्रा में शामिल होते हैं और हिंदू भी कब्रगाह जाते हैं। कश्मीरी पंडितों के मुद्दे के बारे में पता चला कि यहां के मुस्लिम समाज के आज भी कश्मीरी पंडितों से सौहार्दपूर्ण रिश्ते हैं, जो पहले थे। वे एक- दूसरे के शादी विवाह में शामिल होते हैं। अभी भी जो कश्मीरी पंडित कश्मीर में हैं, उन्हें कश्मीरी मुसलमानों पर पूरा यकीन है। 
कई स्‍थानीय कश्मीरियों का कहना था कि यह सारा बिगाड़ा खेल तत्कालीन कश्मीर के गवर्नर जगमोहन का है, जिसने दहशत फैलाकर कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से भगा दिया, ताकि कश्मीरी मुसलमानों को राज्य सत्ता के चाबुक से हांका जा सके। वह राष्ट्रपति शासन का दौर था और गवर्नर थे रिटायर्ड आईएएस अफसर जगमोहन। कश्मीरी पण्डितों के रहते राज्य सत्ता का दमन चक्र कश्मीरी पण्डितों को भी प्रभावित करता और तब हिन्दू-मुस्लिम की सियासी आग इस तरह न सुलग पाती, जो आज लपटों के रूप में सर्वनाश कर रही है। इस बीच जिस किसी से भी बात हुई तो दो टूक निष्कर्ष निकल कर सामने आया कि कश्मीरियों को भारत के साथ रहने में कोई गुरेज नहीं है और वे रह ही रहें है वर्षों से साथ-साथ। सारा खेल सियासत और फ़ौज ने बिगाड़ा है। वे कहते हैं हमें साथ-साथ रहने की संभावनाओं पर और अधिक संवेदनशीलता से सोचने-समझने की जरूरत है।
  जुलाई २०१६ में मोहम्म्द बुर्हनुद्दीन वानी का इनकाउंटर हुआ था। इस पढ़े-लिखे नौजवान के एनकाउंटर ने पूरे कश्मीर को ही नहीं पूरे देश को हिला कर रख दिया था। इसकी कश्मीर में जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई थी। अभी भी बरसी पर कश्मीर में लोग सड़कों पर उतर पड़ते हैं। अब बुरहान वानी के इलाके को फ़ौज ने छावनी में तब्दील कर दिया है। अवंतीपोरा तहसील के खार मोड़ पर त्रालमिदूरा गांव के रास्ते में एक बड़ी सी जमीन किराये पर लेकर वहां किलेनुमा अड्डा बना रखा है, जहां फ़ौज  का गोलाबारूद रहता है।यहां फौज का बड़ा जमावड़ा है। अब इस इलाके में होने वाले प्रदर्शनों में लड़कियों की भी शिरकत होती है। फ़ौज की कार्रवाइयों ने तमाम नौजवानों को भटकाया भी है। 
   वर्ष २०१५ में बुरहान के भाई का एनकाउन्टर किया गया था, जो एक लैब में काम करता था। बुरहान के वालिद एक कालेज में प्रिंसिपल हैं और उसके दादा किसी कालेज में लेक्चरर थे। बुरहान के तीन भाइयों में एक बचा है जो पढाई कर रहा है और उसकी एक बहन भी है। बुरहान के नहीं रहने से पूरा परिवार गहरे सदमें में है। अब कश्मीर में लोग बुरहान को शहीद का दर्जा देते हैं। जिनसे भी वहां मुलाकात ह़ुई १०० में ८० लोगों ने उसे शहीद कहा। उसकी मजार बना दी गई, जहां बड़ी संख्या में लोग जमा होते हैं। 

१५ अप्रैल को हम श्रीनगर के खैयाम चौक पहुंचे। वहां करीब तीन बजे शारजाह होटल में दाखिल हुए। वहां फ्रेश हुए और लंच कर डल झील घूमने निकल गए। वहां टूरिज्म के पीक सीजन में अजीब सा सन्नाटा देखने को मिला। आमतौर पर शिकारों से भरी रहने वाली डल में बहुत कम शिकारे सैलानियों को घुमा रहे थे। आतंकी माहौल ने टूरिज्म के कारोबार को चौपट कर दिया है। हम लोगों ने एक शिकारा लिया, जिसको जहूर मियां चला रहे थे। ५ से ८ बजे रात तक तीन घंटे हम लोग शिकारे में डल झील घूमे। डल झील भी पुलिस और आर्मी सिक्योरिटी की गिरफ्त में थी। लोगों से बात करने पर सबके दिल दर्द से कराहते नजर आए। सब कहते कि कश्मीर की जन्नत को किसी की बुरी नजर लग गयी है। अगले दिन हम शालीमार और ट्यूलिप गार्डन घूमते हुए वेमिना डिग्री कालेज पहुंचे, जहां के छात्र और अध्यापक हमारा इंतजार कर रहे थे। यह शेड्यूल कश्मीर यात्रा के लिए चलने से पहलें ही बन चुका था। ट्यूलिप गार्डेन के फूलों की रंगत ने हम सबको लूट लिया था। बरसते पानी और हल्की ठंड में ट्यूलिप गार्डन घूमना बेहद खुशनुमा लग रहा था। 
वेमिना डिग्री कालेज में प्रो नदीम अहमद ने हमें अपने साथियों से मिलवाया। उनको यह जानकर काफी खुशी थी कि हम लोग कश्मीर के हालात जानने-समझने के लिए आए हैं।  उन्होंने जो दर्द बयां किया तो उनके साथ हम भी फूट-फूट कर रोये। तब हमें लगा राज्यसत्ता के दमन का मंजर किस स्तर तक पहुंच गया है। प्रो जीडी वानी (पर्सियन), प्रो आतिब मंजूर (अरैबिक), प्रो नदीम अहमद (इकनामिक्स), तारिक अहमद (उर्दू), प्रो बिलाल (इंग्लिश), प्रो मालिक (इकनामिक्स) तथा प्रो अमरजीत सिंह (हिंदी) ने आज के दौर के कश्मीर पर अपने विचार साझा किए। प्रो आतिब मंजूर की दर्द भरी दास्तां ने सबको रुला दिया। बाकया उनके घर के पास हुए एक आतंकी हमले का था।
उन्होंने बताया कि फौज के अफसर उनको घर से पकड़ कर ले गए। उन्हें मारा पीटा और बेइज्जत किया। उन्होंन यह भी लिहाज नहीं किया वे एक सीनियर प्रोफेसर के साथ ऐसा बरताव कर रहे हैं। यही वजह है जब कश्मीरी कहते हैं कि डेफिसिट आफ ट्रस्ट की स्थिति पैदा हो गई है। उनका मानना है कि सरकार का पालिसी अप्रोच सही नहीं है। 
प्रो. बिलाल और मलिक ने कहा है कि मौजूदा सरकार का मुसलमानों के प्रति रवैया सही नहीं है। पूरे देश में यही हाल है। मुसलमानों को तबाह कर वे हिन्दू वोट संगठित करते हैं जबकि उन्ही हिन्दुओं में दलितों और पिछड़ों के साथ उनके सलूक मुसलमानों से कम बदतर नहीं हैं। आगरा के भीम सेना के चन्द्रशेखर के साथ उनका सलूक सामने है।जुनेद ,अख़लाक़ के साथ खड़े होने की भी उन्होंने हमसे अपील की क्योकि वे हमारे देश के मुसलमान हैं। कश्मीर के लोग हिंदुस्तान के साथ रहें इसकी संभावनाएं तलाशी जानी चाहिए पर हालात क्यों बिगड़े और किसने बिगाड़े यह उससे जरुरी और बड़ा सवाल है।उन्हें कश्मीर की सरकार, केंद्र सरकार, हुर्रियत नेताओं और फ़ौज से बेहद शिकायत है।हालात ठीक करने और अमन कायम  करने की पहली शर्त है कश्मीर से फौजों को हटाना। फौज के लोग कश्मीरी नौजवानों का एनकाउन्टर कर उन्हें अपराधी बनाने पर अमादा है। जब हमने कहा कि कश्मीर घूमते हुए हमने देखा कि कश्मीर में गरीबी नहीं है और कश्मीरी लोग मेहनती हैं तो उनके चेहरे चमक आ गई और बोले चलो आप लोगों ने माना तो कि कश्मीरी मेहनती हैं। वरना यहां तो यह आरोप लगाया जाता है कि कश्मीरियों के गाल केंद्र सरकार से मिल रहे पैसे से लाल हो रहे हैं।
अगले दिन १८ अप्रैल को हमारी वापसी थी। श्रीनगर छोड़ने के पहले सुबह बरसते मौसम में हम लोग हज़रत बल देखने गए और कश्मीर यूनिवर्सिटी भी देखी। बन्द होने के कारण वहां किसी से मुलाकात नहीं हो पाई। श्रीनगर से दोपहर १२ बजे चल कर अवंतीपोरा के रास्ते हम त्राल मिदूरा गांव पहुंचे, जहां एक ७० वर्षीय बुजुर्ग अब्दुल रसीद वानी अपने परिवार के साथ हमारा इंतजार कर रहे थे। वे हमें अपनी कार से हम लोगों अवंतीपोरा लेने आये। कार के चालक थे उनके भांजे मिस्टर आसिफ़ हुसैन वानी प्रिंस।
एक खुशमिजाज नौजवान जिसे सभी प्रिंस कहते हैं।
अब्दुल रसीद साहब के तीन बेटे हैं। सबसे बड़े हमीदुल्ला वानी वहीँ पर टीचर हैं7 गुलाम मुहिमुद्दीन वानी सेक्रेटीरियेट में मुलाजिम है।हमारे लखनऊ के साथी मसूद साहब के दामाद जादे डा०जहूर अहमद वानी यहीं लखनऊ में सीमैप में रिसर्च स्कॉलर हैं। रसीद साहब की दो बेटियां भी हैं। रसीद साहब खुद भी एनीमल हसबैंडरी विभाग में मुलाजिम रह चुके हैं। उनके पास लगभग ६० कुनाल (बीघे की तरह कृषि भूमि की इकाई) की खेती है जिसमें अखरोट, सेब और बादाम के बगीचे हैं। उनके घर की दीवार पर फ़ौज की बंदूकों से चली गोलियों के निशान देखने को मिले। अब लोग इन चीजों के आदी हो गये हैं। धूप अच्छी लग रही थी घर के सामने लान में बैठ कर उसका आनन्द लिया। हमारे पास समय कम था इसलिए कम से कम समय में अधिक से अधिक घूम लेना चाहते थे। शाम तीन बजे हम रसीद साहब के साथ कार से बुरहान वानी के घर त्राल गए और बूढ़े दादा से मिले। बुरहान वानी कब्र के उन तमाम नौजवानों की भी कब्रे हैं जो इनकाउंटर में मारे गये हैं।
  थोड़ी देर में पता चला कि आर्मी किसी नौजवान को उठा ले गयी है7 सड़कों पर नौजवानों की भीड़ इकठ्ठा हो गयी। कुछ पूछतांछ शुरू न हो जाय इस अंदेशे से हम लोग घर वापस लौट आये। रास्ते में भीड़-भाड़ और तनाव का मंजर देखते हुए घर पहुंचे।सुबह हमें जम्मू के लिए रवाना होना था। चाय नाश्ते के बाद हम लोग सेब के बाग़ देखने गये जिनमें अभी फूल लगा हुआ है। सेब के दरख्त में कलम की ग्राफ्टिंग कर तमाम किस्म के सेव एक ही दरख्त में लगते हैं। इस करिश्माई जानकारी ने हमें अचम्भे में दाल दिया। आधुनिक तकनीकी और वैज्ञानिक जानकारियों से लैस हैं कश्मीर के किसान। रसीद साहब ने एक कुशल गाइड की तरह हमें तमाम चीजें दिखाई और सेब पकने के समय यानी नवम्बर-दिसम्बर के महीने में कश्मीर आने की दावत भी दे डाली।
अवन्तिपुरा से हम लोग जम्मू के लिए टैक्सी से रवाना हुए। काजीगुंड के आगे लवर मुंडा में जाम लग गया। रामबाग में हैवी लैंड स्लाइड ने रास्ता रोक दिया था। कश्मीरियों के खुशमिजाज चेहरे और कश्मीर में अमन लाने का जलता सवाल हमारी नम आँखों में तैर रहे हैं। हमने अपने कश्मीरी भाइयों से कुछ वायदे किये हैं और उसी दिशा में आगे बढ़ना है।

मंगलवार, 14 अगस्त 2018

आज के दौर में मार्क्स का मार्क्सवाद कैसा होना चाहिए ? (दूसरा भाग)

(भगवान स्वरूप कटियार)।
(पहली किस्त के लिए इस लिंक पर जाएं-https://100flovers.blogspot.com/2018/08/blog-post.html?m=1)

दुनायेव्ह्स्काया ने सभी किताबों में एक नए किस्म के मार्क्सवाद के विकास को प्रतिष्ठित किया जो इस बात पर आधारित है कि आज के दौर में मार्क्स का मार्क्सवाद कैसा होना चाहिए ? उन्होंने तर्क और तथ्यों से सिद्ध किया की मार्क्स की महान रचना पूँजी सबसे ज्याद द्वंद्वात्मक और मानववादी है | क्योकि यह इस विचार पर केन्द्रित है कि मानवीय सम्बन्ध पूंजी के वर्चस्व वाले समाजों में किस तरह वस्तुओं के बीच सम्बन्धों का रूप ले लेते हैं | सच्चा समाजवाद इन परिस्थितियों का निषेध करते हुए नये मानवीय सम्बन्धों को रचते हैं जो उत्पादन केन्द्रों से शुरू होकर सबसे ज्यादा अन्तरंग रिश्तों में फैले होते हैं |       
        मार्क्स का ऐतिहासिक भौतिकवाद व्यावहारिक विज्ञान है | उत्पादन प्रणाली के परिवर्तन के आधार पर यह मानव इतिहास का युग रूपांतरण करता है | आदिम उत्पादन प्रणाली पर आधारित आदिम साम्यवाद का युग ,दास उत्पादन प्रणाली पर आधारित दास युग , सामन्ती उत्पादन प्रणाली पर आधारित सामन्तवादी युग तथा पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली पर आधारित पूंजीवादी युग वर्ग समाज और इसके बाद वर्ग विहीन राज्य विहीन साम्यवादी युग जो निरंतर सर्वहारा क्रांतियों से आयेगा जिसकी समय सीमा तय नहीं है | मार्क्स–एंगेल्स कम्युनिस्ट घोषणापत्र में लिखते हैं दुनियां का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है जिसका मतलब है कि वर्ग समाज में शोषण ,उत्पीड़न और अन्याय के विरुध्द सभी आन्दोलन वर्ग संघर्ष के हिस्से हैं | व्यक्ति का वजूद स्वायत्त न होकर विशिष्ट सामाजिक सम्बन्धों के तहत सामाजिक है | कम्युनिस्ट घोषणापत्र में मार्क्स लिखते हैं कि बुर्जुआ राज्य पूंजीपति वर्ग के हितों की प्रबन्ध कमेटी है | मार्क्स लिखते हैं कि मनुष्य की चेतना उसकी भौतिक परिस्थितियों का परिणाम है और बदली हुई चेतना बदली हुई परिस्थितियों की | लेकिन न्यूटन के गति के नियम के अनुसार बिना बाह्य बल के कोई चीज हिलती भी नहीं है | अत; भौतिक परिस्थितियाँ अपने आप नहीं बल्कि मनुष्य के चैतन्य प्रयास से बदलती हैं | इतिहास की गति का निर्धारण भौतिक परिस्थितियों और सामाजिक चेतना की द्वंद्वात्मक एकता से होता है किसी ईश्वर,पैगम्बर या अवतार की इच्छा या कृपा से नहीं | इस तरह हम देखते हैं कि सत्य की व्याख्या के लिए मार्क्स ने हीगल के द्वंद्ववाद और फायरबाख के भौतिकवाद को संदर्भविन्दु बनाया | उसकी द्वंद्वात्मक एकता ने सत्य की नयी व्याख्या की ,नयी चिन्तनधारा दी और एक नए दर्शन का उदघाटन किया | हीगल को उलटते हुए मार्क्स ने कहा कि विचार से वस्तु की उत्पत्ति नहीं हुई है बल्कि वस्तु से विचार की उत्पत्ति हुई है | ऐतिहासिक रूप से वस्तु विचार से पहले मौजूद रहती है और ऐतिहासिक रूप से विचार वस्तुओं से ही निकलते हैं हवा में नहीं | जैसे न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का सिध्दांत जहाँ सेब का गिरना पहले से मौजूद था | इसी प्रकार ईश्वर ने मनुष्य को नहीं बनाया है बल्कि मनुष्य ने ईश्वर की अवधारणा को गढ़ा है | उन्होंने वस्तु को सब कुछ मानने वाले फायरबाख को भी ख़ारिज किया और वस्तु पर विचार की प्राथमिकता मानने वाले हीगल को भी ख़ारिज किया | उन्होंने कहा जो भी विवेक सम्मत है वास्तविक है और जो वास्तविक है वह विवेक सम्मत है और अपने विकास क्रम में वास्तविकता समय की आवश्यकता बन जाती है | मार्क्सवाद दुनिया को समझने का गतिमान विज्ञान है और सर्वहारा क्रांति की विचारधारा | एंगेल्स मार्क्स की अंत्येष्टि में अपने भाषण में कहा था कि “जिस तरह डार्विन ने जीवन के विकास के नियमों की व्याख्या की उसी तरह कार्ल मार्क्स ने इतिहास के विकास के नियमों की व्याख्या की है | अत: मार्क्सवाद एक विज्ञान है और मार्क्स विज्ञान को गतिशील मानते थे इसलिए मार्क्सवाद कोई स्थिर आस्था नहीं है बल्कि गतिशील विचार दर्शन है | मार्क्सवाद के बौध्दिक संसाधन सिर्फ मार्क्स और एंगेल्स के विचारों तक सीमित नहीं हैं | ज्ञान की तरह विज्ञान भी एक निरंतर प्रक्रिया है जो अपनी परिस्थिति को समझने और बदलने के प्रयास करने वाले लेनिन ,माओ,ग्राम्सी ,चेग्येरा ,भगतसिंह की रचनाओं के ज्ञान से अनवरत सम्रध्द होता रहा है |

बुधवार, 8 अगस्त 2018

हम कश्मीर में बशीर साहब के घर अखरोट का पौधा लगाकर आए

भगवान स्वरूप कटियार

 ( कश्मीर यात्रा पर दूसरी किस्त। पहली किस्त के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं)
https://100flovers.blogspot.com/2018/05/blog-post_17.html?m=1
अप्रैल 2018 की 14 तारीख को जम्मू से अनंतनाग पहुचते–पहुँचते शाम के छह बज चुके थे। अक्कड़ गांव से बिलाल रैना हमें लेने के लिए अपनी कार लेकर हाजिर हो चुके थे। अपने गांव से 15 किलोमीटर चल कर बिलाल हमें लेने के लिए अनन्तनाग आए। उनके गांव अक्कड़ इस्लामाबाद अपने साधन से आसानी से पहुंचा जा सकता थाजो पहलगाम हाईवे पर है। उनके गांव के मोड़ पर हाईवे पर ढाबे और मिठाई की दुकानें हैजिसमें एक मिठाई की दुकान उत्तर प्रदेश के बिजनौर के एक हिन्दू की हैजो कश्मीरियों के बीच अपने को पूरी तरह महफूज मानता है।
बिलाल के परिवार से मिल कर ऐसी ख़ुशी की अनुभूति हुईजिसे इजहार करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। वे अपनों से भी अपने लगे। हमारे वहां पहुंचने की सूचना परिवार में स्त्री-पुरुषबच्चों सबको थी। इसलिए हमारे पहुंचने से ख़ुशी की चमक हर किसी के चेहरे पर थी। ड्राइंग रूम में सोफे-कुर्सियां आदि नहीं नजर आईं,जबकि लकड़ी वहां इफरात होती है। बड़े से हाल नुमा कमरे में एक सुन्दर सी कालीन और दीवार से टिके कुशन,मसनद और तकियों से सजी बैठक। एक हसीन महफ़िल का नजाराजहां स्त्री-पुरुषबच्चे पूरी आजादी से बैठते बतियाते हैं। मुझे यह सब देख कर एक अजब सा कौतूहल हो रहा था। कौन सी दुनियां में हम आ गए हैंजो इतनी खुशमिजाज और हसीन है। दिन भर की पहाड़ी यात्रा से हम चारों साथी काफी थके थेपर बिलाल के परिवार वालों की बातचीत और मेहमाननवाजी से थकावट कहां फुर्र हो गयीपता ही नहीं चला। हम लोग तकिए के सहारे टिके बैठे थे कि परिवार का एक नौजवान पानी लेकर हाथ धुलाने आया। इस रश्मों रिवाज को देख कर हम कश्मीर की कश्मीरियत को सीधे देख पा रहे थे |ड्राई फ्रूट उनकी घर की फसल है। इसलिए अखरोटबादाम से आवभगत तो उनके रिवाज में है। इसके बाद चाय के साथ नाश्ते में ढेरों चीजें आईं,जिसमें उबले अंडे भी थे। अंडे भी घर की मुर्गियों के ही थे। हर कश्मीरी अपने घर के बगीचे में खाने भर की सब्जियां जरुर उगाता है। मुर्गे–मुर्गियां और दूध के लिए गाय हर कश्मीरी के घर में मिलती है। कश्मीर के गांव वाले नमक और डीजल-पेट्रोल के अलावा बाजार से शायद ही कुछ खरीदते हों। खेत उन्हें सब कुछ देते हैं। चाय नाश्ता करते हुए हमने खूब बातें की और पारस्परिक जान पहचान भी बढाई। इस बीच मेरा कैमरा भी चलता रहा। सबने बड़े उत्साह और ख़ुशी से फोटो खिचवाए। परिवार की महिलाएं भी हमारी पारस्परिक बातचीत में शिरकत कर रहीं थीं। लगता था जैसे हम किसी शादी विवाह में शामिल होने आए हों। एक अजब उत्सव जैसा माहौल था। रात्रि भोज में इतने तरह के पकवान परोसे गए कि हम इस मेहमाननवाजी के कायल हो गए। हम चार साथियों में तीन हिन्दू थे और मसूद साहब अकेले मुस्लिम थे। पर वहां सिर्फ एक ही चीज समझ में आयी कि हम सब इन्सान हैं। उसी कालीन पर गद्दे और रजाइयां-कम्बल लगा दिए गए और थके होने के कारण कब नींद आ गयी पता नहीं चला। सुबह जब जगे तो छह बजे थे। जनवरी जैसी ठंड थी। फ्रेश होकर ट्रैक सूट पहन कर कश्मीर के इस गांव की सुबह देखने निकल पड़ा। वैसे भी प्रातभ्रमण मेरी आदत बन चुकी है। गहरी नींद में सोए साथियों को जगाने की मैंने जुर्रत नहीं की। एक झरने से बहने वाले पानी ने एक नहर जैसी शक्ल ले ली थी। गांव वालों का कहना था कि यह नाला अमरनाथ के रास्ते में गिरने वाले झरने से पहलगांम से होकर आता है। नाले का पानी इतना साफ और ठंडा था कि लोग पीने और घर के वर्तन-कपडे धोने में इस्तेमाल करते हैं। लोग इसी नाले के पानी से घरों में पाइप लाइन से पानी ले जाते है। वैसे इस इलाके में पानी भी10-15 फुट पर मिल जाता है,इसलिए बोरिंग शायद ही कोई कराता हो।
हांसेब के खेतों में बोरिंग देखने को जरूर मिलती है। सुबह घूमते हुए हमने अखरोट के दरख्तों के कई किलोमीटर लम्बे गलियारे देखें और पीले-पीले फूलों से भरे सरसों के खेत और बर्फ से ढके पहाड़। सुबह कैमरा लेकर नहीं गया थाइसलिए मोबाइल फोन का कैमरा इस्तेमाल किया। थोड़ा संकोच और डर जरुर मन में था कि यहां के लोग हमें कहीं गलत न समझ बैठें।
बिलाल का परिवार संयुक्त परिवार जैसा है। उनके वालिद मोहम्मद सुल्तान रैना यही कोई 70-75 साल के होंगे। उनके चार बेटे अब्दुल रहमानबसीर अहमदगुलाम हसन और बिलाल रैना हैं। बिलाल सबसे छोटे हैं और गांव में उनकी दुकान है,जबकि उसने भोपाल में पोलिटिकल साइंस से पीजी किया हुआ है। रैना यहां कश्मीरी ब्राह्मण होते हैं। पर मोहम्मद सुल्तान का परिवार भी रैना लिखता हैं। यह इस बात का सबूत है कि हिन्दू-मुस्लिम में कितना साम्य और घनिष्ठता है। अब्दुल रहमान और गुलाम हसन रैना सरकारी नौकरी में हैं और बसीर अहमद रैना गांव में खेतीबाड़ी संभालते हैं। उनके वालिद मोहम्मद सुल्तान रैना ने अपने सभी बेटों के मकान आसपास ही बनवाये हैं और सब अपने-अपने घरों में रहते हुए भी साथ-साथ रहते हैं।
उनके वालिद और वालिदा का सबके घर रोज का आना जाना रहता है। एक का मेहमान सबका मेहमान होता है। परिवार का यह अनूठा रूप बड़ा मोहक और अनोखा लगा। सुबह घूम कर आया तो हमारे साथी लोग जाग चुके थे। फिर हम सब लोग चाय पीकर रहमान साहब के नेतृत्व में अक्कड़ गांव घूमने निकले। बहुत लोगों से दुआ सलाम और परिचय हुआ। पर सबकी शिकायत थी कि हम लोग कम समय लेकर आये हैं। कश्मीर घूमने के लिए कम से कम एक महीने का समय लेकर आना चाहिए,तब कश्मीर देखाजाना और समझा जा सकता है। मेरे दिमाग में कश्मीर पर एक डाक्यूमेंटरी बनाने का खयाल कौंधा। हमें सुबह दस बजे तक श्रीनगर के लिए निकलना था। भर पेट नाश्ता कर हम अपने लगेज समेट कर तैयार हो गये। हमने बसीर साहब के बगीचे में एक अखरोट का पौधा लगायाइस उम्मीद के साथ कि यह बड़ा होकर कश्मीरियों और हमारी मोहब्बत का बड़ा दरख्त बनेगा। इसके अखरोट के फलों में हमारी मोहब्बत की मिठास होगी। हमारा सामान ऊपर की बैठक से नीचे लाया जा चुका था। सबके घरों से अखरोट के पैकेट विदाई के भेंट के रूप में आने लगे। फिर सबने मिल कर ग्रुप फोटोग्राफी करायी। यह फोटो आज कश्मीर यात्रा का नायब तोहफे के रूप में हमारे पास हैं। सब प्रेम और मोहब्बत के भावों से लबरेज थे। रहमान साहब अपनी कार से हम लोगों को अनंतनाग की मटन तहसील तक छोड़ने आयेजहाँ हमने सूर्य मन्दिर के दर्शन किये जो कोणार्क सूर्य मंदिर के बाद दूसरा सूर्य मंदिर है। वहां हमने मस्जिद और गुरुद्वारे को एक ही स्थान पर साथ-साथ सटे हुए देखा जो साम्प्रदायिक सद्भाव और भाईचारे का जीता जागता सबूत है।

शुक्रवार, 3 अगस्त 2018

मार्क्सवादी मानववाद के वर्तमान संदर्भ (पहली किस्त)

             (भगवान स्वरूप कटियार)
   यह मार्क्स की दो सौवीं जयंती का वर्ष है। विगत डेढ़ सौ वर्षों में मार्क्स की स्थापनाओं को लेकर घनघोर बहसें हुईं हैं। मार्क्स से पूर्व दार्शनिक इस पहेली में उलझे हुए थे कि सिद्धांत व्यवहार में कौन अधिक महत्वपूर्ण है। कांट ने अपनी पुस्तक “क्रिटीक ऑफ़ प्योर रीजन “में एक हद तक इसका निराकरण प्रस्तुत किया। हीगेल ने द्वंद्वात्मकता की अवधारणा प्रस्तुत करते हुए इस बात पर बल दिया कि जो कुछ भी विवेक से परे है वह अतार्किक है। यही वह बिंदु है जहाँ मार्क्स, कांट की तार्किकता और हीगेल की द्वन्द्वात्मकता को जोड़ते हुए इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि दर्शन का उद्देश्य महज दुनियां की व्याख्या भर नहीं है बल्कि उसका असली मकसद है दुनिया को बदलना है। मार्क्स जहाँ एक ओर इस दुनिया को यथास्थिति की भंवर से निकालने के लिए संघर्ष करते हैं, वहीं दूसरी ओर अमानवीयता की ओर भागी जा रही दुनियां की दिशा को भी बदलने की मुहिम चलाते हैं। मार्क्स व्याख्याओं का विरोध नहीं करते बल्कि व्याख्याओं के उद्देश्य को जनपक्षीय बदलाव की ओर मोड़ना चाहते हैं।
5 मई 1818 में जर्मनी के राइन इलाके में जन्मे कार्ल मार्क्स का सम्पूर्ण जीवन संघर्ष ,झंझावातों और घोर कठिनाइयों से भरा रहा। अपनी पी एच डी जमा करने के बाद मार्क्स समझ गये थे कि जर्मनी में शिक्षा जगत के लिए दरवाजे उनके लिए बन्द कर दिये जाएंगे।शासक वर्ग हमेशा से वैज्ञानिक विचारों से आक्रांत होता रहा है और विचारकों का क़त्ल, उनको दर- बदर और कैद करते रहा है। सुकरात से शुरू होकर ब्रूनो ,गैलीलिओ , दिदरो , रूसो ,ब्लांकी , मार्क्स ,ग्राम्सी ,भगतसिंह , चेग्वेरा की मिसालों की एक ऐतिहासिक निरन्तरता है। मार्क्स ने 1841 में प्राचीन यूनानी प्रकृतिवादी दर्शनों डेमोक्रेट्स तथा इपिक्युरियस के तुलनात्मक अध्ययन पर पी एच डी की। 1843 में मार्क्स अपनी प्रेमिका जैनी से विवाह कर जर्मन शासकों के दमन चक्र से बचने के लिए पेरिस चले आये और एक जर्मन फ़्रांसिसी पत्रिका के सम्पादन से जुड़ गये | यहाँ उनकी मुलाकात तमाम फ्रांसीसी समाजवादियों से हुई | उनकी सबसे महत्वपूर्ण मुलाकात अपने देश यानी जर्मनी के समाजवादी बुध्दिजीवी विचारक फ्रेडरिक एंगेल्स से हुई और दोनों गहरे दोस्त बन गये | उनकी यह मित्रता जीवन भर कायम रही | मार्क्स और एंगेल्स एक दूसरे के पूरक थे और सुख –दुःख के सच्चे साथी | इसकी खुबसूरत झलक उनके पारस्परिक पत्राचार में मिलती हैं |
1841 में प्रकाशित लुडविग फायरबाख की किताब “एसेंस ऑफ़ क्रिश्चिनिटी” का हीगेल और मार्क्स पर गहरा असर पड़ा और मार्क्स नास्तिकता की ओर बढ़ गये और तभी वे लिखते हैं कि “ धर्म ह्रदयहीन परिस्थितियों का ह्रदय है और आत्माविहीन दुनियां की आत्मा तथा की पीड़ितों की राहत , धर्म लोगों की अफीम है” | इसमें मार्क्स ने दर्शन की अवधारणाओं को आत्मसात करने के लिए सर्वहारा का आह्वान किया | अगर ध्यान से देखें तो भगतसिंह भी “मैं नास्तिक क्यों हूँ” नामक अपनी पुस्तक में लगभग ऐसा ही लिखते हैं | 1844 में प्रकाशित मार्क्स की दार्शनिक मैन्यूस्क्रिप्ट को उनकी सम्पूर्ण चिंतनधारा की बुनियाद माना जाता है | 1848 में मार्क्स और एंगेल्स ने कम्युनिस्ट घोषणापत्र लिखा | उन्होंने प्रथम इंटरनेशनल में सक्रिय भागीदारी भी की उनका संबोधन एक एतिहासिक दस्तावेज बना | उन्होंने कहा कि जो भी वास्तविक है वह विवेक सम्मत है और जो भी विवेक सम्मत है वह वास्तविक है | जो लोग भी बराबरी और भाई चारे के पक्ष में खड़े होंगे वे सदैव मार्क्स से प्रेरणा लेंगे और बराबरी और न्याय के दुश्मन मार्क्स और मार्क्सवाद से सदैव भयभीत रहेंगे।
      मार्क्सवादी मानववाद पर जब सोचता हूँ तो यह शब्द ही मुझे कुछ उलटबांसी सा लगता है | क्योंकि मार्क्स तो खुद ही सच्चे मानववाद के पर्याय थे | उनका सारा संघर्ष और उनका समग्र दार्शनिक चिन्तन इंसानी समाज के निर्माण का है अर्थात मार्क्सवाद में तो मानववाद स्वत: ही निहित (इनबिल्ड) है | पर प्रचलित आदर्शवादी मानवतावाद और मार्क्सवादी मानववाद में मूल फर्क होना स्वाभाविक है | कार्ल मार्क्स का इस दुनिया को देखने–समझने और उसकी गहन विवेचना और उसकी चीड़-फाड़ करने का एक मात्र मकसद है इन्सान और इन्सानी समाज की बेहतरी, हर तरह के शोषण और हर तरह के अन्याय से मुक्ति अर्थात वर्ग विहीन समाजवादी समाज की संकल्पना एवं उसकी रचना | इसके लिए पहले तो वे हजारों साल की विसंगतियों और विद्रूपताओ से भरी दुनियां की ऐतिहासिक और दार्शनिक पड़ताल करते हैं | अपने पूर्व के विचारकों और कांट, हीगल, फायरबाख जैसे बड़े दार्शनिकों को पढ़ते हैं और इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अभी तक दार्शनिकों और विचारकों ने आदर्शवादी तरीके से दुनिया की व्याख्या की है जबकि जरुरत इसे बदलने की है और एक ऐसा बदलाव जिसमें नये समाज का निर्माण हो सके जिसके लिए सदियों से काम करने वाले सामजिक–आर्थिक और व्यवस्थागत ढाँचे को भी बदलना होगा। पुराने ढाँचे से नया समाज बनाना सम्भव नही है जबकि अभी तक यही होता रहा है और इसीलिए अभी तक कोई अमूल-चूल बदलाव नहीं हो सका | मार्क्स के नजरिये को इस तरह समझा जा सकता है जैसे रूसो कहते हैं कि मनुष्य मूलत: असभ्य और जंगली होता है | समाज उसे बनाता-तराशता है | जबकि मार्क्स ठीक इसके विपरीत अपना मत देते हैं कि मनुष्य मूलत: नेक और भला होता है जैसे बच्चा निश्छल,निष्कलंक और द्वेष रहित होता है | बड़ा होकर समाज से वह नफ़रत,प्रेम ,लालच और तमाम अच्छी और बुरी प्रव्रत्तियां ग्रहण करता है |
           मार्क्स की मशहूर रचना पूँजी सबसे ज्यादा मानववादी और द्वंदात्मक है | पूँजी में मार्क्स यह व्याख्यायित करते हैं कि पूँजी के वर्चस्व वाले समाजों में मानवीय सम्बन्ध किस तरह वस्तुओं के बीच सम्बन्धों का रूप लेते हैं | सच्चा समाजवाद नये मानवीय सम्बन्धों को रचते हुए मनुष्य के वस्तु बनने की परिस्थिति का निषेध करता है | पूँजीवाद के खात्मे के बाद नये मानवीय सम्बन्ध उत्पादन केन्द्रों से शुरू होकर सबसे ज्यादा अन्तरंग रिश्तों में फ़ैले जाते हैं जहाँ व्यक्ति महज वस्तु,मूल्य या मुनाफ़ा बढ़ाने के मात्र उपकरण के रूप में नहीं रह जाता है | इस तरह मार्क्सवाद मानव मुक्ति का दर्शन है जहाँ सारे रिश्ते पूर्ण मानववादी रिश्तों में बदल जाते हैं | आज अपने आपको क्रन्तिकारी मार्क्सवादी बनाये रखना मार्क्सवादी मानावादी बनाये रखने पर टिका है | पहले–पहल मार्क्सवादी मानववाद को साठ साल पहले रूस की दार्शनिक दुनायेव्ह्स्काया ने अपनी किताब मार्क्सवाद और स्वतंत्रता (1958) में विकसित किया था | इस किताब में मार्क्स की 1844 की मैन्यूस्क्रिप्ट के कुछ हिस्सा का अनुवाद भी शामिल था | इस पाण्डुलिपि में मार्क्स ने अपने सोच व नजरिये को प्रकृतिवाद या मानववाद कहा था | इसके बाद दुनायेव्ह्स्काया की कई किताबें आयीं जिनमें फिलोसोफी एंड रिवोलूशन फ्रॉम हेगल तो सार्त्र एंड फ्रॉम मार्क्स टू माओ (1973), रोजालक्स्जमबर्ग, विमेन्स लिबरेशन एंड मार्क्सिस्ट फिलोसोफी ऑफ़ रेवोलुशन (1981),वीमेंस लिबरेशन एंड दि डालेटिक्स ऑफ़ रेवोलूशन (1985) |

गौतम बुद्ध

   मार्क्स से बहुत पहले बुध्द ने भी कुछ इसी तरह इस दुःख भरी दुनियां के दुखों के कारणों की पड़ताल के लिए कठोर श्रम किया था | राजपाट छोड़ वे बीसों साल भटकते रहे और उन्होंने समाज की विद्रूपताओं की गहन मीमांसा की | उनकी भी स्थापना थी कि जरुरत से अधिक संचय दुःख का एक बड़ा कारण | उनका मानना है कि प्रकृति इतनी सम्रध्द है कि स्रष्टि के सभी प्राणी सुख–चैन से जी सकते है | उन्होंने कहा कि “ दुनियां में दुःख है ,उसके कारण हैं और उसके निवारण हमे मिल-जुल कर खोजने होंगे | उनके सोच में भी वैज्ञानिकता और तार्किकता थी कि दुनियां में अकारण कुछ भी नहीं होता और न ही कुछ शाश्वत होता है | हर कुछ समय सापेक्ष है और परिवर्तनीय है बुध्द का समय कार्ल मार्क्स की तरह औद्योगिक क्रांति का आर्थिक युग नहीं था और इसीलिए उन्होंने आर्थिक और राजनीतिक पक्षों पर उस तरह की विवेचनाएं भले न दी हों पर धर्म के पाखन्ड और तर्कहीनता पर गहरी चोट की | उन्होंने कहा कि किसी बात को इसलिए मत स्वीकार कर लो कि वह सदियों से कही जा रही है और न किसी विचार को इसलिए स्वीकार कर लो कि किसी महान व्यक्ति ने कहा है या शास्त्रों , पुराणों या अन्य धार्मिक या गैर धार्मिक किताबों में लिखा है | उसे तर्क और व्यवहार की कसौटी पर कसो तब स्वीकार करो | “आप्य दीपो भव” आर्थात खुद अपने मार्ग दर्शक बनो | उन्होंने यह भी कहा कि जीवन रूपी वीणा के तारों को इतना मत खींचो की टूट जायें उसमें कोई सुर ही न निकले और न ही उन्हें इतना ढीला रखो कि कोई सुर न निकले | यही है उनका मध्यम मार्गीय मार्ग | वे अहिंसा के सिध्दांत के प्रवर्तक भी थे | वे अमानवीय नजरिये के सोच को भी हिंसा कहते थे | बुध्द अपने इस तर्कसंगत मानवीय सोच के लिए पूरी दुनियां में स्वीकारे गये जबकि हिन्दू धर्म के अनुयायी, बौध्द अनुयायियों के साथ हिंसात्मक तरीके से पेश आये | बौध्दों की हत्याएं तक करवाई गयीं और बैध्द दर्शन जिसे बाद में धर्म कहा गया की घोर भर्त्सना और आलोचना की | फिर भी बौध्द धर्म ईसाई,और इस्लाम धर्म के बाद दुनियां का तीसरा बड़ा धर्म बन गया |
             


महात्मा गांधी
   गाँधी के दर्शन को अगर हम उनके उस महा वाक्य के आलोक में आंके जिसमें वे कहते हैं “कि व्यक्तिगत या सामूहिक निर्णय लेते वक्त यह ध्यान में जरूर रहे कि पंक्ति के आखिरी व्यक्ति पर उसका क्या असर पड़ेगा तो शायद हम अमानवीय कृत्य से बच जायेंगे और समाज भी विद्रूप नहीं होगा” | पर यह तभी सम्भव है समाज नैतिकता के शिखर पर हो |


डा0 अम्बेडकर
डा0 अम्बेडकर आर्थिक और सामजिक लोकतंत्र को वास्तविक लोकतंत्र मानते थे जिसमें किसी तरह गैर बराबरी ,अन्याय और शोषण न हो | वे हजारों साल के आंतरिक उपनिवेशवाद जो वर्णव्यवस्था के रूप में देश में व्याप्त था उससे मुक्ति के पैरोकार थे | वे धार्मिक पाखंड से मुक्त जातिविहीन समाज के निर्माण के पक्षधर थे और इसी से वे वास्तविक मानववाद की निर्मित चाहते थे |

भगत सिंह
कमोबेश यही सोच भगतसिंह और उनके साथियों का भी था | शोषणविहीन, अन्यायमुक्त हर तरह की बराबरी का समाज जहाँ हर कोई सर उठा कर जी सके | नेहरू जी के मस्तिष्क में भी वैज्ञानिक और तर्क संगत नजरिये वाले इसी तरह के समाज की परिकल्पना थी जिसके अनुरूप उन्होंने जीवन भर काम किया |


मार्क्सवाद
 मार्क्सवाद मनुष्य की मुक्ति का दर्शन और इससे परे कुछ नहीं। उनका समग्र चिन्तन उत्पादन और उत्पादन सम्बन्धों की गहन विवेचना पर आधारित है। मार्क्सवादी समझ के मुताबिक मूल्य का सिद्धांत आधारित श्रम या शोषित श्रम के इस्तेमाल से और परिणामस्वरूप अतिरिक्त मूल्य की अवधारणा से जुड़ा है। अतिरक्त मूल्य अलगाव आधारित श्रम और मूल्य का नतीजा है। यह मार्क्सवादी यथार्थ है कि श्रम ही मूल्य का रूप धारण करता है। मूल्य वह सम्पदा है जो मौद्रिक रूप में मापी जाती है। पूंजीवाद का मकसद भौतिक सम्पदा पैदा करना नहीं है बल्कि मूल्य के संचय को बढ़ाना है। श्रम मूल्य का स्रोत है। द्वंदात्मक भौतिकवाद के अनुसार यथार्थ ( सत्य ) वस्तु और विचार का द्वंदात्मक युग्म है जिसमें प्राथमिकता वस्तु की है | वस्तु और विचार की द्वंद्वात्मक एकता की प्रक्रिया या दोनों की एक दूसरे पर क्रिया–प्रतिक्रिया की निरन्तरता ही पाषणयुग से साइबरयुग तक मानव इतिहास की यात्रा की संचालन शक्ति रही है | प्रकृति की द्वंद्वात्मकता की प्रकृति परिवर्तन की निरन्तरता जिसकी गतिविज्ञान के अपने नियम हैं | सतत क्रमिक मात्रात्मक परिवर्तन समयांतर में परिपक्व होकर गुणात्मक क्रन्तिकारी परिवर्तन बन जाता है| भारत के सन्दर्भ मे विगत 40 वर्षों में दलित विमर्श तथा स्त्री विमर्श के विस्तार और उसके सतत संघर्ष को क्रमिक मात्रात्मक परिवर्तन के उदहारण के रूप में देखा जा सकता है | वैसे तो कोई परिवर्तन विशुध्द मात्रात्मक नहीं होता है पर यह स्त्रीवाद तथा जातिवाद विरोध की सैध्दांतिक विजय है | इसलिए यह मात्रात्मक परिवर्तन है जो क्रन्तिकारी गुणात्मक परिवर्तन विचारधारा के रूप में क्रमश: मर्दवाद और ब्राह्मणवाद के विनाश के खण्डहरों पर उगेंगे | द्वंद्वात्मक समग्रता के दोनों परस्पर विपरीत के पारस्परिक निषेध से तीसरे उच्चतर तत्व की उत्पत्ति होती है जो दोनों से गुणात्मक तौर पर भिन्न होती है | इस नियम को वाद –प्रतिवाद और संवाद  (थीसिस ,एन्टीथीसिस और सेंथेसिस) कहते हैं |1917 की क्रन्तिकारी परिस्थियों ने क्रन्तिकारी चेतना पैदा की | क्रन्तिकारी परिस्थितियों और क्रन्तिकारी चेतना से लैस मनुष्य की द्वंद्वात्मक एकता के परिणामस्वरूप नवम्बर क्रान्ति हुई | द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का एक और नियम है जिसका अस्तित्व है उसका अन्त निश्चित है | इसे प्रकृति की ऐतिहासिक प्रव्रत्ति कहना ज्यादा उचित होगा | एंगेल्स ने उल्लेख किया है कि मार्क्स और उनकी रचनाओं को कोट करने से कोई मार्क्सवादी नहीं हो जाता है बल्कि सच्चा मार्क्सवादी वह है जो खास परिस्थिति में वैसी ही प्रतिक्रिया दे जैसी मार्क्स देते | मार्क्स के अनुसार सत्य वही है जिसे तथ्य और तर्कों के आधार पर प्रमाणित किया जा सके | ऐतिहासिक भौतिकवाद का मूलमंत्र है कि अर्थ ही मूल है | यह एक ऐतहासिक द्रष्टिकोण है जो समाज के आर्थिक विकास को इतिहास के गतिविज्ञान की कुंजी मानता है | इतिहास के सभी कारक,कारण की उत्पत्ति है “ उत्पादन पध्दति में परिवर्तनों और विनिमय तथा परिणामस्वरूप समाज का विभिन्न वर्गों में विभाजन और वर्ग संघर्ष में निरूपित होना | ऐतिहासिक भौतिकवाद एक व्यावहारिक विज्ञान है | उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन के आधार पर यह मानव इतिहास का युग निरूपण करता है | व्यवस्था बदलने के लिए गतिविज्ञान के नियमों की वैज्ञानिक समझ जरुरी थी | इसके लिए मार्क्स ने द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के आधार पर ऐतिहासिक भौतिकवाद के विज्ञान का अन्वेषण किया | द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद मार्क्सवादी दर्शन और ऐतिहासिक भौतिकवाद उसका विज्ञान है |

संदर्भ:

  1. लुडविग फायरबाख- एसेंस ऑफ़ क्रिश्च्नीटी
  2. कार्ल मार्क्स –अ कॉन्ट्रिब्यूशन टू दि क्रिटिक ऑफ़ हेगेल
  3.  बी आर अम्बेडकर-प्रतिक्रांति की दार्शनिक पुष्टि
  4. एंटोनिओ ग्राम्सी-सेलेक्सन फ्रॉम प्रिजन नोट्स
  5.  कार्ल मार्क्स-वेज लेबर एंड कैपिटल
  6.  एंगेल्स-सोशलिज्म यूटोपियन एंड साइन्टिफिक
  7. कार्ल मार्क्स-इकानामिक एंड फिलोसोफिकल मैन्यूस्क्रिप्ट
  8.  रूसो-डिस्कोर्स अपोन ओरिजिन एंड फाउंडेशन ऑफ़ इनेक्विलिटी
  9.  फ्रांसिस फुकुयामा-दि एन्ड ऑफ़ हिस्ट्री एंड दि लास्ट मैन