( कश्मीर यात्रा पर दूसरी किस्त। पहली किस्त के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं)
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अप्रैल 2018 की 14 तारीख को जम्मू से अनंतनाग पहुचते–पहुँचते शाम के छह बज चुके थे। अक्कड़ गांव से बिलाल रैना हमें लेने के लिए अपनी कार लेकर हाजिर हो चुके थे। अपने गांव से 15 किलोमीटर चल कर बिलाल हमें लेने के लिए अनन्तनाग आए। उनके गांव अक्कड़ इस्लामाबाद अपने साधन से आसानी से पहुंचा जा सकता था, जो पहलगाम हाईवे पर है। उनके गांव के मोड़ पर हाईवे पर ढाबे और मिठाई की दुकानें है, जिसमें एक मिठाई की दुकान उत्तर प्रदेश के बिजनौर के एक हिन्दू की है, जो कश्मीरियों के बीच अपने को पूरी तरह महफूज मानता है।
बिलाल के परिवार से मिल कर ऐसी ख़ुशी की अनुभूति हुई, जिसे इजहार करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। वे अपनों से भी अपने लगे। हमारे वहां पहुंचने की सूचना परिवार में स्त्री-पुरुष, बच्चों सबको थी। इसलिए हमारे पहुंचने से ख़ुशी की चमक हर किसी के चेहरे पर थी। ड्राइंग रूम में सोफे-कुर्सियां आदि नहीं नजर आईं,जबकि लकड़ी वहां इफरात होती है। बड़े से हाल नुमा कमरे में एक सुन्दर सी कालीन और दीवार से टिके कुशन,मसनद और तकियों से सजी बैठक। एक हसीन महफ़िल का नजारा, जहां स्त्री-पुरुष, बच्चे पूरी आजादी से बैठते बतियाते हैं। मुझे यह सब देख कर एक अजब सा कौतूहल हो रहा था। कौन सी दुनियां में हम आ गए हैं, जो इतनी खुशमिजाज और हसीन है। दिन भर की पहाड़ी यात्रा से हम चारों साथी काफी थके थे, पर बिलाल के परिवार वालों की बातचीत और मेहमाननवाजी से थकावट कहां फुर्र हो गयी, पता ही नहीं चला। हम लोग तकिए के सहारे टिके बैठे थे कि परिवार का एक नौजवान पानी लेकर हाथ धुलाने आया। इस रश्मों रिवाज को देख कर हम कश्मीर की कश्मीरियत को सीधे देख पा रहे थे |ड्राई फ्रूट उनकी घर की फसल है। इसलिए अखरोट, बादाम से आवभगत तो उनके रिवाज में है। इसके बाद चाय के साथ नाश्ते में ढेरों चीजें आईं,जिसमें उबले अंडे भी थे। अंडे भी घर की मुर्गियों के ही थे। हर कश्मीरी अपने घर के बगीचे में खाने भर की सब्जियां जरुर उगाता है। मुर्गे–मुर्गियां और दूध के लिए गाय हर कश्मीरी के घर में मिलती है। कश्मीर के गांव वाले नमक और डीजल-पेट्रोल के अलावा बाजार से शायद ही कुछ खरीदते हों। खेत उन्हें सब कुछ देते हैं। चाय नाश्ता करते हुए हमने खूब बातें की और पारस्परिक जान पहचान भी बढाई। इस बीच मेरा कैमरा भी चलता रहा। सबने बड़े उत्साह और ख़ुशी से फोटो खिचवाए। परिवार की महिलाएं भी हमारी पारस्परिक बातचीत में शिरकत कर रहीं थीं। लगता था जैसे हम किसी शादी विवाह में शामिल होने आए हों। एक अजब उत्सव जैसा माहौल था। रात्रि भोज में इतने तरह के पकवान परोसे गए कि हम इस मेहमाननवाजी के कायल हो गए। हम चार साथियों में तीन हिन्दू थे और मसूद साहब अकेले मुस्लिम थे। पर वहां सिर्फ एक ही चीज समझ में आयी कि हम सब इन्सान हैं। उसी कालीन पर गद्दे और रजाइयां-कम्बल लगा दिए गए और थके होने के कारण कब नींद आ गयी पता नहीं चला। सुबह जब जगे तो छह बजे थे। जनवरी जैसी ठंड थी। फ्रेश होकर ट्रैक सूट पहन कर कश्मीर के इस गांव की सुबह देखने निकल पड़ा। वैसे भी प्रात: भ्रमण मेरी आदत बन चुकी है। गहरी नींद में सोए साथियों को जगाने की मैंने जुर्रत नहीं की। एक झरने से बहने वाले पानी ने एक नहर जैसी शक्ल ले ली थी। गांव वालों का कहना था कि यह नाला अमरनाथ के रास्ते में गिरने वाले झरने से पहलगांम से होकर आता है। नाले का पानी इतना साफ और ठंडा था कि लोग पीने और घर के वर्तन-कपडे धोने में इस्तेमाल करते हैं। लोग इसी नाले के पानी से घरों में पाइप लाइन से पानी ले जाते है। वैसे इस इलाके में पानी भी10-15 फुट पर मिल जाता है,इसलिए बोरिंग शायद ही कोई कराता हो।
हां, सेब के खेतों में बोरिंग देखने को जरूर मिलती है। सुबह घूमते हुए हमने अखरोट के दरख्तों के कई किलोमीटर लम्बे गलियारे देखें और पीले-पीले फूलों से भरे सरसों के खेत और बर्फ से ढके पहाड़। सुबह कैमरा लेकर नहीं गया था, इसलिए मोबाइल फोन का कैमरा इस्तेमाल किया। थोड़ा संकोच और डर जरुर मन में था कि यहां के लोग हमें कहीं गलत न समझ बैठें।
बिलाल का परिवार संयुक्त परिवार जैसा है। उनके वालिद मोहम्मद सुल्तान रैना यही कोई 70-75 साल के होंगे। उनके चार बेटे अब्दुल रहमान, बसीर अहमद, गुलाम हसन और बिलाल रैना हैं। बिलाल सबसे छोटे हैं और गांव में उनकी दुकान है,जबकि उसने भोपाल में पोलिटिकल साइंस से पीजी किया हुआ है। रैना यहां कश्मीरी ब्राह्मण होते हैं। पर मोहम्मद सुल्तान का परिवार भी रैना लिखता हैं। यह इस बात का सबूत है कि हिन्दू-मुस्लिम में कितना साम्य और घनिष्ठता है। अब्दुल रहमान और गुलाम हसन रैना सरकारी नौकरी में हैं और बसीर अहमद रैना गांव में खेतीबाड़ी संभालते हैं। उनके वालिद मोहम्मद सुल्तान रैना ने अपने सभी बेटों के मकान आसपास ही बनवाये हैं और सब अपने-अपने घरों में रहते हुए भी साथ-साथ रहते हैं।
उनके वालिद और वालिदा का सबके घर रोज का आना जाना रहता है। एक का मेहमान सबका मेहमान होता है। परिवार का यह अनूठा रूप बड़ा मोहक और अनोखा लगा। सुबह घूम कर आया तो हमारे साथी लोग जाग चुके थे। फिर हम सब लोग चाय पीकर रहमान साहब के नेतृत्व में अक्कड़ गांव घूमने निकले। बहुत लोगों से दुआ सलाम और परिचय हुआ। पर सबकी शिकायत थी कि हम लोग कम समय लेकर आये हैं। कश्मीर घूमने के लिए कम से कम एक महीने का समय लेकर आना चाहिए,तब कश्मीर देखा, जाना और समझा जा सकता है। मेरे दिमाग में कश्मीर पर एक डाक्यूमेंटरी बनाने का खयाल कौंधा। हमें सुबह दस बजे तक श्रीनगर के लिए निकलना था। भर पेट नाश्ता कर हम अपने लगेज समेट कर तैयार हो गये। हमने बसीर साहब के बगीचे में एक अखरोट का पौधा लगाया, इस उम्मीद के साथ कि यह बड़ा होकर कश्मीरियों और हमारी मोहब्बत का बड़ा दरख्त बनेगा। इसके अखरोट के फलों में हमारी मोहब्बत की मिठास होगी। हमारा सामान ऊपर की बैठक से नीचे लाया जा चुका था। सबके घरों से अखरोट के पैकेट विदाई के भेंट के रूप में आने लगे। फिर सबने मिल कर ग्रुप फोटोग्राफी करायी। यह फोटो आज कश्मीर यात्रा का नायब तोहफे के रूप में हमारे पास हैं। सब प्रेम और मोहब्बत के भावों से लबरेज थे। रहमान साहब अपनी कार से हम लोगों को अनंतनाग की मटन तहसील तक छोड़ने आये, जहाँ हमने सूर्य मन्दिर के दर्शन किये जो कोणार्क सूर्य मंदिर के बाद दूसरा सूर्य मंदिर है। वहां हमने मस्जिद और गुरुद्वारे को एक ही स्थान पर साथ-साथ सटे हुए देखा जो साम्प्रदायिक सद्भाव और भाईचारे का जीता जागता सबूत है।
राज्य को केवल अपने स्वार्थ के लिए बदनाम किया है
जवाब देंहटाएंराज्य तो एकता का दुर्लभ नमूना हौ
सही बात
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