शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

कश्मीर में हिन्दू-मुस्लिम कोई मुद्दा नहीं


भगवान स्वरूप कटियार
( समापन किस्त)
सिख साथियों से पता चला कि कश्मीर में हिन्दू-मुस्लिम कोई मुद्दा ही नहीं हैं। यहां सभी कश्मीरी हैं। न हिन्दू न मुस्लिम। मुस्लिम, हिंदुओं की शवयात्रा में शामिल होते हैं और हिंदू भी कब्रगाह जाते हैं। कश्मीरी पंडितों के मुद्दे के बारे में पता चला कि यहां के मुस्लिम समाज के आज भी कश्मीरी पंडितों से सौहार्दपूर्ण रिश्ते हैं, जो पहले थे। वे एक- दूसरे के शादी विवाह में शामिल होते हैं। अभी भी जो कश्मीरी पंडित कश्मीर में हैं, उन्हें कश्मीरी मुसलमानों पर पूरा यकीन है। 
कई स्‍थानीय कश्मीरियों का कहना था कि यह सारा बिगाड़ा खेल तत्कालीन कश्मीर के गवर्नर जगमोहन का है, जिसने दहशत फैलाकर कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से भगा दिया, ताकि कश्मीरी मुसलमानों को राज्य सत्ता के चाबुक से हांका जा सके। वह राष्ट्रपति शासन का दौर था और गवर्नर थे रिटायर्ड आईएएस अफसर जगमोहन। कश्मीरी पण्डितों के रहते राज्य सत्ता का दमन चक्र कश्मीरी पण्डितों को भी प्रभावित करता और तब हिन्दू-मुस्लिम की सियासी आग इस तरह न सुलग पाती, जो आज लपटों के रूप में सर्वनाश कर रही है। इस बीच जिस किसी से भी बात हुई तो दो टूक निष्कर्ष निकल कर सामने आया कि कश्मीरियों को भारत के साथ रहने में कोई गुरेज नहीं है और वे रह ही रहें है वर्षों से साथ-साथ। सारा खेल सियासत और फ़ौज ने बिगाड़ा है। वे कहते हैं हमें साथ-साथ रहने की संभावनाओं पर और अधिक संवेदनशीलता से सोचने-समझने की जरूरत है।
  जुलाई २०१६ में मोहम्म्द बुर्हनुद्दीन वानी का इनकाउंटर हुआ था। इस पढ़े-लिखे नौजवान के एनकाउंटर ने पूरे कश्मीर को ही नहीं पूरे देश को हिला कर रख दिया था। इसकी कश्मीर में जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई थी। अभी भी बरसी पर कश्मीर में लोग सड़कों पर उतर पड़ते हैं। अब बुरहान वानी के इलाके को फ़ौज ने छावनी में तब्दील कर दिया है। अवंतीपोरा तहसील के खार मोड़ पर त्रालमिदूरा गांव के रास्ते में एक बड़ी सी जमीन किराये पर लेकर वहां किलेनुमा अड्डा बना रखा है, जहां फ़ौज  का गोलाबारूद रहता है।यहां फौज का बड़ा जमावड़ा है। अब इस इलाके में होने वाले प्रदर्शनों में लड़कियों की भी शिरकत होती है। फ़ौज की कार्रवाइयों ने तमाम नौजवानों को भटकाया भी है। 
   वर्ष २०१५ में बुरहान के भाई का एनकाउन्टर किया गया था, जो एक लैब में काम करता था। बुरहान के वालिद एक कालेज में प्रिंसिपल हैं और उसके दादा किसी कालेज में लेक्चरर थे। बुरहान के तीन भाइयों में एक बचा है जो पढाई कर रहा है और उसकी एक बहन भी है। बुरहान के नहीं रहने से पूरा परिवार गहरे सदमें में है। अब कश्मीर में लोग बुरहान को शहीद का दर्जा देते हैं। जिनसे भी वहां मुलाकात ह़ुई १०० में ८० लोगों ने उसे शहीद कहा। उसकी मजार बना दी गई, जहां बड़ी संख्या में लोग जमा होते हैं। 

१५ अप्रैल को हम श्रीनगर के खैयाम चौक पहुंचे। वहां करीब तीन बजे शारजाह होटल में दाखिल हुए। वहां फ्रेश हुए और लंच कर डल झील घूमने निकल गए। वहां टूरिज्म के पीक सीजन में अजीब सा सन्नाटा देखने को मिला। आमतौर पर शिकारों से भरी रहने वाली डल में बहुत कम शिकारे सैलानियों को घुमा रहे थे। आतंकी माहौल ने टूरिज्म के कारोबार को चौपट कर दिया है। हम लोगों ने एक शिकारा लिया, जिसको जहूर मियां चला रहे थे। ५ से ८ बजे रात तक तीन घंटे हम लोग शिकारे में डल झील घूमे। डल झील भी पुलिस और आर्मी सिक्योरिटी की गिरफ्त में थी। लोगों से बात करने पर सबके दिल दर्द से कराहते नजर आए। सब कहते कि कश्मीर की जन्नत को किसी की बुरी नजर लग गयी है। अगले दिन हम शालीमार और ट्यूलिप गार्डन घूमते हुए वेमिना डिग्री कालेज पहुंचे, जहां के छात्र और अध्यापक हमारा इंतजार कर रहे थे। यह शेड्यूल कश्मीर यात्रा के लिए चलने से पहलें ही बन चुका था। ट्यूलिप गार्डेन के फूलों की रंगत ने हम सबको लूट लिया था। बरसते पानी और हल्की ठंड में ट्यूलिप गार्डन घूमना बेहद खुशनुमा लग रहा था। 
वेमिना डिग्री कालेज में प्रो नदीम अहमद ने हमें अपने साथियों से मिलवाया। उनको यह जानकर काफी खुशी थी कि हम लोग कश्मीर के हालात जानने-समझने के लिए आए हैं।  उन्होंने जो दर्द बयां किया तो उनके साथ हम भी फूट-फूट कर रोये। तब हमें लगा राज्यसत्ता के दमन का मंजर किस स्तर तक पहुंच गया है। प्रो जीडी वानी (पर्सियन), प्रो आतिब मंजूर (अरैबिक), प्रो नदीम अहमद (इकनामिक्स), तारिक अहमद (उर्दू), प्रो बिलाल (इंग्लिश), प्रो मालिक (इकनामिक्स) तथा प्रो अमरजीत सिंह (हिंदी) ने आज के दौर के कश्मीर पर अपने विचार साझा किए। प्रो आतिब मंजूर की दर्द भरी दास्तां ने सबको रुला दिया। बाकया उनके घर के पास हुए एक आतंकी हमले का था।
उन्होंने बताया कि फौज के अफसर उनको घर से पकड़ कर ले गए। उन्हें मारा पीटा और बेइज्जत किया। उन्होंन यह भी लिहाज नहीं किया वे एक सीनियर प्रोफेसर के साथ ऐसा बरताव कर रहे हैं। यही वजह है जब कश्मीरी कहते हैं कि डेफिसिट आफ ट्रस्ट की स्थिति पैदा हो गई है। उनका मानना है कि सरकार का पालिसी अप्रोच सही नहीं है। 
प्रो. बिलाल और मलिक ने कहा है कि मौजूदा सरकार का मुसलमानों के प्रति रवैया सही नहीं है। पूरे देश में यही हाल है। मुसलमानों को तबाह कर वे हिन्दू वोट संगठित करते हैं जबकि उन्ही हिन्दुओं में दलितों और पिछड़ों के साथ उनके सलूक मुसलमानों से कम बदतर नहीं हैं। आगरा के भीम सेना के चन्द्रशेखर के साथ उनका सलूक सामने है।जुनेद ,अख़लाक़ के साथ खड़े होने की भी उन्होंने हमसे अपील की क्योकि वे हमारे देश के मुसलमान हैं। कश्मीर के लोग हिंदुस्तान के साथ रहें इसकी संभावनाएं तलाशी जानी चाहिए पर हालात क्यों बिगड़े और किसने बिगाड़े यह उससे जरुरी और बड़ा सवाल है।उन्हें कश्मीर की सरकार, केंद्र सरकार, हुर्रियत नेताओं और फ़ौज से बेहद शिकायत है।हालात ठीक करने और अमन कायम  करने की पहली शर्त है कश्मीर से फौजों को हटाना। फौज के लोग कश्मीरी नौजवानों का एनकाउन्टर कर उन्हें अपराधी बनाने पर अमादा है। जब हमने कहा कि कश्मीर घूमते हुए हमने देखा कि कश्मीर में गरीबी नहीं है और कश्मीरी लोग मेहनती हैं तो उनके चेहरे चमक आ गई और बोले चलो आप लोगों ने माना तो कि कश्मीरी मेहनती हैं। वरना यहां तो यह आरोप लगाया जाता है कि कश्मीरियों के गाल केंद्र सरकार से मिल रहे पैसे से लाल हो रहे हैं।
अगले दिन १८ अप्रैल को हमारी वापसी थी। श्रीनगर छोड़ने के पहले सुबह बरसते मौसम में हम लोग हज़रत बल देखने गए और कश्मीर यूनिवर्सिटी भी देखी। बन्द होने के कारण वहां किसी से मुलाकात नहीं हो पाई। श्रीनगर से दोपहर १२ बजे चल कर अवंतीपोरा के रास्ते हम त्राल मिदूरा गांव पहुंचे, जहां एक ७० वर्षीय बुजुर्ग अब्दुल रसीद वानी अपने परिवार के साथ हमारा इंतजार कर रहे थे। वे हमें अपनी कार से हम लोगों अवंतीपोरा लेने आये। कार के चालक थे उनके भांजे मिस्टर आसिफ़ हुसैन वानी प्रिंस।
एक खुशमिजाज नौजवान जिसे सभी प्रिंस कहते हैं।
अब्दुल रसीद साहब के तीन बेटे हैं। सबसे बड़े हमीदुल्ला वानी वहीँ पर टीचर हैं7 गुलाम मुहिमुद्दीन वानी सेक्रेटीरियेट में मुलाजिम है।हमारे लखनऊ के साथी मसूद साहब के दामाद जादे डा०जहूर अहमद वानी यहीं लखनऊ में सीमैप में रिसर्च स्कॉलर हैं। रसीद साहब की दो बेटियां भी हैं। रसीद साहब खुद भी एनीमल हसबैंडरी विभाग में मुलाजिम रह चुके हैं। उनके पास लगभग ६० कुनाल (बीघे की तरह कृषि भूमि की इकाई) की खेती है जिसमें अखरोट, सेब और बादाम के बगीचे हैं। उनके घर की दीवार पर फ़ौज की बंदूकों से चली गोलियों के निशान देखने को मिले। अब लोग इन चीजों के आदी हो गये हैं। धूप अच्छी लग रही थी घर के सामने लान में बैठ कर उसका आनन्द लिया। हमारे पास समय कम था इसलिए कम से कम समय में अधिक से अधिक घूम लेना चाहते थे। शाम तीन बजे हम रसीद साहब के साथ कार से बुरहान वानी के घर त्राल गए और बूढ़े दादा से मिले। बुरहान वानी कब्र के उन तमाम नौजवानों की भी कब्रे हैं जो इनकाउंटर में मारे गये हैं।
  थोड़ी देर में पता चला कि आर्मी किसी नौजवान को उठा ले गयी है7 सड़कों पर नौजवानों की भीड़ इकठ्ठा हो गयी। कुछ पूछतांछ शुरू न हो जाय इस अंदेशे से हम लोग घर वापस लौट आये। रास्ते में भीड़-भाड़ और तनाव का मंजर देखते हुए घर पहुंचे।सुबह हमें जम्मू के लिए रवाना होना था। चाय नाश्ते के बाद हम लोग सेब के बाग़ देखने गये जिनमें अभी फूल लगा हुआ है। सेब के दरख्त में कलम की ग्राफ्टिंग कर तमाम किस्म के सेव एक ही दरख्त में लगते हैं। इस करिश्माई जानकारी ने हमें अचम्भे में दाल दिया। आधुनिक तकनीकी और वैज्ञानिक जानकारियों से लैस हैं कश्मीर के किसान। रसीद साहब ने एक कुशल गाइड की तरह हमें तमाम चीजें दिखाई और सेब पकने के समय यानी नवम्बर-दिसम्बर के महीने में कश्मीर आने की दावत भी दे डाली।
अवन्तिपुरा से हम लोग जम्मू के लिए टैक्सी से रवाना हुए। काजीगुंड के आगे लवर मुंडा में जाम लग गया। रामबाग में हैवी लैंड स्लाइड ने रास्ता रोक दिया था। कश्मीरियों के खुशमिजाज चेहरे और कश्मीर में अमन लाने का जलता सवाल हमारी नम आँखों में तैर रहे हैं। हमने अपने कश्मीरी भाइयों से कुछ वायदे किये हैं और उसी दिशा में आगे बढ़ना है।

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