मंगलवार, 14 अगस्त 2018

आज के दौर में मार्क्स का मार्क्सवाद कैसा होना चाहिए ? (दूसरा भाग)

(भगवान स्वरूप कटियार)।
(पहली किस्त के लिए इस लिंक पर जाएं-https://100flovers.blogspot.com/2018/08/blog-post.html?m=1)

दुनायेव्ह्स्काया ने सभी किताबों में एक नए किस्म के मार्क्सवाद के विकास को प्रतिष्ठित किया जो इस बात पर आधारित है कि आज के दौर में मार्क्स का मार्क्सवाद कैसा होना चाहिए ? उन्होंने तर्क और तथ्यों से सिद्ध किया की मार्क्स की महान रचना पूँजी सबसे ज्याद द्वंद्वात्मक और मानववादी है | क्योकि यह इस विचार पर केन्द्रित है कि मानवीय सम्बन्ध पूंजी के वर्चस्व वाले समाजों में किस तरह वस्तुओं के बीच सम्बन्धों का रूप ले लेते हैं | सच्चा समाजवाद इन परिस्थितियों का निषेध करते हुए नये मानवीय सम्बन्धों को रचते हैं जो उत्पादन केन्द्रों से शुरू होकर सबसे ज्यादा अन्तरंग रिश्तों में फैले होते हैं |       
        मार्क्स का ऐतिहासिक भौतिकवाद व्यावहारिक विज्ञान है | उत्पादन प्रणाली के परिवर्तन के आधार पर यह मानव इतिहास का युग रूपांतरण करता है | आदिम उत्पादन प्रणाली पर आधारित आदिम साम्यवाद का युग ,दास उत्पादन प्रणाली पर आधारित दास युग , सामन्ती उत्पादन प्रणाली पर आधारित सामन्तवादी युग तथा पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली पर आधारित पूंजीवादी युग वर्ग समाज और इसके बाद वर्ग विहीन राज्य विहीन साम्यवादी युग जो निरंतर सर्वहारा क्रांतियों से आयेगा जिसकी समय सीमा तय नहीं है | मार्क्स–एंगेल्स कम्युनिस्ट घोषणापत्र में लिखते हैं दुनियां का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है जिसका मतलब है कि वर्ग समाज में शोषण ,उत्पीड़न और अन्याय के विरुध्द सभी आन्दोलन वर्ग संघर्ष के हिस्से हैं | व्यक्ति का वजूद स्वायत्त न होकर विशिष्ट सामाजिक सम्बन्धों के तहत सामाजिक है | कम्युनिस्ट घोषणापत्र में मार्क्स लिखते हैं कि बुर्जुआ राज्य पूंजीपति वर्ग के हितों की प्रबन्ध कमेटी है | मार्क्स लिखते हैं कि मनुष्य की चेतना उसकी भौतिक परिस्थितियों का परिणाम है और बदली हुई चेतना बदली हुई परिस्थितियों की | लेकिन न्यूटन के गति के नियम के अनुसार बिना बाह्य बल के कोई चीज हिलती भी नहीं है | अत; भौतिक परिस्थितियाँ अपने आप नहीं बल्कि मनुष्य के चैतन्य प्रयास से बदलती हैं | इतिहास की गति का निर्धारण भौतिक परिस्थितियों और सामाजिक चेतना की द्वंद्वात्मक एकता से होता है किसी ईश्वर,पैगम्बर या अवतार की इच्छा या कृपा से नहीं | इस तरह हम देखते हैं कि सत्य की व्याख्या के लिए मार्क्स ने हीगल के द्वंद्ववाद और फायरबाख के भौतिकवाद को संदर्भविन्दु बनाया | उसकी द्वंद्वात्मक एकता ने सत्य की नयी व्याख्या की ,नयी चिन्तनधारा दी और एक नए दर्शन का उदघाटन किया | हीगल को उलटते हुए मार्क्स ने कहा कि विचार से वस्तु की उत्पत्ति नहीं हुई है बल्कि वस्तु से विचार की उत्पत्ति हुई है | ऐतिहासिक रूप से वस्तु विचार से पहले मौजूद रहती है और ऐतिहासिक रूप से विचार वस्तुओं से ही निकलते हैं हवा में नहीं | जैसे न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का सिध्दांत जहाँ सेब का गिरना पहले से मौजूद था | इसी प्रकार ईश्वर ने मनुष्य को नहीं बनाया है बल्कि मनुष्य ने ईश्वर की अवधारणा को गढ़ा है | उन्होंने वस्तु को सब कुछ मानने वाले फायरबाख को भी ख़ारिज किया और वस्तु पर विचार की प्राथमिकता मानने वाले हीगल को भी ख़ारिज किया | उन्होंने कहा जो भी विवेक सम्मत है वास्तविक है और जो वास्तविक है वह विवेक सम्मत है और अपने विकास क्रम में वास्तविकता समय की आवश्यकता बन जाती है | मार्क्सवाद दुनिया को समझने का गतिमान विज्ञान है और सर्वहारा क्रांति की विचारधारा | एंगेल्स मार्क्स की अंत्येष्टि में अपने भाषण में कहा था कि “जिस तरह डार्विन ने जीवन के विकास के नियमों की व्याख्या की उसी तरह कार्ल मार्क्स ने इतिहास के विकास के नियमों की व्याख्या की है | अत: मार्क्सवाद एक विज्ञान है और मार्क्स विज्ञान को गतिशील मानते थे इसलिए मार्क्सवाद कोई स्थिर आस्था नहीं है बल्कि गतिशील विचार दर्शन है | मार्क्सवाद के बौध्दिक संसाधन सिर्फ मार्क्स और एंगेल्स के विचारों तक सीमित नहीं हैं | ज्ञान की तरह विज्ञान भी एक निरंतर प्रक्रिया है जो अपनी परिस्थिति को समझने और बदलने के प्रयास करने वाले लेनिन ,माओ,ग्राम्सी ,चेग्येरा ,भगतसिंह की रचनाओं के ज्ञान से अनवरत सम्रध्द होता रहा है |

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