शनिवार, 20 अप्रैल 2013

ये हमारे-तुम्हारे बच्चे तो नहीं?

                                                     सलीम अख्तर सिद्दीकी
वह शहर का एक ऐसा पॉश इलाका था, जहां पर कई नामी पब्लिक स्कूल थे। बढ़ती गर्मी के बीच उस इलाके से गुजर रहा था, तो प्यास की वजह से गला सूखने लगा। मैंने पानी की तलाश में इधर-उधर निगाह दौड़ाई, लेकिन उस कंक्रीट के जंगल में कहीं हैंडपंप तक नहीं नजर आया। एक दुकान पर पानी की बोतल लेने के लिए मैं रुका। बोतल लेकर उसे खोला और मुंह से लगाया ही था कि दुकान के सामने पांच-छह मोटर साइकिलें आकर रुकीं। वे नामी पब्लिक स्कूल के छात्र थे। उस स्कूल में दाखिला लेने के लिए मारामारी होती थी। बच्चों के अभिभावक स्कूल के दावों की जांच किए बगैर स्कूल संचालक की हर शर्त पूरी करते थे। एक होड़ थी और लोग उसमें शामिल थे। बहरहाल, जो बाइक पर आए लड़कों की उम्
र से वे 11वीं या 12वीं के छात्र लग रहे थे। दुकानदार को जैसे पता था कि उन्हें क्या चाहिए। छात्रों के कुछ कहने से पहले ही दुकानदार ने महंगी सिगरेट का एक पैकेट उनकी ओर बढ़ा दिया। सभी ने अपने-अपने लिए पैकेट में से एक-एक सिगरेट निकाली। एक छात्र ने बारी-बारी से सभी की सिगरेट सुलगाई। एक छात्र ऐसा भी था, जो शायद सिगरेट नहीं पीता था। उसका हाथ खाली देखकर एक छात्र ने कहा, ‘अबे! यह क्यों सिगरेट नहीं पी रहा है?’ दूसरे छात्र ने सिगरेट न पीने वाले छात्र का मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘तू जानता नहीं, यह अपने स्कूल में ‘भाई साहब’ के नाम से मशहूर है।’ सभी ने ठहाका लगाया। लड़का झेंप गया। तभी एक छात्र अपनी सिगरेट लेकर आगे बढ़ा, ‘आज इसका बपतिस्मा करते हैं।’ इतना कहकर उसने सिगरेट उसके मुंह से लगा दी। छात्र ने नानुकर की तो सभी एक साथ बोले ‘अबे! नखरे मत कर। तेरा बतिस्मा हो जाएगा, तो आज सभी को कोल्ड ड्रिंक मेरी तरफ से।’ यह प्रस्ताव सुनकार सभी उससे सिगरेट में कश लगाने की जिद करने लगे। उस छात्र ने थोड़े अनमने ढंग से सिगरेट में दो-तीन कश लगाए और खांसता हुआ बाहर चला गया। सभी छात्रों ने जोरदार तरीके से ‘हुर्रे’ बोला। कोल्ड ड्रिंक की बोतलें खुलने लगीं। वह छात्र दोबारा दुकान में घुसा। अब उसने खुद एक छात्र के हाथ से सिगरेट लेकर कश लगाए। तभी छात्रों में से एक की आवाज आई, ‘यह तो बहुत जल्दी सैट हो गया। इसके बतिस्मा की खुशी में आज शाम की बीयर मेरी तरफ से।’ दुकान में बीयर पिलाने की बात करने वाले छात्र के पक्ष में नारे लगने लगे। जरा सोचिए, इनमें हमारे-तुम्हारे बच्चे तो नहीं हैं?

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