मुनेश त्यागी
1857 में भारत में अंग्रेजों के खिलाफ हुए व्यापक विद्रोह को वैज्ञानिक समाजवाद के प्रवर्तक कार्ल मार्क्स ने हिन्दुस्तान का पहला स्वतंत्रता संग्राम कहा था। इस महासंग्राम ने भारत के अनेक वीरों व वीरांगनाओं को विश्व प्रसिद्ध कर किया। इस संग्राम में अपनी रणनीति, वीरता और सूझबूझ से नाना साहब, बेगम हजरतमहल, बहादुरशाह जफर, अजीमुल्ला खां, वीर कुंवर सिंह, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई आदि ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए। तात्या टोपे भी इस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक अत्यंत बहादुर, चतुर और योग्य सेनानायक थे।तात्या टोपे का असली नाम रामचंद्र राव था। उनका जन्म पूना के एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम पांडुरंग राव भट्ट था। तात्या टोपे ने नाना साहब पेशवा और झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के साथ अंग्रेजों के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में पूरी शिद्दत से हिस्सा लिया। सदैव टोपे धारण किए रहने के कारण इनका नाम तात्या टोपे पड़ गया।
गुरिल्ला युद्ध की शुरुआत
1857 के महासंग्राम में असफल होने के बाद संघर्ष को जारी रखने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में तात्या टोपे ने छापामार युद्ध यानी गुरिल्ला लड़ाई का सहारा लिया। फिरंगियों की कई सेनाएं उनका पीछा करती रहीं, लेकिन उनकी आंखों में धूल झोंककर तातिया प्राय: दस माह तक लड़ते रहे और अंग्रेजों को छकाते रहे। वे नई सेना इकटठा करते, नए स्थानों पर कब्जा करते और उनके हाथ से निकल जाने पर दूसरे नए स्थान पर पहुंच जाते। तात्या अपने साथियों के साथ नर्मदा पार करके दक्षिण भारत में निकल जाना चाहते थे, क्योंकि दक्षिण में छापामार युद्ध चलाना ज्यादा सुविधाजनक था।
रणनीति में माहिर तात्या
होशंगाबाद के पास तात्या ने संसार के बड़े-बड़े युद्ध विशारदों को चकित कर सेना सहित नर्मदा नदी पार कर गए। उनकी प्रशंसा करते हुए अंग्रेजी इतिहास लेखक मालेसन ने लिखा, ‘जिस दृढ़ता और धैर्य से तात्या ने अपनी इस योजना को पूरा किया, उसकी प्रशंसा न करना असंभव है।’ इसी तरह तात्या के विषय में लंदन टाइम्स के एक संवाददाता ने लिखा, ‘तात्या ने मध्य भारत में तहलका मचा रखा है। उसकी यात्राएं बिजली की तरह प्रतीत होती हैं। वह कभी हमारे सैन्य दलों के आगे से निकल जाता है, कभी पीछे से, कभी सामने से, कभी पहाड़ों पर से, कभी नदियों से, कभी वादियों में से, कभी घाटियों में से, कभी दलदलों में से, कभी घूमकर फिर भी वह हाथ न आया।’
फौज को कूच करवाने में माहिर तात्या
तात्या कमाल के गुरिल्ला कमांडर थे। उन्होंने आजादी के लिए खजाने लूटे, सेनाएं जमा कीं और खोई भी, कई बार हारने के बाद भी एक विजयी योद्धा की तरह अपना हौसला नहीं खोया। उनके द्वारा नर्मदा नदी पार करने के दृश्य को प्रसिद्ध इतिहासकार सुंदरलाल ने अलौकिक कूच बताया है। तात्या ने अपनी सेना को तोपें छोड़कर नदी में कूदने की आज्ञा दी और उनकी सेना पलभर में नर्मदा के पार दिखाई दी। इस पर मालसेन लिखता है, ‘संसार की किसी भी सेना ने कभी कहीं पर इतनी तेजी के साथ कूच नहीं किया, जितनी तेजी के साथ तात्या की भारतीय सेना इस समय कूच कर रही थी।’
हंसते हुए चूमा फांसी का फंदा
तात्या को अंग्रेजों की गुलामी कतई भी बर्दास्त न थी। वे किसी भी कीमत पर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को जारी रखना चाहते थे। उनकी कार्यनीतियां और युद्धकौशल विस्मयकारी और अद्वितीय था। अंग्रेजी सेना को चकमा देकर भागना और अपनी लड़ाई को जारी रखना उनके लिए कोई बड़ा काम नहीं था। तात्या और उनके साथियों का मुख्य उद्देश्य था- देश को आजाद कराना, फिरंगियों को मार भगाना, अंग्रेजों की लूट, अत्याचार ज्यादतियों ओर शोषण से देश और जनता को बचाना।
अंग्रेजों ने छल, कपट, धोखाधड़ी, ‘फूट डालो और राज करो’ की नीतियों से भारत को गुलाम बनाया। अपनी इसी नीति के तहत उन्होंने तात्या टोपे को पकड़ने की नीति अपनाई। इस महान सेनानायक को पकड़वाने वाला यह देशद्रोही और दगाबाज सिंधिया का जागीरदार मानसिंह था। इसने विश्वासघात करके तातिया को 7 अप्रैल, 1859 को पकड़वा दिया। तातिया को फांसी देने का दिन 18 अप्रैल, 1859 नियत किया गया। फांसी के दिन हजारों शिवपुरी वासी तात्या को दूर से श्रद्धापूर्वक नमस्कार कर रहे थे। तात्या टोपे फांसी के तख्ते पर चढ़े और हंसते हुए फांसी का फंदा अपने गले में डाल लिया। भीड़ ने जय तात्या की आवाज बुलंद की। ऐसा लगा जैसे भीड़ में हजारों तात्या जिंदा हो गया हो।
संपर्क : 27 ए जनकपुरी, गढ़ रोड, मेरठ, मो. 9837151641
इतिहास से परिचित कराने के लिए बहुत आभार
जवाब देंहटाएं