शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

महान कवियित्री कात्यायनी के नोटिस का जवाब

                                   वाह! खूब...उल्टा चोर...

                                              सत्येन्द्र कुमार, लखनऊ
हमें जानकारी मिली है कि सुश्री कात्यायनी, सत्यम एवं रामबाबू जो एक व्यक्ति भी है एवं कुछ संस्थाओं के अधिकारी भी, ये लोग संस्थाओं के माध्यम से हमारे ऊपर 25 लाख की मानहानि का वकालतन नोटिस भेज रखा है। उस नोटिस में मानहानि का आधार पुस्तक 'क्रान्ति की नटवरगिरी' के आलेखों को बनाया गया है।
मेरा कहना है कि उस पुस्तिका में मैंने नटवरगिरी का आरोप सुश्री कात्यायनी के पतिदेव शशिप्रकाश पर ही लगाया है, जिसका उन्होंने अपनी निकृष्ट भाषा का इस्तेमाल करते हुये मेरी बेटी शालिनी के नाम से जबाब दिया है। जो कि उसी पुस्तिका में छपा भी है। उस पुस्तिका में तो सारी बहस शशि प्रकाश से है तो इसमें सुश्री कात्यायनी अपनी क्यों नाक घुसा रही है। शशि प्रकाश का कोई मान नहीं है क्या? वो तो सामने आयें। कभी मेरी बेटी शालिनी, कभी अपनी पत्नी कात्यायनी के कन्धे का इस्तेमाल बार-2 क्यों करते है। जैसे डा0 दूधनाथ की  बेटी समीक्षा ने स्वीकार किया कि साथी देवेन्द्र को जलील करने के लिए नोएडा में उसका इस्तेमाल किया गया और मामला पुलिस तक पहुँच गया था। इसकी सारी फर्जी योजना शशि प्रकाश ने ही बनाई थी।
     मेरे स्पष्ट कहना है कि महान माओवादी-क्रान्तिकारी शशि प्रकाश बार-बार पुलिस-अदालत महिलाओं आदि का सहारा क्यों लेते है। आखिर खुलकर सामने आने में हिचकते क्यों है। जब उनकी सारी क्रान्तिकारिता बुर्जुवा व्यवस्था की पुलिस-अदालत पर ही निर्भर है तो उस संगठन से सब कुछ लुटाने के बाद बाहर आये सारे लोग अदालतों तक पहुँच कर अपना गवाही देने को मजबूर होंगे। अदालतों को सबूत चाहिये और उसे सबूत मिलेगा। पहले जनाब अदालत में जाकर शुरूआत तो करें।
    मेरी बेटी शालिनी कैन्सर की बीमारी से 29 मार्च 2013 को चली गयी। जब से 15 जनवरी 2013 को हम लोगों को (मां-बाप-बहनों) को मालूम हुआ, उसके बाद से लखनऊ में जो-जो झूठ का ड्रामा खेला गया उसमें गवाह लखनऊ के बहुत जिम्मेदार वरिष्ठ क्रान्तिकारी साथी भी है। बाद में काफी दबाव में आने के बाद केवल मां को ही मिलने की इजाजत मिली। शशि प्रकाश पता नहीं कौन से मार्क्स-माओं का सिद्धान्त पढ़े है। सारी संवेदनायें सूख गयी है या कम्युनिजम का नाटक करते है। जिसकी बेटी कैन्सर से मरने वाली हो, उस मां को महीनों बाद जानकारी मिलती है और केवल अकेले मिलने की इजाजत मिलती है। कारण यह कि वह भी शशि प्रकाश के साथ विवाद में अपने पति यानी मेरे साथ खड़ी थी वगैरह-वगैरह ...एक मां की पीड़ा को शशि प्रकाश समझ ही नहीं सकते है। वैसे भी यह सब तो वास्तव में एक संवेदनशील इन्सान ही समझ सकता है। 15 जनवरी के बाद से हमें अपनी पत्नी से आंख मिलाते हुये हिचक हो रही थी कि मेरे ही कारण मेरे ही साथ मेरी-बेटी शशि प्रकाश के संगठन उर्फ गैंग में गयी थी। मैंने कुछ बुनियादी सवाल खड़ा किया तो बाहर कर दिया और मेरे खिलाफ बेटी का इस्तेमाल किया गया। एक माह जिसकी संतान मृत्युशैय्या पर हो, उसको मिलने न दिया जाय और उस पर राजनीति खेला जाय, वह समझ नहीं पा रही थी और मैं अपने आप को अपराधी महसूस कर रहा था। क्या मेरी सोच गलत थी? अपने बच्चों को सामाजिक परिवर्तन की राह पर भेजना एक अपराधिक कृत्य था। बाद में मिलने को इजाजत मिली भी तो बहुत शर्तों के साथ। यहाँ तक कि मां ने अपनी दुकान की कमाई का दस हजार रूपया शालिनी को दिया इलाज के लिए, तो पहले उसने रख लिया फिर शशि प्रकाश का फोन आने पर लौटा दिया। पाठक खुद महसूस करें कि उस मां पर क्या बीता होगा। दो दिन बाद ही मां से कहा गया कि अब आप जाइये और कभी-भी यहाँ आ सकती है, जबकि वो तो अपने जिगर के टुकड़े के साथ ही रहना चाहती थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उनकी इस इच्छा को खारिज कर दिया गया।
    अन्तिम बार मरने के 25-26 दिन पहले कुछ मिन्टों के लिए धर्मशिला अस्पताल में माँ मिली और जाते समय बेटी की आँखें मां का पीछा करती रही...जिसको याद करके मां आज भी रोते-2 बेहाल हो जाती है। उस समय मै अपने आप को अपराधी महसूस करने लगता हूँ। मेरा अपराध केवल यही था कि सामाजिक परिवर्तन की राह पर मैं तन मन धन से अपने परिवार और बच्चों के साथ निकल पड़ा और आज भी वही कार्य कर रहा हूँ। तो गलती कहाँ हुई? क्या मेरी कहानी के बाद कोई बाप अपने बेटे-बेटियों को इस राह में भेजना चाहेगा? आखिर कारवां  बनेगा कैसे? दुनिया बदलेगी कैसे?
    अपने कार्यकर्ताओं को क्रान्ति के नाम पर तरंगित करने के लिए शशि प्रकाश ने बेटी शालिनी के नाम से एक कवितारूपी वसीयतनामा भी जारी किया। उसी समय तुरंत, बेटी के नाम से ब्लाग बनाकर जिसमें मुझे गाली देने के साथ मृत्यु के बाद शरीर दान का जिक्र था। परन्तु उसकी भावनाओं की अवहेलना करते हुये महान क्रान्तिकारी शशि प्रकाश एक तो उसके अन्तिम क्रिया में भी नहीं गये और उसे शवदाह गृह में जलाया गया। जबकि मैं खुद बेटी की वसीयत का सम्मान करते हुये उसके शरीर के पास तक नहीं गया जैसा कि उसने वसीयत कर रखा था। एक पिता की पीड़ा शशि प्रकाश नहीं समझ सकते। वो तो डर के मारे वहाँ पहुँचा ही नहीं। माओ ने तो कहा है कि एक सच्चा क्रान्तिकारी किसी से नहीं डरता, फिर शशि प्रकाश ?
    शालिनी के शरीर को जलाकर शशि प्रकाश मात्र सबूत नष्ट करना चाहते थे, ताकि कल यह न पता चल पाये कि शालिनी को विगत दो-तीन वर्षों से बच्चेदानी में ट्यूमर था, जिसके ही कारण-कैंसर फैला। लड़की इलाज के अभाव में गयी। ऐसा ही साथी अरविन्द्र के साथ भी हुआ था। शशि प्रकाश जी आप आइये मैदान में...बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जायेगी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें