(देवेंद्र प्रताप)
12 अगस्त को होने वाली खगोलीय घटना को इलेक्ट्रानिक मीडिया के एंकर और प्रिंट मीडिया के ज्ञानी अंधविश्वास और विज्ञान की मिली जुली चासनी में लपेटकर दर्शकों के दिमाग में ठूंसने में जुटे हुए हैं। कुछ बानगी देखिए- क्या नास छुपा रहा 2017 के सबसे बड़े विनाश का सच, 12 अगस्त को नहीं होगी रात, एंड ऑफ द वर्ल्ड जैसी डरावनी प्रस्तुतियों से उन्होंने लोगों के मन में जबरदस्त डर पैदा किया है।
टेलीविजन पर यह सिलसिला जब शुरू हुआ तो काफी समय तक तक नाशा या किसी खगोलविद् का कोई वर्जन तक नहीं दिखाया गया। बाद में जब नाशा और खगोलविदों के बयानों को दिखाया भी गया तो उसे भी अपनी डरावनी प्रस्तुतियों के बीच में ऐसे पेश किया गया जिसमें वैज्ञानिकों के दावे भी संशय पैदा करने लगे। प्रसिद्ध खगोलविद गौहर रजा ने इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया व सोशल साइटों पर लगातार प्रसारित की जा रही ऐसी अंधविश्वासपूर्ण खबरों को बकवास करार दिया है। उनका कहना है कि उल्काओं का टूटना एक खगोलीय घटना है, इसे किसी भी तरह अंधविश्वास से जोड़ना ठीक नहीं है।
नाशा के वैज्ञानिकों ने लोगों से अपील की है कि वे इस तरह की झूठी अफवाहों पर ध्यान नहीं दें, लेकिन दिल है कि मानता नहीं। वैसे भी आजकल अंधविश्वास का बाजार खूब गर्म है। इसलिए भला इसे भुनाने में मीडिया क्यों पीछे रहेगा। सोशल मीडिया तो इस मामले में सबका चाचा है। इस समय यू ट्यूब पर 12 अगस्त की घटना से संबंधित दर्जनों वीडियो यू ट्यूब पर जारी कर दिए गए हैं, जो लोगों में इसके पीछे की वैज्ञानिक सच्चाई कम, डर ज्यादा पैदा कर रहे हैं। वैसे हमारे देश में टूटते तारे को देखना न सिर्फ शुभ माना जाता रहा है, बल्कि ऐसा लोगों में अंधविश्वास है कि तारे के टूटकर गिरते समय जो कुछ मांगा जाता है, वह जरूर पूरा होता है। फिर डर किस बात का भाई। इस बार तो उल्काओं की बारिश होगी। यानि लाभ ही लाभ। फिर डरने की क्या बात है? बहरहाल, नाशा ने सिर्फ इतना ही कहा है कि 12 अगस्त की रात में जब उल्कापात होगा तो कुछ उजाला होगा। हालांकि इससे पहले भी इतिहास में उल्कापात से इससे ज्यादा उजाले को देखा जा चुका है। इसलिए 12 अगस्त की रात को दिन जैसे उजाले और 24 घंटे के दिन की बात बकवास से ज्यादा कुछ नहीं है। उल्कापात तो हर साल होते हैं। एक बार नहीं तीन बार। जनवरी, अगस्त और दिसंबर में। इस बार का उल्कापात इस मायने में अलग है कि इसमें उल्काओं की संख्या ज्यादा होगी, जिससे जब वे धरती के वातावरण से टकराएंगी तो कुछ उजाला लगेगा। हालांकि चांद भी निकला होगा, इसलिए क्या पता उजाले का पता भी न चल पाए।
जहां तक खगोल विज्ञान में दिलचस्पी लेने वालों की बात है तो उनके लिए 12 अगस्त की रात अद्भुत होगी। उल्काओं की बारिश का नजारा जबरदस्त होगा। इसलिए इसे देखने के लिए पहले से तैयारी कर लें, क्योंकि ऐसी घटना अब 92 साल बाद होगी। तब तक हम लोग मिट्टी में मिल गए होंगे। अपने कैमरे तैयार रखिए 12 अगस्त की रात को यादगार रात बनाने के लिए।
आसमान में वैसे तो रोज ही आपने उल्का टूटकर गिरते देखे होंगे, लेकिन ये इतनी दूर होते हैं कि एक क्षण में गायब हो जाते हैं। इस बार जब 100-200 उल्काएं धरती के वातावरण से टकराएंगी तो बहुत ही सुंदर नजारा होगा। इससे डरने जैसी कोई बात नहीं है। ये उल्काएं जैसे ही धरती के वातावरण से टकराएंगीं, जलकर राख हो जाएंगी।
12 अगस्त को होने वाली खगोलीय घटना को इलेक्ट्रानिक मीडिया के एंकर और प्रिंट मीडिया के ज्ञानी अंधविश्वास और विज्ञान की मिली जुली चासनी में लपेटकर दर्शकों के दिमाग में ठूंसने में जुटे हुए हैं। कुछ बानगी देखिए- क्या नास छुपा रहा 2017 के सबसे बड़े विनाश का सच, 12 अगस्त को नहीं होगी रात, एंड ऑफ द वर्ल्ड जैसी डरावनी प्रस्तुतियों से उन्होंने लोगों के मन में जबरदस्त डर पैदा किया है।
टेलीविजन पर यह सिलसिला जब शुरू हुआ तो काफी समय तक तक नाशा या किसी खगोलविद् का कोई वर्जन तक नहीं दिखाया गया। बाद में जब नाशा और खगोलविदों के बयानों को दिखाया भी गया तो उसे भी अपनी डरावनी प्रस्तुतियों के बीच में ऐसे पेश किया गया जिसमें वैज्ञानिकों के दावे भी संशय पैदा करने लगे। प्रसिद्ध खगोलविद गौहर रजा ने इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया व सोशल साइटों पर लगातार प्रसारित की जा रही ऐसी अंधविश्वासपूर्ण खबरों को बकवास करार दिया है। उनका कहना है कि उल्काओं का टूटना एक खगोलीय घटना है, इसे किसी भी तरह अंधविश्वास से जोड़ना ठीक नहीं है।
नाशा के वैज्ञानिकों ने लोगों से अपील की है कि वे इस तरह की झूठी अफवाहों पर ध्यान नहीं दें, लेकिन दिल है कि मानता नहीं। वैसे भी आजकल अंधविश्वास का बाजार खूब गर्म है। इसलिए भला इसे भुनाने में मीडिया क्यों पीछे रहेगा। सोशल मीडिया तो इस मामले में सबका चाचा है। इस समय यू ट्यूब पर 12 अगस्त की घटना से संबंधित दर्जनों वीडियो यू ट्यूब पर जारी कर दिए गए हैं, जो लोगों में इसके पीछे की वैज्ञानिक सच्चाई कम, डर ज्यादा पैदा कर रहे हैं। वैसे हमारे देश में टूटते तारे को देखना न सिर्फ शुभ माना जाता रहा है, बल्कि ऐसा लोगों में अंधविश्वास है कि तारे के टूटकर गिरते समय जो कुछ मांगा जाता है, वह जरूर पूरा होता है। फिर डर किस बात का भाई। इस बार तो उल्काओं की बारिश होगी। यानि लाभ ही लाभ। फिर डरने की क्या बात है? बहरहाल, नाशा ने सिर्फ इतना ही कहा है कि 12 अगस्त की रात में जब उल्कापात होगा तो कुछ उजाला होगा। हालांकि इससे पहले भी इतिहास में उल्कापात से इससे ज्यादा उजाले को देखा जा चुका है। इसलिए 12 अगस्त की रात को दिन जैसे उजाले और 24 घंटे के दिन की बात बकवास से ज्यादा कुछ नहीं है। उल्कापात तो हर साल होते हैं। एक बार नहीं तीन बार। जनवरी, अगस्त और दिसंबर में। इस बार का उल्कापात इस मायने में अलग है कि इसमें उल्काओं की संख्या ज्यादा होगी, जिससे जब वे धरती के वातावरण से टकराएंगी तो कुछ उजाला लगेगा। हालांकि चांद भी निकला होगा, इसलिए क्या पता उजाले का पता भी न चल पाए।
जहां तक खगोल विज्ञान में दिलचस्पी लेने वालों की बात है तो उनके लिए 12 अगस्त की रात अद्भुत होगी। उल्काओं की बारिश का नजारा जबरदस्त होगा। इसलिए इसे देखने के लिए पहले से तैयारी कर लें, क्योंकि ऐसी घटना अब 92 साल बाद होगी। तब तक हम लोग मिट्टी में मिल गए होंगे। अपने कैमरे तैयार रखिए 12 अगस्त की रात को यादगार रात बनाने के लिए।
आसमान में वैसे तो रोज ही आपने उल्का टूटकर गिरते देखे होंगे, लेकिन ये इतनी दूर होते हैं कि एक क्षण में गायब हो जाते हैं। इस बार जब 100-200 उल्काएं धरती के वातावरण से टकराएंगी तो बहुत ही सुंदर नजारा होगा। इससे डरने जैसी कोई बात नहीं है। ये उल्काएं जैसे ही धरती के वातावरण से टकराएंगीं, जलकर राख हो जाएंगी।
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