शुक्रवार, 17 मार्च 2017
फिलिस्तीनी जनता के संघर्ष में शहीद हुई अमेरिकी युवती राचेल की याद में
16 मार्च 2003 के दिन इजरायली सेनाओं ने राफाह में 23 साल की एक बेहद नेकदिल अमेरिकी सोशल एक्टिविस्ट राचेल कूरी की बुलडोजर से कुचलकर बेरहमी से हत्या कर दी थी। हर आज हम उसे याद करते हैं कि किस तरह उसने अपनी जिंदगी को जिया और किस तरह वह न्याय के लिए शहीद हो गई। बिना दुखी हुए, उसकी यादों, उसके सपनों को दिल में जिंदा रखते हुए। हमें उस पर गर्व है। हम उसे प्यार करते हैं, उसके न रहने के बाद भी। उसका सपना जो लाखों लोगों की जिंदगी की बेहतरी से जुड़ा था, उसे अपनी आंखों में जिंदा रखते हुए। जब राचेल पांचवीं में थी तो उसने अपनी कक्षा के साथियों के बीच भाषण दिया था। उसे सुनिए, तो खुद ही समझ जाएंगे कि वह बचपन से ही दूसरों की कितनी फिक्र किया करती थी। वीडियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें-
https://youtu.be/iz0Vef4Fu8U)
पांचवी कक्षा की महज 10 साल की राचेल वीडियो में दुनिया में भुखमरी पर अपनी चिंता जताती है। वह कहती है तीसरी दुनिया के लोग उसी तरह सोचते हैं, दूसरों का खयाल रखते हैं और हंसते व रोते हैं, जैसे हम। वह गरीब मुल्कों की जनता के दुखों से परेशान होती थी।
फिलिस्तीनी जनता ने स्वतंत्रता, न्याय और शांति के लिए अनगिनत कुर्बानियां दी हैं। वे मानवता के बेहतर भविष्य के लिए शहीद हुए। यह सिलसिला आज भी रुका नहीं है। हम अपने बाटनिकल गार्डेन में शहीदों के नाम पर प्रतिदन एक पौधे को रोपते हैं। आज हमले प्यारी राचेल के नाम पर एक पौधा लगाया है।
राचेल को इसलिए भी आज याद करना जरूरी है क्योंकि उसने अमेरिका की नागरिक होकर भी फिलिस्तीन के मुक्ति संघर्ष को न सिर्फ पूरा समर्थन दिया, वरन वह उसके लिए शहीद हो गई। उसने हमेशा अमेरिका की विदेश नीति का विरोध गया। उसने अमेरिकी दादागीरी और तीसरी दुनिया के देशों की जनता की लूट का विरोध किया। इसलिए भी राचेल को याद किया जाना जरूरी है। वह अभी युवा थी, उसके पास पूरी जिंदगी थी, लेकिन उसने न्याय के लिए शहादत ही। इसलिए वह न सिर्फ अमेरिका और फिलिस्तीन वरन तीसरी दुनिया के युवाओं को भी उसे अपना रोल मॉडल बनाना चाहिए। राचेल के पिता क्रैग कहते हैं, मैं उसका पिता हूं, लेकिन उसके न रहने पर भी जिस तरह लोग उसे अपनी बेटी की तरह प्यार करते हैं, यह देखकर मैं भावुक हो जाता हूं। मुझे अपनी बेटी पर नाज है। राचेल की मां सिंडी कूरी कहती हैं वह आज हमारे बीच नहीं है। हम उसे रोज याद करते हैं। उसका सपना अब हम दोनों का सपना बन गया है।
(यह लेख फिलिस्तीन के मशहूर लेखकर मजीन कमसिएह का है। वे फिलिस्तीन म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री के निदेशक, सामाजिक कार्यकर्ता, और इजरायल के खिलाफ फिलिस्तीनी जनता के संघर्ष पर कई किताबों के लेखक हैं। अनुवादः देवेंद्र प्रताप)
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