गुरुवार, 30 मार्च 2017
मारूति मजदूरों ने आंदोलन में आपसी टूट और बिखराव की चुनौती का कैसे समाधान किया
29 मार्च को डीयू के पालीटिकल साइंस डिपार्टमेंट में मारूति मजदूरों के पिछले 6 साल के संघर्ष के समर्थन और उनके तजर्बों को साझा करने के लिए ‘मारूति मजदूरों की आवाज सुनो’ विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार में एक महिला छात्र ने सवाल उठाया की मारूति मजदूरों ने आपने आंदोलन में आपसी टूट और बिखराव की चुनौती का कैसे समाधान किया, क्योंकि आज डीयू में भी प्रगतिशील छात्र आंदोलन में काफी बिखराव है। चर्चा के दौरान इस सवाल पर निम्न महत्वपूर्ण बिंदु उभरे।
बिखराव सभी जगह दिखाई देता है। मज़दूर आंदोलन हो, छात्र आंदोलन हो, महिला आंदोलन हो, राजनीतिक आंदोलन हो। और इस बिखराव के कई आयाम हैं और बिखराव को कैसे इस्तेमाल किया जाये इसके लिए जन विरोधी ताकतें लगातार सक्रिय रहती हैं। एक तरफ तो यह बिखराव सही समझ के आधार पर संघर्ष के दौरान एक लंबे समय में तय होता है, लेकिन सचेतन तत्वों का दायित्व है की वो अपने कार्य क्षेत्र में मांगों का निर्धारण और अपनी सक्रियता के बिंदुओं को व्यापक समुदाय के हितों को ध्यान में रखकर करें। और इसके लिए कुछ कुर्बानियां भी करनी पड़ती हैं। उदाहरण के लिए मारुति मानेसर में पहली लड़ाई तो यूनियन बनाने के अधिकार को लेकर हुई जो सबके हितों की बात थी। और इस अधिकार को पाने के लिए शुरुआती दौर के नेता सोनू गुज्जर और शिवकुमार को अपना हिसाब लेना पड़ा क्योंकि वही यूनियन की मांग मानने की मैनेजमेंट की शर्त थी।
एकबार रजिस्ट्रेशन हो जाने के बाद, बेशक नेतृत्व में परमानेंट मज़दूर थे पर उन्होंने मुख्या मांग ठेका मज़दूरों को नियमित करने के सवाल को बनाया। इसी तरह बेलसोनिका, मारुती से जुडी एक और जापानी कंपनी, में भी मज़दूर यूनियन ने ठेका मज़दूरों को परमानेंट कराने के लिए परमानेंट मज़दूरों की इन्क्रीमेंट की मांग को छोड़ दिया। बिखराव के माहौल में एका बनाने के लिए हमें कार्य के जगह से अलग आपसी मदद और सहयोग के भी उदहारण बनाने चाहिए। इसकी मिसाल है गुड़गांव, मानेसर, धारुहेड़ा, बावल, नीमराणा की युनियनों का यह कदम। मारुति मानेसर के उम्र कैद की सजा पाए 13 साथियों में एक भाई संदीप ढिल्लों को अपनी बहन की शादी में जाने की अनुमति नहीं मिली। भाई की कमी दूर करने सैकड़ों भाई संदीप के घर पहुंचे और संदीप की अनुपस्थिति में उसकी जिम्मेदारी निभाई। प्रोविजनल कमेटी की अगुवाई में सभी मारुति सुजुकी मजदूर संघ के मजदूरों ने और बेल्सोनिका,एफ एम आई, होन्डा, हीरो, सनबीम,ओमैक्स, जी के एन,डाईकिन,मुन्जाल किरीयु, सोना कोयो स्टेरिंग, कैरियर,एक्साइड,अरस्टी आदि युनियनों ने शादि में पहुंच कर परिवारजनो का होंसला बढाया और साथ ही 8 लाख 38 हजार रुपये की आर्थिक मदद भी की।
उम्मीद है डीयू के छात्र भी इस सवाल पर सोचेंगे।
(साथी रविंदर गोयल की फेसबुक वाल से)
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