सोमवार, 20 मार्च 2017
मारुति मजदूरों को रिहा करो
हमारे 13 साथियों जिसमें यूनियन बॉडी के 12 सदस्य शामिल है को ह्त्या के झूठे आरोप में 18 मार्च की शाम गुड़गांव कोर्ट द्वारा उम्र कैद की सजा सुनायी गयी| 4 मजदूरों को 5 साल की सजा सुनाई गयी| 14 मजदूरों को 3 साल की सजा हई मगर वो पहले ही जेल में 4 चार साल काट चुके थे इसलिए उन्हें रिहा करा दिया गया| इससे पहले 117 मजदूरों को बरी किया गया था जो तकीरबन 4 साल जेल में बिता चुके थे, हम नहीं जानते उन सालो का हिसाब कौन देगा| 148 मज़दूर करीब 2012 से बिना जमानत के जेल में चार साल तक रहे और 2500 मजदूरों को गैर कानूनी तरीके से बर्खास्त कर दिया गया और लगातार राज्यसत्ता के दमन का सामना करना पड़ा |
हम इस झूठ को अस्वीकार करते हैं कि यहाँ एक उद्देश्यपरक फ़ैसला है| अभियोजन पक्ष का केस और अदालत का फ़ैसला दोनों बिना किसी सबूत के, झूठी गवाही और सिर्फ वर्ग द्वेष पर आधारित है| मज़दूर हितैषी प्रबंधक जिन्होंने यूनियन पंजीकृत कराने में मदद की थी, की अफ़सोसजनक मौत में मजदूरों की कोई भूमिका नहीं है – इस बात को बचाव पक्ष द्वारा अंतिम रूप से साबित किया जा चुका है| एक सुपरवाइजर द्वारा एक दलित मज़दूर जियालाल (जिसे बाद में इस केस का मुख्य आरोपी बना दिया गया ) के साथ जातिसूचक गाली गलौज और उसके निलंबन के बाद 18 जुलाई की घटना की शुरूआत हुई| यह पूरा मामला, यूनियन को खत्म करने के लिए प्रबंधन के षडयंत्र का हिस्सा है, यूनियन बनाने के अधिकार और उन मागों पर खासकर ठेका प्रथा के खात्मे का जिसके लिए यूनियन आवाज उठा रही थी और मजदूर वर्ग के संघर्ष का प्रतीक बन चुकी थी पर हमला है|
कानूनी कार्यवाही को ऊपर से देखने से पता चलता है कि 18 जुलाई के बाद प्रबंधन और सरकार के गठजोड़ द्वारा पुलिस, प्रशासन और श्रम विभाग की मदद से किस प्रकार क्रूर दमनात्मक तरीके से हजारों मजदूरों को लगातार प्रताड़ित किया गया| यह फ़ैसला जिसको देते वक्त गुडगाँव और मानेसर को पुलिस छावनी में बदल दिया गया था, पूरी तरह से मजदूर विरोधी है और कंपनी प्रबंधन के हित में पूरे देश के खासकर हरियाणा और राजस्थान में गुड़गांव से नीमराना तक के मजदूरों में डर बैठाने के लिए दिया गया है| अपनी अंतिम दलील में अभियोजन ने मजदूरों को मौत की सजा मांगते हुए मई 2013 में चंडीगढ़ हाईकोर्ट द्वारा मजदूरों की जमानत खारिज के आदेश के पीछे दिए गए तर्क के सामान, पूंजी का भरोसा पुन स्थापित करने और वैश्विक निवेशकों को आमंत्रित करने के प्रधानमंत्री के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम की दलील दी| इन विदेशी और देशी पूंजीपतियों का भरोसा सिर्फ एक चीज पर निर्भर करता है वो है सस्ता और आज्ञाकारी श्रम बल, इसलिए ना यूनियन हो ना किसी अधिकार की मांग उठे |
पूरी यूनियन बॉडी को को निशाना बनाकर कम्पनी राज हमें बताना चाहता है कि इस देश में मज़दूर आन्दोलन, यूनियन बनाने के अधिकार और दूसरे ट्रेड यूनियन अधिकारों सहित मजदूरों के मानव अधिकारों को पूंजीपतियों और राज्य सत्ता द्वारा कुचल दिया जाएगा| हमारे यूनियन पदाधिकारियों पर सिर्फ इसलिए हमला किया गया क्योकि वे प्लांट के अन्दर प्रबंधन द्वारा मजदूरों के शोषण के खिलाफ संघर्ष का नेतृत्व कर रहे थे और 2011 से ठेका प्रथा की खात्मे की मांग करते हुए, कार्यस्थल पर सम्मान और प्रबंधन के शोषणकारी अभ्यास के खात्मे की मांग करते हुए स्थायी और ठेका मजदूरों की एकजुटता के साथ ट्रैड यूनियन अधिकारों और सम्मान के लिए लंबा निर्णायक संघर्ष छेड़ दिया था | अंतत 1 मार्च 2012 को हमारी यूनियन पंजीकृत हुई| मजदूरों की यह जीत प्रबंधन को स्वीकार नहीं थी और वे हमारी यूनियन को कुचलना चाहते थे, खासकर अप्रेल 2012 में मांगपत्र देने के बाद जिसमें ठेका प्रथा समाप्त करने की मांग थी | इसलिए उन्होंने षडयंत्र रचा और 18 जुलाई की घटना को जन्म दिया|
ऊर्जा और उम्मीद से लबरेज यह संघर्ष इस औद्योगिक क्षेत्र और होंडा, रीको, अस्ति, श्रीराम पिस्टन, डाईकिन से लेकर बेलसोनिका के मजदूरों को इस तरह के शोषण के खिलाफ लड़ने के लिए एक सकारात्मक ऊर्जा देता है| मजदूरों की इस सामूहिकता की भावना को कुचलना और कंपनी के हित में सबका सीखाना जरूरी था| इस तरह के संघर्ष और मज़दूर आंदोलनों के दमन के मामले ग्रैज़ियानो ट्रांसमिशन नोयडा, रीजेंट सेरेमिक्स पुदुचेरी, चेन्नई में प्रिकौल में भी हुए है| यह फ़ैसला इसी दमनचक्र की कड़ी है जो इसके तीखेपन को बढ़ाता है| इसलिए औद्योगिक क्षेत्रों को पुलिस छावनी में बदला जा रहा है|
और सरकार प्रबंधन के साथ श्रमिकों के विवादों को लॉ एंड आर्डर की समस्या में बदलने के लिए, यूनियन बनाने के अपने अधिकारों तथा ठेका प्रथा के खिलाफ संघर्षरत मजदूरों को अपराधी बता रही है| हम मजदूरों के अपराधी घोषित करने की तीखी भर्त्सना करते हैं|
हम भयभीत नहीं हैं ना ही इस लगातार तीखे दमन से थकने वाले है| स्थायी और ठेका के विभाजन से परे मजदूरों की एकता को और वर्तमान कंपनी राज्य सत्ता के शोषण दमन के लगातार प्रहारों के खिलाफ स्वतन्त्र वर्ग पहलकदमी को मज़बूत करते हुए हम संघर्ष को आगे ले जा सकते हैं| औद्योगिक क्षेत्र के लाखों मज़दूर 9 मार्च से लगातार समर्थन में कार्यक्रम कर रहे है और 16 मार्च को हरियाणा, राजस्थान, यू,पी, तमिलनाडु के करीब लाखों मजदूरों ने भूख़ हड़ताल की| 18 तारीख़ को फ़ैसले के तुरंत बाद मारुति सुजुकी के 5 प्लांटों के करीब 30000 मजदूरों ने प्रबंधन द्वारा काम का दबाव बढ़ाने और 8 दिन के वेतन कटौती का नोटिस देकर इसे रोकने का प्रयास करने के बावजूद एकजुटता दिखाते हुए 1 घंटे की टूल डाउन हड़ताल की |
23 मार्च भगत सिंह के शहादत दिवस पर मारुति सुजुकी मज़दूर संघ जो 6 मारुति प्लांटो का सामूहिक संगठन है, ने हजारों मजदूरों को इकट्ठा होकर मानेसर में विरोध रैली करने के लिए मानेसर चलो का आह्वान किया है| हम सभी मज़दूर हितैषी संगठनो का आह्वान करते है कि इस विरोध प्रदर्शन में भाग ले| हम संभवत 4 अप्रैल को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन की उम्मीद कर रहे हैं|
इस निर्णायक और महत्वपूर्ण समय में हम सभी मजदूरों और मज़दूर हितैषी ताकतों से सजाप्राप्त मजदूरों को रिहा करने और न्याय तथा श्रमिक अधिकार को हासिल करने के लिए संगठित संघर्ष छेड़ने और सभी संभावित तरीके से समर्थन करने की अपील करते हैं|
23 मार्च को चलो मानेसर !
मारुति मजदूरों को रिहा करो !
औद्योगिक क्षेत्रों में दमन शोषण का राज खत्म करो!
प्रोविजनल वर्किंग कमिटी
मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन
18 मार्च 2017
संपर्क: 7011865350 (रामनिवास), 9911258717 (खुशीराम) PWC, MSWU की तरफ़ से.
ई-मेल: marutiworkerstruggle@gmail.com
जानकारी के लिए देखें: marutisuzukiworkersunion.wordpress.com
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