लालकुआँ
(नैनीताल), उत्तराखण्डः 10 दिसंबर को एक लड़का और लड़की के घर से चले
जाने के की घटना को हिंदुत्ववादी संगठनों के सांप्रदायिक रंग देने की पूरी
कोशिश की क्योंकि लड़का मुस्लिम था और लड़की हिंदु। लड़की के घर वालों ने
लड़के पर अपहरण का केस दर्ज कराया जिसको पुलिस ने दर्ज कर लिया लेकिन लड़के
के परिजनों द्वारा अपने लड़के की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाने पर पुलिस ने
गुमशुदगी भी दर्ज नहीं की। इसी बीच ऐसे मुद्दों की ताक में बैठे रहने वाले
सांप्रदायिक संगठन (आर.एस.एस, बजरंग दल, भाजपा और एबीवीपी) अपने पूरे दम खम
से इस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देने और मुस्लिमों के खिलाफ जहर उगलने
में मशगूल हो गए। उन्होंने जुलूस निकालकर, कोतवाली का घेराव कर डीएम से
मिलकर अपनी सक्रियता का प्रदर्शन किया। इससे पूर्व लालकुंआ में ही 7
वर्षीय बालिका चंचल के गुम होने पर हमारे द्वारा किए गए आंदोलन के दौरान
निमंत्रण देने के बाद भी एक भी दिन संगठनों के नेताओं/कार्यकर्ताओं ने अपनी
शक्ल तक भी नहीं दिखाई। असल में यही पाखंड ही इन का चरित्र है।
14 दिसंबर में इन संगठनों ने सभी राजनीतिक दलों के साथ मिलकर महिला
सुरक्षा के नाम पर एक महापंचायत का आयोजन किया जिसका प्रचार पूरे इलाके भर
में माईक से किया गया। यह जानते हुए कि इस मुद्दे को लेकर शहर में पहले ही
काफी तनाव हैए पुलिस प्रशासन ने इन महापंचायत को नहीं रोका। महापंचायत में
परिवर्तनकामी छात्र संगठन व प्रगतिशील महिला एकता केंद्र के कार्यकर्ता भी
पहुंचे। महापंचायत में मुस्लिमों के खिलाफ जमकर जहर उगला गया। आर.एस.एस और
भाजपा के नेताओं से आगे बढ़कर सपा के जिलाध्यक्ष संजय सिंह अपनी कट्टरपंथी
और सांप्रदायिक सोच का मुजाहिरा कर रहे थे। वे अपने को आर.एस.एस और भाजपा
से भी बड़ा सांप्रदायिक राजनीति का चैंपियन घोषित करना चाह रहे थे। संजय
सिंह ने कहा कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति होने पर हमें दंगा मंजूर है
जिससे हमारे हिंदु समाज का सर गर्व से ऊंचा उठा रहे। आर.एस.एस के नेता
राधेश्याम यादव ने कहा कि हिंदू समाज का सर शर्म से ना झुके इसके लिए जरूरी
है कि उस लड़के को लालकुंआ में कदम न रखने दिया जाए। बजरंग दल के नेता ने
कहा कि हिंदू लड़कों द्वारा मुस्लिम लड़कियों से शादी करने पर उनको कोई
नहीं पूछता सब मुस्लिमों को पूछते हैं। इसलिए हमें एक ऐसा हिंदू कोष बनाना
चाहिए ताकि ऐसे लड़कों पर उससे खर्च किया जा सके। ये बातें तो खुलेआम 400
लोगों के बीच कही जा रही थी। सुनने मे ये भी आ रहा है कि कई गुप्त बैठकें
शहर में की गईँ। उनमें कितना जहर उगला गया होगा इसकी कल्पना की जा सकती है।
प्रगतिशील महिला एकता केंद्र व पछास के कार्यकर्ता को अपनी बात रखने
नहीं दी गई। जब पछास कार्यकर्ता बात रख रही थी, जिसमें उन्होंने
सांप्रदायिक विचारों का विरोध किया थाए तो उनका माइक छीनकर उनके व अन्य
महिला कार्यकर्ताओं के साथ धक्कामुक्की की गई। पछास कार्यकर्ता के साथ संघी
मंडली ने मारपीट की। ये बात गौरतलब है महिला सुरक्षा के नाम पर बुलाई गई
इस महापंचायत में महिलाओं को नहीं बुलाया गया था और जो महिलाएं अपनी
पहलकदमी पर पहुंची उनके साथ संघियों द्वारा अभद्र व्यवहार किया गया। ये है
संघियों की महिला सुरक्षा। दरअसल महिला सुरक्षा की आड़ लेकर वह
सांप्रदायिकता व दंगा फैलाने के फिराक में थे।
प्रगतिशील महिला एकता केंद्र व परिवर्तनकामी छात्र संगठन कार्यकर्ताओं
ने जब मारपीट की रिपोर्ट दर्ज करानी चाही तो पुलिस ने एफ.आई.आर दर्ज करने
के बजाए समझौता कराने वाली समझौताकार की भूमिका में उतर आई। कई घंटों बाद
जाकर ही उन्होंने तहरीर ली। पुलिस प्रशासन यह जानती है कि मुजफ्फरनगर में
ऐसी ही एक महापंचायत के बाद दंगे हुए थे लेकिन फिर भी उसमें न सिर्फ
महापंचायत को नहीं रोका बल्कि महापंचायत के समय वहां एक भी पुलिस कर्मी
नहीं था न ही उसने भाषणों की रिकॉर्डिंग की। जबकि थाना 50 मीटर दूर था।
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