पूनम राणा ‘मनु’
मैं जब भी कोई अखबार या पत्र-पत्रिका का महिला अंक पढ़ती हूं, तो वहां सिर्फ महिला जागरण की ही बात होती है। नारी जागरण पर आयोजित सम्मलेनों में भी जाती हूं। हर तरफ से बस एक ही आवाज आती है, ‘स्त्रियों जागो!’ तुम्हें अपना हक लेने के लिए अब आगे आना ही होगा। समाज का संपूर्ण दायित्व तुम्हारे उपर है, ‘जागो!’ मैं सोचती हूं कि नारी सोई है, तो भला सृष्टि कैसे गतिमान है? दूसरे आजकल स्त्रियों के प्रति जिस तरह अपराधों में इजाफा हुआ है, उसका कौन उत्तरदायी है? क्या स्वयं नारी? इसका जवाब नहीं मिलता। पर नारी के प्रति सभी अपराधों में बढ़ोत्तरी के खासकर बलात्कार के मामले में आंकड़े चौंकाने वाले हैं। हां, फर्क बस इतना है कि आज कुछेक घटनाएं अखबार की सुर्खियां बन जाती हैं। यह सब एकदम नहीं हुआ कि बहुत सारे वहशी-दरिंदे किसी दूसरे गृह से आ टपके हों और ऐसी अमानुषिक कृत्यों को अंजाम दे रहे हों। ऐसा बिल्कुल नहीं है। यह पहले भी होता आया है और होता रहेगा, जब तक नारी को केवल एक भोग की वस्तु समझा जाता रहेगा। पहले चाचा ,ताऊ, मामा आदि घर के अंदर ऐसे कृत्यों का अंजाम देते थे, अब यह तो होता ही है, बाहर भी खुलेआम होने लगा है। आज के मौजूदा दौर में स्त्रियों के प्रति होने वाले गंभीर अपराधों से पूरी स्त्री-जाति भयभीत है। हालत यह पैदा हो गई है कि आज महिलाएं अब अपनी बहन-बेटियों के लिए इतनी चिंतित हैं कि वह परिवार के किसी भी पुरुष पर यह भरोसा नहीं कर पा रही हैं कि उनकी मौजूदगी में उनकी बच्चियां सुरक्षित हैं।
राजनीति की भेंट चढ़ गया विरोध का स्वर
कुछ दिनों पहले दिल्ली में हुए रेप कांड के बाद लोग सड़कों पर उतर आए। हर कोई इंसाफ चाहता था। आंदोलन में महिलाओं के साथ इंसाफ पसंद युवा भी शामिल थे। लेकिन, दामिनी के मरते ही एकाएक सब ठंडे बस्ते में गया। इंडिया गेट पर जली मोमबत्तियां कब बुझ मिट्टी में मिल गईं पता भी न चला। सब कुछ राजनीति की भेंट चढ़ गया। इस घटना के बाद कहां बलात्कार की घटनाओं को रुकना चाहिए था, अब तो देश के कोने-कोने से बलात्कार से जुड़ी खबरों की बाढ़ सी आ गई है। पिछले सप्ताह पाच वर्षीय बालिका के साथ दिल्ली में जो दरिंदगी हुई, उससे मानवता शर्मसार हो गई। इसके बाद तो हर महिला के चेहरे पर एक डर, एक दहशत को देखा जा सकता है।
काफी नहीं कानून का डर
यह सही है कि आज इन घटनाओं से हर जाति-धर्म की महिला पीड़ित है। पर इसे हौव्वा मानकर इससे डरने से भी काम नहीं चलेगा। हमें एकजुट होकर इससे लड़ने की जरूरत है। कानून कितने भी बना दिए जाएं, सजाएं कितनी भी तय हो जाएं, पर जिन्हें अपराध करना है वह करेगा ही। हमारे कानून में कत्ल के बदले अपराध साबित होने पर फांसी या उम्रकैद की सजा का प्रावधान है। लेकिन क्या इस डर से हत्याएं नहीं होतीं?
न बुझने पाए उम्मीद का दीपक
इतना सब घट जाने पर भी किसी की समूची दुनिया खत्म नहीं होती। एक उम्मीद एक आशा हमें बनाई रखनी है। सवाल सिर्फ कानून को सख्त बना देने का नहीं है। वह तो होना ही चाहिए और जो भी कानून है वह लागू भी होना जरूरी है, लेकिन कानून और उसकी सख्ती का सवाल तो घटना घटने के बाद आता है। इससे पहले बचाव के उपाय होते हैं। अब एक ऐसी अलख जगानी होगी हमें, एक ऐसा समाज तैयार करना होगा, जहां स्त्री को एक भोग्या नहीं, वरन अपने जैसा एक हाड़-मांस का इंसान समझ, मान-सम्मान दिया जाए। आखिर जब वह सृष्टि की धाय है, तो उसे उचित सम्मान मिलना ही चाहिए।
ताकि न हो अपराध की पुनरावृत्त
सरकार को चाहिए कि वह हर जिले की पुलिस को सख्त आदेश दे कि उनके अधिकार क्षेत्र में बलात्कार जैसा घृणित अपराध होने पर अपराधी किसी भी हालत में न बख्शा जाए। बिना देरी किए निर्दोष व्यक्ति को तो न्याय मिले ही, अपितु इस तरह के अपराध की उसके क्षेत्र में पुनरावृति नहीं होनी चाहिए।
पुलिस और न्याय तंत्र में भ्रष्टाचार की पैठ
हालांकि, इसके बावजूद सभी लोग जानते हैं कि पैसे और पहुंच के बल पर ऐसे अपराधी छूट जाते हैं। आमतौर पर तो आज कोई इस बात पर भरोसा ही नहीं करता कि वह अपना काम ईमानदारी से निभाएगी। लेकिन सच्चाई यह भी है कि यदि पुलिस ईमानदारी से कोई अपराधी पकड़ कर अदालत तक पहुंचा भी दे, तो ऐसी घटनाएं भी हमारे सामने हैं, जब अपराधी अदालत से बाइज्जत रिहा कर दिए गए। वजह साफ है। आज पुलिस और न्याय तंत्र में भ्रष्टाचार अपनी पैठ जमा चुका है।
देश हित में आएं आगे
आज हर देशवासी को चाहिए कि वे घर में, दफ्तर में, दोस्तों में, परिचितों में, अपनों में, बेगानों में, रिश्तेदारी में... जहां कहीं भी किसी नारी का मानसिक-शारीरिक शोषण होते देखें, आवाज उठाएं। बलात्कार जैसी घटनाओं को रोकने के लिए यही अंतिम विकल्प है। आज जरूरत इस बात है कि हर बहन का भाई, हर बेटी का पिता और हर महिला का पति ऐसी घटनाओं के खिलाफ आवाज उठाए। आज जरूरत इस बात की है कि यदि आपका अपना पुत्र भी ऐसी घटनाओं में शामिल है, तो देश हित में आप ममता में अंधे न बनें, उसे अपराधी मान उसके इस घृणित कार्य की सजा दिलवाने में आगे आएं।
दोषी का करें सामाजिक बहिष्कार
ऐसे हर शख्स का सामाजिक बहिष्कार करें, जो बलात्कार जैसे जघन्य कृत्य का दोषी है। ऐसे लोग मानवता के मुजरिम हैं। पुलिस या सरकार हमारे घरों में झांकने नहीं आ सकती। ऐसे में हर स्त्री को स्त्री होने के नाते पीड़ित स्त्री का साथ देना चाहिए। वहीं एक पुरुष को एक नारी का पिता, भाई, पति या पुत्र होने के नाते हर उस दरिंदे को दंड देना चाहिए, जो नारी का मानसिक या शारीरिक शोषण करने का इरादा रखता हो या
करता हो।
मैं जब भी कोई अखबार या पत्र-पत्रिका का महिला अंक पढ़ती हूं, तो वहां सिर्फ महिला जागरण की ही बात होती है। नारी जागरण पर आयोजित सम्मलेनों में भी जाती हूं। हर तरफ से बस एक ही आवाज आती है, ‘स्त्रियों जागो!’ तुम्हें अपना हक लेने के लिए अब आगे आना ही होगा। समाज का संपूर्ण दायित्व तुम्हारे उपर है, ‘जागो!’ मैं सोचती हूं कि नारी सोई है, तो भला सृष्टि कैसे गतिमान है? दूसरे आजकल स्त्रियों के प्रति जिस तरह अपराधों में इजाफा हुआ है, उसका कौन उत्तरदायी है? क्या स्वयं नारी? इसका जवाब नहीं मिलता। पर नारी के प्रति सभी अपराधों में बढ़ोत्तरी के खासकर बलात्कार के मामले में आंकड़े चौंकाने वाले हैं। हां, फर्क बस इतना है कि आज कुछेक घटनाएं अखबार की सुर्खियां बन जाती हैं। यह सब एकदम नहीं हुआ कि बहुत सारे वहशी-दरिंदे किसी दूसरे गृह से आ टपके हों और ऐसी अमानुषिक कृत्यों को अंजाम दे रहे हों। ऐसा बिल्कुल नहीं है। यह पहले भी होता आया है और होता रहेगा, जब तक नारी को केवल एक भोग की वस्तु समझा जाता रहेगा। पहले चाचा ,ताऊ, मामा आदि घर के अंदर ऐसे कृत्यों का अंजाम देते थे, अब यह तो होता ही है, बाहर भी खुलेआम होने लगा है। आज के मौजूदा दौर में स्त्रियों के प्रति होने वाले गंभीर अपराधों से पूरी स्त्री-जाति भयभीत है। हालत यह पैदा हो गई है कि आज महिलाएं अब अपनी बहन-बेटियों के लिए इतनी चिंतित हैं कि वह परिवार के किसी भी पुरुष पर यह भरोसा नहीं कर पा रही हैं कि उनकी मौजूदगी में उनकी बच्चियां सुरक्षित हैं।
राजनीति की भेंट चढ़ गया विरोध का स्वर
कुछ दिनों पहले दिल्ली में हुए रेप कांड के बाद लोग सड़कों पर उतर आए। हर कोई इंसाफ चाहता था। आंदोलन में महिलाओं के साथ इंसाफ पसंद युवा भी शामिल थे। लेकिन, दामिनी के मरते ही एकाएक सब ठंडे बस्ते में गया। इंडिया गेट पर जली मोमबत्तियां कब बुझ मिट्टी में मिल गईं पता भी न चला। सब कुछ राजनीति की भेंट चढ़ गया। इस घटना के बाद कहां बलात्कार की घटनाओं को रुकना चाहिए था, अब तो देश के कोने-कोने से बलात्कार से जुड़ी खबरों की बाढ़ सी आ गई है। पिछले सप्ताह पाच वर्षीय बालिका के साथ दिल्ली में जो दरिंदगी हुई, उससे मानवता शर्मसार हो गई। इसके बाद तो हर महिला के चेहरे पर एक डर, एक दहशत को देखा जा सकता है।
काफी नहीं कानून का डर
यह सही है कि आज इन घटनाओं से हर जाति-धर्म की महिला पीड़ित है। पर इसे हौव्वा मानकर इससे डरने से भी काम नहीं चलेगा। हमें एकजुट होकर इससे लड़ने की जरूरत है। कानून कितने भी बना दिए जाएं, सजाएं कितनी भी तय हो जाएं, पर जिन्हें अपराध करना है वह करेगा ही। हमारे कानून में कत्ल के बदले अपराध साबित होने पर फांसी या उम्रकैद की सजा का प्रावधान है। लेकिन क्या इस डर से हत्याएं नहीं होतीं?
न बुझने पाए उम्मीद का दीपक
इतना सब घट जाने पर भी किसी की समूची दुनिया खत्म नहीं होती। एक उम्मीद एक आशा हमें बनाई रखनी है। सवाल सिर्फ कानून को सख्त बना देने का नहीं है। वह तो होना ही चाहिए और जो भी कानून है वह लागू भी होना जरूरी है, लेकिन कानून और उसकी सख्ती का सवाल तो घटना घटने के बाद आता है। इससे पहले बचाव के उपाय होते हैं। अब एक ऐसी अलख जगानी होगी हमें, एक ऐसा समाज तैयार करना होगा, जहां स्त्री को एक भोग्या नहीं, वरन अपने जैसा एक हाड़-मांस का इंसान समझ, मान-सम्मान दिया जाए। आखिर जब वह सृष्टि की धाय है, तो उसे उचित सम्मान मिलना ही चाहिए।
ताकि न हो अपराध की पुनरावृत्त
सरकार को चाहिए कि वह हर जिले की पुलिस को सख्त आदेश दे कि उनके अधिकार क्षेत्र में बलात्कार जैसा घृणित अपराध होने पर अपराधी किसी भी हालत में न बख्शा जाए। बिना देरी किए निर्दोष व्यक्ति को तो न्याय मिले ही, अपितु इस तरह के अपराध की उसके क्षेत्र में पुनरावृति नहीं होनी चाहिए।
पुलिस और न्याय तंत्र में भ्रष्टाचार की पैठ
हालांकि, इसके बावजूद सभी लोग जानते हैं कि पैसे और पहुंच के बल पर ऐसे अपराधी छूट जाते हैं। आमतौर पर तो आज कोई इस बात पर भरोसा ही नहीं करता कि वह अपना काम ईमानदारी से निभाएगी। लेकिन सच्चाई यह भी है कि यदि पुलिस ईमानदारी से कोई अपराधी पकड़ कर अदालत तक पहुंचा भी दे, तो ऐसी घटनाएं भी हमारे सामने हैं, जब अपराधी अदालत से बाइज्जत रिहा कर दिए गए। वजह साफ है। आज पुलिस और न्याय तंत्र में भ्रष्टाचार अपनी पैठ जमा चुका है।
देश हित में आएं आगे
आज हर देशवासी को चाहिए कि वे घर में, दफ्तर में, दोस्तों में, परिचितों में, अपनों में, बेगानों में, रिश्तेदारी में... जहां कहीं भी किसी नारी का मानसिक-शारीरिक शोषण होते देखें, आवाज उठाएं। बलात्कार जैसी घटनाओं को रोकने के लिए यही अंतिम विकल्प है। आज जरूरत इस बात है कि हर बहन का भाई, हर बेटी का पिता और हर महिला का पति ऐसी घटनाओं के खिलाफ आवाज उठाए। आज जरूरत इस बात की है कि यदि आपका अपना पुत्र भी ऐसी घटनाओं में शामिल है, तो देश हित में आप ममता में अंधे न बनें, उसे अपराधी मान उसके इस घृणित कार्य की सजा दिलवाने में आगे आएं।
दोषी का करें सामाजिक बहिष्कार
ऐसे हर शख्स का सामाजिक बहिष्कार करें, जो बलात्कार जैसे जघन्य कृत्य का दोषी है। ऐसे लोग मानवता के मुजरिम हैं। पुलिस या सरकार हमारे घरों में झांकने नहीं आ सकती। ऐसे में हर स्त्री को स्त्री होने के नाते पीड़ित स्त्री का साथ देना चाहिए। वहीं एक पुरुष को एक नारी का पिता, भाई, पति या पुत्र होने के नाते हर उस दरिंदे को दंड देना चाहिए, जो नारी का मानसिक या शारीरिक शोषण करने का इरादा रखता हो या
करता हो।
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