ऐसा
लगता है कि अमेरिका फ़िलहाल विरोध के एक असाधारण और अभूतपूर्व लहर के आगोश
में आ चुका है। एक ऐसी लहर जो नवउदारवादी नीतियों और कारपोरेट लोभ, लालच और
लूट के खिलाफ पूरी दुनिया में फैलाते जा रहे गुस्से का हिस्सा है। इन
नीतियों और उनको निर्धारित करने वाले नए ज़माने के उन शहंशाहों ने, जिन्हें
अमेरिका में अब 1% का नाम दिया गया है, वर्षों तक दुनिया के एक बड़े हिस्से
को युद्ध, भुखमरी और तबाही में झोंकने और इस जीवनदायिनी ग्रह को विनाश के
कगार पर पहुँचा देने के पश्चात् अब अपने देश की की जनता को ही रोजी-रोटी,
पनाह और जिंदगी के सुख-चैन से महरूम करना शुरू कर दिया है। इसी के खिलाफ
गुस्से को इजहार करने का ही नाम है "आक्युपाई"। और शोषण और विनाश के उस
वर्त्तमान दुष्चक्र से निकलने की एक मासूम पर ईमानदार कोशिश का नाम है
"आक्युपाई" जिसे पूँजीवाद कहते है। मुमकिन है इस आन्दोलन के प्रणेता या
नेता ऐसा नहीं सोचते या मानते हों लेकिन अपने जिन नारों और मुद्दों से से
उन्होंने "शैतान की आँत" में खलबली मचा रखी है वह सीधे सीधे लोभ-लालच-लाभ
पर टिकी इस व्यवस्था के खिलाफ जाती हैं।
कल ओकलैंड के प्रदर्शन का एक दृश्य
इसी
के चलते मुख्यतः नौजवानों के नेतृत्व वाले इस आन्दोलन को मजदूरों, अमेरिका
के विभिन्न ट्रेड यूनियनों एवं वामपन्थी संगठनों, शिक्षकों, छात्रों और
समाज के अनेक तबकों का समर्थन हासिल हो रहा है। कल के ओकलैंड के "आम हड़ताल"
की सफलता के बाद यही उम्मीद की जा सकती है कि आन्दोलन के प्रभाव और पहुँच
में और विस्तार होगा। इसके पहले ही यह अमेरिका के 900 छोटे बड़े शहरों में
पहुँच चुका था। कल की सफलता के बाद उसे और अधिक फ़ैलाने से रोका नहीं जा
सकता है। ओकलैंड के कल के कार्यक्रमों में 30,000 से भी अधिक लोगों के
शामिल होने का समाचार मिला है और आम हड़ताल के तौर पर देखा जाय तो यह काफी
हद तक सफल रहा है। कैलीफोर्निया
प्रान्त का यह शहर पूरी तरह बन्द तो नहीं हुआ लेकिन अपराह्न को स्थानीय
सिटी हॉल के सम्मुख स्थित फ्रांक ओगावा प्लाज़ा से (जिसे अब ओस्कार ग्रांट
प्लाज़ा का नया नाम दिया गया है और जहाँ आक्युपाई शिविर कायम है) जुलूस जब
यहाँ के बंदरगाह पर पहुँचा तो उसे पहले ही बन्द घोषित किया जा चुका था। यह
आन्दोलनकारियों द्वारा घोषित योजना के अनुरूप हासिल एक उल्लखनीय सफलता थी।
इसके अलावा कैलीफोर्निया प्रान्त के बे एरिया में और पूरे अमेरिका में इस
आम हड़ताल के समर्थन में आयोजित 'राष्ट्रीय प्रतिरोध दिवस' के तहत जुलूस और
प्रदर्शनों की गहमागहमी रही। दिन भर पूरी तरह शान्तिपूर्ण रहे इस आन्दोलन
को देर रात को कुछ अराजकतावादी तत्वों ने तोड़फोड़ और पुलिस के साथ हिंसा में
संलग्न होकर नुकसान पहुँचाया है जिसकी हड़ताल के अह्वानकर्ता आक्युपाई ओकलैंड ने कड़े शब्दों में निन्दा की है।
से साभार
दुनिया के सब से विकसित देश में यह सुगबुगाहट महत्वपूर्ण है, कब से इस की प्रतीक्षा थी। पूंजीवाद की गति और समय ने वह काम कर दिखाया। यह काफिला अब रुकने वाला नहीं है।
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