बनवारी लाल शर्मा
अमरीका की क्रैडिट रेटिंग क्या घटी, पूरी
दुनिया में हलचल मच गई। लगता है जैसे एक बार फिर आर्थिक मंदी पूरे विश्व को
चपेट में लेने की तैयारी में है। आखिर क्या और क्यों हुआ ऐसा और भारत पर
इस का क्या असर पड़ेगा, इस पर लेख में चर्चा की गयी है। अंतरराष्ट्रीय साख
निर्धारक संस्था स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स यानी एसऐंडपी ने अमरीकी क्रैडिट की
रेटिंग एएए से घटा कर एए प्लस कर दी। बताया जाता है कि 95 सालों में ऐसा
पहली बार हुआ है। इस खबर ने दुनिया भर के शेयर बाजारों को हिला कर रख दिया।
भारतीय शेयर बाजार भी औंधे मुंह गिरा। उसका सूचकांक अपने 14 महीने के सबसे
निचले स्तर पर पहुंच गया। यही हाल दुनिया के अन्य शेयर बाजारों का भी रहा।
असर ऐसा हुआ कि महज एक ही घंटे में कुछ लोगों का दिवाला पिट गया। इसी के
साथ पूरी दुनिया में एक बार फिर मंदी हावी हो गई। 2007 की मंदी का असर यह
रहा कि अमरीका में गरीबी का प्रतिशत बढ़ गया है और 2007 से लेकर 2010 तक के
आंकड़ों में उल्लेखनीय फर्क नजर आने लगा है। बताया जाता है कि इसका असर आने
वाले सालों में और भी दिखाई देगा। हाल ही में अमरीका के सेंसेक्स ब्यूरो की
ओर से जारी आंकड़ों में बताया गया है कि 2010 में गरीबी की प्रतिशत में 0.8
प्रतिशत की वृद्धि हुई है और यह 15.1 प्रतिशत पर पहुंच गई है। 2007 में
मंदी की शुरुआत में यह प्रतिशत 2.6 थी, जबकि 2009 में 14.3 प्रतिशत पर थी।
गौरतलब है कि 15.1 का आंकड़ा रेटिंग से पहले का है। चूंकि मंदी का दूसरा दौर
चल रहा है, इसलिए जाहिर है अभी इस प्रतिशत में और वृद्धि होगी। पहली नजर
में देखने में यही लगता है कि इस रेटिंग में कोई ज्यादा फर्क तो नहीं है
लेकिन जानकारों का मानना है कि चूंकि अमरीकी अर्थव्यवस्था पर विश्वबाजार
निर्भर करता है इसलिए रेटिंग में हल्की सी भी कमी का असर दिखना स्वाभाविक
है। इस रेटिंग का कुल मिला कर आशय यह है कि अमरीका को कर्ज देने में जोखिम
है। दुनिया भर में अब तक यह आम धारणा थी कि अमरीकी सरकार का कोषागार काफी
मजबूत है। यह खत्म न होने वाला कुबेर का खजाना है। इसीलिए इसे कर्ज देने
में कोई खतरा नहीं है, लेकिन एसऐंडपी द्वारा हाल ही में की गयी रेटिंग से
इस आम धारणा को गहरा धक्का लगा है। लेहमैन ब्रदर्स समेत तमाम दिग्गज बैंक
2008 में आर्थिक मंदी के दौर से गुजर चुके हैं, जिसका असर पूरी दुनिया में
देखा गया। अभी दुनिया उस झटके से पूरी तरह उबर भी नहीं पायी है कि एक बार
फिर से मंदी के बादल मंडराने लगे। ऐसे में भविष्य को सुरक्षित कर लेने की
गरज से अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कर्ज लेने की सीमा बढ़ाने का
फैसला किया। यह मामला जब अमरीकी कांग्रेस में अनुमोदन के लिए आया तो बहुमत न
होने के कारण ओबामा के प्रस्ताव को हरी झंडी नहीं मिल सकी। विपक्षी
रिपब्लिकन पार्टी को इसके लिए मनाने का प्रयास किया गया लेकिन वह तैयार
नहीं हुई। इसको लेकर रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच लंबी
बहस चली। कई दिनों की मशक्कत के बाद आखिरकार ओबामा सरकार को रिपब्लिकन
पार्टी को इसके लिए तैयार करने में सफलता मिल ही गयी। दुनिया में यह संदेश
गया कि अमरीकी अर्थव्यवस्था पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि वह
कट्टरपंथियों और सिरफिरे नेताओं के हाथ में है। इससे पहले अमरीका में
दिनोदिन बढ़ती जा रही बेरोजगारी के मद्देनजर राष्ट्रपति बराक ओबामा पर
आउटसोर्सिंग को बंद कराने के लिए दबाव डाला गया। बराक ओबामा अमरीका में
निवेश के लिए दूसरे देशों को राजी करने हेतु विभिन्न देशों का हाल ही में
दौरा भी कर चुके हैं। इससे यह आशंका और पुख्ता हो जाती है कि दुनिया का
सबसे सम्पन्न देश अमरीका अब कंगाली के कगार पर है।
साख की रेटिंग का फंडा
रेटिंग पर चर्चा करने से पहले देखें कि स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स कैसी संस्था है। 1906 में अमरीका में स्टैंडर्ड स्टैटिस्टिक ब्यूरो नाम की एक संस्था हुआ करती थी जो अर्थव्यवस्था से संबंधित तमाम सूचनाओं को इकट्ठा किया करती थी। वह उन सूचनाओं को पूरे साल एक कार्ड के रूप में प्रकाशित किया करती थी। इसकी स्थापना लुतर ली ब्लेके ने की थी। वहीं, 1860 में हेनरी वर्मनम पुअर्स ने अमरीका में एक और कंपनी की स्थापना की थी जो अमरीका की अर्थव्यवस्था पर सालाना तौर पर तमाम सूचनाओं को एक किताब के रूप में प्रकाशित किया करती थी। बाद में हेनरी वर्मनम के बेटे हेनरी विलियम ने इसे संभाला और इसका नाम एचवीऐंडएचडब्लू पुअर्स कंपनी रखा, लेकिन 1941 में इन दोनों कंपनियों का विलय हुआ और यह स्टैंर्डउ ऐंड पुअर्स बन गयी तथा यह वित्तीय सेवा कंपनी के रूप में जानी जाने लगी। वित्तीय शोध, दुनिया भर के स्टाक व बान्ड का विश्लेषण करने के साथ यह कंपनी सार्वजनिक और निजी कारपोरेशनों की रेटिंग करती है। इसकी रेटिंग को अमरीकी स्टाॅक एक्सचेंज द्वारा मान्यता प्राप्त है। क्रेडिट रेटिंग के लिए गे्रड निर्धारित हैं। ये गे्रड एएए से लेकर डी तक हैं। हाल ही में स्टैंर्डउ ऐंड पुअर्स ने विभिन्न पक्षों का विश्लेषण करके अमरीकी अर्थव्यवस्था की साख की रेटिंग की है। इसकी रेटिंग के अनुसार, मौजूदा समय में अमरीका की रेटिंग एएए से गिरकर एए भी नहीं रही, बल्कि उससे भी नीचे एए प्लस हो गई है। यानी अमरीकी अर्थव्यवस्था की क्रडिट रेटिंग सर्वोच्च एएए की सर्वोच्च रेटिंग से एए प्लस के तीसरे पायदान पर पहुंच चुकी है। एसऐंडपी ने यह भी कहा है कि यदि आगे भी यही हाल रहा तो वह अमरीकी ऋण साख को अगले 12 से 18 महीनों में और घटा सकती है। यही दुनिया भर के निवेशकों के लिए चिंता का विषय बन गया है। स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स की रेटिंग का असर इतना जबरदस्त रहा कि शेयर बिकवाली का दौर शुरू हो गया। अमरीकी बान्ड के ग्राहक देशों, संस्थाओं और लोगों को भी यह आशंका होने लगी कि अगर अमरीका का खजाना खाली है तो उनकी रकम का डूबना तय है। वहीं अमरीका को कर्ज देने वाली संस्थाओं को भी कर्ज की रकम की वापसी को लेकर शंका होने लगी और लगने लगा कि 2008 की आर्थिक मंदी का जिन्न एक बार फिर से बोतल से बाहर निकल आया है। इसका असर विश्व की अर्थव्यवस्थाओं पर देखने को मिला और विश्व के तमाम प्रमुख शेयर बाजारों में भारी उथलपुथल मच गयी।
विशेषज्ञों की नजर में
विशेषज्ञों का इस मुद्दे पर नजरिया अलग-अलग है। कुछ का यह मानना है कि 2008 की स्थिति इससे बिल्कुल अलग थी। बल्कि दोनों स्थितियों में जमीन और आसमान का फर्क है। कोलकाता के जानेमाने अर्थशास्त्री शैबाल कर का मानना है कि यह महज एक आशंका है कि अमरीका एक बार फर आर्थिक मंदी की चपेट में आ सकता है। 2008 में जो स्थिति पैदा हुई थी, अर्थशास्त्र की भाषा में वह ‘सबप्राइम क्राइसिस’ कहलाती है। उस समय अमरीकी बैंक और वित्तीय संस्थानों ने ऐसी कंपनियों को कर्ज दिया था जो कर्ज को चुकाने में सक्षम नहीं थीं और कंपनियाँ डूब गयीं। इसीलिए कर्ज देने वाले बहुत सारी संस्थाओं को रकम वापस न मिलने के कारण मंदी का संकट देखने को मिला। इस बार मामला वैसा नहीं है। इस बार एसऐंडपी की रेटिंग के कारण बाजार में हड़कंप मचा है। माना यह भी जा रहा है कि अगर यह आशंका सच साबित हुई तो अमरीका को अपनी परियोजना से बाहर जाकर कई लाख करोड़ डाॅलर कर्ज लेना पड़ सकता है। अर्थशास्त्री अभिजीत राय चैधरी कहते हैं कि कर्ज लेने से अमरीका के सरकारी खजाने पर असर पड़ेगा। ऐसे में कर्ज चुकाने में भी अमरीका को दिक्कत पेश आएगी। जाहिर है कि कर्ज देने वाले का जोखिम बढ़ जाएगा।
एसऐंडपी से नाराजगी
एसऐंडपी की रेटिंग से अमरीका में बड़ी नाराजगी है। अमरीकी वित्तमंत्री टिमोथी गेथनर ने अपने एक बयान में कहा है कि रेटिंग एजेंसी एसऐंडपी ने अमरीका के वित्तीय बजट के गणित का अच्छी तरह अध्ययन नहीं किया है और उसने गलत निर्णय ले लिया। एजेंसी ने अन्य मुद्दों पर ध्यान देने के बजाय पिछले कुछ महीनों से चल रही बकवास बहस पर ज्यादा ध्यान दिया। वहीं, ओबामा ने भी अमरीकी ट्रेजरी सुरक्षित होने का दावा करते हुए कहा कि अमरीका हमेशा ‘ट्रिपल ए’ देश बना रहेगा, भले ही बाजार ऊपर नीचे होता रहे। अमरीका केन्द्रीय बैंक फैडरल रिजर्व ने अपने एक बयान में कहा है कि स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स की रेटिंग का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारी सिक्युरिटी पर कुछ ही समय के लिए असर रहेगा, क्योंकि अन्य कई बड़ी रेटिंग एजेंसियों की नजर में अमरीका की अर्थव्यवस्था अभी भी दुनिया की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था है। चीन ने अमरीका के सरकारी बाँडों में 1,600 अरब डाॅलर का निवेश कर रखा है, जाहिर है, चीन को बड़ा धक्का लगा है।
भारत की स्थिति
अमरीका के मौजूदा हालात पर भारत ने निश्चित तौर पर बड़ी चैकस प्रतिक्रिया जतायी है, लेकिन रिजर्व बैंक से लेकर योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया तक ने दावा किया है कि यह गंभीर चिंता का विषय नहीं है। इनका कहना है कि भारतीय बाजार की अपनी स्थिति मजबूत है और वह अमरीका के भरोसे नहीं है। लेकिन वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने संकट के इस दौर में चिंता जतायी है और कहा है कि ऐसे में विश्व बैंक को अपना पूंजी आधार बनाने के तरीके ढूँढने होंगे। साथ ही विश्व बैंक को कुछ अलग हट कर सोचने की जरूरत है।
(सरिता के अक्टूबर (द्वितीय) 2011 अंक से साभार)
साख की रेटिंग का फंडा
रेटिंग पर चर्चा करने से पहले देखें कि स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स कैसी संस्था है। 1906 में अमरीका में स्टैंडर्ड स्टैटिस्टिक ब्यूरो नाम की एक संस्था हुआ करती थी जो अर्थव्यवस्था से संबंधित तमाम सूचनाओं को इकट्ठा किया करती थी। वह उन सूचनाओं को पूरे साल एक कार्ड के रूप में प्रकाशित किया करती थी। इसकी स्थापना लुतर ली ब्लेके ने की थी। वहीं, 1860 में हेनरी वर्मनम पुअर्स ने अमरीका में एक और कंपनी की स्थापना की थी जो अमरीका की अर्थव्यवस्था पर सालाना तौर पर तमाम सूचनाओं को एक किताब के रूप में प्रकाशित किया करती थी। बाद में हेनरी वर्मनम के बेटे हेनरी विलियम ने इसे संभाला और इसका नाम एचवीऐंडएचडब्लू पुअर्स कंपनी रखा, लेकिन 1941 में इन दोनों कंपनियों का विलय हुआ और यह स्टैंर्डउ ऐंड पुअर्स बन गयी तथा यह वित्तीय सेवा कंपनी के रूप में जानी जाने लगी। वित्तीय शोध, दुनिया भर के स्टाक व बान्ड का विश्लेषण करने के साथ यह कंपनी सार्वजनिक और निजी कारपोरेशनों की रेटिंग करती है। इसकी रेटिंग को अमरीकी स्टाॅक एक्सचेंज द्वारा मान्यता प्राप्त है। क्रेडिट रेटिंग के लिए गे्रड निर्धारित हैं। ये गे्रड एएए से लेकर डी तक हैं। हाल ही में स्टैंर्डउ ऐंड पुअर्स ने विभिन्न पक्षों का विश्लेषण करके अमरीकी अर्थव्यवस्था की साख की रेटिंग की है। इसकी रेटिंग के अनुसार, मौजूदा समय में अमरीका की रेटिंग एएए से गिरकर एए भी नहीं रही, बल्कि उससे भी नीचे एए प्लस हो गई है। यानी अमरीकी अर्थव्यवस्था की क्रडिट रेटिंग सर्वोच्च एएए की सर्वोच्च रेटिंग से एए प्लस के तीसरे पायदान पर पहुंच चुकी है। एसऐंडपी ने यह भी कहा है कि यदि आगे भी यही हाल रहा तो वह अमरीकी ऋण साख को अगले 12 से 18 महीनों में और घटा सकती है। यही दुनिया भर के निवेशकों के लिए चिंता का विषय बन गया है। स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स की रेटिंग का असर इतना जबरदस्त रहा कि शेयर बिकवाली का दौर शुरू हो गया। अमरीकी बान्ड के ग्राहक देशों, संस्थाओं और लोगों को भी यह आशंका होने लगी कि अगर अमरीका का खजाना खाली है तो उनकी रकम का डूबना तय है। वहीं अमरीका को कर्ज देने वाली संस्थाओं को भी कर्ज की रकम की वापसी को लेकर शंका होने लगी और लगने लगा कि 2008 की आर्थिक मंदी का जिन्न एक बार फिर से बोतल से बाहर निकल आया है। इसका असर विश्व की अर्थव्यवस्थाओं पर देखने को मिला और विश्व के तमाम प्रमुख शेयर बाजारों में भारी उथलपुथल मच गयी।
विशेषज्ञों की नजर में
विशेषज्ञों का इस मुद्दे पर नजरिया अलग-अलग है। कुछ का यह मानना है कि 2008 की स्थिति इससे बिल्कुल अलग थी। बल्कि दोनों स्थितियों में जमीन और आसमान का फर्क है। कोलकाता के जानेमाने अर्थशास्त्री शैबाल कर का मानना है कि यह महज एक आशंका है कि अमरीका एक बार फर आर्थिक मंदी की चपेट में आ सकता है। 2008 में जो स्थिति पैदा हुई थी, अर्थशास्त्र की भाषा में वह ‘सबप्राइम क्राइसिस’ कहलाती है। उस समय अमरीकी बैंक और वित्तीय संस्थानों ने ऐसी कंपनियों को कर्ज दिया था जो कर्ज को चुकाने में सक्षम नहीं थीं और कंपनियाँ डूब गयीं। इसीलिए कर्ज देने वाले बहुत सारी संस्थाओं को रकम वापस न मिलने के कारण मंदी का संकट देखने को मिला। इस बार मामला वैसा नहीं है। इस बार एसऐंडपी की रेटिंग के कारण बाजार में हड़कंप मचा है। माना यह भी जा रहा है कि अगर यह आशंका सच साबित हुई तो अमरीका को अपनी परियोजना से बाहर जाकर कई लाख करोड़ डाॅलर कर्ज लेना पड़ सकता है। अर्थशास्त्री अभिजीत राय चैधरी कहते हैं कि कर्ज लेने से अमरीका के सरकारी खजाने पर असर पड़ेगा। ऐसे में कर्ज चुकाने में भी अमरीका को दिक्कत पेश आएगी। जाहिर है कि कर्ज देने वाले का जोखिम बढ़ जाएगा।
एसऐंडपी से नाराजगी
एसऐंडपी की रेटिंग से अमरीका में बड़ी नाराजगी है। अमरीकी वित्तमंत्री टिमोथी गेथनर ने अपने एक बयान में कहा है कि रेटिंग एजेंसी एसऐंडपी ने अमरीका के वित्तीय बजट के गणित का अच्छी तरह अध्ययन नहीं किया है और उसने गलत निर्णय ले लिया। एजेंसी ने अन्य मुद्दों पर ध्यान देने के बजाय पिछले कुछ महीनों से चल रही बकवास बहस पर ज्यादा ध्यान दिया। वहीं, ओबामा ने भी अमरीकी ट्रेजरी सुरक्षित होने का दावा करते हुए कहा कि अमरीका हमेशा ‘ट्रिपल ए’ देश बना रहेगा, भले ही बाजार ऊपर नीचे होता रहे। अमरीका केन्द्रीय बैंक फैडरल रिजर्व ने अपने एक बयान में कहा है कि स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स की रेटिंग का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारी सिक्युरिटी पर कुछ ही समय के लिए असर रहेगा, क्योंकि अन्य कई बड़ी रेटिंग एजेंसियों की नजर में अमरीका की अर्थव्यवस्था अभी भी दुनिया की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था है। चीन ने अमरीका के सरकारी बाँडों में 1,600 अरब डाॅलर का निवेश कर रखा है, जाहिर है, चीन को बड़ा धक्का लगा है।
भारत की स्थिति
अमरीका के मौजूदा हालात पर भारत ने निश्चित तौर पर बड़ी चैकस प्रतिक्रिया जतायी है, लेकिन रिजर्व बैंक से लेकर योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया तक ने दावा किया है कि यह गंभीर चिंता का विषय नहीं है। इनका कहना है कि भारतीय बाजार की अपनी स्थिति मजबूत है और वह अमरीका के भरोसे नहीं है। लेकिन वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने संकट के इस दौर में चिंता जतायी है और कहा है कि ऐसे में विश्व बैंक को अपना पूंजी आधार बनाने के तरीके ढूँढने होंगे। साथ ही विश्व बैंक को कुछ अलग हट कर सोचने की जरूरत है।
(सरिता के अक्टूबर (द्वितीय) 2011 अंक से साभार)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें