सोमवार, 12 सितंबर 2011

कहानी- ...अब तो जिन्दगी बदलेगी

भूपेन्द्र सिंह
चिमनी से निकलता हुआ धुआँ कुछ इस तेजी से आसमान में फैल रहा था कि मानो कम्पनी कोई माल न बनाकर सिर्फ धुआँ ही बना रही हो। ब्वायलर भी पूरी जी-जान लगाकर षोर मचाता हुआ धुएं को चिमनी के रास्ते आकाश में फैल जाने का मार्ग दिखा रहा था। आकाश में फैले धुंए को देखकर एकबारगी ऐसा लगता था, जैसे उसके नीचे धरती पर मौजूद फैक्ट्री जलकर स्वाहा हो गई हो।
हाँ कोई चीज स्वाहा तो हो रही थी, परन्तु फैक्ट्री या उसका माल नहीं, बल्कि उस फैक्ट्री में काम करने वाले हजारों मजदूरों की जिन्दगी, उनका खून-पसीना, उनकी मेहनत, उनके अरमान, उनके सपने और उन पर टिका हुआ उनके बच्चों का भविष्य। जल रही थी उनके बच्चों के हाथों पर रखी हुई रोटी, जो नमक और प्याज के साथ खाई जाने वाली थी। धुएं से आ रही थी उस कपड़े की बदबू जिसे मजदूरों और उनके बच्चों द्वारा पहना जाना था।
इस फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों के शरीर पर किसी तरह टिके कपड़ों को देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे फैक्ट्री में उनका अंग-भंग हो चुका था। इन कपड़ों में से झांकता हुआ उनके शरीर का ढांचा ऐसा लग रहा था, मानो वह राह चलते लोगों के साथ गाली-गलौच कर रहा हो। नफरत व घृणा की दृष्टि से उन्हें धिक्कार रहा हो और पूछ रहा हो कि क्या उसकी इस हालत का जिम्मेदार अकेले वही है? कुछ ऐसा ही दृश्य था उस कम्पनी में।
एक तरफ दो-चार मजदूर कैमिकल से भरे ड्रम धकेलते हुए एक जगह से दूसरी जगह ले जा रहे थे और कुछ मजदूर रस्सी और चेन के सहारे अपने पूरे दमखम के साथ बोलियां लगाते हुए एक बहुत बड़ी मशीन को ऊपर की तरफ उठा रहे थे।
....जोर लगा के, हिन्सा....
जोरम, जोरां, हिन्सा.
हरी मक्की, लाल दाणां,
हट जा पीछे, रगड़ा लाणां
पीछे से फोरमैन चिल्लाया ऐ पंडितवा जी-जान लड़ा दो रे, काम को जल्दी पूरा करना है। ड्रम को जल्दी लोड करो उसके बाद मशीन को भी ठीक करना है। पंडित के बगल में खड़ा मजदूर बोला, हाँ-हाँ हम तो अपनी जान भी निकाल देंगे, लेकिन अबकी बार दिवाली पर बोनस और मिठाई दिलवा दियो कंपनी से। हाँ-हाँ साहब अबकी बार तो इतना तो करवाओ ही, दूसरे मजदूरों ने भी पंडित का साथ देते हुए कहा।
अरे तुम लोग तीन साल से इस बोनस और मिठाई के पीछे पड़े हुए हो। कुत्ते की दुम पता नहीं कब सीधी होगी। तुमने कभी मिठाई नहीं देखी क्या? नहीं साहब वो बात नहीं है, त्योहार पर खाली हाथ घर जाएं तो अच्छा नहीं लगता। बच्चे भी उस दिन सारा समय खुशी से काट देते हैं कि हम लोग षाम को ड्यूटी से आएंगे तो बच्चों लिए कुछ न कुछ जरूर ले लाएंगे।
अरे, तो मैं क्या करूँ। अगर कम्पनी तुम्हें बोनस और मिठाई न देगी तो क्या तुम काम बन्द कर दोगे? कम्पनी का जो नियम है वह तो उसी पर चलेगी। पाण्डे ने फिर कहना शुरू किया। कंपनी का क्या नियम है, उसे बच्चे क्या जाने साहब। बच्चों के तो दो ही नियम होते हैं या तो उनकी जिद को खुशी -खुशी पूरा कर दो, नहीं तो रो-रो कर घर को सिर पर उठा लेंगे।
फोरमैन चला गया, लेकिन मजदूर बोलते ही जा रहे थे। बच्चों को तो त्योहार पर मिठाई-पटाखे और नए कपड़े चाहिए। साथ में पास खड़े दूसरे मजदूर ने भी कहा। हाँ बात तो ठीक कह रहे हो पंडित जी तुम। बच्चे क्या जाने कम्पनी के नियम को। ड्रम को धक्का दे रहा एक मजदूर बोला, क्या करें भैया। अपने बच्चों को मिठाई के लिए रोता देख, हमारी आँखें भी गीली हो जाती हैं। कलेजा मुँह से निकलने लगता है। लेकिन, हम कर ही क्या सकते हैं। हाँ भुलवा तुम ठीक कहते हो। पंडित ने ड्रम में बंधी रस्सी को खींचते हुए कहा। वैसे भी भैया बात बच्चों की ही नहीं है। अरे! दो पैसे घर में आएंगे तो राशन वाले की उधारी उतरेगी, फिर घर के भी दस काम होते हैं।....जोर लगा के, हिन्सा, जोरम, जोरां, हिन्सा.....
ड्रम लोड हो चुका था। पीछे से एक मजदूर ने सुस्ताते हुए कहा तो भई मरा हुआ हाथी आखिर चढ ही गया ऊपर। उसकी आवाज मजदूरों के ठहाकों में दब गई। इतनी मेहनत के बाद अब चाय का तो हक बनता ही है क्यों पंडितवा? भूलवा ने पंडित के कंधे पर हाथ मारते हुए कहा। सो तो ठीक है, लेकिन भुलवा ने पंडित की बात काटते हुए कहा- लेकिन, वेकिन कुछ नहीं, अब चाय पीनी है बस। सभी लोग चाय पीने के लिए चल पड़े। कैन्टीन में जाकर उन्होंने चाय का कप हाथ में पकड़ा ही था कि पीछे से फोरमैन चिल्लाया। अरे! कामचोरों काम को बीच में ही छोड़कर आ गए। उस मशीन को क्या तुम्हारा बाप फिट करेगा? मैंने बोला था न उसे आज ही चालू करके देना है। लेकिन, फोरमैन साहब आप तो जानते ही हैं कि मशीन बहुत भारी है। हम बहुत थके हुए हैं, थोड़ा आराम मिल जाता, तो फिर हम काम को शुरू करते। भुलवा ने चुटकी बजाते हुए कहा, बस दो घूंट चाय पी लें, तो थोड़ी फुर्ती आ जाएगी। ड्रम चढाते.चढाते पूरा बदन टूट गया है। फोरमैन ने एक भददी से गाली देते हुए कहा, मैं कुछ नहीं जानता, मुझे एक घण्टे के अंदर काम ओके चाहिए, समझे।
सभी मजदूरों ने चाय का कप ऐसे ही रख दिया, जैसा भरा हुआ उठाया था। वे भागते-दौडते काम पर वापिस पहुंचे। फोरमैन की गाली अब भी जारी थी... हरामखोरों को हराम की खाने की आदत पड़ गई है... बिना काम रोटी खाने की आदत पड गई है। ऊपर से डिमान्ड करते हैं बोनस की। कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं होने वाली। जब तक मैं मीटिंग से आऊँ मशीन मुझे चालू अवस्था में मिलनी चाहिए। फोरमैन मीटिंग में चला गया।फोरमैन के जाने के बाद पंडित भुलवा से कहने लगा। क्यों रे भुलवा मैं कह रहा था न कि पहले काम को खत्म कर लेते हैं, पर तुम्हारा तो हलक सूखा जा रहा था चाय के बगैर। अरे, मैं क्या अकेला था वहां पर, गए तो सभी थे, भुलवा ने गुस्से में जवाब दिया। अब दोनों एक-दूसरे पर गुस्सा हो रहे थे। अरे! तुम आपस में क्यों लड़ रहे हो। पास में खड़े मुल्खराज ने दोनों को रोकते हुए कहा। उस फोरमैन की आँख में तो सुअर का बाल है। उसकी तो आदत है चिल्लाने की। वह ससुरा खुद तो अब मीटिंग में गुलछर्रे उड़ा कर आएगा और हमें चाय भी नहीं पीने दी, जैसे उसके बाप के पैसे से चाय पी रहे हों।
अरे! यहां इतने खतरनाक कैमिकल में तो हम मरते हैं, वह साला तो दूर-दूर रहता है। दो मिनट से ज्यादा ठहरता है कभी हमारे पास, और तुम जानते हो उस टैंक में क्या है? मुल्खराज ने हाथ का इशारा करते हुए कहा। नहीं जानते न? उसमें ऐसा केमिकल है अगर तुम्हारे शरीर पर कहीं भी उसकी एक बूंद गिर जाए तो वह अंग कटवाना ही पड़ेगा। नहीं तो धीरे-धीरे सारा शरीर गल जाएगा। उसका इलाज डाक्टर के पास भी नहीं है और उधर देखो उस प्लांट में जानते हो कौन सी गैस है? ब्रोमीन! वह धीरे-धीरे लगती है तो आँख खराब होने का डर रहता है। अगर तुम अचानक उसके प्रभाव में आ गए तो खोपड़ी की नशें फट जाएंगी और वो देखो उधर उस प्लांट में अमोनिया और कार्बन डाईआक्साईड तुम्हें दम घोट कर मरेंगी। जानते हो तुम्हारे पीछे इन दोनों टैंकों में क्या है? इसमें तेजाब और इसमें अल्कोहल। और जो ये तेरे सिर के ऊपर से पाइप जा रही है मुल्खराज ने पंडित की ठुड्डी पकड़ कर ऊपर की तरफ करते हुए कहा। इसमें 200 डिग्री टैम्प्रेचर की भाप चल रही है। इसी पाइप का वाल खोल और सामने खड़ा होकर देख, हड्डियों का पानी बनाकर बहा न दे तो कहना। इसी तरह यहां बहुत खतरनाक कैमिकल्स और गैसें और भी हैं जिनमें कुछ के नुकसान का तुरन्त पता चलता है और कुछ का कई महीने बाद। क्या तुम लोग नए हो, जो अभी तक इतना भी नहीं जानते नहीं कि अभी तक कितने लोग यहां से अंग-भंग होकर ही बाहर जा पाए हैं?
मजदूरों को तो जैसे सांप सूंघ गया। फिर भी पंडित ने झुंझलाते हुए कहा। अरे! ये तो हमें पता है मुल्खे, हम क्या यहां नये हैं? तुमसे पहले से काम कर रहे हैं यहां, तू क्या हमें बताएगा? पंडित ने बड़े गर्व से कहा। पता है तो फिर आपस में क्यों लड़ रहो हो? अगर लड़ना ही है तो फोरमैन से लड़ो या फिर मालिक के माथे में ईंट मारो जाकर। जो हर एक घण्टे करोड़ों का माल तैयार करवाते हैं, और मजदूरों को दीवाली, होली पर मिठाई देते हुए उनकी नानी मरती है। तुम लोगों को यहां पर मेरे से पहले से काम करने का घमण्ड तो है पर तुम लोगों ने कभी यह जानने की कोषिष की कि यहां पर जो माल बन कर तैयार हो रहा है उसकी कीमत क्या है? मुल्खराज बाकि मजदूरों से थोड़ा समझदार और पढ़ा-लिखा था। वह दस जमात तो पूरी न कर सका पर सात-आठ तक स्कूल के चक्कर जरूर लगाए थे, और थोड़ा बहुत लाल झंडे वालों के प्रभाव में भी रह चुका था। भुलवा बोला, अरे! उसकी कीमत जानकर हमें क्या करना? क्यों? इसका मतलब हम इसी तरह बेवकूफ बने रहें? इधर मजदूरों में बहसबाजी चल रही थी और दूसरी तरफ कम्पनी मालिक मीटिंग के साथ मीटिंग के बाद अधिकारी लोग दावत का मजा ले रहे थे। मालिक ने भोजन के बीच में ही सबको एक बार फिर से कंपनी का टर्नओवर दुगुना होने पर सभी अधिकारियों को बधाई दी। मालिक के मुंह से यह सुनते ही वहां मौजूद सभी अधिकारियों के चेहरे पर गर्व का भाव छा गया। पिछले महीने की बजाय इस महीने साढ़े चैदह करोड़ का फायदा हुआ है। आप सभी लोग इसी तरह मेहनत करते रहिए। अभी हम दो-चार महीने बाद यहां पर दो प्लांट और खड़े करेंगे। हमारा यह संदेश कम्पनी के हर वर्कर तक पहुंचा दिया जाए। हाँ एक कहावत तो आप सभी ने सुनी ही होगी कि जब तक बैल की पूँछ नहीं मरोड़ोगे वह ठीक से काम नहीं करेगा। बाकी आप सभी खुद ही समझदार हो।
पार्टी खत्म हुई और सभी लोग अपने-अपने केबिन में पहुंच गए। थोड़ी ही देर में मालिक का संदेश कम्पनी के सभी मजदूरों तक पहुंच गया। सभी मजदूर कम्पनी की तरक्की से खुश तो हुए परन्तु इस उम्मीद के साथ, कि कम्पनी अबकी बार दिवाली पर अच्छा-खासा बोनस देगी। कुछ उधारी चुकाई जाएगी, कुछ और घर के खर्च निकलेंगे। उधर भूलवा, पंडित, पाण्डे, मुल्खराज और उनके साथी मशीन को फिट करने के बाद अपने अड्डे पर जा पहुंचे। थोड़ी ही देर में वहां फोरमैन भी जा पहुंचा। क्यों रे पंडितवा मशीन फिट कर दी क्या? हाँ साहब फिट भी कर दी और चालू भी कर दी। अच्छा बहुत अच्छा। तुम लोग इसी तरह मेहनत किया करो। जानते हो मीटिंग में साहब ने बहुत अच्छी खुशखबरी दी है। सभी लोग खुशखबरी सुनने के लिए जहाँ के तहाँ रूक गए और बोले क्या? साहब ने बताया कि अबकी बार कम्पनी का साढ़े चैदह करोड़ का फायदा हुआ है। कम्पनी का नाम जानी-मानी कम्पनियों के साथ गिना जाने लगा है और हाँ रे भूलवा। हो सकता है अबकी बार तुम सबका बोनस का झगड़ा भी खत्म हो जाए और तनख्वाह भी बढ़ जाए। एकाएक फोरमैन चुप हो गया। उसके जबान कुछ ज्यादा ही फिसल गई थी। उधर मजदूरों ने बोनस के साथ-साथ तनख्वाह की बात सुन बहुत खुश हुए।
महीने भर बाद दीवाली भी आने वाली थी। इस दिन के लिए उन्होंने ढेर सारे अरमान सजो रखे थे। हर मजदूर सोच रहा था कि अबकी दीवाली को उसे राषन वाले से गाली नहीं खानी पडेगी; त्योहार के दिन उसके बच्चों को मिठाई खाने को मिलेगी। सब सोच रहे थे अब तो जिन्दगी बदलेगी। यह सब सोचकर मजदूरों ने खुद ही अपने काम में और ज्यादा तेजी ला दी थी। सभी काम में पहले से अधिक सतर्कता बरतने लगे, ताकि उनकी तरफ से कोई गलती न हो जाए और फिर तन्ख्वाह बढ़ना तो दूर बोनस भी न मिले।
एक दिन अचानक दोपहर के बाद मैंटेनेंस डिपार्टमेंट में कम्पनी के मैन गेट से फोन किया गया। फोन की घण्टी बजी। वहाँ पर मौजूद एक कारीगर ने फोन उठाया। हैलो! हाँ जी कौन बोल रहे हैं आप? दूसरी तरफ से आवाज आई, हाँ मैं गेट से सिक्योरिटी सुपरवाईजर बोल रहा हूँ। कहिए क्या काम है? ऐसा है कि आप जरा जल्दी से एक हथौड़ा, पेचकश और प्लास लेकर यहां गेट पर आ जाइए। क्यों क्या हुआ? ज्यादा कुछ पता नहीं है परन्तु यह शेखर साहब का आदेष है और उनका एक आदमी आपकी ही तरफ आ रहा है, आपको अपने साथ लेकर आने के लिए। ये शेखर साहब कौन हैं? गार्ड चिल्लाया अरे! आपको ये भी नहीं पता कि शेखर साहब कौन हैं? नहीं सच मुझे नहीं पता मैं अभी कम्पनी में नया ही आया हूँ। अच्छा तो ध्यान से सुन लो शेखर साहब कम्पनी के मालिक हैं और गार्ड ने फोन काट दिया। उस कारीगर के डर के मारे हाथ-पैर फूल गये। पता नहीं क्या बात है? न जाने मुझसे क्या करवाया जाएगा? कहीं कुछ गलत हो गया तो फिर मुझे कम्पनी से निकाल न दिया जाए। डर के मारे वह यह तक भूल गया था कि गार्ड ने उसे क्या-क्या सामान लाने के लिए कहा था। वह सारा टूल बाक्स उठा कर चल दिया। जैसे ही वह कमरे से बाहर निकला तो मालिक आ आदमी भी वहां तक पहुंच गया था। अरे! क्या गार्ड की तुमसे ही फोन पर बात हुई थी? यस सर। तो जल्दी चलो गेट पर वहां पर थोड़ा सा काम है। वे दोनों चल पड़े। क्या काम है? यह पूछने की उस कारीगर की हिम्मत नहीं हो रही थी। वह डर रहा था कहीं डाट न पड़ जाए। परन्तु उसे ऊपर से इस बात का डर भी था कि कहीं काम न गलत हो जाए और मालिक कम्पनी से बाहर न निकाल दे। फिर बोरी-बिस्तरा उठा कर गांव का रास्ता नापना पड़ेगा। यह सब सोचते हुए उसने पूछने के लिए थोड़ी हिम्मत जुटाई और थोड़ा सुझ-बूझ से काम लिया। साहब! क्या काम करना है वहां पर अगर पता चल जाए तो मैं वहां तक जाते-जाते यह आइडिया लगा लूं कि कुछ और सामान की तो जरूरत नहीं पडेगी? वह मुस्कराते हुए बोला। अरे नहीं-नहीं ऐसा कोई बहुत भारी काम नहीं है। जल्दी ही हो जाएगा, बस दो-चार कीलें गाड़नी हैं पूजा की। कारीगर ने कुछ अनजानेपन और भोलेपन से फिर पूछा। क्या पूजा की भी कीलें होती हैं सर? हाँ पूजा की भी कीलें होती हैं। फिर उसने कुछ रूकते हुए कहा। वो क्या है कि अपनी कम्पनी को किसी की नजर लग गई है। पिछले महीने कम्पनी फायदे में थी, लेकिन इस महीने फायदा कुछ कम हो गया है। षेखर साहब किसी पंडित के पास गए थे। उन्होंने बताया कि अगर कम्पनी को नजर से बचाना है तो कम्पनी के सभी गेटों और सभी प्लांटों के दरवाजों और चारों दिशाओं में मंत्रों द्वारा पढ़ी हुई कीलें गाड़नी पड़ेंगी। कम्पनी में पूजा व हवन भी करवाना पड़ेगा और गरीबों को भर पेट भोजन करवाना पड़ेगा। फिर उसने अपनी बात को बीच में ही रोकते हुए कहा। अच्छा तुम जल्दी करके अपने हाथ धोकर आओ। क्योंकि पूजा के सामान को गन्दे हाथ नहीं लगने चाहिए। और हाँ तुम्हें यह काम खुशी-खुशी करना होगा। समझे तुम? क्योंकि यह कम्पनी की तरक्की का सवाल है। यस सर, मैं ऐसा ही करूँगा। ठीक है जाओ जल्दी हाथ धोकर आओ तब तक मैं वह सारा सामान उठा कर लाता हूँ। मालिक का गुर्गा जल्दी ही सामान लेकर आ गया और उधर से कारीगर भी हाथ धो कर आ गया। यस सर, बताइए कहाँ पर गाड़नी है कीलें? ऐसा करो यहां गेट के बीच में एक गड्ढा करो और ये लो पहले तो ये काली मिर्चें रख दो नीचे और उसके ऊपर ये रख दो। उसने एक लाल कपड़े से बंधी हुई पोटली दी। ध्यान रहे इसकी गांठ ऊपर की तरफ रखना और ऊपर से इस कील से गाड़ देना। इसके बाद ये सिन्दूर डाल देना। इसी तरह हमने ये सारी कीलें कम्पनी में अलग-अलग जगह गाड़ देनी हैं। जिस समय गेट पर ये काम किया जा रहा था, उसी समय कम्पनी की दूसरी शिफ्ट के मजदूर भी आ रहे थे। कम्पनी के अलग.अलग विभाग में चार शिफ्टों में मजदूर आते थे, ए, बी, सी और जनरल शिफ्ट। इस समय बी शिफ्ट के मजदूर अन्दर आ रहे थे और ए शिफ्ट के मजदूर बाहर जा रहे थे। आते-जाते सभी मजदूर इस टोटके को होते आश्चर्य से देखते हुए जा रहे थे। लेकिन वे समझ नहीं पा रहे थे कि ये सब क्यों किया जा रहा है। फटाफट मालिक के गुर्गे ने कारीगर की सहायता से इस काम को करवा डाला। और शाम तक कम्पनी में जगह-जगह नोटिस भी लगा दिए गए। नोटिस कुछ यूं था... प्रिय मजदूर भाइयों, कम्पनी इस समय घाटे में चल रही है, इस बार किसी को भी बोनस नहीं मिलेगा। इसलिए आप लोग मेहनत कीजिए, ताकि कम्पनी को पहले से भी ज्यादा मुनाफा हो।... कम्पनी में यह नोटिस लगते ही नोटिस बोर्ड के पास भारी भीड़ इकट्ठी हो गई थी। इस चाहत से कि इस नोटिस में हमारे लिए कोई खुशी का पैगाम आया है, लेकिन यह तो पैगाम की जगह डंके की चोट पर जहरीला तथा मीठे शब्दों में बेबस मजदूरों के लिए एक फरमान था। इस फरमान को सभी मजदूरों ने पढ़ा और बार-बार पढ़ा। पेशाब-पानी के बहाने वापस जाकर पढ़ा, किसी काम के बहाने वहां से निकलते हुए पढ़ा। इसलिए पढ़ा कहीं हमारी आँखें धोखा तो नहीं खा रही हैं और जब तक यह विश्वास न हुआ कि बोनस नहीं मिल रहा है तब तक पढ़ा। लेकिन किसी ने किसी को कुछ नहीं कहा। सभी मजदूर चुप रहे। अब कोई किसी से बात नहीं कर रहा था। किसी प्रकार का कोई शोर-शराबा और हलचल नहीं थी। सभी के सभी चुप थे जैसे वे गूंगे हों। और उनके साथ गूंगे हो गए थे उनके अरमान, उनकी खुशियाँ और आगन में खेलते हुए उनके बच्चों की किलकारियाँ तथा गुंगे थे दिवाली पर फूटने वाले पटाखे और खुद दिवाली भी। दिवाली के दो दिन बाद खबर आई कंपनी के सबसे ऊँचे अधिकारी को बोनस में 3 लाख रुपये एक लग्जरी कार और तनख्वाह में अभी से 50 हजार की बढ़ोत्तरी। दूसरे अधिकारियों की तनख्वाहों में भी बढोत्तरी हुई थी। यह खबर कानों में पड़ते ही सभी मजदूर इस उम्मीद से नोटिस की ओर भागे कि उनके लिए भी नोटिस में कुछ न कुछ तो होगा ही। नोटिस के पास फिर से भारी भीड़ इकट्ठी हो गई। पर वहां तो अभी भी वही पुराना नोटिस लगा हुआ था जिसे पढ़कर मजदूरों की आँखें थक गई थी। मजदूरों ने यह जानते हुए भी नोटिस पुराना है नजर की फेर वाला है फिर भी उसे बार-बार पढ़ा। उसे हर बार आते-जाते पढ़ते भुलवा, पंडित और उनके टीम के सदस्य भी आकर पढ़ते रहे। जितनी बार पढ़ते उतनी ही बार बेबसी की कड़वी घूट पीकर चले जाते। भुलवा तो उसके साथियों को अकेले में कईयों बार रोता भी मिला। लेकिन उसे किसी ने समझाने की कोशिश नहीं की। क्योंकि जो आदमी खुद अंधेरे में खड़ा हो जिसने खुद कभी उजाला न देखा हो वह दूसरे को उजाले के बारे में कैसे बता सकता है और यही हाल फुलवा और उसके साथियों की तरह पूरी कम्पनी के मजदूरों का था। कुछ दिन बाद कम्पनी में फिर एक नोटिस लगा। अबकि बार मजदूरों को पूरा विश्वास था कि नया नोटिस लगा है। जरूर हमारे लिए खुशखबरी है। अब तो जिन्दगी बदलेगी हमारी भी। फिर से नोटिस बोर्ड के पास एक-एक, दो-दो करके भीड़ जमा हुई। पीछे आने वाला आगे वाले को साइड धकेल कर बोर्ड की तरफ आगे बढ़ रहा था। कुछ मजदूरों में धक्का-मुक्की हुई और दो-चार मजदूर पास में ही चल रही प्लांटों के गन्दे पानी की नाली में गिर गए। गिरे हुओं को उठाया नहीं जाता, इसलिए वे खुद ही उठे। पानी में तैरते हुए कैमिकल्स से बने सफेद झाग उनके कपड़ों पर चिपक गए। उन्हें कपड़ों पर चिपके झागों को उतारने की फुरसत नहीं थी। उन्हें तो बोर्ड पर लगे नोटिस को पढ़ना था। वे नाली से निकले और आगे बढ़े। तब तक आगे बढ़े जब तक कि वे नोटिस तक न पहुंचे। नोटिस में लिखा था.... प्रिय मजदूर भाइयो, जैसे कि आप सभी जानते हैं कि हमारी कम्पनी को किसी की नजर लगने के कारण वह बहुत घाटे में चल रही है। इसकी एवज में हमने कम्पनी में इस शनिवार को पूजा-पाठ और हवन करवाना है। साथ ही माँ शेरावाली का भण्डारा भी है। हमने 1000 गरीबों को खाना खिलाना है। ज्योतिषी ने बताया है कि ऐसा करने से हमारी कम्पनी इस विपत्ति से निकल जाएगी। इसलिए कोई भी मजदूर षनिवार के दिन घर से खाना लेकर नहीं आएगा। सभी को यहीं पर भरपेट मिलेगा। ....... मजदूर एक बार फिर से ढगे गए।
ब्वायलर का धुआँ चिमनी से पहले की तरह हाहाकार करता हुआ निकलता रहा। अपने दैत्यकार राक्षसी आकार से आसमान को ढकता रहा और पहले की तरह जलती रही मजदूरों की जिन्दगी। ब्वायलर में जलते रहे खून-पसीने के साथ उनके अरमान और उनके सपने और उनके बच्चों का भविष्य।

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