अंजनी कुमार
अन्ना आंदोलन का भूत सत्ता में बैठे लोगों को सताया हो या न हो पर वामपंथ के एक हिस्से को खूब सता रहा है। वह वामपंथ के पूरे इतिहास व वर्तमान के गिरेबान में झांककर बोल रहा है कि जैसा अन्ना ने किया वैसा आज तक तुम न कर सके, कि तुम अपनी कमियों से चिपके रहे और देष की जनता के नब्ज को टटोल सकने में आज अक्षम बने रहे, कि यह तुम्हारी ही कमियां है जिसके चलते शासक वर्ग और मजबूत होता जा रहा है और जितना तुम लोग को आज तक कुल जमा राजनीति सिखा पाए उससे कई गुना यह चंद दिनों का आंदोलन सिखा गया, कि तुम सीखने को तैयार नहीं हो और न ही सुधरने को, कि तुम देश के सबसे वाहियात और अकर्मण्य लोग हो, कि तुम्हें इस बात के लिए अपना अपराध स्वीकार करना चाहिए और नए तरह के उभर रहे आंदोलनों मे खुद को समाहित कर देना चाहिए। वामपंथ का एक हिस्सा इस झोंक में खुद को समाहित करने के लिए एड़ी चोटी लगा दिया। इंकलाब जिंदाबाद के नारे के साथ वंदेमातरम् और भारत माता की जय के नारे को अपना लिया। पर इससे भी बात बनी नहीं। धारा के बहाव में उनके तैरने की आवाज भी सुनाई न दी। और जिस दिन अन्ना ने रामलीला मैदान से अस्पताल का रास्ता लिया उस दिन से सड़कें खाली हो गईं और जनता नारों तख्तों के साथ नदारद हो गई। यह सब कुछ सिनेमा हाल में बैठे फिल्म देखने जैसा था। जब तक फिल्म चलती रही सभी दृश्य के मर्म के साथ उतराते बैठते रहे। फिल्म खत्म होने के साथ ही इसके असर के साथ एक दूसरे तरह की दुनिया में घुस जाने जैसा था। सारा दामोरदार एक बार फिर संसद के पास है कि वह जन लोकपाल बिल कितने हिस्से को समाहित करेगा। बात नहीं बनी तो अन्ना एक बार फिर आएंगे। वामपंथियों का यह समूह बेहद स्वाभाविकता के साथ अन्ना आंदोलन के नारों, झंडों व कार्यक्रमों का हिस्सा बन गया। भारत माता की जय! वंदेमातरम्! और तिरंगें को हथियार की तरह फहराने से उसके अंदर भी झुरझुरी उठी। इस नारे को देश के असली नब्ज की पकड़ के रूप में देखा। प्रगतिशील आवरण के लिए इंकलाब जिंदाबाद का नारा था। और जिस किसी ने अन्ना आंदालन का विरोध किया उसके खिलाफ इस नारे का धारदार हथियार तरह प्रयोग किया। जो समूह पूरे आंदोलन पर छाया रहा और कस्बों से लेकर दिल्ली के ठेठ संसद तक हो रहे प्रदर्शनों पर काबिज रहा उसके साथ यह वामपंथी समूह स्वभाविक मित्रता महसूस कर रहा था। उसके साथ वह मजे ले रहा था। उसकी पीठ थपथपाकर फोटो खींच व खिंचा रहा था। यह उसके हमजोली का हिस्सा था और उनकी आकांक्षा को पूरा करने का असली हमसफर भी। यह समूह इन आंदोलनकारियों की आवाज में अपनी दबी आवाज के को देख रहा था। वामपंथियों का यह समूह लगातार किसानों, मजदूरों, गरीबों को खोज रहा था, मानों इसके बिना यह आंदोलन वैध साबित नहीं हो पाएगा। वे इस देश के पायदान पर पड़े लोगों को लगातार खोज रहा था और नहीं मिलने पर बेचैन हो कम्युनिस्ट पार्टियों को लगातार गरिया रहा था कि वे ऐसा क्यों नहीं कर रहे है, कि इस आंदोलन में उनकी भी वैधता सिद्ध होगी, कि उन्हें भी इस देष का सही नेतृत्वकारी मान लिया जाएगा। इस समूह की यह बेचैनी दरअसल इस हिंदूत्व के जलसे में उसकी बन स्वभाविक एकता को वैध बना लेने की छटपटाहट थी। यह किसी भी वामपंथ धड़े के छोटे से छोटे वाक्यांशों को अन्ना आंदोलन के समर्थन का नारा बना देने को उतावला हो उठा था। यह पूरे वक्तव्य को संदर्भ और समय से काट कर मचान का झंडा बना कर पेश कर रहा था। वह काट पीटकर किसी भी तरह एक दुनिया गढ़ लेने के लिए उतावला हो रहा था जो उसके मन मुताबिक हो, जो उसकी आकांक्षा के अनुरूप हो, आदि। वामपंथियों का यह समूह अन्ना आंदोलन की पृठिभूमि, इतिहास व राजनीतिक उद्देश्य, संगठन आदि किसी पक्ष को देखने समझने व उसकी व्याख्या भी करने को तैयार नहीं था। हालांकि यह सबकुछ पिछले छह महीने के भीतर हुआ है और आंख के सामने घटित हुआ है। इसके लिए कोई मोटी किताब या किसी जांच पड़ताल से भी नहीं गुजरना था। पर यह समूह इस आंदोलन के संदर्भ में उपरोक्त बातों को फालतू बता कर जयकारे में लग गया। इस समूह का मानना है कि इस तरह के विश्लेषण से अन्ना आंदोलन पर क्या फर्क पड़ जाएगा, कि जनता तो चल चुकी है और आप सिद्धांत बघार रहे है, कि यदि आप भागीदार नहीं हुए तो आपको कुत्ता तक नहीं पूछेगा। यह तर्कहीनता और राजनीति में दृटिहीनता यह समूह जानबूझकर अपना रहा था। वह इस पचड़े में पड़कर उमड़ रहे नवधनिकों से किसी भी स्तर पर अलग नहीं होना चाहता था। यह इस एकता की गुहार थी कि पुराने ढ़ाचों व मूल्यों और दृटि को तोड़कर फेंक दिया जाय। और उलट कर कम्युनिस्टों को इस बात की गाली दी जाय कि वे आज के समय को समझ नहीं पा रहे हैं, कि वे सत्तर साल के बूढ़े की मर्दानगी को समझ नहीं पा रहे हैं, कि वे अब कूड़ेदान में ही पड़े रहेंगे और अन्ना जैसा आंदोलन ही भविय का असल मर्द आंदोलन होगा। इस आंदोलन की राजनीतिक इकाई का गठन, जिसे आज अन्ना टीम के नाम से जाना जा रहा है, को बने हुए बहुत दिन नहीं गुजरे। संसद के पिछले सत्र में प्रस्तावित लोकपाल बिल के खिलाफ दिल्ली के जंतर मंतर पर एनजीओ से जुड़े लोगों ने बैठक किया था। उस बैठक को लेकर कारपोरेट सेक्टर काफी उत्साहित था। और सबसे ज्यादा उत्साहित थी भाजपा। उस सत्र में भाजपा की ओर से सुषमा स्वराज ने मनमोहन सरकार को नंगा कर देने की चुनौती दिया था। बाद के दिनों में भ्रटचार की घटनाओं के बाढ़ में भाजपा खुद ही डूबने लगी। कांग्रेस और भाजपा दोनों एक ही नाव पर सवार हो किसी तरह पार हो जाने की जुगत में लग गए। संसद में अरूण जेतली और मनमोहन सिंह के बीच इस बात पर तनातनी हुई कि संसद में अन्ना को बुलाकर भाषण क्यों दिलाया गया। पर दोनों ही अन्ना को साधने में लगे रहे और सफल रहे। लोकपाल बिल के खिलाफ जन लोकपाल बिल का प्रस्ताव आया और भ्रटचार के खिलाफ आंदोलन अन्ना आंदोलन में बदल गया। इस बदलाव में उपरोक्त एनजीओ के कई भागीदार इस आंदोलन से अलग हो गए। कई नाराज हुए। और कई नयो की भर्ती हुई। कुछ दबे हुए चेहरे चमक उठे। इस पूरी प्रक्रिया में पार्टियों के प्रतिनीधि, एनजीओ, कारपोरेट सेक्टर के प्रबंधकों और मीडिया समूहों ने निर्णायक भूमिका को अंजाम दिया। यह एक आंदोलन की पूर्वपीठिका की एक राजनीतिक गोलबंदी थी। राजनीति सिद्धांत की शब्दावली में यह इस आंदोलन की नेतृत्वकारी इकाई थी जिसने बाद के दिनों में अपनी क्षमता व दिषा का प्रदर्शन किया। बाद के दिनों में बस इतना ही फर्क आया कि अन्ना के बिना अन्ना टीम अवैधानिक व्यवस्था जैसी बन चुकी थी। और आंदोलन मैं अन्ना हूं में बदल गया। अन्ना व टीम अन्ना के बाद मीडिया घरानों से लेकर आरएसएस के विभिन्न संगठनकर्ता, नेता, विभिन्न पार्टियों के प्रतिनीधि व दलाल और कारपोरेट प्रबंधन के एलीट हैं। मीडिया प्रसारण के तौर तरीकों और मुद्दों को उछालने की नीति तय करने में लगा है। भाजपा आरएसएस राट्रवादियों के पुराने व नए घरानों को साधने में लगा है। कारपोरेट एलीट भ्रटाचार को नेता नौकरशाह तक सीमित कर अपने लूट और कब्जा की नीति को पूरी तरह मजबूत कर लेने के लिए प्रयासरत है। वह वहां उबल रहे राट्रवाद में पैसा झोंक रहा है कि यह और भड़क उठे। उसे आर्थिक मंदी की मार सता रही है। उसे और अधिक लूट की नीतियां चाहिए। उसे अब दूसरे दौर के भूमंडलीकरण की जरूरत है। इसके लिए राट्रव्यापी राट्रवादी आंदोलन व माहौल चाहिए। इस घेरे के बाद 1990 के बाद उभरे नव धनाढ़्य मध्यवर्ग अपने परिवारों और गैरसरकारी संगठनों के साथ सक्रिय भागीदार है। यह समूह सरकार में राजनीतिक हिस्सेदारी के लिए छटपटा रहा है। यह देष की कुल कमाई में हिस्सेदार होने के लिए राट्रीय अंतर्राट्रीय संस्थानों से गठजोड़ कर एनजीओ के माध्यम से सक्रिय है। यूथ फार इक्वलिटी से लेकर यूथ फार डेमोक्रेसी जैसे संगठन अपने नारों संगठनों व आर्थिक स्रोतों की बदौलत मीडिया के सहयोग से रातोंरात इनकी हजारों नेतृत्वकारी ईकाइयां उभर आयी हैं। ये भाजपा नहीं है। ये आर एस एस नहीं है। ये राट्रवादी ब्राहमणवाद का नया स्वायत्त समूह है। इन्हें भाजपा आरएसएस का भरपूर समर्थन और इनके साथ स्वभाविक गठजोड़ है। इन्होंने ‘गर्व से कहो मैं हिंदू हूं’ को ‘मैं अन्ना हू में बदल दिया है। इस आंदोलन के भागीदारों में सबसे निचले पायदान पर स्वतःस्फूर्त जनता का हिस्सा है जिनकी हिस्सेदारी कस्बों में अधिक पर दिल्ली के रामलीला मैदान में कम थी। यह समूह रोजमर्रा के भ्रटाचार से लेकर वर्तमान फासिस्ट जनविरोधी मनमोहन सरकार व विभिन्न पार्टियों की राज्य स्तर के दमनकारी सरकारों के खिलाफ विरोध व अपने क्षोभ को दर्ज कराने के लिए भागीदार रहा। यह अन्ना आंदोलन का सबसे बाहरी हिस्सा है। इस समूह का न तो अन्ना टीम तक पहुंच थी और न ही इस टीम को अपनी हिस्सेदारी के एजेंडे को पहुंचा सकने के हालात थे। सच्चाई यह भी थी कि टीम अन्ना व उसके घेरे के एजेंडे पर यह समूह था ही नहीं। यद्यपि टीम अन्ना बीच बीच में मीडिया से यह आग्रह करती रही कि कैमरे का मुंह इन तबाह हिस्सों की ओर भी कर लिया जाय। यह आग्रह इस समूह का प्रतिनिधित्व करने के उद्देष्य से नहीं बल्कि पूरे भारत के आम व खास सभी का अन्ना का आंदोलन में भागीदारी को वैधता देने के मद्देनजर ही किया जा रहा था। यह समूह उपरोक्त राजनीतिक गोलबंदी से बाहर था। यह समूह इस आंदोलन को प्रभावित करने के किसी भी टूल से वंचित था। ऐसी स्थिति में यह खुद उनका टूल बन रहा था और तेजी से उनके प्रभाव में आ रहा था। 1995 के बाद के दौर में वित्तीय पूंजी की खुली आवाजाही व तकनीक सेवा ओर प्रबंधन की संस्थाओं से पैदा हुए नवधनाढ़्यों और सट्टेबाजों की दावेदारी ने पुनर्गठन की जरूरत को पैदा किया है। यह वर्ग इसके बदले में कारपोरेट सेक्टर को लूटने की खुली छूट दे रहा है। इस पुनर्गठन से शासक वर्ग के किसी भी हिस्से को नुकसान नहीं होना है। यह जनता के लूट- शोषण, दमन का फासिस्ट पुनर्गठन है। समाज में जीवन स्तर, आय और जरूरत के आधार पर बंटवारे की गति और तेज होगी। चंद लोगों के हाथ में अथाह संपत्ति होगी और देश की बहुसंख्य आबादी भोजन के लिए पहले से और अधिक मोहताज होगी। अन्ना का जनलोकपाल बिल, राट्रवाद वर्तमान दमनकारी फासीवादी व्यवस्था को और अधिक मजबूत करने का प्रवर्तन है। इस आंदोलन में अल्पसंख्यक खासतौर से मुसलमान समुदाय की भागीदारी न होना, दलित व आदिवासी समुदाय का इससे दूरी बनाए रखने के पीछे आत्मगत से अधिक वस्तुगत कारण ही प्रमुख रहे हैं । भूमंडलीकरण का सबसे अधिक नुकसान इन्हीं समुदायों का हुआ। बैंकों ने मुसलमान समुदाय के खाता खोलने तक से कोताही बरती। इनके एनजीओ पर पचास तरह के जांच व रोक लगे। इनकी आजीविका के साधनों को नीतियां बनारक नुकसान पहुंचाया गया। इसका विस्तार पूर्वक वर्णन सच्चर कमेटी ने प्रस्तुत किया है। यही हालात दलित व आदिवासी समुदाय का रहा। दलित समुदाय एक छोटा हिस्सा जरूर ऊपर गया है पर वह अन्ना आंदोलन के फासिस्ट हिंदूत्ववादी पुनर्गठन का हिस्सा नहीं बनना चाहता। अन्ना आंदोलन भारतीय समाज की एक प्रतिगामी परिघटना है। यह शासक वर्ग का फासिस्ट पुनर्गठन की मांग है। इसमें भागीदारी इसके दार्शनिक पहलू को आत्मसात करना है।
anjani ji khantee vampanthee lagte hain. lekin bhai aapko mao ne yah to sikhaya hi hoga ki galtiyon ke liye pahle apne gireban men jhnkna hota hai.
जवाब देंहटाएं-alok mehta
Ek odia kabita isi bahane
जवाब देंहटाएंOFF SEASON SALE-2011
Han,desh hai ek mall
Baki asabhya upnivesh
Jahan se jitna chus sako khun tum
Ho utna malamal.
Malamal sukhon ki quality ke liye
Tum rakh sakte ho apna maang
Use janadolan ka naam de kar
Hum garm rakehenge
Is khas janatantra ko ,
Khas usike liye
Chaviso ghante hamarah dholpitu bhesh
O desh ke sabse bada grahakon !
Hai prayojit
Manch,placard
Candle light,camera
Pholon ka mala,
Tiranga udake nach sakte ho tum rajrasta par
Nachne ke liye
Kal tha vishwacup cricket to
Aaj janlokpal khel.
Ab liyajaye ek commercial break
Break ke baad jari rahega nach
Hamara rangarang karyakram,
Nach nach ke bhog sakte ho jitna chaho
Ek chhint bhi nahi lagega tum par khon ka kichad,
Deshprem hai ek nirapad condom.
*leninkumar12342gmail.com