मेक्सिको लैटिन अमेरिका का सर्वाधिक आबादी वाला देश है। 2007 में मेक्सिको में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 21 प्रतिशत बढ़कर 1 करोड़ 57 लाख डालर पर पहुंच गया। यह 2007 से पहले का सर्वाधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश था। इससे पहले 2001 में यहां 2 करोड़ 95 लाख डालर का प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश हुआ था। दूसरे देशों की तरह मेक्सिको में भी 1991 से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ना शुरू हुआ। उदारीकरण और निजीकरण ने मेक्सिको की अर्थव्यथा को साम्राज्यवाद के साथ नाभिनालबद्ध कर दिया। 1990 में लैटिन अमेरिका में सकल वैश्विक प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश 32 प्रतिशत था, यह 1998 में 43 प्रतिशत पर पहुंच गया। इसलिए यह समझना भूल होगी कि एफडीआई का कुप्रभाव सिर्फ मेक्सिको पर पड़ा। अर्जेंटीना, चिली, निकारागुआ, ब्राजील जैसे देश भी सामा्रज्यवाद के ऊपर निर्भर होते जाने के साथ ही उनकी अर्थव्यवस्था असाध्य तौर पर संकटग्रस्त होती गई।
इस समय मेक्सिको में होने वाले कुल विदेशी निवेश का करीब आधा अमेरिका की ओर से किया जाता है। हालैंड (15%) और स्पेन (10%) का स्थान अमेरिका के बाद आता है। मेक्सिको में निवेशकर्ताओं ने यह आश्वासन दिया कि इससे वहां के लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार मिलेगा। हालांकि बाद में यह साबित हो गया कि यह एक कोरी गल्प के सिवा कुछ नहीं था। एफडीआई बढ़ने के साथ ही वहां के पारंपरिक रोजगार के अवसर भी खत्म होते गए। सबसे खतरनाक बात यह रही कि मेक्सिको की अर्थव्यवस्था की इस प्रवृत्ति ने उसे निवेशकर्ता देशों के ऊपर पूरी तरह निर्भर बनाने का काम किया। यही वजह रही कि 2008 में अमेरिका में आर्थिक मंदी के आते ही मेक्सिको बुरी तरह बर्बादी के कगार पर पहुंच गया।
मेक्सिको में जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर रहा। भारत की तरह ही वहां भी रिटेल क्षेत्र रोजगार का दूसरा बड़ा स्रोत रहा है। इसलिए वहां कृषि क्षेत्र में एफडीआई के बढ़ने के साथ ही मेक्सिको में खाद्य संकट पैदा हो गया। इसके पहले खाद्यान्न के मामले में मेक्सिको लगभग पूरी तरह आत्मनिर्भर था। इस समय वह रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाली खाद्य वस्तुओं तक के लिए अमेरिका, स्पेन जैसे देशों की खाद्य पदार्थों की आपूर्ति करने वाली कंपनियों के ऊपर निर्भर हो चुका है। आज मेक्सिको को कुल सोया उपभग का 95 प्रतिशत, कुल चावल उपभोग का 58 प्रतिशत, गेहूं 49 प्रतिशत और कुल मांस उपभोग का 40 प्रतिशत विशालकाय खाद्य वस्तुओं का व्यापार करने वाली वालमार्ट जैसी कंपनियों से खरीदना पड़ता है। वालमार्ट के बारे में अमेरिका और लैटिन अमेरिका में कहा जाता है कि उसने अमेरिका/लैटिन अमेरिका के जिस भी इलाके में अपने स्टोर खोले, वहां के किसान तुलनात्मक रूप में और भी गरीब हो गए। आज वह यह कारनामा समूची दुनिया में दोहराने की तैयारी कर रही है। लैटिन अमेरिका को तबाह करने के बाद अब भारत उसकी पहली पसंद बनने वाला है। बहरहाल, मक्का उत्पादन के लिए प्रसिद्ध मेक्सिको की हालत यह है कि वहां के किसान आज बर्बाद हो रहे हैं। एक आंकलन के अनुसार इस समय वहां मक्का उत्पादन करने वाले करीब 20 लाख किसान भयंकर गरीबी में जीवन जीने का अभिशप्त हैं। वहां पर हर दिन करीब 600 किसानों को अपनी जमीनों से हाथ धोना पड़ रहा है। उत्पादन और वितरण पर साम्राज्यवादी पूंजी की इजारीदारी का खामियाजा मेक्सिको को सबसे पहले झेलना पड़ा, लेकिन आज दुनिया भर में उसके कई और संगी साथी पैदा हो गए हैं। जिस तरह भारत की अर्थव्यवस्था आज उधारी की सांस पर जिंदा रहने को मजबूर है, ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि आने वाले समय में यहां के हालात भी मेक्सिको जैसे ही विस्फोटक हो सकते हैं।
इस समय मेक्सिको में होने वाले कुल विदेशी निवेश का करीब आधा अमेरिका की ओर से किया जाता है। हालैंड (15%) और स्पेन (10%) का स्थान अमेरिका के बाद आता है। मेक्सिको में निवेशकर्ताओं ने यह आश्वासन दिया कि इससे वहां के लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार मिलेगा। हालांकि बाद में यह साबित हो गया कि यह एक कोरी गल्प के सिवा कुछ नहीं था। एफडीआई बढ़ने के साथ ही वहां के पारंपरिक रोजगार के अवसर भी खत्म होते गए। सबसे खतरनाक बात यह रही कि मेक्सिको की अर्थव्यवस्था की इस प्रवृत्ति ने उसे निवेशकर्ता देशों के ऊपर पूरी तरह निर्भर बनाने का काम किया। यही वजह रही कि 2008 में अमेरिका में आर्थिक मंदी के आते ही मेक्सिको बुरी तरह बर्बादी के कगार पर पहुंच गया।
मेक्सिको में जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर रहा। भारत की तरह ही वहां भी रिटेल क्षेत्र रोजगार का दूसरा बड़ा स्रोत रहा है। इसलिए वहां कृषि क्षेत्र में एफडीआई के बढ़ने के साथ ही मेक्सिको में खाद्य संकट पैदा हो गया। इसके पहले खाद्यान्न के मामले में मेक्सिको लगभग पूरी तरह आत्मनिर्भर था। इस समय वह रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाली खाद्य वस्तुओं तक के लिए अमेरिका, स्पेन जैसे देशों की खाद्य पदार्थों की आपूर्ति करने वाली कंपनियों के ऊपर निर्भर हो चुका है। आज मेक्सिको को कुल सोया उपभग का 95 प्रतिशत, कुल चावल उपभोग का 58 प्रतिशत, गेहूं 49 प्रतिशत और कुल मांस उपभोग का 40 प्रतिशत विशालकाय खाद्य वस्तुओं का व्यापार करने वाली वालमार्ट जैसी कंपनियों से खरीदना पड़ता है। वालमार्ट के बारे में अमेरिका और लैटिन अमेरिका में कहा जाता है कि उसने अमेरिका/लैटिन अमेरिका के जिस भी इलाके में अपने स्टोर खोले, वहां के किसान तुलनात्मक रूप में और भी गरीब हो गए। आज वह यह कारनामा समूची दुनिया में दोहराने की तैयारी कर रही है। लैटिन अमेरिका को तबाह करने के बाद अब भारत उसकी पहली पसंद बनने वाला है। बहरहाल, मक्का उत्पादन के लिए प्रसिद्ध मेक्सिको की हालत यह है कि वहां के किसान आज बर्बाद हो रहे हैं। एक आंकलन के अनुसार इस समय वहां मक्का उत्पादन करने वाले करीब 20 लाख किसान भयंकर गरीबी में जीवन जीने का अभिशप्त हैं। वहां पर हर दिन करीब 600 किसानों को अपनी जमीनों से हाथ धोना पड़ रहा है। उत्पादन और वितरण पर साम्राज्यवादी पूंजी की इजारीदारी का खामियाजा मेक्सिको को सबसे पहले झेलना पड़ा, लेकिन आज दुनिया भर में उसके कई और संगी साथी पैदा हो गए हैं। जिस तरह भारत की अर्थव्यवस्था आज उधारी की सांस पर जिंदा रहने को मजबूर है, ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि आने वाले समय में यहां के हालात भी मेक्सिको जैसे ही विस्फोटक हो सकते हैं।
aapne fdi ki behtrin padtaal ki hai. india ko iska khayal rakhna hoga. badhai ho devendra bhai.
जवाब देंहटाएंpankaj chaudhary