रविवार, 31 जुलाई 2011

पत्रकार हत्या-2 : वे जो अब नहीं रहे


 देवेन्द्र प्रताप
कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (सीपीजे) संस्था ने 13 देशों पर आधारित एक रिपोर्ट में पत्रकारों की हत्या की गुत्थी सुलझाने वाले देशों में भारत को 13 वें पायदान पर रखा है। सीपेजे ने पाकिस्तान को 10 वें, जबकि बाग्लादेश को 11 वें स्थान पर रखा है। यह रिपोर्ट 1 जनवरी, 2001 से 31 दिसंबर 2010 के दौरान पत्रकारों पर हुए हमलों के ऊपर आधारित है। इस रिपोर्ट को पढ़कर पत्रकारिता के पेशे में किसी नए आगंतुक बेहद धक्का लगेगा, जब उसे पता चलेगा कि अभी तक पत्रकारों की ज्यादातर हत्याएं ड्यूटी के दौरान ही हुई हैं। यूनेस्को की रिपोर्ट में इराक और फिलीपीन को पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक स्थान साबित किया गया है। सीपीजे की रिपोर्ट भी यही दावा करती है। उसके अनुसार पत्रकारों की हत्या से सबसे ज्यादा अनसुलझे मामले इराक में हैं। वहां उपरोक्त समयावधि में 92 मामले अनसुलझे पाए गए, जबकि फिलीपीन में 56 मामलों पर कोई सुनवाई नहीं हुई। श्रीलंका और कोलंबिया का स्थान इसके बाद आता है। इराक को पत्रकारों के मामले में खलनायक करार देने से पहले, इस मामले में अमेरिका की भूमिका पर भी जरूर विचार करना चाहिए। इस मामले में यूनेस्को रिपोर्ट पूरी तरह मौन है। मध्यपूर्व के देशों में बड़े पैमाने पर पत्रकारों पर हुए हमलों और उनकी हत्याओं में अमेरिका की भूमिका पर पर्दा हटना अभी बाकी है।

भारत: जिन्हें अभी जाना नहीं चाहिए था
प्रदीप भाटिया हिंदुस्तान टाइम्स दिल्ली संस्करण के लिए फोटो रिपोर्टिंग का काम करते थे। वर्ष 2000 में वे हिजबुल मुजाहिद्दीन के श्रीनगर बंद की कवरेज के लिए वहां गए हुए थे। 10 अगस्त की दोपहर एक बम विस्फोट की सूचना पर वे घटनास्थल की ओर रवाना हुए। जब वे घटनास्थल पर पहुंचे, उसी समय एक और विस्फोट में प्रदीप के साथ वहां खड़े हुए 11 और लोगों की मौत हो गई। प्रदीप ने 1996 हिंदुस्तान टाइम्स से जुड़े थे। इससे पहले उन्होंने बिजनेस स्टैंडर्ड में काम किया था।
गोपाल सिंह बिष्ट आज तक में कैमरामैन थे। 30 सितंबर 2001 को वे कांग्रेस पार्टी के नेता माधवराव सिंधिया के साथ कानपुर में किसी रैली को कवर करने के लिए जार रहे थे। बिष्ट के 50 वर्ष का होने के बावजूद वे बहुत उत्साही प्रकृति के थे। इसलिए संस्थान उन्हें जहां भी कोई स्टोरी कवर करने के लिए कहता वे तुरंत तैयार हो जाते। उनके पास अपने क्षेत्र का करीब 25 साल का अनुभव था। विमान में उनके साथ पांच और पत्रकार थे। रास्ते में विमान में आग लगने के बाद हुए विस्फोट में उस पर सवाल सभी लोगों की मौत हो गई।
विक्रम बिष्ट एशियन न्यूज इंटरनेशनल में फोटोग्राफर थे। 13 दिसंबर को संसद भवन पर हुए हमले की कवरेज के दौरान उन्हें भी गोली लगी थी। इसके वे लगभग अपंग ही हो गए। हमेशा दौड़भाग करने वाले विक्रम को लगी आतंकवादियों की गोली ने उन्हें व्हीलचेयर का सहारा लेने का मजबूर कर दिया। 9 जनवरी 2003 को व्हीलचेयर से वे फिसलकर गिर पड़े। इस बार गिरने के बाद वे कभी नहीं उठ सके। अभी वे 28 साल के ही थे। उनके परिवार में उनकी पत्नी के अलावा उनका एक छोटा बच्चा है।
रमेश चंद्र चोपरा सिख आतंकवाद के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने अपने कई लेखों में इसकी मुखालफत भी की। उनके पिता का नाम लाला नारायण था, जिन्होंने तीन भाषाओं

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