शबनम हाशमी
हमारे देश का मुस्लिम समुदाय लोकतंत्र में विश्वास करता है . इसके बावजूद उनके मन में भय और उससे पैदा हुई निराशा की एक सार्वभौमिक भावना मौजूद है। एक प्रक्रिया में सत्ता से इनका मोहभंग हुआ है। यह मोहभंग सिर्फ पुलिस और न्यायपालिका के साथ ही हुआ हो, ऐसा भी नहीं है; राजनीतिक दलों के साथ और कुछ हद तक मीडिया पर भी उनका भरोसा धीरे-धीरे कम हुआ है। मीडिया ने मुसलमानों को आतंकवादी चेहरा पहनाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी है। हमारे मुल्क में आज भी मुसलमानों को बेवजह लंबे समय तक हिरासत में रखना, गिरफ्तारी के बाद जमानत न मिलना, न्यायिक कार्रवाई में उनके प्रति पक्षपातपूर्ण जांच और परीक्षण एक आम बात है। दूसरी ओर शिक्षा, रोजगार, आवास और सार्वजनिक सेवाओं से यह समुदाय कमोवेश वंचित ही है। सत्ता आमतौर पर मुसलमानों के प्रति असंवेदनशीलता का प्रदर्शन करती है, यही वजह है कि उनके मन में दूसरे दर्जे की नागरिकता का दर्द गहरे बैठता जा रहा है।संवैधानिक और वैधानिक गारंटी के बावजूद हकीकत तो यही है कि मुस्लिमों के ऊपर सत्ता की ओर से होने वाले हमलों में इजाफा ही हुआ है। मुसलमानों के बीच आधुनिक शिक्षा का प्रसार न होने के कारण भी आज इनके बीच का एक बड़ा हिस्सा देश की मुख्यधारा की शिक्षा, संस्कृति और राजनीति से कटा हुआ है। सरकार की ओर से इनके लिए जो योजनाएं बनती हैं, वे दरअसल रस्म अदायगी भर हैं। इन योजनाओं का लाभ भी इस तबके के जरुरतमंद लोगों तक नहीं पहुंच पाता।
जहां तक भारत के मुसलमानों के आतंकवाद से जुड़ने का मामला है वह एक सफेद झूठ है। अमेरिकी तक इस बात को मानता है कि भारत के मुसलमानों का आतंकवादी शक्तियों से कोई लेना देना नहीं है। यह बात विकीलीक्स द्वारा अमेरिकी दस्तावेजों के खुलासे के बात सामने आयी। भारत का मुसलमान न सिर्फ आतंकवाद से दूर है वरन वह अपने देश के प्रति पूरी तरह इमानदार है। अगर कोई इस प्रमाण को देखना चाहे तो गार्जियन के अंकों में इसकी छानबीन कर सकता है। पूर्व अमेरिकी राजनयिक डेविड मलफोर्ड ने इस मसले पर तो यहां तक कहा है कि भारत के मुसलमानों के ऊपर न तो अलगाववाद और न ही धार्मिक चरमंपथियों का ही कोई प्रभाव है। जहां तक देश में कट्टर इस्लामिक शक्तियों की पैठ का मामला है, यह बात भी आज दिन के उजाले की तरह साफ है कि भारत में मुसलमानों का बड़ा हिस्सा किसी भी धार्मिक संगठन से जुड़ा नहीं है। वह लोकतंत्र में कम ही सही, लेकिन विश्वास करता है। हकीकत तो यह है कि उसकी आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने वाला आज न तो कोई धार्मिक संगठन है और न ही राजनीतिक संगठन। यानी समग्रता में देखा जाए तो वह आज एक ऐसी विकल्पहीन दुनिया में जी रहा है, जहां धार्मिक और राजनीतिक शक्तियां उसकी हितैषी बनकर उसे ठगने का काम करती हैं। यही हाल हिंदुओं का भी है, जिनका आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद जैसे सांप्रदायिक संगठन अपने हितों के हिसाब से उपयोग करते हैं।
2008-09 में संघ के नापाक इरादों का भंडाफोड़ करने के लिए अनहद, भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन, फाउंडेशन आफ सिविल सोसाइटीज, इंसाफ, जामिया टीचरर्स सालिडरिटी एसोसिएशन, संदर्भ और सियायत से जुड़े सदस्यों ने देश भर के करीब 300 बुद्धिजीवियों, राजनेताओं ने एक बैठक की थी। इस बैठक में यह तय किया गया था कि देश में मुस्लिम समुदाय की स्थिति पर गम्भीर शोध करके सच्चाई को बाहर लाया जायेगा। देश भर में मुसलमानों के बीच काम करने वाले स्वयं सेवी संगठनों ने भी इस बात को गहराई से एहसास किया कि इस तरह का प्रयास बेहद जरुरी है। इस बैठक में एबी बर्धन, बिलाल काजी, दिग्विजय सिंह, इफ्खिर गिलानी, प्रशांत भूषण, सीताराम येचुरी और तरुण तेजपाल जैसे सैकड़ों गणमान्य लोग मौजूद थे। इसी का परिणाम था कि ‘मुस्लिम इन इंडिया टूडे’ रिपोर्ट सामने आयी। यह रिपोर्ट मुसलमानों की वास्तविक जिंदगी की जद्दोजहद को काफी हद तक सामने लाने में कामयाब हुई। इस रिपोर्ट में ऐसे सैकड़ों परिवारों की व्यथा दर्ज है, जो आज भी आजाद मुल्क में एक समुदाय विशेष से ताल्लुक रखने का दर्द झेलने के लिए अभिशप्त हैं। आज इस तरह के प्रयासों की और भी ज्यादा जरुरत है।
मुंबई बम धमाकों जैसी घटनाओ के बाद ये सच और भी तकलीफ के साथ सामने आता है
जवाब देंहटाएंइसे बदलने की जरुरत तो है पर जात बिरादरी की मिटटी में लिपटे हमारे देश में कौम के कीड़े को हमेशा के लिए साफ़ करने को हिट सरीखा पदार्थ इजाद करने की जरुरत है