अंकल आप लोग श्रीनगर में हमारे घर ठहरिए
जलियांवाला बाग की शताब्दी में शामिल होने के लिए लखनऊ छह साथियों का एक शहीद यात्रा दल अमृतसर गया था। इसके पहले भी यह 2011 में हुसैनीवाला फिरोजपुर शहीद यात्रा में गया था जहाँ, भगत सिँह, राजगुरु और सुखदेव का अंतिम संस्कार किया गया था। आज के इस दौर में जलियांवाला बाग काण्ड के हत्यारे जनरल डायर से इंग्लैंड में जाकर बदला लेने शहीद ऊधम सिंह को याद करना बहूत जरूरी है जिन्हें हम भुलाते जा रहे है।उधम सिंह जनरल को मार कर उसी तरह देश की क्रांतिकारी धारा को धार दी जिस तरह भगत सिंह औऱ उनके साथियों ने लाला लाजपतराय की हत्या का बदला साण्डर्स को मार कर की थी।इन शहीदों के विचारों और सपनों के बारे में आज हम सब देशवासियों को सोचने की जरूरत है और देश की फासीवादी सरकार को उखाड़ फ़ेंकने की भी जरूरत है। इस शहीद यात्रा दल में शामिल है एम के सिंह,रामकिशोर,मसूद साहब,ओ पी सिन्हा, बी एस कटियार,विपिन त्रिपाठी ।इन्क़लाब जिंदाबाद। यहां से ये साथी जम्मू से होते हुए कश्मीर की यात्रा पर गये। वहां आंखो देखी आपके लिए ....(पहली किस्त)
किसी भी देश या उस क्षेत्र का जहां लोग अपने सामाजिक–सांस्कृतिक वजूद के साथ रहते हैं और अपनी शैली में जिन्दगी जीते हैं, एक तहजीब और अपनी पूरी कायनात रचते हैं, उसे महज़ धरती का एक टुकड़ा समझना नाइंसाफ़ी होगी। रंग–रूप और जीवनशैली की विविधिता इंसानी एकता में कहीं बाधा नहीं बनती। फिर यह जंग क्यों? फौजें और सरहदें क्यों? कुछ ऐसे ही और कई सवालों के जवाब ढूंढने के लिए लखनऊ से कुछ सामाजिक कार्यकर्ता पिछले दिनों धरती की जन्नत की सैर पर गए। वहां उन्होंने जो कुछ देखा, महसूस किया उसे साझा किया है।
लखनऊ से चार सामाजिक कार्यकर्ता एमके सिंह, मोहम्मद मसूद, ओपी सिन्हा और बीएस कटियार कश्मीर की जमीनी हकीकत को समझने के लिए वहां गए थे। बिना किसी बैनर या मंच के वे कश्मीर के गांवों में गए, कालेजों में छात्र-छात्राओं और प्रोफेसरों से मिले। उनके मुताबिक धरती की जन्नत की उनकी यात्रा के प्रेरणास्रोत थे जाने-माने विचारक, चर्चित लेखक और एक्टविस्ट गौतम नौलखा। पिछले साल लखनऊ में आयोजित एक गोष्ठी में उन्होंने कहा था कि हम लोगों को कश्मीर जाकर वहां के लोगों से मिल कर हक़ीकत जाननी और समझनी चाहिए। 13 अप्रैल को अमृतसर में जलियांवाला बाग हत्याकांड की शताब्दी में शामिल होते हुए 14 अप्रैल को चारों लोग जम्मू पहुंचे और फिर यहां से टैक्सी से श्रीनगर के लिए रवाना हुए|
हमारी टैक्सी का चालक एक कश्मीरी नौजवान इरफ़ान था। वह श्रीनगर में रहता है। उसने रास्ते में हम लोगों से कहा अंकल आप लोग श्रीनगर में हमारे घर ठहरिए। हमारे मेहमान बनिए। हम आपके रहने-खाने का इंतजाम करेंगे और पूरा श्रीनगर अपनी गाड़ी से घुमएंगें। कश्मीर की कश्मीरियत से यह हमारी शुरुआती मुलाकात थी। दहशत, तनाव और तबाही के इस दौर में इरफान की बातों ने हमें कश्मीरियों की इस सहृदयता और मेहमाननवाजी को सलाम करने को मजबूर कर दिया। हमने उसे शुक्रिया कहा।
हमें अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार अनंतनाग से लगभग 15 किलोमीटर दूर पहलगाम रोड पर अक्कड़ गांव जाना था, जहाँ बिलाल मियां (बिलाल रैना) अपने वालिद मोहम्मद सुल्तान रैना और अपने परिवार के साथ हमारा इंतजार कर रहे थे। इरफ़ान भले ही टैक्सी चलाता है, लेकिन उसने अलीगढ़ से एमए बीएड की डिग्री हासिल की है। वह घर में अकेला मर्द है और पांच बहने हैं, जिनको पढ़ाने-लिखाने और शादी-ब्याह की जिम्मेदारी उसके कन्धों पर है। उसके वालिद और मां का पहले ही इन्तकाल हो चुका है। उसने बताया कि उसके दो बड़े भाइयों को आतंकी बता कर इनकाउन्टर में मार दिया गया, जिसमें एक सरकारी नौकरी कर रहा था। इरफ़ान को अपने भाई की जगह नौकरी इसलिए नहीं दी गयी, क्योंकि उसके भाई को आतंकी कहा गया और उसका एनकाउन्टर किया गया था। उसने पैसों को इंतजाम किया और टैक्सी खरीदी, जिसे वह खुद चलाता है।
कश्मीर में गरीबी नहीं नजर आती। हर किसी के पास कम से कम अपना घर चलाने और खाने-कमाने के लिए कुछ न कुछ तो है। कश्मीरी मेहनती, ईमानदार और स्वाभिमानी होते हैं इसलिए कोई भी काम उनके लिए छोटा-बड़ा नहीं होता है। लखनऊ में जाड़े के मौसम में ये लोग हमारे यहां भी आते हैं। हम उनसे कश्मीरी शाल और मेवे खरीदते हैं। इनमें से कमोवेश सभी कश्मीरी किसान होते हैं, जो पारा माइनस में जाते ही यूपी, बिहार में कारोबार के लिए निकल पड़ते हैं। यद्यपि अब कश्मीरी नौजवानों की एक बड़ी संख्या बेरोजगारी की भी शिकार है जो बेकार घूम रहे हैं। वे मेहनती और स्वाभिमानी हैं, इसलिए सेब और अखरोट के बगीचे उनकी मेहनत के पसीने से महकते-लहकते रहते हैं। कश्मीरी खुद नहीं बोलते पर कश्मीर के हालात जानने के बारे में कहने पर वे बम की तरह फूट पड़ते हैं। यह तजुर्बा हमें अपनी पूरी कश्मीर यात्रा में लोगों से मिलते हुए हुआ। चाहे छात्र हों या अध्यापक या किसान-मजदूर या कारोबारी सबके दिल जख्मी हैं और दर्द से भरे हैं। इसके बावजूद उनमें किसी हिन्दू या किसी हिन्दुस्तानी के प्रति जरा भी नफ़रत नहीं नजर आती है।
हमने पाया कि उनका झुकाव पाकिस्तान की तरफ भी नहीं है। वे किसी पर शक–सुबहा भी नहीं करते हैं। इरफ़ान की तरह और भी लोग मिले जो आज के मीडिया से शख्त नफ़रत करते हैं। वे कहते हैं कि मीडिया ने कश्मीर की छवि बिगाड़ी है। वे फ़ौज और मीडिया से एक जैसी नफ़रत करते हैं। इरफान उम्मीद और आत्मविश्वास से लबरेज नौजवान है। उसने कहा कि हमारे पास पानी है, जंगल हैं। पानी से बिजली बना कर और जंगलात की लकड़ी निर्यात कर कश्मीर को इंग्लैंड बनाया जा सकता है। हमें किसी से मदद लेने की जरूरत नहीं है। कश्मीर के जितने लोगों से हम मिलने उनमें से 90 प्रतिशत आज की राजनीति से ऊबे हुए और गुस्से से भरे हुए नजर आए। महबूबा मुफ़्ती हों, उमर अब्दुल्ला, गिलानी या मोदी उसके लिए सब एक जैसे हैं। कश्मीर की इस हक़ीकत से हमारा पहला साक्षात्कार था।
कश्मीर के खराब हालात के नाम लोगों को डराया जा रहा
कश्मीर के स्थानीय लोगों ने बताया कि पहले यहां काफी टूरिस्ट आते थे, लेकिन जिस तरह से लोगों को कश्मीर के खराब हालात के नाम पर डराया जा रहा है, उससे अब टूरिस्ट की तादाद में काफी गिरावट आई है। कुछ लोग इसमें हिमाचल के मीडिया की साजिश भी बताते हैं, ताकि टूरिस्ट हिमाचल ज्यादा जाएं। यह अतिरंजना भी हो सकती है, पर उनका नजरिया मीडिया के प्रति किस स्तर तक बिगड़ गया है, यह कश्मीरियों से मिलते हुए हमें साफ नजर आया। एक और खास बात कश्मीर के नौजवान देश के अन्य हिस्सों के मुताबिक ज्यादा राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक चेतना से लैस नजर आए।
बच्ची की हत्या से उबल रहा कश्मीर
जम्मू के कठुआ के रसाना गांव में आठ साल की मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या के खिलाफ प्रतिरोध की लपटें पूरे कश्मीर में दिखाई दीं। इसमें नौजवानों और छात्र-छात्राओं की शिरकत सबसे ज्यादा दिखी। कमोवेश हर इलाके में इसके खिलाफ लोगों में उबाल नजर आया। लोगों की एक ही मांग है कि हत्यारों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए। इस मामले में की जा रही राजनीति के प्रति उनमें दिली नफरत नजर आई।
- भगवान स्वरूप कटियार
जलियांवाला बाग की शताब्दी में शामिल होने के लिए लखनऊ छह साथियों का एक शहीद यात्रा दल अमृतसर गया था। इसके पहले भी यह 2011 में हुसैनीवाला फिरोजपुर शहीद यात्रा में गया था जहाँ, भगत सिँह, राजगुरु और सुखदेव का अंतिम संस्कार किया गया था। आज के इस दौर में जलियांवाला बाग काण्ड के हत्यारे जनरल डायर से इंग्लैंड में जाकर बदला लेने शहीद ऊधम सिंह को याद करना बहूत जरूरी है जिन्हें हम भुलाते जा रहे है।उधम सिंह जनरल को मार कर उसी तरह देश की क्रांतिकारी धारा को धार दी जिस तरह भगत सिंह औऱ उनके साथियों ने लाला लाजपतराय की हत्या का बदला साण्डर्स को मार कर की थी।इन शहीदों के विचारों और सपनों के बारे में आज हम सब देशवासियों को सोचने की जरूरत है और देश की फासीवादी सरकार को उखाड़ फ़ेंकने की भी जरूरत है। इस शहीद यात्रा दल में शामिल है एम के सिंह,रामकिशोर,मसूद साहब,ओ पी सिन्हा, बी एस कटियार,विपिन त्रिपाठी ।इन्क़लाब जिंदाबाद। यहां से ये साथी जम्मू से होते हुए कश्मीर की यात्रा पर गये। वहां आंखो देखी आपके लिए ....(पहली किस्त)
किसी भी देश या उस क्षेत्र का जहां लोग अपने सामाजिक–सांस्कृतिक वजूद के साथ रहते हैं और अपनी शैली में जिन्दगी जीते हैं, एक तहजीब और अपनी पूरी कायनात रचते हैं, उसे महज़ धरती का एक टुकड़ा समझना नाइंसाफ़ी होगी। रंग–रूप और जीवनशैली की विविधिता इंसानी एकता में कहीं बाधा नहीं बनती। फिर यह जंग क्यों? फौजें और सरहदें क्यों? कुछ ऐसे ही और कई सवालों के जवाब ढूंढने के लिए लखनऊ से कुछ सामाजिक कार्यकर्ता पिछले दिनों धरती की जन्नत की सैर पर गए। वहां उन्होंने जो कुछ देखा, महसूस किया उसे साझा किया है।
लखनऊ से चार सामाजिक कार्यकर्ता एमके सिंह, मोहम्मद मसूद, ओपी सिन्हा और बीएस कटियार कश्मीर की जमीनी हकीकत को समझने के लिए वहां गए थे। बिना किसी बैनर या मंच के वे कश्मीर के गांवों में गए, कालेजों में छात्र-छात्राओं और प्रोफेसरों से मिले। उनके मुताबिक धरती की जन्नत की उनकी यात्रा के प्रेरणास्रोत थे जाने-माने विचारक, चर्चित लेखक और एक्टविस्ट गौतम नौलखा। पिछले साल लखनऊ में आयोजित एक गोष्ठी में उन्होंने कहा था कि हम लोगों को कश्मीर जाकर वहां के लोगों से मिल कर हक़ीकत जाननी और समझनी चाहिए। 13 अप्रैल को अमृतसर में जलियांवाला बाग हत्याकांड की शताब्दी में शामिल होते हुए 14 अप्रैल को चारों लोग जम्मू पहुंचे और फिर यहां से टैक्सी से श्रीनगर के लिए रवाना हुए|
हमारी टैक्सी का चालक एक कश्मीरी नौजवान इरफ़ान था। वह श्रीनगर में रहता है। उसने रास्ते में हम लोगों से कहा अंकल आप लोग श्रीनगर में हमारे घर ठहरिए। हमारे मेहमान बनिए। हम आपके रहने-खाने का इंतजाम करेंगे और पूरा श्रीनगर अपनी गाड़ी से घुमएंगें। कश्मीर की कश्मीरियत से यह हमारी शुरुआती मुलाकात थी। दहशत, तनाव और तबाही के इस दौर में इरफान की बातों ने हमें कश्मीरियों की इस सहृदयता और मेहमाननवाजी को सलाम करने को मजबूर कर दिया। हमने उसे शुक्रिया कहा।
हमें अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार अनंतनाग से लगभग 15 किलोमीटर दूर पहलगाम रोड पर अक्कड़ गांव जाना था, जहाँ बिलाल मियां (बिलाल रैना) अपने वालिद मोहम्मद सुल्तान रैना और अपने परिवार के साथ हमारा इंतजार कर रहे थे। इरफ़ान भले ही टैक्सी चलाता है, लेकिन उसने अलीगढ़ से एमए बीएड की डिग्री हासिल की है। वह घर में अकेला मर्द है और पांच बहने हैं, जिनको पढ़ाने-लिखाने और शादी-ब्याह की जिम्मेदारी उसके कन्धों पर है। उसके वालिद और मां का पहले ही इन्तकाल हो चुका है। उसने बताया कि उसके दो बड़े भाइयों को आतंकी बता कर इनकाउन्टर में मार दिया गया, जिसमें एक सरकारी नौकरी कर रहा था। इरफ़ान को अपने भाई की जगह नौकरी इसलिए नहीं दी गयी, क्योंकि उसके भाई को आतंकी कहा गया और उसका एनकाउन्टर किया गया था। उसने पैसों को इंतजाम किया और टैक्सी खरीदी, जिसे वह खुद चलाता है।
कश्मीर में गरीबी नहीं नजर आती। हर किसी के पास कम से कम अपना घर चलाने और खाने-कमाने के लिए कुछ न कुछ तो है। कश्मीरी मेहनती, ईमानदार और स्वाभिमानी होते हैं इसलिए कोई भी काम उनके लिए छोटा-बड़ा नहीं होता है। लखनऊ में जाड़े के मौसम में ये लोग हमारे यहां भी आते हैं। हम उनसे कश्मीरी शाल और मेवे खरीदते हैं। इनमें से कमोवेश सभी कश्मीरी किसान होते हैं, जो पारा माइनस में जाते ही यूपी, बिहार में कारोबार के लिए निकल पड़ते हैं। यद्यपि अब कश्मीरी नौजवानों की एक बड़ी संख्या बेरोजगारी की भी शिकार है जो बेकार घूम रहे हैं। वे मेहनती और स्वाभिमानी हैं, इसलिए सेब और अखरोट के बगीचे उनकी मेहनत के पसीने से महकते-लहकते रहते हैं। कश्मीरी खुद नहीं बोलते पर कश्मीर के हालात जानने के बारे में कहने पर वे बम की तरह फूट पड़ते हैं। यह तजुर्बा हमें अपनी पूरी कश्मीर यात्रा में लोगों से मिलते हुए हुआ। चाहे छात्र हों या अध्यापक या किसान-मजदूर या कारोबारी सबके दिल जख्मी हैं और दर्द से भरे हैं। इसके बावजूद उनमें किसी हिन्दू या किसी हिन्दुस्तानी के प्रति जरा भी नफ़रत नहीं नजर आती है।
हमने पाया कि उनका झुकाव पाकिस्तान की तरफ भी नहीं है। वे किसी पर शक–सुबहा भी नहीं करते हैं। इरफ़ान की तरह और भी लोग मिले जो आज के मीडिया से शख्त नफ़रत करते हैं। वे कहते हैं कि मीडिया ने कश्मीर की छवि बिगाड़ी है। वे फ़ौज और मीडिया से एक जैसी नफ़रत करते हैं। इरफान उम्मीद और आत्मविश्वास से लबरेज नौजवान है। उसने कहा कि हमारे पास पानी है, जंगल हैं। पानी से बिजली बना कर और जंगलात की लकड़ी निर्यात कर कश्मीर को इंग्लैंड बनाया जा सकता है। हमें किसी से मदद लेने की जरूरत नहीं है। कश्मीर के जितने लोगों से हम मिलने उनमें से 90 प्रतिशत आज की राजनीति से ऊबे हुए और गुस्से से भरे हुए नजर आए। महबूबा मुफ़्ती हों, उमर अब्दुल्ला, गिलानी या मोदी उसके लिए सब एक जैसे हैं। कश्मीर की इस हक़ीकत से हमारा पहला साक्षात्कार था।
कश्मीर के खराब हालात के नाम लोगों को डराया जा रहा
कश्मीर के स्थानीय लोगों ने बताया कि पहले यहां काफी टूरिस्ट आते थे, लेकिन जिस तरह से लोगों को कश्मीर के खराब हालात के नाम पर डराया जा रहा है, उससे अब टूरिस्ट की तादाद में काफी गिरावट आई है। कुछ लोग इसमें हिमाचल के मीडिया की साजिश भी बताते हैं, ताकि टूरिस्ट हिमाचल ज्यादा जाएं। यह अतिरंजना भी हो सकती है, पर उनका नजरिया मीडिया के प्रति किस स्तर तक बिगड़ गया है, यह कश्मीरियों से मिलते हुए हमें साफ नजर आया। एक और खास बात कश्मीर के नौजवान देश के अन्य हिस्सों के मुताबिक ज्यादा राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक चेतना से लैस नजर आए।
बच्ची की हत्या से उबल रहा कश्मीर
जम्मू के कठुआ के रसाना गांव में आठ साल की मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या के खिलाफ प्रतिरोध की लपटें पूरे कश्मीर में दिखाई दीं। इसमें नौजवानों और छात्र-छात्राओं की शिरकत सबसे ज्यादा दिखी। कमोवेश हर इलाके में इसके खिलाफ लोगों में उबाल नजर आया। लोगों की एक ही मांग है कि हत्यारों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए। इस मामले में की जा रही राजनीति के प्रति उनमें दिली नफरत नजर आई।
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