बुधवार, 16 मई 2018

जम्मू कश्मीर की बर्बादी की कहानी, रेशम की जुबानी (पहली किश्त)

  • किसानों को महज 30 दिन में लखपति बनाने की क्षमता वाले सेरीकल्चर विभाग की अब तक छीनी  जा चुकी है हजारों कनाल जमीन
  • गरीब और भूमिहीन किसानों, घरेलू महिलाओं, कामगारों और बेरोजगार युवकों को छिन रहा रोजगार 
  •  हजारों रेशम उत्पादकों की आजीविका पर मंडरा रहा खतरा
                      देवेन्द्र प्रताप, जम्मू
जम्मू कश्मीर के लोगों को केंद्र सरकार हमेशा भिखारी बनाए रखना चाहती है। वरना यहां संशाधनों की कोई कमी नहीं है। पुराने जमाने में जिस रेशम के कपड़े ने पूरी दुनिया का ध्यान भारत की तरफ खींचा उसमें कश्मीर के कोकून का अहम रोल है, पर आज इतिहास के पन्ने पलटने की किसे फुरसत है। दुनिया में सबसे अच्छा रेशम कश्मीर में पैदा होता है। सिल्क रूट पर इसने राज किया। जम्मू में एक मुहल्ला ही रेशम घर बन गया, जहां लेखक रहता है। बाकी आगे......

जम्मू-कश्मीर में एक तो पहले ही रोजगार के अवसर काफी कम हैं, लेकिन जो क्षेत्र यहां के लाखों लोगों को स्वरोजगार दे सकता है, उसका दम घोंटा जा रहा है। कभी रियासत की शान रहा और लाखों लोगों को रोजगार देने वाला रेशम उद्योग आज अपनी बदहाली पर आंसू रो रहा है। महज 30 दिन के अंदर किसी भी गरीब किसान को लखपति बनाने वाले विभाग की जमीनें छीनकर उसे लाचार बनाया जा रहा है। इससे लाखों गरीब और भूमिहीन किसानों, घरेलू महिलाओं, कामगारों और बेरोजगार युवकों की आजीविका खत्म हो जाएगी। 
 सेरीकल्चर विभाग के पास पूरी रियासत में हजारों कनाल जमीन है। इसमें लाखों शहतूत के पेड़ लगे हैं। इनकी पत्तियां रेशम बनाने वाले कीट खाकर कोकून बनाते हैं, जिनसे रेशम बनता है। इन्हीं जमीनों पर सेरीकल्चर विभाग की फैक्ट्रियां और अन्य प्रोसेसिंग यूनिट बनी हैं।  इन सबके बावजूद राज्य सरकार विकास के नाम पर सेरीकल्चर विभाग की लगातार जमीनें छीनती रही है। जम्मू संभाग में मेडिकल कालेज के हास्टल के लिए,रिंग रोड के लिए, रामबन बस स्टैंड, कटड़ा में रेलवे और म्यूनिसिपल कमेटी के लिए व इसी तरह कई अन्य इलाकों में विकास के नाम पर सरकार ने सेरीकल्चर विभाग की जमीनें ले लीं हैं। अब तो विभाग के पास इसी तरह कश्मीर संभाग के अंदर वस्सू में विस्थापितों की कालोनी के लिए, बनिहाल में पुल निर्माण के लिए, श्रीनगर के तुलसीबाग में सरकारी क्वार्टर्स के निर्माण के लिए भी सैकड़ों कनाल जमीन सरकार ने छीन ली है। ऐसे में सवाल उठता है कि यदि शहतूत के पेड़ उगाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली जमीनें यूं ही सरकार छीनती रहेगी, तो भला रेशम के कीड़ों के भोजन के लिए शहतूत की पत्तियां कहां से आएंगी।

एक माह में लाखों रुपये कमाते हैं किसान
वर्ष कोकून उत्पादन (एमटी में) किसानों को आय (लाख रुपये में)
2008-09  738 455.67
2010-11 860 1100
2012-13 901 1193
2014-15 1032 1907.49
2016-17 973 1921.12
नवंबर 2017 तक 900 2000

कब खुलेगी सरकार की आंख
आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, प. बंगाल के किसान एक साल में 2-3 बार कोकून पैदा करते हैं। इसे मल्टीक्रापिंग) कहा जाता है। जम्मू-कश्मीर में इस क्षेत्र से जुड़े किसान साल भर में एक ही सीजन में कोकून का उत्पादन करते हैं। यहां रेशम उत्पादन बढ़ाने में न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकार कोई खास ध्यान दे रही है। रियासत में न तो रेशम उत्पादकों को पर्याप्त तकनीकी मदद मिल रही है और न जरूरत के मुताबिक शोध हो रहे हैं। इसके बावजूद जम्मू-कश्मीर के रेशम की गुणवत्ता इतनी अच्छी होती है कि राज्य का कोई भी किसान थोड़ी सी मेहनत से 26-27 दिन में लखपति बन सकता है। इसलिए केेंद्र और राज्य सरकार को रियासत में उन्नत गुणवत्ता के रेशम उत्पादन के लिए विशेष प्रयास शुरू करने चाहिए। इससे राज्य में बढ़ रही बेरोजगार युवाओं की फौज को रोजगार भी मिलेगा।

( एक और जरूरी लेख पढ़ें
https://100flovers.blogspot.com/2013/04/blog-post_272.html?m=1)

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