बुधवार, 6 मई 2015

क्या जेल में बर्बाद हुए दिन लौटेंगे?


तीन साल के संघर्ष के बाद 93 मजदूरों को मिली जमानत
रामनिवास, मारुति सुजुकि प्रोविजनल वजनल कमटी
4 जून 2011 से अब तक मारुति मजदूरों का संघर्ष लगातार जारी है। यह संघर्ष 2011 से यूनियन बनाने की लडाई को लेकर हुआ तो 2012 में यूनियन को स्थापित करने व यूनियन के हकों की लडाई के लिए जारी रहा। 18 जुलाई 2012 से यह संघर्ष यूनियन को बचाने के लिए और जेल में बन्द मजदूरों की रिहाई व बर्खास्त मजदूरों की बहाली के लिए जारी है। लगभग तीन साल से जेल में बन्द मजदूरों की रिहाई के लिए जारी इस लडाई से मजदूरों के लिए एक बात तो साफ हो गई कि शासनप्रशासन, प्रबन्धन, सरकार, पुलिस व न्यायालय
सभी मजदूरों के ‌खिलाफ और पूंजिपतियों के पक्ष में डट कर खडे हैं। इतने लम्बे समय से जेल में बन्द मजदूरों को जमानत के लिए भी दो बार उच्चतम न्यायालय जाना पडा। लगभग तीन साल के बाद निर्दोष होते हुए भी अभी हाल ही में लगभग 93 मारुति मजदूरों को जमानत पर रिहा किया गया है। लेकिन 54 मजदूर अभी भी न्याय की उम्मीद से आस लगाए बैठे हैं। भले ही जेल से कुछ मजदूर जमानत पर रिहा हुए हों लेकिन उनके साथ अन्याय ही हुआ है। चाहे ये मजदूर बाद में बरी भी क्यों न हो जायें लेकिन इनके जीवन के जेल में काटे गये दिन इन्हें अहसास दिलाते रहेंगे कि इनके साथ कितना अन्याय हुआ है। ढेरों मजदूरों के खिलाफ
कोई भी गवाह नहीं है। अदालत में बहुत सारे गवाह ऐसे आए हैं जिन्होंने अपने बयान में कई मजदूरों के नाम लिए हैं जो बताते हैं कि घटना के दिन उन्होंने मारपीट करते हुए देखा था लेकिन अदालत में किसी को भी पहचान नहीं सके। लगभग ऐसे ही पूरा केस झूठ की दीवार पर टिका है और अन्त में सच सबके सामने आ
जायेगा। लेकिन इस झूठे केस से इन सबका जीवन लगभग बर्बाद हो चुका है। क्या जेल में बर्बाद हुए दिन वापस लौटेंगे?
यही हमारे सबसे बडे लोकतंत्र का असली चेहरा है जहां न्याय के लिए जिन्दगियां तबाह हो जाती हैं, जहाँ गुनहगार खुलेआम घूमते है। जहाँ जबरन पैसे की बदौलत गवाह खरीदे बेचे जाते हैं। जहां पर पैसे वाले लोगों की ओर न्याय का तराजू झूक जाता है और गरीब व बेसहारा लोगों के लिए न्याय का देवता अपनी आंखों पर पटटी बांध लेता है। ऐसे कितने ही मजदूर मारुति मजदूरों के साथ साथ गुडगांव व देश भर के मजदूरों के सामने एक सवाल खड़ा कर रहे हैं कि कब तक अपने हकों की लडाई में हम जेल में सड़ते रहेंगे? क्या हमारे
जेल में पडे रहने से अन्य मजदूरों की जिन्दगी प्रभावित हुई है? या सिर्फ हमारे घरों में ही अन्धेरा छाया हुआ है? मजदूर एकता जिन्दाबाद व दुनिया के मजदूरों एक हो जैसे नारे लगाने वाले मजदूरों के सामने खुद ही ये सवाल है कि ये बातें नारों से निकलकर धरातल पर कब दिखाई देगीं? आज मारुति सुजुकि के चारों प्लांट एकजुट होकर ‘‘मारुति सुजुकि मजदूर संघ‘‘चला रहे हैं। सभी ने चारों प्लांट की समस्याओं को हल करने व एकजुटता के लिए ये फैडरेशन बनाया है। यह एक हद तक काफी सराहनीय कदम है। सबने अभी हाल ही में अपना मांगपत्र दिया है और जेल में बन्द मजदूरों व बर्खास्त मजदूरों की बहाली की मांग को प्रमुखता से रखा है। वहीं कम्पनी प्रबन्धन भी अपनी रणनीति बनाने में जुटा है और इस एकता को तोड़ने की कोशिशें कर रहा है। सैटलमेंट को कमजोर करने के लिए व यूनियन प्रतिनिधियों पर मानसिक दबाव बनाने के लिए कम्पनी प्रबन्धन ने सिविल कोर्ट गुडगांव में 1000 मीटर दूरी तक स्टे आर्डर के लिए याचिका दायर की है। पहले भी मारुति प्रबन्धन ने आवाज दबाने के लिए यही किया और 18 जुलाई की घटना को अंजाम देकर यूनियन प्रतिनिधियों के साथ सैकडों मजदूरों को जेल में डलवा रखा है और हजारों को कम्पनी से बर्खास्त कर रखा है। यही षड्यन्त्र प्रबन्धन अभी भी रच रहा है। इससे बाहर आने के लिए मारुति संघ को अपनी एकता को और
मजबूत करते हुए इलाकाई एकता कायम करनी होगी और सभी मजदूरों से मदद लेनी होगी।
हमने इस संघर्ष को लडने का संकल्प लिया और हम अपनी ताकत के बल पर लड़ भी रहे हैं। लेकिन हम मजदूरों के सामने सबसे बडी समस्या पूंजीपति नहीं बल्कि हमारे अपने ही मजदूर साथी हैं। ऐसे कितने ही मजदूर नेता आज हम गुडगांव क्षेत्र में देखते हैं, जो जब तक कार्यरत थे तब तक सभी मजदूर उन्हें मसीहा मानते थे। आज तमाम मजदूर उनसे आंख बचाकर निकल जाना ही उचित समझते हैं। यह भी एक बहुत बडा कारण है कि हमारे नेता कम्पनी की ओर आकर्षित हो जाते हैं। हमें इस चुनौती को समझना होगा कि वो जो मैदान से किसी कारणवश चले जाते हैं उनका अनुभव भी बेहद महत्वपूर्ण होता है। और यह भी समझना चाहिए कि जब बकरी और शेर एकसाथ एक ही घाट पर पानी पीने लग जाएं तो जंगल या राजा खतरे में है। बस हमें जरुरत है तो संघर्षरत साथियों को मजबूत और एकजुट करने की।