शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

लम्बे संघर्ष के बाद महिन्द्रा सीआईई मज़दूरों की जीत

रुद्रपुर (ऊधम सिंह नगर)। महिन्द्रा ग्रुप की आॅटोपार्ट निर्माता महिन्द्रा सीआईई के मज़दूरों का संघर्ष रंग लाया। सहायक श्रमायुक्त ऊधम सिंह नगर की मध्यस्तता में 11 दिसम्बर की देर रात्रि तक चली वार्ता के बाद दो बर्खास्त श्रमिकों हेम चंद और दीपक सिंह कार्की की बिना शर्त कार्यबहाली और 8 फीसदी वेतन बृद्धि का समझौता हो गया। वेतन बृद्धि 1 जनवरी, 2016 से एक वर्ष के लिए हुआ है। समझौते के तहत प्रबन्धन प्रतिशोधवश मज़दूरों पर कोई उत्पीड़नात्मक कार्यवाही नहीं करेगा। मज़दूरों को कोई अंडरटेकिंग भी नहीं देना पड़ा।
उल्लेखनीय हैं कि डेढ़ साल पूर्व 20 अगस्त, 2014 को मज़दूरों ने कम्पनी प्रबन्धन को एक माँग पत्र दिया था, जिसके प्रतिशोधवश प्रबन्धन ने श्रमिक प्रतिनिधि हेम चंद व दीपक सिंह को पहले निलम्बित फिर बर्खास्त कर दिया था। इस बीच सहायक श्रमायुक्त के लिखित समझौते व एसडीएम के समक्ष सहमति के बावजूद कार्यबहाली नही हुई थी। श्रम विभाग व प्रशासन भी अपने वायदे से मुकर गया था। खुद पूर्ववर्ती डीएम ने केवल एक को काम पर लेने की धमकी दी थी, तो नये डीएम ने धरना उखाड़ने की धमकी दी। लेकिन महिन्द्रा सीआईई के श्रमिक अवैध रूप से बर्खास्त दो श्रमिकों की कार्यबहाली और माँगपत्र के समाधान के लिए 69 दिनों तक डीएम परिसर में धरनारत रहे।
महज 38 स्थाई श्रमिकों की ताकत पर मज़दूरों ने काफी सूझ-बूझ भरे कदम उठाए। मजदूरों ने महिन्द्रा सीआईई के जिले में स्थित लालपुर प्लाण्ट के मजदूरों से एकता बनाई और वहाँ के मज़दूरों ने भी अपना माँगपत्र लगाया, जिसमें दोनो की कार्यबहाली की भी माँग उठाई। दूसरी तरफ उन्होंने इलाके की तमाम यूनियनों को भी लामबन्द किया और अपनी माँग के साथ वीएचबी, मित्तर फाॅस्टनर, पारले व डेल्फी टीविएस के श्रमिक उत्पीड़न के विरुद्ध 14 दिसम्बर को मज़दूर पंचायत बुलाई। इससे प्रशासन और प्रबन्धन दोनों पर दबाव बन गया। यूनियनों की साझा संघर्ष की घोषणा के तत्काल बाद आनन-फानन में डीएम ने वार्ता बुलाकर प्रबन्धन पर दबाव बनाया और एएलसी से दो दिनों में समाधान निकालने का निर्देश दिया। इन स्थितियों में महिन्द्रा सीआईई के मजदूरों की जीत हुई। इससे अन्य मज़दूरों के संघर्ष को भी दम मिला है और उनका संघर्ष भी तेज होने लगा है।
इस संघर्ष में एक ऐसे वक्त में कामयाबी मिली है, जब मज़दूरों पर लगातार हमले जारी हैं। आज के दौर में एक बार बर्खास्त होने के बाद कार्यबहाली बेहद मुश्किल भरा काम हो चुका है। ऐसे में बगैर यूनियन के महज 38 श्रमिकों की ताकत पर 16 महीने तक बगैर थके संघर्ष चलाकर इस मुकाम तक पहुँचना बेहद अहम है। एक और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि अभी इस इलाके में पिछले दिनों मजदूरों को जो थोड़ी बहुत जीत अपने संघर्षों के दम पर मिली है, उसका श्रेय नेता लूटते रहे हैं। इस आन्दोलन में सहयोग मजदूरों ने सबका लिया, लेकिन जीत का श्रेय किसी चुनावी नेता को नहीं अपितु खुद मजदूरों के एकताबद्ध संघर्ष को ही मिला है।
संघर्षरत रहे मजदूरों ने इलाके की यूनियनों के नाम जारी धन्यवाद पत्र में कहा है कि इस छोटी सी अहम जीत ने आगे के कठिन लम्बे संघर्ष के लिए हमें जो ताकत दी है, वह ज्यादा महत्वपूर्ण है। इससे हममें संघर्ष से जीत की एक नयी उम्मीद पैदा हुई है।

रविवार, 11 अक्टूबर 2015

मजदूरों की लाश पर कंस्ट्रकशन

                                       सुनील कुमार
सभी की चाहत होती है कि उसका एक अपना घर हो। लोग रोजगार की तलाश मंे महानगरों और बड़े शहरों की ओर भाग रहे हैं जिससे कुछ शहरों की आबादी में बेतहासा वृद्धि हो रही है। यही कारण है कि महानगरों में ज्यादा लोग किराये के मकान में रहते हैं। इस का सबसे ज्यादा फायदा रीयल एस्टेट को हो रहा है। इसी कारण दिल्ली, मुम्बई, बंगलोर जैसे शहरों में एक फ्लैट की कीमत इतनी ज्यादा है कि जनता की पूरी जीवन की कमाई रहने के लिए एक घरौंदा बनाने में चली जाती है। रीयल एस्टेट में बहुत से कारपारेट घराने, राजनीतिज्ञ और अफसरशाह अपनी काली कमाई (ब्लैक मनी) को लगा कर कई गुना मुनाफे कमाते हैं। दिल्ली एन.सी.आर. में काफी बड़ी संख्या में अपार्टमेंट का निर्माण किया जा रहा है जिसमंे करीब 150 से अधिक बिल्डर लगे हुये हैं।

मुनाफा मजदूरों के खून पर
बिल्डर काम जल्दी पूरा करने के लिए छोट-छोटे ठेकदारों को अलग-अलग काम दिये रहते हैं। मजदूरों से दिन-रात काम करवाये जाते हैं। मजूदरों की सुरक्षा पर किसी तरह का ध्यान नहीं दिया जाता है। किसी भी साईट पर मजदूरों की संख्या के हिसाब से हेलमेट, सेफ्टी बेल्ट, जूते, ग्लव्स नहीं होते हैं। दिखाने के लिए कुछ हेलमेट, जूते, बेल्ट तो दिखते हैं लेकिन यह संख्या मजदूरों की संख्या से कम होती है। कोई भी दुर्घटना होने पर उसके बचाव की कोई व्यवस्था नहीं होती या ऐसी व्यवस्था होती है जो दुर्घटना को और बढ़ावा देती है। लेकिन बिल्डरों के पास ऐसी टीम जरूर होती है जो मजदूरों को डरा-धमका सके, दुर्घटना होने पर लाश गायब करे और फर्जी मजदूर बनकर मीडिया के सामने बिल्डर के पक्ष में बयान दे सके। मजदूरों के खून-पसीने का पैसे ये बिल्डर डकार जाते हैं और उसी के कुछ हिस्से देकर शासन-प्रशासन को खरीद लेते हैं। बदले में यह शासन-प्रशासन दुर्घटना और पर्यावरण के नुकसान होने पर बिल्डर को बचाने का काम करते हैं। बिल्डर मजदूरों को ही नहीं, घर का सपना संजोये लोगों को भी धोखा देते हैं। उसको समय से घर मुहैय्या नहीं कराते हैं या लागत बढ़ने के नाम पर पैसे बढ़ा दते हैं। ऐसी ही कुछ घटनाएं सामने आई हैं। 

साथी मर गया, पुलिस ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा
नोएडा सेक्टर 75 में तीन-चार साल से कंस्ट्रकशन का काम चल रहा है। इस कंस्ट्रकशन साइट पर कई बिल्डर हैं जिनका काम बिल्डिंग बनाने से लेकर सीवर डालना, टायल लगाना, शीशे लगना इत्यादि है। इस साइट पर कितने मजदूर काम कर रहे हैं इसका अनुमान लगाना किसी के लिए भी कठिन काम है। बहुत सारे मजदूर साइट पर ही बने दरबेनुमा अस्थायी झोपड़ में रहते हैं। इस झोपड़ की उंचाई 6 फीट और उसके ऊपर टीन की छत होती है। इसी छत के नीचे उनको मई-जून के 45 डिग्री तापमान में भी परिवार के साथ रहना पड़ता है। इन झोपड़ों में इनके पास कुछ बर्तन और एक पुराने पंखे के अलावा कुछ नहीं होता। सोने के लिए टाट, तो बैठने के लिए ईंट का इस्तेमाल करते हैं। कुछ मजदूर साइट के बाहर किराये के रूम में 4-5 के ग्रुप में रहते हैं।
ये सभी मजदूर रोज की तरह 4 अक्टूबर, 2015 को भी नियत समय से काम पर लगे हुए थे। मुरादाबाद के याकूब और अन्य मजदूर एम्स मैक्स गारडेनिया डेवलपर्स प्रा. लि. के अन्तर्गत काम कर रहे थे, जिनका काम था सीवर लाईन को बिछाना। याकूब दो मजदूर के साथ बीस फीट गहरे में उतरकर पाईप डालने के लिए मिट्टी समतल करने का काम कर रहे थे। सेफ्टी के लिए किसी तरह का जाल या मिट्टी रोकने के लिए कोई चादर नहीं लगाया गया था। मिट्टी भी बलुठ (दोमट मिट्टी) थी, जिससे वह अचानक काम कर रहे याकूब और उसके साथी पर गिर पडी। दूसरे छोर पर काम कर रहा एक मजदूर तो बच गया लेकिन याकूब और उसके एक साथी मिट्टी में दब गये। मजदूरों ने इकट्ठे होकर शोर मचाया और बचाने का प्रयास किया। वहीं पर गड्ढे खोदने के लिए जे.सी.बी मशीन से याकूब को निकाला गया। लेकिन बचाव के लिये आई इस मशीन से याकूब के सिर और शरीर पर जख्म हो गये। याकूब को अस्पताल ले जाया गया जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। मजूदरों ने हंगामा किया तो पुलिस ने उनको खदेड़-खदेड़ कर पीटा। एम्स मैक्स गारडेनिया डेवलपर्स प्रा. लि. के कारिन्दे मजदूरों और सुपरवाईजरों को गाड़ी में बैठा कर कहीं छोड़ आये। घटना-स्थल पर एक बुर्जुग मजदूर डटा रहा और लगातार मांग करता रहा कि इसमें एक और मजदूर दबा है उसे भी निकाला जाये। वह लगातार पुलिस अफसर से भी अनुरोध करता रहा कि दूसरे मजदूर को भी निकाला जाये। एक घंटे तक इस बुर्जुग मजदूर के शोर मचाने पर प्रशासन ने उसके बातों पर ध्यान नहीं दिया और गड्ढे में और मिट्टी गिरा दी। अचानक वह बुजुर्ग कहीं चला गया या उसे गायब कर दिया गया। उसकी जगह पर एक नौजवान आया जिसके शरीर पर न तो कहीं मिट्टी लगी थी और न ही उसके कपड़े गंदे थे। वह कहने लगा कि मैं भी उसी के साथ काम कर रहा था और दोनों भागने में सफल रहे और केवल एक मजदूर ही दबा था। इस तरह एक मजदूर की मौत रहस्य बन कर रह गया। इस साईट की न तो यह पहली घटना है न ही अंतिम। इससे पहले भी अनेक घटनाएं घट चुकी हैं। कुछ समय पहले बिजली के करंट से एक मजदूर की मौत हो चुकी है और न जाने कितने मौत रहस्य बन कर ही रह गये होंगे।
यह केवल सेक्टर 75 की ही घटना नहीं है, इससे पहले कितनी मौतें दिल्ली और एनसीआर में हो चुकी है। तीन-चार माह पहले मिट्टी धंसने से ही समयपुर बादली में दो मजदूरों की मौत हो चुकी है। कंस्ट्रकशन साइट पर इस तरह की घटनाएं आम हो चुकी हैं। दिल्ली एनसीआर में ही नहीं देश के विभिन्न हिस्सों में रोज व रोज मजदूरों की मौत होती है। साइट पर मजदूरों की सुरक्षा का ध्यान नहीं रखा जाता है और उनके बचाव के उपकरण से उनको और जोखिम होता है, जैसा कि याकूब को निकालते समय जे.सी.बी. ने जख्मी कर दिया।  वो जिन्दा भी रहे हांे लेकिन सिर पर चोट लगने से तो मौत लाजमी है। इसी तरह की घटना 23 फरवरी, 2015 को बंगलोर के एलिमेंट्स  माल के सामने हुई। एलिमेंट्स  माल के समाने सीवर बिछाने का काम किया जा रहा था जिसमें मनोज दास और हुसैन मिट्टी में दब गये। उनको जे.सी.बी मशीन से निकाला गया जिसके कारण एक के हाथ और दूसरे के पैर में फ्रैक्चर हो गया। अस्पताल में मनोज का दायां हाथ काटना पड़ा।



150 बिल्डरों पर करोड़ों रूपये का लेबर सेस बाकी है। इस टेबल में कुछ बिल्डरों के ऊपर बकाया लेबर सेस दर्शाया गया है -
बिल्डर का नाम                  बकाया राशि रुपये में
सुपर टेक ग्रुप                 182065983
अम्रपाली ग्रुप                  123710638
यूनिटेक ग्रुप                    48060370
अंजरा ग्रुप                       6934059
लीजिकस ग्रुप                  478198925
जेपी ग्रुप                              66063139
सैम इंडिया                       8745314
एम्स मैक्स गारडेनिया डेवलपर्स      89681365
गायत्री इन्फ्रा प्लानर               2294658
गुलशन होम्ज                    3459786
जीपेक्स ड्रीम होम्ज                4088037
टाइमस शापी                    12151623          
एटीएस टाउन शिप                5349510
गौक सन्स                      60635703
सिक्का ग्रीन्स                   10959951
स्रोत: बिल्डर रियलटी
लेबर डिर्पाटमेंट का कहना है कि बिल्डर लॉबी ऊंची रसूख के होते हैं जिसके कारण उन पर कार्रवाई नहीं हो पाती है। जो भी अधिकारी कार्रवाई की कोशिश करता है उसका ट्रांसफर करवा दिया जाता है। मजदूरों की मौत केवल कंस्ट्रकशन के समय ही नहीं होती, उसके बाद भी मजदूर बिल्डिंग को चमकाने में मरते हैं। हर वर्ष हजारों मजदूर घर की डेंटिंग-पेटिंग करते समय मर जाते हैं। 15 सितम्बर, 2015 को पेंट करते समय लालू सिंह व एक अन्य मजदूर रोहणी सेक्टर 16 में गिरकर काल का ग्रास बन गये।
हर साल हजारों मजदूरों की मौत से न तो शासन-प्रशासन की नींद खुलती है और न ही नागरिक समाज, न्यायपालिका, मानवाधिकार संगठन सक्रिय होते हैं। न तो लालू सिंह की मौत पहली है और न ही याकूब की मौत अंतिम। हमें आयरन हील का पात्र अर्नेस्ट याद आता है जो बताता है कि हम जिस छत के नीचे बैठे हैं उससे खून टपक रहा है।

रविवार, 14 जून 2015

पाँच कम्पनी के मज़दूरों का डीएम कार्यालय पर धरना

रुद्रपुर (उत्तराखण्ड)। लम्बे समय से जारी दमन-उत्पीड़न के खिलाफ सिडकुल की विभिन्न कम्पनियों के श्रमिकों ने सामूहिक रूप से स्थानीय डीएम कार्यालय पर एक दिवसीय धरना देकर अपना आक्रोश प्रकट किया और जिलाधिकारी को ज्ञापन देकर अवैध रूप से निकाले गये मज़दूरों की कार्यबहाली, माँगपत्रों के निस्तारण, शोषण व दमन खत्म करने आदि की माँग की।
इस अवसर पर आयोजित सभा को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि मजदूरों की भारी आबादी आज बेहद मामूली दिहाड़ी पर 12-12 घण्टे खटने को मजबूर है। जहाँ भी मजदूरों ने हक की आवाज उठाई वहीं दमन शुरू हो जाता है। यूनियन बनाना अपराध बन गया है। प्रबन्धन जब चाहे मज़दूरों को निकाल देता है और श्रम विभाग से लेकर पुलिस व प्रशासन तक मालिकों की ही भाषा बोलते हैं।
पारले मजदूर संघ के प्रमोद तिवारी ने कहा कि पारले कम्पनी में साढ़े तीन साल पहले यूनियन बनी तभी से शोषण जारी है और अबतक करीब ढ़ाई सौ स्थाई-अस्थाई मज़दूर निकाले जा चुके हैं। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और श्रम विभाग की प्रबन्धन के खिलाफ रिपोर्टों के बावजूद न्याय मिलने की जगह दमन ही बढ़ा है। स्थिति यह है कि ताजा माँगपत्र पर एएलसी महज ने एक वार्ता की खानापूर्ति करके फाइल डीएलसी कार्यालय भेज दी और डीएलसी ने डेढ़ माह बाद वार्ता की तिथि देकर अपनी पक्षधरता स्पष्ट कर दी है।
रिद्धि सिद्धि कर्मचारी संघ के दरपान सिंह खाती ने कहा कि राॅकेट रिद्धि सिद्धि में विगत डेढ़ साल से माँगपत्र को लेकर औद्योगिक विवाद कायम है और प्रबन्धन तरह-तरह से श्रमिकों का उत्पीड़न कर रहा है। इसी क्रम में पिछले नौ माह से यूनियन पदाधिकारियों सहित 10 श्रमिकों का कथित जाँच के बहाने उत्पीड़न जारी है, चार श्रमिकों का विगत नौ माह से गेट बन्द है। माँगपत्र पर भी प्रबन्धन ने खामोशी बना रखी है।
मित्तर फाॅस्टनर कम्पनी के सुदर्शन कुमार शर्मा ने बताया कि वेतन बढ़ोत्तरी और न्यूनतम सुविधाओं की माँग करने पर प्रबन्धन ने अवैध रूप से चार श्रमिकों की सेवा समाप्त कर दी और दो श्रमिकों को निलम्बित कर दिया। पिछले एक पखवारे से पीडि़त श्रमिक न्याय के लिए कलक्ट्रेट परिसर में धरनारत हैं।
महेन्द्रा यूजिन/सीआईआई कम्पनी के श्रमिक प्रतिनिधि हेम चंद ने बताया कि श्रमिकों ने विगत साढ़े नौ माह पूर्व अपने वेतन व सुविधाओं के सम्बन्ध में माँगपत्र दिया तो वहाँ दमन बढ़ गया। श्रमिक प्रतिनिधियों सहित दो श्रमिकों का अवैध रूप से विगत नौ माह से गेट बन्द है। एएलसी एसडीएम केवल आश्वासन दे रहे हैं।
वोल्टास इम्पलाइज यूनियन के नन्दलाल ने कहा कि यूनियन विगत साढ़े छह माह से अपने माँगपत्र को लेकर संघर्षरत हैं, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकला। ऐसे में संयुक्त रूप से संघर्ष के लिए हमें आगे आना पड़ा है। आगे और भी कारखानों के मज़दूर एकजुट होंगे।
टाटा मोटर्स लि. श्रमिक संघ के अध्यक्ष दिनेश चंद आर्य ने समर्थन देते हुए कहा कि आज सभी कम्पनी के मजदूरों को एकजुट होने की जरूरत है, ऐसे में पाँच कम्पनियों के मजदूरों का यह सामुहिक धरना महत्वपूर्ण है जो हमारी एकता को और आगे बढ़ाएगा। ब्रिटानिया कर्मकार यूनियन के अध्यक्ष दिनेश चंद्र जोशी ने एकता बनाने पर जोर दिया। सीपीआई के जिलामंत्री राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने कहा कि शोषण के खिलाफ एकजुट संघर्ष ही रास्ता है।
मजदूर सहयोग केन्द्र के कुन्दन सिंह ने कहा कि आज मज़दूर आबादी की एकता कमजोर हुई है जिससे मालिक और ज्यादा हमलावर हुए हैं। सरकार और उसका पूरा अमला मालिकों की सेवा में एक टांग पर खड़ा है। मुकुल ने लम्बे संघर्षों के दौरान हासिल अधिकारों को छीने जाने की चर्चा करते हुए बताया कि मजदूर आबादी को नए व जुझारू संघर्ष के लिए कमर कसना होगा। पूँजी के मुस्तरका हमले को श्रम की एकजुट ताकत से जवाब देना होगा।

बुधवार, 6 मई 2015

क्या जेल में बर्बाद हुए दिन लौटेंगे?


तीन साल के संघर्ष के बाद 93 मजदूरों को मिली जमानत
रामनिवास, मारुति सुजुकि प्रोविजनल वजनल कमटी
4 जून 2011 से अब तक मारुति मजदूरों का संघर्ष लगातार जारी है। यह संघर्ष 2011 से यूनियन बनाने की लडाई को लेकर हुआ तो 2012 में यूनियन को स्थापित करने व यूनियन के हकों की लडाई के लिए जारी रहा। 18 जुलाई 2012 से यह संघर्ष यूनियन को बचाने के लिए और जेल में बन्द मजदूरों की रिहाई व बर्खास्त मजदूरों की बहाली के लिए जारी है। लगभग तीन साल से जेल में बन्द मजदूरों की रिहाई के लिए जारी इस लडाई से मजदूरों के लिए एक बात तो साफ हो गई कि शासनप्रशासन, प्रबन्धन, सरकार, पुलिस व न्यायालय
सभी मजदूरों के ‌खिलाफ और पूंजिपतियों के पक्ष में डट कर खडे हैं। इतने लम्बे समय से जेल में बन्द मजदूरों को जमानत के लिए भी दो बार उच्चतम न्यायालय जाना पडा। लगभग तीन साल के बाद निर्दोष होते हुए भी अभी हाल ही में लगभग 93 मारुति मजदूरों को जमानत पर रिहा किया गया है। लेकिन 54 मजदूर अभी भी न्याय की उम्मीद से आस लगाए बैठे हैं। भले ही जेल से कुछ मजदूर जमानत पर रिहा हुए हों लेकिन उनके साथ अन्याय ही हुआ है। चाहे ये मजदूर बाद में बरी भी क्यों न हो जायें लेकिन इनके जीवन के जेल में काटे गये दिन इन्हें अहसास दिलाते रहेंगे कि इनके साथ कितना अन्याय हुआ है। ढेरों मजदूरों के खिलाफ
कोई भी गवाह नहीं है। अदालत में बहुत सारे गवाह ऐसे आए हैं जिन्होंने अपने बयान में कई मजदूरों के नाम लिए हैं जो बताते हैं कि घटना के दिन उन्होंने मारपीट करते हुए देखा था लेकिन अदालत में किसी को भी पहचान नहीं सके। लगभग ऐसे ही पूरा केस झूठ की दीवार पर टिका है और अन्त में सच सबके सामने आ
जायेगा। लेकिन इस झूठे केस से इन सबका जीवन लगभग बर्बाद हो चुका है। क्या जेल में बर्बाद हुए दिन वापस लौटेंगे?
यही हमारे सबसे बडे लोकतंत्र का असली चेहरा है जहां न्याय के लिए जिन्दगियां तबाह हो जाती हैं, जहाँ गुनहगार खुलेआम घूमते है। जहाँ जबरन पैसे की बदौलत गवाह खरीदे बेचे जाते हैं। जहां पर पैसे वाले लोगों की ओर न्याय का तराजू झूक जाता है और गरीब व बेसहारा लोगों के लिए न्याय का देवता अपनी आंखों पर पटटी बांध लेता है। ऐसे कितने ही मजदूर मारुति मजदूरों के साथ साथ गुडगांव व देश भर के मजदूरों के सामने एक सवाल खड़ा कर रहे हैं कि कब तक अपने हकों की लडाई में हम जेल में सड़ते रहेंगे? क्या हमारे
जेल में पडे रहने से अन्य मजदूरों की जिन्दगी प्रभावित हुई है? या सिर्फ हमारे घरों में ही अन्धेरा छाया हुआ है? मजदूर एकता जिन्दाबाद व दुनिया के मजदूरों एक हो जैसे नारे लगाने वाले मजदूरों के सामने खुद ही ये सवाल है कि ये बातें नारों से निकलकर धरातल पर कब दिखाई देगीं? आज मारुति सुजुकि के चारों प्लांट एकजुट होकर ‘‘मारुति सुजुकि मजदूर संघ‘‘चला रहे हैं। सभी ने चारों प्लांट की समस्याओं को हल करने व एकजुटता के लिए ये फैडरेशन बनाया है। यह एक हद तक काफी सराहनीय कदम है। सबने अभी हाल ही में अपना मांगपत्र दिया है और जेल में बन्द मजदूरों व बर्खास्त मजदूरों की बहाली की मांग को प्रमुखता से रखा है। वहीं कम्पनी प्रबन्धन भी अपनी रणनीति बनाने में जुटा है और इस एकता को तोड़ने की कोशिशें कर रहा है। सैटलमेंट को कमजोर करने के लिए व यूनियन प्रतिनिधियों पर मानसिक दबाव बनाने के लिए कम्पनी प्रबन्धन ने सिविल कोर्ट गुडगांव में 1000 मीटर दूरी तक स्टे आर्डर के लिए याचिका दायर की है। पहले भी मारुति प्रबन्धन ने आवाज दबाने के लिए यही किया और 18 जुलाई की घटना को अंजाम देकर यूनियन प्रतिनिधियों के साथ सैकडों मजदूरों को जेल में डलवा रखा है और हजारों को कम्पनी से बर्खास्त कर रखा है। यही षड्यन्त्र प्रबन्धन अभी भी रच रहा है। इससे बाहर आने के लिए मारुति संघ को अपनी एकता को और
मजबूत करते हुए इलाकाई एकता कायम करनी होगी और सभी मजदूरों से मदद लेनी होगी।
हमने इस संघर्ष को लडने का संकल्प लिया और हम अपनी ताकत के बल पर लड़ भी रहे हैं। लेकिन हम मजदूरों के सामने सबसे बडी समस्या पूंजीपति नहीं बल्कि हमारे अपने ही मजदूर साथी हैं। ऐसे कितने ही मजदूर नेता आज हम गुडगांव क्षेत्र में देखते हैं, जो जब तक कार्यरत थे तब तक सभी मजदूर उन्हें मसीहा मानते थे। आज तमाम मजदूर उनसे आंख बचाकर निकल जाना ही उचित समझते हैं। यह भी एक बहुत बडा कारण है कि हमारे नेता कम्पनी की ओर आकर्षित हो जाते हैं। हमें इस चुनौती को समझना होगा कि वो जो मैदान से किसी कारणवश चले जाते हैं उनका अनुभव भी बेहद महत्वपूर्ण होता है। और यह भी समझना चाहिए कि जब बकरी और शेर एकसाथ एक ही घाट पर पानी पीने लग जाएं तो जंगल या राजा खतरे में है। बस हमें जरुरत है तो संघर्षरत साथियों को मजबूत और एकजुट करने की।