शनिवार, 18 सितंबर 2010

वह शहीद नहीं था

सुरजीत पातर
उसने कब कहा
शहीद हूं मैं
फांसी का रस्सा चूमने से कुछ रोज पहले
उसने तो केवल यही कहा था
कि मुझसे बढ़ कौन होगा खुशकिस्मत ...
मुझे नाज़ है अपने आप पर
अब तो बेहद बेताबी से
अंतिम परीक्षा की है प्रतिक्षा मुझे
कब कहा था उसने : मैं शहीद हूं


शहीद तो उसे धरती ने कहा था
सतलुज की गवाही पर
शहीद तो, पांचों दरिया ने कहा था
गंगा ने कहा था
ब्रह्मपुत्र ने कहा था
शहीद तो उसे वृक्षों के पत्ते-पत्ते ने कहा था


आप जो अब धरती से युद्धरत हो
आप जो नदियों से युद्धरत हो
आप जो वृक्षों के पत्तों तक से युद्धरत हो


आपके लिये बस दुआ ही मांग सकता हूं मैं
कि बचाये आपको
रब्ब
धरती के शाप से
नदियों की बद्दुआ से
वृक्षों की चित्कार से।
(पंजाबी से अनुवाद- मनोज शर्मा)

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