23 मार्च भगत सिंह-सुखदेव-राजगुरु की शहादत का दिन है। हालाँकि किसी को पुण्यतिथि या जन्मदिन पर याद करना, औपचारिकता ही लगती है। इसके बावजूद यह औपचारिकता कई बार जरूरी है। खासतौर पर उस वक्त जब हम देशभक्ति की बातें तो बड़ी-बड़ी करें पर देश में रहने वाले लोगों के बारे में ज़रा भी न सोचें। इसी बात को याद दिलाने के लिए भगत सिंह (Bhagat Singh) की रचनाओं में से चुनी गई कुछ लाइनें यहाँ पेश है।
भगत सिंह (Bhagat Singh) के चंद विचार ''चारों ओर काफी समझदार लोग नज़र आते हैं लेकिन हरेक को अपनी जिंदगी खुशहाली से बिताने की फिक्र है। तब हम अपने हालात, देश के हालात सुधरने की क्या उम्मीद कर रहे हैं।''
(1928)
'' वे लोग जो महल बनाते हैं और झोंपडि़यों में रहते हैं, वे लोग जो सुंदर-सुंदर आरामदायक चीज़ें बनाते हैं, खुद पुरानी और गंदी चटाइयों पर सोते हैं। ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए? ऐसी स्थितियाँ यदि भूतकाल में रही हैं तो भविष्य में क्यों नहीं बदलाव आना चाहिए? अगर हम चाहते हैं कि देश की जनता की हालत आज से अच्छी हो, तो यह स्थितियाँ बदलनी होंगी। हमें परिवर्तनकारी होना होगा।''
(अगस्त 1928)
'' हमारा देश बहुत अध्यात्मिक है लेकिन हम मनुष्य को मनुष्य का दर्जा देते हुए भी हिचकते हैं।''
'' उठो, अछूत कहलाने वाले असली जन सेवकों तथा भाइयों उठो... तुम ही तो देश का मुख्य आधार हो, वास्तविक शक्ति हो... सोए हुए शेरों। उठो, और बग़ावत खड़ी कर दो।''
(अछूत समस्या 1928)
'' संसार के सभी गरीबों के, चाहे वे किसी भी जाति, रंग, धर्म या राष्ट्र के हों, हक एक ही हैं।''
'' धर्म व्यक्ति का निजी मामला है, इसमें दूसरे का कोई दखल नहीं, न ही इसे राजनीति में घुसना चाहिए।''
(1927)
''जब गतिरोध की स्थिति लोगों को अपने शिकंजे में जकड़ लेती है, तो किसी भी प्रकार की तब्दीली से लोग हिचकिचाते हैं। इस जड़ता और घोर निष्क्रियता को तोड़ने के लिए एक क्रांतिकारी स्पिरिट पैदा करने की जरूरत होती है, अन्यथा पतन और बर्बादी का वातावरण छा जाता है।''
''अंग्रेजों की जड़ें हिल गई हैं और 15 साल बाद में वे यहाँ से चले जाएँगे। बाद में काफी अफरा-तफरी होगी तब लोगों को मेरी याद आएगी।''
(12 मार्च 1931)
''मैं पुरजोर कहता हूँ कि मैं आशाओं और आकांक्षाओं से भरपूर जीवन की समस्त रंगीनियों से ओतप्रोत हूँ। लेकिन वक्त आने पर मैं सबकुछ कुरबान कर दूँगा। सही अर्थों में यही बलिदान है।''
(सुखदेव के नाम पत्र, 13 अप्रैल 1929)
जहाँ तक प्यार के नैतिक स्तर का सम्बंध है... '' मैं कह सकता हूँ कि नौजवान युवक-युवतियाँ आपस में प्यार कर सकते हैं और वे अपने प्यार के सहारे अपने आवेगों से ऊपर उठ सकते हैं।''
(सुखदेव को पत्र , 1928)
-नसीरुद्दीन
ये विचार अब पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक हैं। इन्हें ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना बहुत जरूरी है।
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