देवेंद्र प्रताप
- दुनिया का सबसे बेहतर कोकून पैदा करने वाले लाखों गरीब और भूमिहीन उत्पादकों की आजीविका छिन गई
- मोदी सरकार ने करोड़ों लोगों को रोजगार देना का वादा किया था, ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि हो सकता है इस क्षेत्र का कुछ उद्धार हो, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
सरकार की तरफ से रेशम उत्पादन से जुड़े किसानों के लिए कैटलिटिक डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत कई तरह की योजनाएं चलाई गई थीं, जो अब बंद कर दी गई हैं। ऐसा नहीं है कि इसे मोदी सरकार ने किया है, लेकिन यह जरूर है कि मोदी सरकार ने इन्हें फिर से चालू भी नहीं किया है। यानी कुल मिलाकर दोनों का मतलब एक ही है। इससे दुनिया का सबसे बेहतर कोकून पैदा करने वाले लाखों गरीब और भूमिहीन उत्पादकों की आजीविका छिन गई है। मोदी सरकार ने करोड़ों लोगों को रोजगार देना का वादा किया था, ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि हो सकता है इस क्षेत्र का कुछ उद्धार हो, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
रीयरिंग किट योजना के तहत किसानों को प्लास्टिक ट्रे, स्टैंड और अन्य मदद दी जाती थी। यह योजना अब बंद हो गई है। इसी तरह कोकून उत्पादन के लिए 50 हजार रुपये से एक लाख रुपये में सरकार किसानों को एक कमरा बना कर देती थी। यह योजना भी बंद हो गई है। रेशम उत्पादन से जुड़ी महिलाओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर केंद्र सरकार ने 2008-09 में स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की थी। इसकी ज्यादातर रकम सरकार ही जमा करती थी। इसमें उक्त महिला के अलावा उसके पति और दो बच्चों को शामिल किया गया था। महिला सशक्तीकरण का ढिंढोरा पीटने वाली सरकार अब योजना को भी बंद कर चुकी है। कोकून को सुखाने के लिए तकनीकी मदद भी अब सरकार नहीं देती है। रेशम उत्पादकों की मदद के लिए शुरू किया गया कैटलिटिक डेवलपमेंट प्रोग्राम ही सरकार बंद कर चुकी है।
37 में से 20 फैक्ट्रियों पर लटका ताला
सरकार की उपेक्षा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक-एक कर रेशम फैक्ट्रियां बंद होती रहीं, लेकिन उनको बंद होने से बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए। एक समय रियासत भर रेशम का धागा बनाने वाली 37 फैक्टियां थीं, आज इनमें से महज 17 ही किसी तरह चल रही हैं। इसकी वजह से समाज में बेरोजगारों को मिलने पर रोजगार भी उनके हाथ से जाता रहा।
बॉयलर को पानी सप्लाई करने वाली पानी की टंकियां दिलाती हैं रेशम फैक्ट्री की याद
जम्मू में जहां पर सुपर स्पेशलिटी अस्पताल बना है, वहां कभी सेरीकल्चर विभाग की रेशम फैक्ट्री हुआ करती थी। इस फैक्ट्री में हजारों वर्कर काम करते थे, जो इससे सटी कालोनी में रहते थे, जिसका नाम ही रेशमघर कालोनी पड़ गया। अब यह फैक्ट्री तो रही नहीं, इसके अवशेष के रूप में बॉयलर को पानी सप्लाई करने के लिए उस समय बनीं तीन पानी की टंकियां अभी सेरीकल्चर विभाग के कार्यालय में हैं, जो फैक्ट्री की याद दिलाती हैं। रेशमघर कालोनी के लोगों के जेहन में अभी भी उन दिनों की याद ताजा है, जब रेशम फैक्ट्री यहां मौजूद थी।
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