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⇔ (डा. देवेंद्र प्रताप)।
जम्मू कश्मीर का सबसे बड़ा महिला अस्पताल एसएमजीएस अस्पताल है। अक्तूबर माह में ही यहां इतनी भीड़ है तो जब कश्मीर से राजधानी जम्मू शिफ्ट होगी, उस समय की आप स्वत्ः कल्पना कर सकते हैं। रियासत के इस सबसे बड़े अस्पताल में इतनी ज्यादा भीड़ होने की एक वजह यह भी है, क्योंकि जम्मू कश्मीर के अंतरराष्ट्रीय सीमा और एलओसी से सटे इलाकों के अस्पतालों मे औसतन 60-70% स्टाफ कम हैं। ऐसे में बड़ी संख्या में लोग या तो खुद कुछ दिन पहले ही जम्मू में अपने रिश्तेदारों के यहां डेरा जमा लेते हैं या अपने यहां के अस्पतालों से रेफर कर दिए जाते हैं।
लेकिन, जम्मू में आकर ऐसा नहीं है कि उनकी हर मुराद पूरी हो जाती है। एसएमजीएस अस्पताल से कई बार बच्चे चोरी हो चुके हैं, लेकिन लेबर रूम के बाहर लगे दो में से एक सीसीटीवी कैमरा टूट कर लटका हुआ है। लेबर रूम के बाहर कई दर्जन तीमारदारों की भीड़ जमा रहती है, लेकिन उनके बैठने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। कई बार अंदर बच्चे का जन्म हो चुका होता है, लेकिन बाहर लोगों को तब पता चलता है, जब मां और बच्चे को वार्ड में शिफ्ट किया जाता है।
इतना ही नहीं, यदि प्रसव के बाद सरकार की तरफ से महिला को दिए जाने वाले पैसे के बारे में पता किया जाए तो बड़ा घोटाला सामने आ सकता है। अक्तूबर माह के दूसरे सप्ताह में इस अस्पताल में भर्ती हुईं 14-15 महिलाओं से बात करने पर पता चला कि उनमें से एक को भी सरकारी आर्थिक मदद नहीं मिली। इसकी बड़ी वजह महिलाओं का बैंक खाता न होना बताया गया। दूसरा पैसा हासिल करने की प्रक्रिया इतनी थकाऊ है कि कोई भी परिवार बच्चे के पैदा होने के बाद उसके लिए नहीं रुकता है।
जल्द प्रसव के लिए ट्वायलेट भी नहीं जाने दिया जाता
कुछ महिलाओं ने तो यहां तक बताया कि दर्द का इंजेक्शन देने के बाद उनको ट्वायलेट तक नहीं जाने दिया गया, जिससे उन्होंने बेड पर ही ट्वायलेट कर दिया। उसे साफ भी नहीं किया गया और उसी हालत में उनको प्रसव करवाने के लिए ले जाया गया। ऐसा इसलिए भी किया जाता है ताकि जल्दी प्रसव हो और मरीज को वार्ड में भेजा जाए। यह दबाव स्टाफ को भी अमानवीय व्यवहार करने पर मजबूर कर देता है।
ऐसी नारकीय स्थितियों के बाद भी इतनी बड़ी संख्या में लोग इसलिए यहां आते हैं, क्योंकि कभी यह अस्पताल बहुत अच्छी हालत में था, इसलिए लोगों का इस अस्पताल में बड़ा भरोसा है। दूसरी बात, जो इससे ज्याथा महत्वपूर्ण है, लोगों के पास विकल्प नहीं है।
लड़का, लड़की में फर्क करता है स्टाफ
लड़के के पैदा होने पर मांगे जाते हैं ज्यादा पैसे
लेबर रूम से बाहर आने के बाद अपनी बच्ची के साथ वार्ड में दाखिल एक महिला ने तो यहां तक कहा कि लेबर रूम में नर्सें व अन्य स्टाफ लड़का, लड़की में फर्क करते हैं। उसने बताया कि जब चार साल पहले इसी अस्पताल में लड़के को जन्म दिया था तो गेट के बाहर से उसके पति को अंदर लेबर रूम में बुलाया गया व इस खुशी के मौके पर पैसे भी मांगे, लेकिन इस बार जब लड़की पैदा हुई तो तीन घंटे बाद लेबर रूम के बाहर खड़े उसके पति को बुलाया गया। पति के आने पर पैसे तो फिर भी उन्हें मिले, लेकिन वे कुछ ऐसे चेहरा लटकाए थीं, जैसे उनकी गलती से लड़की पैदा हो गई।
लेबर रूम में तार-तार हो जाता है महिलाओं का सम्मानhttps://youtu.be/90G8VucdRVw
लेबर रूम में घुसने पर हाल में अर्धनग्न चीखतीं महिलाएं पड़ी रहती हैं पर उनको संभालने के लिए पर्याप्त स्टाफ नहीं रहता है। लेबर रूम के अंदर दो या तीन बड़े हाल हैं। हाल नंबर वन में 10-15 महिलाओं को दर्द का इंजेक्शन देकर रखा जाता है। महिलाओं को जितना दर्द सहना पड़ता है, ऐसे में उन्हें कपड़े आदि संभालने का भी ध्यान नहीं रहता है। हाल में कपड़ों से बनाए जाने वाले अलग- अलग कंपार्टमेंट की भी कोई व्यवस्था नहीं है, ऐसे में उनकी निजता व सम्मान उस समय तार-तार हो जाता है, जब कोई पुरुष सुरक्षाकर्मी या तीमारदार वहां पहुंचता है।
कोई भी सरकार आए होगी मर्दवादी ही!
भाजपा पीडीपी राज में स्वास्थ्य सुविधाओं का बंटाधार कर दिया गया है। अब लोगों को यह बात समझ में भी आने लगी है। हालांकि इसमें भी वही बात है, जनता के पास राजनीतिक विकल्प के रूप में जो भी पार्टी मिलेगी वह पुरुषवादी और पूंजीवादी मानसिकता वाली ही होगी।
⇔ (डा. देवेंद्र प्रताप)।
लेकिन, जम्मू में आकर ऐसा नहीं है कि उनकी हर मुराद पूरी हो जाती है। एसएमजीएस अस्पताल से कई बार बच्चे चोरी हो चुके हैं, लेकिन लेबर रूम के बाहर लगे दो में से एक सीसीटीवी कैमरा टूट कर लटका हुआ है। लेबर रूम के बाहर कई दर्जन तीमारदारों की भीड़ जमा रहती है, लेकिन उनके बैठने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। कई बार अंदर बच्चे का जन्म हो चुका होता है, लेकिन बाहर लोगों को तब पता चलता है, जब मां और बच्चे को वार्ड में शिफ्ट किया जाता है।
इतना ही नहीं, यदि प्रसव के बाद सरकार की तरफ से महिला को दिए जाने वाले पैसे के बारे में पता किया जाए तो बड़ा घोटाला सामने आ सकता है। अक्तूबर माह के दूसरे सप्ताह में इस अस्पताल में भर्ती हुईं 14-15 महिलाओं से बात करने पर पता चला कि उनमें से एक को भी सरकारी आर्थिक मदद नहीं मिली। इसकी बड़ी वजह महिलाओं का बैंक खाता न होना बताया गया। दूसरा पैसा हासिल करने की प्रक्रिया इतनी थकाऊ है कि कोई भी परिवार बच्चे के पैदा होने के बाद उसके लिए नहीं रुकता है।
जल्द प्रसव के लिए ट्वायलेट भी नहीं जाने दिया जाता
कुछ महिलाओं ने तो यहां तक बताया कि दर्द का इंजेक्शन देने के बाद उनको ट्वायलेट तक नहीं जाने दिया गया, जिससे उन्होंने बेड पर ही ट्वायलेट कर दिया। उसे साफ भी नहीं किया गया और उसी हालत में उनको प्रसव करवाने के लिए ले जाया गया। ऐसा इसलिए भी किया जाता है ताकि जल्दी प्रसव हो और मरीज को वार्ड में भेजा जाए। यह दबाव स्टाफ को भी अमानवीय व्यवहार करने पर मजबूर कर देता है।
ऐसी नारकीय स्थितियों के बाद भी इतनी बड़ी संख्या में लोग इसलिए यहां आते हैं, क्योंकि कभी यह अस्पताल बहुत अच्छी हालत में था, इसलिए लोगों का इस अस्पताल में बड़ा भरोसा है। दूसरी बात, जो इससे ज्याथा महत्वपूर्ण है, लोगों के पास विकल्प नहीं है।
लड़का, लड़की में फर्क करता है स्टाफ
लड़के के पैदा होने पर मांगे जाते हैं ज्यादा पैसे
लेबर रूम से बाहर आने के बाद अपनी बच्ची के साथ वार्ड में दाखिल एक महिला ने तो यहां तक कहा कि लेबर रूम में नर्सें व अन्य स्टाफ लड़का, लड़की में फर्क करते हैं। उसने बताया कि जब चार साल पहले इसी अस्पताल में लड़के को जन्म दिया था तो गेट के बाहर से उसके पति को अंदर लेबर रूम में बुलाया गया व इस खुशी के मौके पर पैसे भी मांगे, लेकिन इस बार जब लड़की पैदा हुई तो तीन घंटे बाद लेबर रूम के बाहर खड़े उसके पति को बुलाया गया। पति के आने पर पैसे तो फिर भी उन्हें मिले, लेकिन वे कुछ ऐसे चेहरा लटकाए थीं, जैसे उनकी गलती से लड़की पैदा हो गई।
लेबर रूम में तार-तार हो जाता है महिलाओं का सम्मानhttps://youtu.be/90G8VucdRVw
लेबर रूम में घुसने पर हाल में अर्धनग्न चीखतीं महिलाएं पड़ी रहती हैं पर उनको संभालने के लिए पर्याप्त स्टाफ नहीं रहता है। लेबर रूम के अंदर दो या तीन बड़े हाल हैं। हाल नंबर वन में 10-15 महिलाओं को दर्द का इंजेक्शन देकर रखा जाता है। महिलाओं को जितना दर्द सहना पड़ता है, ऐसे में उन्हें कपड़े आदि संभालने का भी ध्यान नहीं रहता है। हाल में कपड़ों से बनाए जाने वाले अलग- अलग कंपार्टमेंट की भी कोई व्यवस्था नहीं है, ऐसे में उनकी निजता व सम्मान उस समय तार-तार हो जाता है, जब कोई पुरुष सुरक्षाकर्मी या तीमारदार वहां पहुंचता है।
कोई भी सरकार आए होगी मर्दवादी ही!
भाजपा पीडीपी राज में स्वास्थ्य सुविधाओं का बंटाधार कर दिया गया है। अब लोगों को यह बात समझ में भी आने लगी है। हालांकि इसमें भी वही बात है, जनता के पास राजनीतिक विकल्प के रूप में जो भी पार्टी मिलेगी वह पुरुषवादी और पूंजीवादी मानसिकता वाली ही होगी।
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