सोमवार, 17 सितंबर 2018

जम्मू-कश्मीर बंद में भी 'मल' पालिटिक्स चालू आहे

(लोकेश चंद्र)।
इस समय जम्मू कश्मीर में निकाय और पंचायत चुनाव होने हैं। देश के प्रधान ठेकेदार और उनके सागिर्द मुस्तैद हो गए हैं। वे लोगों को बता रहे हैं कि देश में इन दिनों भ्रष्टाचार कम हुआ है। आजकल जनता और नेता बमुश्किल बिक रहे हैं। बापू जी के नाम और उनके काम को बेचने का ड्रामा शुरू हुआ है। हालांकि इसकी पटकथा पहले से ही प्रधान जी ने लिख रखी थी। अभी ड्रामे का मंचन शुरू हुआ। यही एक ड्रामा है खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) का।
गांधी जयंती पर इस साल पूरे देश को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) करने का फरमान प्रधान जी ने जारी किया था। इस फरमान पर नौकरशाहों ने ताबरतोड़ कागजों पर शौचालय बनाने का काम शुरू कर दिया। कुछ जमीन पर भी बने। जो बने उन शौचालयों में पानी की सुविधा नहीं। इसी कड़ी में प्रधान जी के आदेश के मुताबिक जम्मू-कश्मीर को भी महामहिम जी ने आननफानन में खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया। इस तरह भारत का सिर यानी जम्मू-कश्मीर ऐसा ग्यारहवां राज्य बन गया जो ओडीएफ घोषित हो गया। यानी भारत के सिर से मैला हट गया।
अब कुछ जमीनी हकीकत बयां कर लेते है। जम्मू शहर में नालों के किनारे बसे संभ्रांत लोग भी अपने घर में सेप्टिक टैंक नहीं बनाते, केवल शौचालय बनाते हैं। इसी तरह छोटी-छोटी पहाड़ी नदियों के किनारे बसे लोग भी अपने घर के मल को सीधे नदी में बहाते हैं। यहां तक कि उधमपुर में गंगा की बड़ी बहन कहलाने वाली देविका भी मल से त्रस्त है। जम्मू शहर के छन्नी, नानक नगर, त्रिकुटा नगर में यही हालत है। पुराने शहर में भी शौच को नालों में ही मुक्त किया जाता है। ऐसे में तंज होता है कि क्या राज्यपाल भी 'मल ' राजनीति कर रहे हैं?

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