शनिवार, 10 दिसंबर 2016
यदि नरेंद्र मोदी ने 55 करोड़ की रिश्वत नहीं ली तो दस्तावेजों की और भी सख्त जांच होनी चाहिए
आठ नवंबर, 2016 को शाम आठ बजे जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने की घोषणा दूरदर्शन पर कर रहे थे, उस समय नई दिल्ली में कम से कम पांच संस्थाओं के पास ऐसे दस्तावेज थे जिनमें यह दर्ज है कि नरेंद्र मोदी ने कथित तौर पर 55 करोड़ रुपये की रिश्वत ली है. उन दस्तावेजों से यह साफ नहीं है कि 13 अलग-अलग लेन-देन में मोदी को कथित तौर पर 55.2 करोड़ रुपये मिले या फिर नौ लेन-देन में 40.1 करोड़ रुपये. ऐसा लगता है कि इन दस्तावेजों में 30 अक्टूबर, 2013 से 29 नवंबर, 2013 के बीच के चार लेन-देन दो बार दर्ज हैं.
ये दस्तावेज पिछले कुछ महीनों से दिल्ली में घूम रहे थे. इन दस्तावेजों में यह दर्ज है कि सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय से जुड़े लोगों ने कथित तौर पर नरेंद्र मोदी को तब रिश्वत दी जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे. रिश्वत लेने वालों में सिर्फ मोदी का ही नाम नहीं है बल्कि कथित तौर पर इस सूची में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह, भारतीय जनता पार्टी की महाराष्ट्र इकाई की कोषाध्यक्ष शायना एनसी और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के नाम भी शामिल हैं.
17 नवंबर को इकनॉमिक ऐंड पॉलिटिकल वीकली ने इन दस्तावेजों पर जवाब जानने के लिए इन सभी को पत्र लिखे. लेकिन इस खबर के लिखे जाने तक ईपीडब्ल्यू को किसी का जवाब नहीं मिला. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सहारा समूह के विभिन्न कार्यालयों पर छापेमारी के दौरान आयकर विभाग ने इन दस्तावेजों को जब्त किया था. यह बात है 22 नवंबर, 2014 की.
आयकर विभाग में डिप्टी डायरेक्टर (इन्वेस्टिगेशन) अंकिता पांडे ने इन जब्त दस्तावेजों पर अपनी मोहर के साथ दस्तखत किए हैं. उनके अलावा विभाग के कुछ अन्य अधिकारियों और सहारा इंडिया समूह के एक प्रतिनिधि के दस्तखत भी इन दस्तावेजों पर हैं. जब मैंने इस बारे में तीन नवंबर को अंकिता पांडे से बात की तो उन्होंने बताया कि वे लंबी छुट्टी पर हैं. उन्होंने यह भी कहा कि वे इस बारे में मीडिया से बातचीत करने के लिए अधिकृत नहीं हैं इसलिए इन दस्तावेजों की सत्यता को न तो खारिज और न ही स्वीकार कर सकती हैं. इन दस्तावेजों की फोटो कॉपी कम से कम दर्जन भर पत्रकारों और करीब इतने ही सरकारी अधिकारियों के पास है.
इन दस्तावेजों को उस याचिका से जुड़े एक अंतरिम प्रार्थना पत्र में भी शामिल किया गया है जो मुख्य सतर्कता आयुक्त के पद पर केवी चौधरी की नियुक्ति को चुनौती देते हुए कॉमन कॉज ने सुप्रीम कोर्ट में दर्ज कराई थी. कॉमन कॉज ने इस एप्लीकेशन को 15 नवंबर, 2016 को सुप्रीम कोर्ट में फाइल किया है. इस एनजीओ के वकील प्रशांत भूषण हैं. भूषण ने इससे पहले नौ लोगों को इस बारे में पत्र लिखा था और ये सारे दस्तावेज उन्हें भी भेजे थे. यह बात बीते अक्टूबर के आखिरी हफ्ते की है.
भूषण ने जिन लोगों को ये दस्तावेज भेजे उनमें सर्वोच्च न्यायालय के दो सेवानिवृत्त जज - जस्टिस एमबी शाह और अरिजीत पसायत - भी शामिल हैं. ये दोनों सेवानिवृत्त जज उच्चतम न्यायालय द्वारा काले धन पर गठित एसआईटी के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष हैं. ये दस्तावेज भूषण ने सीबीआई के निदेशक, प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के निदेशक और केंद्रीय सतर्कता आयुक्त को भी भेजे. इनके अलावा उन्होंने सतर्कता आयुक्त तेजेंदर मोहन भसीन और श्री राजीव को भी ये दस्तावेज भेजे थे.
यह एक संयोग है कि मौजूदा सीवीसी केवी चौधरी उस वक्त केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड और राजस्व विभाग में अहम पदों पर थे जब आदित्य बिड़ला समूह के कार्यालयों पर अक्टूबर, 2013 और सहारा समूह के कार्यालयों पर नवंबर, 2014 में छापामारी की जा रही थी. सीवीसी के पद पर पहुंचने वाले वे भारतीय राजस्व सेवा के पहले अधिकारी हैं. आम तौर पर इस पद पर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की ही नियुक्ति होती आई है.
भूषण ने इन जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को जो पत्र लिखे उनमें पूछा गया है कि सरकार अपनी विभिन्न एजेंसियों के द्वारा जब्त दस्तावेजों से उभर रहे आरोपों की जांच क्यों नहीं करा रही है? उन्होंने सवाल उठाया है कि आखिर क्यों सरकार के विभिन्न विभाग इन दस्तावेजों पर चुप्पी मारकर बैठे हुए हैं?
जैन हवाला डायरी की यादें ताजा
ये दस्तावेज तकरीबन दो दशक पहले आए जैन हवाला कांड की डायरी की याद दिलाते हैं. ये डायरी 1996 में सीबीआई के हाथ लगी थी. इसमें यह दर्ज था कि कारोबारी सुरेंद्र कुमार जैन से जुड़े लोगों ने कई नेताओं के पास पैसे पहुंचाए हैं. इनमें भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, कांग्रेस नेता माधवराव सिंधिया, बलराम जाखड़, विद्याचरण शुक्ल, मदन लाल खुराना, पी शिव शंकर और आरिफ मोहम्मद खान के अलावा और भी कई लोगों के नाम दर्ज थे. निचली अदालत ने सीबीआई को इन नेताओं पर आरोप तय करने को कहा. लेकिन उच्च न्यायालय ने यह माना कि डायरी में दर्ज इन जानकारियों को सबूत नहीं माना जा सकता. इसके बाद मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा. इस मामले में तब देश की सबसे बड़ी अदालत का कहना था कि अगर कोई ऐसे दस्तावेज किसी सरकारी एजेंसी से मिलते हैं जिनमें किसी गैरकानूनी लेन-देन का जिक्र है तो उसकी पूरी और निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए.
कानूनी तौर पर देखा जाए तो आदित्य बिड़ला समूह और सहारा समूह के दफ्तरों से मिले दस्तावेजों पर जांच न करवाकर सीबीआई और आयकर विभाग ने सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों की अवहेलना की है. हालांकि, कॉमन कॉज की शिकायत पर होने वाली जांच का भी हवाला डायरी की जांच वाला ही हश्र हो सकता है लेकिन, दोनों मामलों में कुछ अहम अंतर भी हैं. इस बार जो दस्तावेज मिले हैं, उनमें सिर्फ नाम दर्ज नहीं हैं बल्कि हर नाम के सामने हिंदी और अंग्रेजी में यह स्पष्ट तौर पर लिखा है कि किसे कितने पैसे दिए गए. इसके अलावा इन दस्तावेजों में बाकायदा तारीख भी दर्ज है और यह भी कि पैसे किसके जरिए भेजे गए.
'हंगामाखेज दस्तावेज'
मुझे इन दस्तावेजों के बारे में सबसे पहले 28 जुलाई 2016 को पता चला. उस दिन इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में एक कार्यक्रम के बाद हुई अनौपचारिक बातचीत में मशहूर वकील राम जेठमलानी ने इन दस्तावेजों का जिक्र किया था. भाजपा के एक राज्यसभा सांसद समेत लगभग आधा दर्जन लोग वहां मौजूद थे. राम जेठमलानी ने मुझसे कहा कि जो दस्तावेज आयकर विभाग के अधिकारियों ने सहारा इंडिया ग्रुप के दफ्तरों से जब्त किये हैं, वे हंगामा मचा सकते हैं क्योंकि उनमें यह जिक्र है कि नरेंद्र मोदी ने सहारा से मोटी रकम नकद ली है. इसके बाद मैंने कई बार राम जेठमलानी से पूछा कि क्या वे मुझे ये दस्तावेज दिखा सकते हैं, लेकिन वे मुझे टालते रहे. इस मुलाकात के बाद मैंने कई हफ़्तों तक राम जेठमलानी को फोन भी किये लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
इस घटना के लगभग दो महीने बाद एक राजनेता से जुड़े व्यक्ति ने मुझे एक लिफाफा दिया. इसमें इन तमाम दस्तावेजों की प्रतियां मौजूद थीं. मैंने तुरंत ही सरकार में अपने सूत्रों और कुछ पत्रकार मित्रों से इस बारे में बात की तो मालूम हुआ कि मेरी पहचान वाले कम-से-कम 20 अन्य लोगों के पास ये दस्तावेज पहले से ही थे. इनमें से कुछ ने मुझसे कहा कि वे मुझे कुछ और ऐसे दस्तावेज भी दे सकते हैं जो तब तक मेरे पास नहीं पहुंचे थे.मैंने उन लोगों से पूछा कि इन दस्तावेजों से जुड़ी ख़बरें उन्होंने अब तक क्यों नहीं छापीं? उनमें से कुछ ने जवाब दिया कि वे इन दस्तावेजों की प्रमाणिकता को लेकर संशय में थे. फिर जब मैंने पूछा कि दस्तावेजों की सच्चाई जानने के लिए क्या उन्होंने उन लोगों से संपर्क किया जिनका नाम दस्तावेजों में था, उन्होंने जवाब दिया कि वे ऐसा करने वाले हैं.
एक वरिष्ठ पत्रकार का आरोप है कि सरकार ने एक ‘कवर-अप’ योजना भी तैयार कर ली है. इस योजना के अनुसार सरकार यह दावा करेगी कि ये दस्तावेज सहारा इंडिया ग्रुप के एक असंतुष्ट कर्मचारी ने अपने मालिक सुब्रत राय को ब्लैकमेल करने के लिए तैयार किये थे. सुब्रत राय को एक अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद दो साल तिहाड़ जेल में गुजारने पड़े थे. इधर, इस बीच मेरे पास मौजूद इन दस्तावेजों की संख्या लगातार बढ़ रही थी.
इसी दौरान मुझे मालूम हुआ कि 28 जून को राम जेठमलानी ने दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन को एक पत्र लिखा था. पत्र के साथ ही जेठमलानी ने आयकर विभाग द्वारा रेड में जब्त किये गए ये तमाम दस्तावेज और एक ऐसे आधिकारिक पत्र की कॉपी भेजी थी जिसपर आयकर अधिकारी अंकिता पांडेय के हस्ताक्षर थे. उन्होंने सत्येंद्र जैन से इस बात की जांच करवाने का निवेदन किया था कि क्या सहारा इंडिया समूह से कथित तौर पर जब्त किये गये दस्तावेज और आधिकारिक पत्र पर किये गये हस्ताक्षर एक ही व्यक्ति के हैं.
एक जुलाई को दिल्ली सरकार की ‘क्षेत्रीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला’ के सहायक निदेशक अनुराग शर्मा ने सत्येंद्र जैन के सचिव जी सुधाकर को पत्र लिखकर बताया कि दोनों दस्तावेजों के हस्ताक्षर एक ही व्यक्ति द्वारा किये गए प्रतीत होते हैं.
जब भी आयकर विभाग के अधिकारी छापे के दौरान कोई दस्तावेज जब्त करते हैं तो उन दस्तावेजों की जांच और मूल्यांकन किसी अन्य अधिकारी द्वारा किया जाता है. यह अधिकारी फिर एक विस्तृत ‘असेसमेंट रिपोर्ट’ तैयार करता है जिसमें आगे की कार्रवाई की रूपरेखा होती है. 16 नवंबर को द इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, सहारा से संबंधित कागजात पर हजारों पन्नों की एक भारी-भरकम रिपोर्ट तैयार की गई है जिसे इन दिनों एक असेसमेंट ऑफिसर देख रहे हैं.
दस्तावेजों के मुताबिक किसको कितना दिया गया?
अभी 15 नवंबर को ही ‘द हिंदू’ में जोसी जोसफ की एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी जिसका शीर्षक था कि ‘प्रशांत भूषण ने राजनेताओं को रिश्वत देने की जांच की मांग की’. यह रिपोर्ट प्रधानमंत्री मोदी और अन्य बड़े नेताओं के नाम का जिक्र किए बिना ही छापी गई थी. इसके बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में कुछ जानकारियां सार्वजनिक करके तहलका मचा दिया. उन्होंने उस दस्तावेज का खुलासा किया जो आयकर विभाग ने 15 अक्टूबर 2013 को आदित्य बिरला ग्रुप की कंपनी के परिसर से रेड के दौरान जब्त किया था. इस दस्तावेज में एक जगह लिखा था - ‘गुजरात सीएम - 25 करोड़ (12 डन - रेस्ट?)‘
हालांकि भाजपा प्रवक्ताओं ने तुरंत ही इस दस्तावेज में लिखी बातों को सिरे से नकार दिया लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने अब तक भी इस पर कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है. ‘कॉमन कॉज’ ने अपनी जनहित याचिका के साथ जो दस्तावेज कोर्ट में जमा किये हैं उनमें एवी बिरला समूह के एग्जीक्यूटिव शुभेंदु अमिताभ से हुई पूछताछ का लिखित ब्यौरा भी शामिल है. इस पूछताछ में उन्होंने बताया था कि दस्तावेजों में लिखा गया ‘गुजरात सीएम’ उन्होंने ‘व्यक्तिगत नोट’ के तौर पर लिखा था.
ये तीन एक्सेल शीट्स - जो जब्त किये गए दस्तावेजों का बेहद छोटा सा हिस्सा हो सकती हैं - कथित तौर पर क्या संकेत देती हैं? ये लॉग शीट्स दस महीनों में कुल 115 करोड़ रूपये के भुगतान दर्शाती हैं. ये दस महीने थे मई 2013 से मार्च 2014 तक. यानी 2014 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले तक.
शाइना एनसी को कथित तौर पर कुल पांच करोड़ का भुगतान हुआ. यह भुगतान 10 सितंबर 2013 से 28 जनवरी 2014 के बीच किसी ‘उदय जी’ द्वारा किया गया. एक अन्य कागज़ पर एक गुप्त सी प्रविष्टि भी दर्ज है जिसके अनुसार शाइना एनसी से ‘मदद’ मांगी जा रही थी कि वे ‘ए जनरल को बॉम्बे केस वापस लेने (समाप्त करने) के लिए’ कहें.
दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कथित तौर पर एक करोड़ रुपये लिए जो किसी ‘जायसवाल’ ने 23 सितंबर 2013 को उन्हें दिए.
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कथित तौर पर 29 सितंबर 2013 और एक अक्टूबर 2013 के बीच कुल दस करोड़ रुपये लिए. ये रुपये उन्हें दो किस्तों में किसी ‘नीरज वशिष्ठ’ द्वारा पहुंचाए गए. जबकि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कथित तौर पर चार करोड़ रुपये लिए जो उन्हें किसी ‘नंद जी’ ने एक अक्टूबर को दिए थे.
‘सीएम गुजरात’ को 15.1 करोड़ रुपये का कथित भुगतान 30 अक्टूबर 2013 और 29 नवंबर 2013 के बीच कुल चार किस्तों में किसी ‘जायसवाल जी’ द्वारा किया गया. इसके अलावा 30 अक्टूबर 2013 और 22 फरवरी 2014 के बीच आठ भुगतान अहमदाबाद में हुए. ये भुगतान ‘अहमदाबाद मोदी जी’ को ‘जायसवाल जी’ द्वारा ही किये गए और इनकी कुल रकम 35.1 करोड़ रुपये थी. साथ ही 28 जनवरी 2014 को भी ‘अहमदाबाद मोदी’ को पांच करोड़ रुपये का भुगतान किया गया. यानी ‘सीएम गुजरात’, ‘अहमदाबाद मोदी जी’ और ‘अहमदाबाद मोदी’ को कथित तौर पर कुल 55.2 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ.
क्या आयकर विभाग द्वारा जब्त किए गए इन दस्तावेजों की प्रमाणिकता सुनिश्चित करने और इनमें जिन भुगतानों का जिक्र है, उनकी हकीकत का पता लगाने के लिए एक स्वतंत्र जांच बैठाई जाएगी?
यह इस कहानी का अंत नहीं है.
देंख्ाें सहारा समूह से जब्त दस्तावेज-1, सहारा समूह से जब्त दस्तावेज - 2, सहारा समूह से जब्त दस्तावेज - 3
सभ्ाी दस्तवेज http://satyagrah.scroll.in/article/103382/if-modi-didn-t-receive-rs-55-crore-bribe-as-gujarat-cm-then-these-documents-should-be-investigated-more-rigourously?utm_source=rss&utm_medium=public पर प्रकाशित
साभ्ाारः सत्याग्रहडॉटस्क्रोलडॉटइन, writer- परंजॉय गुहा ठाकुरता
शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016
अयोध्या एक तहज़ीब के मर जाने की कहानी है
कहते हैं अयोध्या में राम जन्मे, वहीं खेले कूदे बड़े हुए, बनवास भेजे गए, लौट कर आए तो वहां राज भी किया, उनकी जिंदगी के हर पल को याद करने के लिए एक मंदिर बनाया गया, जहां खेले, वहां गुलेला मंदिर है, जहां पढ़ाई की वहां वशिष्ठ मंदिर हैं. जहां बैठकर राज किया वहां मंदिर है. जहां खाना खाया वहां सीता रसोई है. जहां भरत रहे वहां मंदिर है. हनुमान मंदिर है. कोप भवन है. सुमित्रा मंदिर है. दशरथ भवन है. ऐसे बीसीयों मंदिर हैं. और इन सबकी उम्र 400-500 साल है. यानी ये मंदिर तब बने जब हिंदुस्तान पर मुगल या मुसलमानों का राज रहा.
अजीब है न! कैसे बनने दिए होंगे मुसलमानों ने ये मंदिर! उन्हें तो मंदिर तोड़ने के लिए याद किया जाता है. उनके रहते एक पूरा शहर मंदिरों में तब्दील होता रहा और उन्होंने कुछ नहीं किया! कैसे अताताई थे वे, जो मंदिरों के लिए जमीन दे रहे थे. शायद वे लोग झूठे होंगे जो बताते हैं कि जहां गुलेला मंदिर बनना था उसके लिए जमीन मुसलमान शासकों ने ही दी. दिगंबर अखाड़े में रखा वह दस्तावेज भी गलत ही होगा जिसमें लिखा है कि मुसलमान राजाओं ने मंदिरों के बनाने के लिए 500 बीघा जमीन दी. निर्मोही अखाड़े के लिए नवाब सिराजुदौला के जमीन देने की बात भी सच नहीं ही होगी, सच तो बस बाबर है और उसकी बनवाई बाबरी मस्जिद! अब तो तुलसी भी गलत लगने लगे हैं जो 1528 के आसपास ही जन्मे थे. लोग कहते हैं कि 1528 में ही बाबर ने राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनवाई. तुलसी ने तो देखा या सुना होगा उस बात को. बाबर राम के जन्म स्थल को तोड़ रहा था और तुलसी लिख रहे थे मांग के खाइबो मसीत में सोइबो. और फिर उन्होंने रामायण लिखा डाली. राम मंदिर के टूटने का और बाबरी मस्जिद बनने क्या तुलसी को जरा भी अफसोस न रहा होगा! कहीं लिखा क्यों नहीं!
अयोध्या में सच और झूठ अपने मायने खो चुके हैं. मुसलमान पांच पीढ़ी से वहां फूलों की खेती कर रहे हैं. उनके फूल सब मंदिरों पर उनमें बसे देवताओं पर.. राम पर चढ़ते रहे. मुसलमान वहां खड़ाऊं बनाने के पेशे में जाने कब से हैं. ऋषि मुनि, संन्यासी, राम भक्त सब मुसलमानों की बनाई खड़ाऊं पहनते रहे. सुंदर भवन मंदिर का सारा प्रबंध चार दशक तक एक मुसलमान के हाथों में रहा. 1949 में इसकी कमान संभालने वाले मुन्नू मियां 23 दिसंबर 1992 तक इसके मैनेजर रहे. जब कभी लोग कम होते और आरती के वक्त मुन्नू मियां खुद खड़ताल बजाने खड़े हो जाते तब क्या वह सोचते होंगे कि अयोध्या का सच क्या है और झूठ क्या?
अग्रवालों के बनवाए एक मंदिर की हर ईंट पर 786 लिखा है. उसके लिए सारी ईंटें राजा हुसैन अली खां ने दीं. किसे सच मानें? क्या मंदिर बनवाने वाले वे अग्रवाल सनकी थे या दीवाना था वह हुसैन अली खां जो मंदिर के लिए ईंटें दे रहा था? इस मंदिर में दुआ के लिए उठने वाले हाथ हिंदू या मुसलमान किसके हों, पहचाना ही नहीं जाता. सब आते हैं. एक नंबर 786 ने इस मंदिर को सबका बना दिया. क्या बस छह दिसंबर 1992 ही सच है! जाने कौन.
छह दिसंबर 1992 के बाद सरकार ने अयोध्या के ज्यादातर मंदिरों को अधिग्रहण में ले लिया. वहां ताले पड़ गए. आरती बंद हो गई. लोगों का आना जाना बंद हो गया. बंद दरवाजों के पीछे बैठे देवी देवता क्या कोसते होंगे कभी उन्हें जो एक गुंबद पर चढ़कर राम को छू लेने की कोशिश कर रहे थे? सूने पड़े हनुमान मंदिर या सीता रसोई में उस खून की गंध नहीं आती होगी जो राम के नाम पर अयोध्या और भारत में बहाया गया?
अयोध्या एक शहर के मसले में बदल जाने की कहानी है. अयोध्या एक तहजीब के मर जाने की कहानी है.
(Rajiv Tyagi with Wasim Akram Tyagi on facebook)
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