- देवेंद्र प्रताप
इस समय भले ही पाकिस्तान की तरफ से सीमावर्ती इलाकों में गोलीबारी बंद है और इससे होने वाला जान-माल का नुकसान भी नहीं हो रहा है, लेकिन नार्को टेररिज्म यानी नशा आतंकवाद की वजह से जम्मू-कश्मीर में हर साल दर्जनों युवा अपनी जान गंवा रहे हैं। अंग्रेजी दैनिक ग्रेटर कश्मीर के मुताबिक इस समय जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी की दर 18 प्रतिशत है। यह बेरोजगारी की राष्ट्रीय दर से दस प्रतिशत अधिक है। यहां उद्योग धंधे बहुत ज्यादा नहीं हैं, ऐसे में लोगों की पहली प्राथमिकता सरकारी नौकरी ही होती है। अनुच्छेद 370 हटने और केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में औद्योगिक क्षेत्र में निवेश के जरिये देशी-विदेशी पूंजी निवेश का वादा किया था, लेकिन इसमें अब तक खास प्रगति नहीं हुई है। ऐसे में यहां बेरोजगारी की दर बहुत विकराल हो गई है। यदि बेरोजगारी दर के आंकड़ों से इतर यहां के किसी भी मुहल्ले में जाकर सर्वे किया जाए तो पता चलता है कि हर चार-पांच घर में एक-दो बेरोजगार युवा बैठा है। ऐसे में सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि प्रदेश के विभिन्न विभागों में लाखों रिक्त पदों को भरने के लिए जल्द से जल्द कदम उठाए। बेरोजगार युवाओं की फौज बढ़ना भी समाज में नशा बढ़ने के पीछे एक अहम वजह है। एक अनुमान के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में तेरह लाख से ज्यादा युवा इस समय नशे के चपेट में हैं। अमर उजाला में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक पुलिस ने पिछले चार साल में करीब 30 हजार करोड़ की हेरोइन बरामद की है। वर्ष 2020 में जहां पुलिस ने 128 किलो हेरोइन जब्त की थी, वहीं वर्ष 2023 में यह बरामदगी 200 किलो तक पहुंच गई। इन चार वर्षों में पुलिस ने 9400 नशा तस्करों को भी गिरफ्तार किया। पुलिस पर लाख सवाल उठाया जाए लेकिन आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2021 में जहां 2500 नशा तस्कर पकड़े गए थे, वहीं 2023 से अब तक 4500 से ज्यादा आरोपियों को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि इतनी कार्रवाइयों के बाद भी नशा तस्करी क्यों नहीं खत्म हो रही है। यदि गंभीरता से सोचा जाए तो पता चलता है कि इसके पीछे कहीं न कहीं बेरोजगारी भी जिम्मेदार है। सीमावर्ती इलाकों में सरकार को इस मसले को हल्के में नहीं लेना चाहिए। जब पाकिस्तानी गोलीबारी होती थी तब भी हर महीने इतनी मौतें नहीं होती थी, जितने नशे के ओवरडोज के कारण हो रही है। पाकिस्तान की तरफ से फैलाए जाने वाले नार्को टेररिज्म के चलते हर महीने जम्मू-कश्मीर में एक दर्जन से ज्यादा युवाओं की जान चली जाती है। इसके बावजूद यह दुर्भाग्य ही है कि पाकिस्तानी गोलीबारी थमने का मुद्दा राजनीतिक लाभ के लिए उठाया जाता है, लेकिन नशे से जितनी ज्यादा मौतें हो रही हैं, उस पर अब तक यहां के किसी राजनीतिक दल ने आंदोलन खड़ा करने का प्रयास नहीं किया। जिस घर में किसी युवा की नशे के कारण मौत होती है, तो उसका पूरा परिवार जीते जी मर जाता है। जिस घर का इकलौता चिराग बुझ जाता है, उसका दर्द अब तक राजनीतिक दल नहीं महसूस कर पाए हैं।
आतंकवाद और नशा तस्करी में गहरा नाता
आपको याद होगा कि कुछ वर्ष पहले गुजरात के बंदरगाह पर तीन हजार किलो से ज्यादा मादक पदार्थ पकड़े गए थे। तब भी इस पर बहुत गंभीर सवाल खड़े हुए थे। जहां तक जम्मू-कश्मीर की बात है, यहां नशे का आतंकवाद से भी रिश्ता है। सभी को पता है कि पहले दक्षिण कश्मीर के कई इलाके आतंकवाद के गढ़ हुआ करते थे, लेकिन अब जम्मू संभाग में भी आतंकवाद अपने पैर पसार रहा है। खासकर यहां के सीमा से सटे इलाकों में पिछले कुछ वर्षों में आतंकियों केे देखे जाने और मुठभेड़ में तेजी आई है। साफ है कि मादक पदार्थ की तस्करी और आतंकवाद में गहरा नाता है।
पंजाब की तरह जम्मू-कश्मीर में बढ़ने लगे नशामुक्ति केंद्र
पंजाब की तरह अब जम्मू-कश्मीर में नशा मुक्ति केंद्रों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी है। नशा किस तरह जम्मू-कश्मीर की जवानी को निगल रहा है इसे एक आंकड़े से समझ सकते हैं। वर्ष 2021 में 600 लोग, नशा छुड़ाने के लिए नशा मुक्ति केंद्र पहुंचे थे। यह आंकड़ा अब 1100 के करीब पहुंच गया है। हालांकि इन आंकड़ों से इसकी पूरी सच्चाई सामने नहीं आती है, क्योंकि यदि यह सच्चाई का महज दस प्रतिशत ही है। यह पता करना बहुत मुश्किल नहीं है। यदि आप अपने आसपास नजर डालें तो पता चलेगा कि यह आंकड़ा काफी ज्यादा होगा। जम्मू के अस्पतालों में दस वर्ष पहले जितने लोग नशा छुड़ाने के लिए पहुंचते थे, अब वह संख्या दोगुनी हो गई है।
जम्मू शहर में नशे के कारण लूट और हमले की वारदातें बढ़ीं
दस साल पहले जम्मू शहर का माहौल काफी अच्छा था, लेकिन नशा बढ़ने के साथ यहां अपराध भी तेजी से बढ़े हैं। इसके साथ शहर में सीसीटीवी भी बढ़ने लगे हैं। शहर में अब स्ट्रीट लाइट भी ज्यादा हैं और बाजारों, सार्वजनिक स्थलों, लोगों के घरों आदि में सीसीटीवी भी काफी लग गए हैं, फिर भी चोरी की वारदातें बहुत बढ़ गई हैं। इसलिए यह सब उपाय तो ठीक है, लेकिन समाज में गरीब और अमीर के बीच बढ़ती खाई और बेरोजगारी को दूर किए बिना इस तरह के अपराध पर रोक लगाना मुश्किल ही है। समाज में समरसता भी कम हो गई है, जिसके कारण मामुली बातों में लोगों के आपा खोने के मामले भी बढ़े हैं। अब रात में शहर में लोग अकेले निकलने से डरते हैं, क्योंकि नशेड़ियों के हथियार बंद गिरोह अब चार सौ-पांच सौ रूपये के लिए जान तक ले लेते हैं। पुलिस कहां-कहां लोगों को इन गिरोहों से बचाएगी। इसलिए हमारी सरकार जिस तरह मादक पदार्थ की तस्करी को हल्के में ले रही है, वह आने वाले दिनों में बहुत बड़ी समस्या बनने वाली है। ऐसे में यह जरूरी है कि इससे जुड़े मुद्दों को लेकर समाज के लोग आगे आएं।