भगत सिंह और उनके साथियों के दस्तावेजों के प्रकाशन के बाद भगत सिंह के निकट साथियों में से एक महावीर सिंह (16.9.1905-17.5.1933) अंडमान के कुछ दस्तावेज उनके भतीजे यतीन्द्र सिंह राठौर, जयपुर के प्रयासों से सामने आये हैं. अंडमान जाने से पहले का यह पत्र यहाँ प्रस्तुत है, दस्तावेजों में संकलित पत्र अंडमान पहुँचने के बाद का है: चमन लाल
पूज्यवर,
कृपा पत्र प्राप्त हुआ परन्तु जो सीधे रजिस्टर्ड भेजा था वह अभी तक 3 सप्ताह से दफ्तर में ही पड़ा हुआ है हिन्दी पढ़ने वाला यहाँ मुश्किल से कोई ही मिलता है यही कारण है कि वह पढ़ाने के लिए कानपुर अथवा लाहौर कहीं भेजा गया है और तब प्राप्त कर सकूंगा खैर समाचार तो मिल ही गया है. सम्प्रति हम लोग कुछ अच्छी तरह पर हैं पर भविष्य में निकट ही फिर उन्हीं कष्टों की आशा की जाती है. बन्धुवर दत्त त्रिचनापल्ली भेज दिये गये और जयदेव कपूर राज मेहन्दी तथा कमलनाथ तिवारी बैलूर में हैं.
प्रारम्भ में पत्र में लिखा था कि हमारे उत्तरदायी संरक्षक गण असमर्थ हैं और वे पराधीन हैं. हमें उनके साथ कुछ झगड़ा वगैरह नहीं करना चाहिए परन्तु आप यह ध्यान रखें कि हमारी दुनिया और आपकी दुनिया बिल्कुल विपरीत है. आप अपनी दुनिया से स्वतन्त्र हैं आपको मान अपमान से सर्वदा बाधित होने का कोई अवसर नहीं है परन्तु यहाँ उठते बैठते चलते फिरते पग-पग पर अपमान सहने पड़ते हैं ठोकरें खानी पड़ती हैं गालियाँ सुननी पड़ती हैं ऐसी दशा में मेरा तीन वर्ष का अनुभव बतलाता है कि यह जगह मनुष्य के स्वभाव किसी भी हालत में क्यों न हों बदल देती हैं उसके लिए सिर्फ दो ही उपाय बाकी रह जाते हैं एक तो उनकी नीच आज्ञाओं का पालन करना और धमकी तथा अपमान चुपचाप सहन करना जो कि मनुष्य को बिल्कुल, आत्माहीन, स्वार्थपरक तथा भीरु बना देता हैं आत्मदृढ़ता तथा विश्वास का बिल्वुफल लोप हो जाता है ऐसा मनुष्य बाहर निकलकर भी चारों ओर सिवाय निराशा और घोर अंधकार के कुछ भी नहीं देखता. ऐसी हालत में वह और भी पतित हो जाता है ऐसे उत्साहहीन पुरुष का जीवन केवल भार स्वरूप होकर दुखदायी हो जाता है. इसमें यदि कोई कहे शान्ति है तथा नम्रता है तो उसका खयाल बिल्कुल गलत है. ऐसी जगह में क्षमा की आवश्यकता नहीं है क्योंकि आप जानते हैं कि ये चीजें गुण उसी दशा में कही जा सकती हैं जब उनके विरुद्ध होने वाली दुष्टताओं को दमन करने वाला हर प्रकार का बल मनुष्य में हो और ऐसी ही हालत में शान्तिपूर्वक उनको क्षमा कर देना एक अनुपम गुण होता है और शान्ति एक दैवी सौंदर्य लेकिन जब अत्याचारी यह देखता है कि वह बलवान है और दूसरा पुरुष उसका कुछ भी नहीं कर सकता है ऐसा खयाल कर के हर प्रकार के अमानुषीय कृत्यों को करने पर उतारू हो जावे तो मनुष्य का कर्तव्य यह है कि वह उनके विरुद्ध अवश्य खड़ा हो, नहीं हो वह क्षमाशील तथा शान्तिप्रिय होने के स्थान में भीरू और कायर ही होगा. ऐसा मेरा ही मत नहीं है पर महात्मा गाँधी जी का भी है. हाँ दूसरा उपाय यह है कि मनुष्य को उपरोक्त बडे़ मनुष्यों के सिद्धांतों के अनुसार बुराई के खिलाफ जिस प्रकार हो सके तन मन धन से कमर बाँध के खड़ा हो जाना चाहिए. ऐसी हालत में जो मनुष्य ऐसा कार्य करता है वह इन आत्माहीन दुराचारियों से टकराता है, बदमाश, उदंड और कानूनों को न मानने वाला कहलाता है और फिर उसे कष्टों को सहन करना पड़ता है. पर जब अत्याचारी कष्ट पहुँचाकर थक जाते हैं तो फिर उस मनुष्य के साथ दुर्व्यवहार करने की सहज में उतनी चेष्टा नहीं करते हैं इसलिए जो आदमी इस चारदिवारी के अन्दर प्रवेश करे तो पहले वह हमारे संरक्षकों की भाषा के अनुसार उदंड और बदमाश बने, तभी मान रक्षा पा सकता है. कायर बनने पर हालत में अपमान ही मिलेगा जो शारीरिक कष्टों से बहुत ही दुखदायी होता है. आप विश्वास रखें कि, ये उपवास तथा यातना इत्यादि हमें बिल्कुल कष्ट नहीं देते बल्कि चौगुनी खुशी देते हैं, क्योंकि हम ख्यात करते हं कि हम अत्याचारों के विरुद्ध लड़ रहे हैं. रही बात हमारे संरक्षकगणों के व्यवहार की बातें सो वे जितना सरकार चाहती हैं उससे दस गुना करते हैं. दो चार गाली सुनना या बेंत की परीक्षा करना तो मामूली ही है. सरकार की मंशा है कि हम लोगों को भेड़ों की तरह रखा जावे तो ये लोग उतना भी नहीं रखना चाहते हैं. एक गड़रिया अपनी भेड़ों को अच्छी से अच्छी घास तथा सुखमय स्थान देने की सर्वदा चेष्टा करता है परन्तु यहाँ जितना बुरा हो सके उतना बुरा खाना और दस झरोंखे वाले कपड़े देते हैं परन्तु जब काम की बात आती हैं तो एक कोल्हू का बैल भी उसके सामने सर झुका जाता है. और सरकारी आज्ञा के विरुद्ध खाने के उपरान्त ही समय से एक घंटा पहले ले जाकर बन्द कर दिया जाता है और वह लोग भी बिचारे भेड़ों की तरह से मार बरदाश्त करते, उनकी इच्छानुसार कार्य करते रहते हैं. इस प्रकार जो बिगड़ी हुई आदतें हैं इन सैयादों की हैं उन्हें हमारे ऊपर भी कभी-कभी उपयोग में लाने की चेष्टा करते हैं और तभी हम लोगों के साथ झगड़े हो जाते हैं. अभी तक हम अपने जीवन-मरन के साथियों को आपके पत्र के साथ अक्सर पत्र में लिख दिया करते थे, जिससे उनको हमारा समाचार विदित हो जाया करता है.
परन्तु अब इस गुलशन के माली ने आजादी छीन ली है. पूज्यवर आपने भदवास के ठाकुर सरदार सिंह तथा धनराज सिंह जी या मेरे मित्रों के विषय में पूरा विवरण नहीं लिखा कृपया पूरा वृतान्त शीघ्र लिखियेगा. मुझे यह सुनकर अतीव आनन्द है कि मैं शीघ्र ही एक भावी पिता का बड़ा भाई बनूंगा. ऐसा सुनने में आया है कि भारत मंत्री सईमुयेल होर महाशय हम पर बड़े कृपालु हैं और शीघ्र ही हमें सौ आदमियों सहित एक सुन्दर समुद्र परीवेष्टित द्वीप, कालापानी की सैर करायेंगे. इसमें भी एक अपूर्व आनन्द ही होगा. यह आपका खयाल ठीक नहीं है कि मैं घर के लिए घबड़ाया करता हूँ, क्योंकि मैं जानता हूँ जिसे छोड़ ही दिया उसके लिए घबड़ाना क्या. पर हाँ माताजी और बुआजी के वृद्धत्व तथा निर्बलता का कभी खयाल आ जाता है, परन्तु उससे अधीर नहीं होता, क्योंकि मैं जानता हूँ कि उन्हें किसी प्रकार की मदद तथा तत्पर सेवा नहीं कर सकता हूँ. मेरे साथी डॉ. गयाप्रसाद को दौरे गत सितम्बर से शुरू हो गये, अब तक लगभग नौ आ चुके हैं. वे दवा पीते हैं और तीन माह से अभी तक कोई दौरा भी नहीं आया है, परन्तु दिमागी गड़बड़ी कभी-कभी मालूम होती है. परन्तु मुझे गत चार से अधिक वर्षों से कोई ऐसी शिकायत नहीं है. स्वास्थ्य अच्छा है परन्तु मुल्तान के वजन से करीब 15 पोंड कम हूँ, डॉ. साहब भी वजन में गिर गये हैं.
मुझे इससे बड़ा दुख हुआ कि जिनके लिए हममें से तीन आदमी हँसते-हँसते फाँसी के तख्ते पर झूल गये और बाकी ने आजन्म कारावास को सहर्ष आंलिगन किया, उन्हीं मनुष्यों, गरीब किसानों पर ठाकुर मंशी सिंह जी ज्यादती करते हैं. यह उन्हें उचित नहीं हैं, आप उन्हें समझा दें बच्चों की शिक्षा का उचित प्रबंध करावे, लली और बेटी सरोजनी देवी को मेरा आर्शीवाद कहियेगा. भाइयों को प्यार, माताजी और बुआजी, चाचाजी, दाऊजी तथा चाची वर्ग को चरण स्पर्श कहना, बाकी कुशल है दीदी कंचन कुअर को पैर छूना तथा बच्चों को प्यार कहियेगा. मोरमुकुट तथा हीरालाल जी को भी हाथ जोड़कर नमस्ते कहियेगा. बंसुध्रे वाले को तथा भाई फूल सिंह जिसे मैं केवल आपके पत्र द्वारा ही जानता हूँ, नमस्ते कहियेगा। अधिक क्या लिखू, सब कुशल है, मिलने की सूचना उन्हें देना.
आपका आज्ञाकारी
महावीर सिंह
महावीर सिंह के भतीजे यतीन्द्र सिंह के सौजन्य से
महोदय मैने आपका श्री महावीर सिंह जी द्वारा लिखा पत्र पढ़ा, इस पत्र को पढ़कर मैं अचंभित हुआ कि इसमें जिन घनराज सिंह व सरदार सिंह का जिक्र हुआ है वह मेरे बाबा व परबाबा का
जवाब देंहटाएंहै,
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